30 सितंबर 2018

"पति पत्नी और वो सह भौजाई पे चर्चा" एकल संगोष्ठी

"पति पत्नी और वो सह भौजाई पे चर्चा" एकल संगोष्ठी।

(अरुण साथी)

मिलॉर्ड ने जैसे ही इधर उधर मुँह मारने का लाइसेंस फ्री कर दिया वैसे ही अपने भाय जी के दिल में लड्डू फूटने लगा। वह भी कैडबरी टाइप। धड़ाम धड़ाम। आंख में आगे दर्जनों फेसबुक फ्रेंडनी का चिक्कन-चुप्पड़ चेहरा डांस करने लगा। भाय जी आंख बंद कर सपने में खो गए। कल जिसको इनबॉक्स में चैट किया वही सपने में छा गयी।

तभी भौजाई जी धमक गयी। आंख मूंदे, मुस्कुराते भाय जी को देख वे समझ गयी कि मिलॉर्ड के फैसले से कुछ ज्यादा ही खुश हो रहे हैं। बस क्या था। सुना दी।

"मिलॉर्ड का फैसला पढ़ लेला का जी। तनी बढ़िया से पढिया। साफ लिखल हो पत्नी का मालिक पति नै होबो हे। अब पत्नी के भी पावर हो।"

बस भाय जी के सपना चकनाचूर हो गया। दिल का लड्डू टूट गया। गुमसुम हो अखबार में एक एक अक्षर पढ़ने लगे। तभी भाय जी का नजर भौजाई जी के मोबाइल पे गया। उठा के फेसबुक, व्हाट्सएप चेक करने लगे। इनबॉक्स में बधाई मैसेज का भरमार। बधाई हो, पति की विस्तरी से स्त्री आज़ाद हो गयी। धारा 497 से आजादी मिली। उनके वही दोस्त-यार बधाई दिए हुए थे जिनकी बीबी को भाय जी ने बधाई दी थी।

भाय जी को अब भौजाई पे भरोसा नहीं रहा। बस क्या था। भाय जी फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सएप पे मिलॉर्ड के लिए मन का भड़ास खोल दिया। उंगली तोड़ दिया। सभ्यता संस्कृति का नाम ले ले के कोसने लगे। स्त्री व्यभिचारिणी हो जाएगी। मिलॉर्ड ने कुंठा में फैसला दे दिया। ये मिलॉर्ड कैसे बन गए, आदि, इत्यादि। और गज्जब तो यह हो गया कि कंमेंट में सभ्यता, संस्कृति के नाम पे मिलॉर्ड को गाली-गुत्ता करने वालों की कमी नहीं रही। पोस्ट हिट हो गया। पर ज्यादातर वही दोस्त थे जो भौजाई को इनबॉक्स में खुल्लम, खुल्ला प्यार करेंगे। हसबैंड से अब नहीं डरेंगे हम दोनों। लिख के बधाई दी थी।

आजकल भाय जी सदमे में है। कुछ बोल ही नहीं रहे। आपसे कुछ बोलेंगे तो बताईयेगा। वैसे सोंच रहे कि भौजाई की अध्यक्षता में "पति पत्नी और वो सह भौजाई पे चर्चा" एकल संगोष्ठी का आयोजन कर ही लें। का कहते है जी, ठीक रहेगा..न!!

28 सितंबर 2018

मर्दानगी पे चोट है सुप्रीम कोर्ट का विवाहेतर संबंध पे दिया गया फैसला।


विवाहेतर संबंध को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने जब यह फैसला दिया कि अब यह अपराध की श्रेणी में नहीं रहेगा तो एकबारगी पितृसत्तात्मक समाज में खलबली मच गई। जैसे यह उसकी मर्दानगी पे चोट हो। ज्यादा तर पुरुष, स्त्री को व्यभिचारिणी बता कर इसे प्रचारित करने लगे। कुछ महिलाएं भी पितृसत्तात्मक गुलामी की वजह से सभ्यता और संस्कृति की दुहाई देने लगी।

क्या था धारा 497

158 साल पुराने धारा 497 स्त्री के अधिकारों का हनन करती थी। जिसने पत्नी को पति द्वारा अपनी जागीर समझे जाने का अधिकार था। मतलब कि पत्नी यदि स्वेच्छा से किसी गैर मर्द से संबंध रखती है तो पत्नी के पति को अधिकार था कि वह मुकदमा करे जिसमे संबंध रखने वाले गैरमर्द को पांच साल की सजा का प्रवधान था। जबकि पति यदि किसी गैर स्त्री से संबंध रखती है तो स्त्री (पत्नी) को कोई अधिकार नहीं दिया गया। पत्नी न तो अपने व्यभिचारी पति पे मुकदमा कर सकती है और न ही गैर स्त्री पे।इसमे स्त्री के अधिकार के हनन की बात साफ थी।

खैर। अब जरा हकीकत पे गौर करें। घरों ने चलने वाले टीवी सीरियल पे जब विवाहेत्तर संबंध को अतिआधुनिक रूप सज्जा के साथ पेश किया जाता है और घरों की महिलाएं उस सीरियल को देखने की दीवानगी रखती है तब यह महज एक मनोरंजन होता है। परंतु हम भूल जाते है कि सिनेमा, साहित्य समाज का आईना होता है। उसी आईने में हम अपनी तस्वीर देखकर मजे लेते है।

