24 मार्च 2024
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19 मार्च 2024
साष्टांग दंडवत उच्चतम न्यायालय के निरहंकारी माननीय न्यायाधीश संजय करोल
भगवान श्री हरि विष्णु के चरणों में साष्टांग दंडवत ये उच्चतम न्यायालय के माननीय न्यायाधीश संजय करोल हैं । बीते दिनों इनका
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व्हाट्सएप युग में कम होता अपनापन और सम्मान
11 मार्च 2024
#पोसुआ_यूट्यूबर के युग में हम जॉम्बी लोग
#पोसुआ_यूट्यूबर के युग में हम जॉम्बी लोग
वर्तमान असमंजस का है। कई मुख्या मीडिया से हटाए गए पोसुआ क्रांतिकारी यूट्यूबर को देख कर लगता है कि भारत में लोकतंत्र खतरे में है। फिर कई पोसुआ यूट्यूबर को देखने के बाद लगता है कि खतरा नहीं है। इन खतरों के बीच आम आदमी असमंजस में दो-चार हो रहा है। पोसुआ से याद आया। अब हर पैसे वाला धनाढ्य जो नेता बनाना चाहता है, एक पोसुआ यूट्यूबर पालने लगा है।
मुद्दा है, क्रांतिवीर यूट्यूब चलाने वाले वही काम कर रहे हैं जो व्यापार करने वाले करते हैं। पैसा कमाना । सभी लोगों को व्यू चाहिए। जो जिस प्रकार से हासिल करें, वही ठीक। हमारे कई क्रांतिवीर यूट्यूबर 10 मिलियन सब्सक्राइबर होने पर हुंकार भरते हैं। जैसे कि अब वे सरकार बना और बिगाड़ देंगे।
पर10 मिलियन पर घमंड करने वाले क्रांतिवीर यूट्यूबर को देखना चाहिए कि सोशल मीडिया पर कई खूबसूरत महिलाएं अपने उरोज का अर्ध प्रदर्शन से सोशल मीडिया को अपना गुलाम बना ली। 10-20 मिलियन सब्सक्रिप्शन उसके लिए आम बात है। इसी में कुछ ग्रामीण या घरेलू महिलाएं रेस में आगे बढ़ रही है। वे अपने गुप्त अंग को दिखाने का ऐसा स्वांग करती है कि उसके जाल में फंसे मदहोश पुरुष उसे करोड़ व्यू देकर उसे मालामाल कर देते हैं । इस रेस में कई किन्नर भी क्रांतिवीर यूट्यूब चलाने वालों से बहुत आगे है। उनका सब्सक्रिप्शन करोड़ों में है। कमाई भी। ओशो के शब्दों में हमारे अंदर की छुपी हुई कुंठा है। मतलब आज सोशल मीडिया के मालिकों ने इसे पकड़ लिया है। सोशल मीडिया का एल्गोरिथम हमें वही दिखता है जो हम देखना चाहते हैं। तो अश्लीलता पड़ोसने वालों को अधिक भी व्यू हमारी कुंठा ही है।
खैर, बात इससे अलग। तो यह सब इसलिए की सोशल मीडिया पर हम सब जॉम्बी हैं। मदहोश और जॉम्बी को अपने जाल में फंसाने वाले कारोबारी। सभी लोग वही कर रहे हैं।
इस विज्ञापन वादी बाजारवाद की दुनिया में नेता अब कंपनी की तरह अपने प्रॉडक्ट्स को बेच रहे हैं । विज्ञापन एक भ्रम है । विज्ञापन हमेशा झूठ का किया जाता है । यह बात पूरी तरह से सच है। हम शांत होकर अच्छा बुरा सोचेंगे तो हमें कुछ दिखने लगेगा।
यह धारणाओं को रचने का दौर है । धारणा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, (कृत्रिम बुद्धिमत्ता) से भी रचा जा रहा। वहीं अभी नमाजी को बूट से मारने का धृणित कृत किया गया। धारणा बनाने वालों ने इसे अलग प्रस्तुति दी। उसने पकड़ लिया। वही लोग बंगाल पर चुप रहे। पुजारी की पिटाई पर चुप्पी साध ली। या अगर मगर लगाकर अपनी बात रखते हैं। यह चुप्पी आज से नहीं है । भारत-पाकिस्तान बंटवारे में लाशों से पटी रेलगाड़ी, नौवाखली से लेकर गोधरा, गुजरात से लेकर नूह तक, सभी जगह कोई चुप, तो कोई बोलता है।
बस, इसी से अब खतरा है । जो ज्यादा समर्थवान होगा, वह ज्यादा बोलने पर आपको मजबूर करेगा । आप अपने कब्जे में नहीं है। सोशल मीडिया और विज्ञापन से जो दिखता है आप उसे सच मान रहे हैं। आपके आसपास की सच्चाई भी आपको नहीं दिखती है। जैसे कि सरकार ने अभी दाबा किया कि गरीबी कम गई है आप अपने आसपास नजर उठाऐंग तो सच्चाई भी दिखने लगेगी।
अंत में कविवार दुष्यंत कुमार के शब्दों में,
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आज सड़कों पर लिखे हैं सैकड़ों नारे न देख,
घर अन्धेरा देख तू आकाश के तारे न देख।
बस
03 मार्च 2024
अथ श्री चोंगाधारी कथा
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