अब जरा इधर देखिये। जहां पाँच पुरुष बैठे नहीं कि स्त्री वहां चर्चा में आ ही जाती है। कौन किस स्त्री से फंसा हुआ है। किसकी स्त्री कितनी अधिक कामुक है। कौन सी स्त्री फेसबुक पे सेक्सी लग रही। किस स्त्री ने इन बॉक्स में चैट किया। आदि इत्यादि। और बहन, बेटी, पत्नी यदि रोजगार, नौकरी, राजनीति, सामाजिक कामों से घर से बाहर कदम रखी नहीं कि वह वेश्या हो जाती है। कामुक समाज उसके स्त्री के स्तित्व को खारिज कर उसके देह को नापने लगता है। झूठ सच के किस्से गढ़ दिए जाते है। और बुजुर्ग से बुजुर्ग लोग गांव की दालान पे बैठ के कौन स्त्री कहाँ मजे ले रही इसी तरह के कहानी में मशगूल देखे जाते है। यहां तक कि कौन कौन अपनी बहू की बांहों में आनंदातिरेक है। यह कहानी भी खूब चलती है।

स्त्री ही वेश्यावृत्ति करती है पुरुष को तो अधिकार है।

इसी तरह की मानसिकता समाज की है। अभी हाल में ही मेरे इलाके के एक गांव में एक युवती के अपने प्रेमी से कामरत वीडियो वायरल हो गया। आजतक के रिपोर्टर के माध्यम से यह जानकारी मिली तो खबर के पीछे लग गया। मामला सामने जो आया वह चौंकाने वाला था। स्वेच्छा से प्रेमी युगल ने कामरत वीडियो बनाई। युवती को ब्लैकमेल कर भोगने की नीयत से गांव के ही कुछ युवकों ने उसके प्रेमी को पकड़ कर खूब पीटा और उसके मोबाइल छीन कर उससे मेमोरी कार्ड निकाल लिया। जब युवती ने ब्लैकमेल होना स्वीकार नहीं किया तो गांव के युवकों ने ही वीडियो को वायरल कर दिया।

मजे की बात यह कि खबर की पड़ताल के दौरान पचास से साठ साल के बूढ़ों ने भी अपने मोबाइल में यह वीडियो होने अथवा किसी अन्य से देखने की बात कबूल की। यह समाज का स्याहपक्ष है।सच है। गंदगी है। कबतक हम इसपे पर्दा डाल के छुपा रखेंगे।

विवाहेतर संबंध की हकीकत

विवाहेतर संबंध के कई पक्ष आपको अपने आसपास मिल जाएंगे। कई मामलों में पुरुषों द्वारा अपनी पत्नी और परिवार को त्याग कर गैर की पत्नी के साथ रहने की बात सामने आती यही तो कई मामले में स्त्री के द्वारा पति को त्याग कर गैर पति के साथ रहने की।

मतलब, विवाहेतर संबंध एक स्वेच्छिक, शारीरीक और आत्मिक संबंध है। इसे सामाजिक मान्यता नहीं है। कह सकते है कि यह एक सामाजिक बुराई है। फिर इसका हल सामाजिक स्तर पे ही निकलेगा। हालांकि तलाक के मामले में कानून कारगर है।

खैर, सुप्रीम कोर्ट में बैठे लोग को आप चाहे जितना मूढ़ मति कह लीजिए पर वहां फैसला भावनाओं में नहीं लिया जाता वहां फैसले मानवीय मूल्यों के साथ साथ  समानता, अभिव्यक्ति की आज़ादी और मौलिक अधिकारों के आधार पे होते है...।

बाकी तो सोशल मीडिया में ट्रायल भी होबे करते अउ सजा भी फांसी से कम नै! गन्हि महत्मा की जे जे!!

27 सितंबर 2018

बिकल्पहीन सवर्ण आंदोलन और स्वघोषित नेता

बिकल्पहीन सवर्ण आंदोलन और स्वघोषित नेता!

अरुण साथी

सवर्ण आंदोलन आज देश भर में जगह जगह अपनी उपस्थिति दर्शा रहा है। नतीजा, देश में सवर्णों की आर्थिक बदहाली, दलित एक्ट के दुरुपयोग और पूंजीपतियों के श्रेणी वाले दलित के आरक्षण छोड़ने की बातें बीच बहस में है।

सवर्णों में दो तबका इस बीच इस बहस में शामिल है। एक तबका नौजवानों की है। ये पुतला फूंक रहे है। पटना में आंदोलन कर रहे है। लाठी खा रहे है। इनमें कई खेमे है। सभी के अपने अपने लीडर। सभी खेमा अपने अपने लीडर को सबसे बढ़िया बता रहा।

नौजवानों के इस तबके को लगता है देश में उनके साथ अन्याय हुआ है। उसी के कंधे पे अब सारी जिम्मेदारी है। बूढ़े लोगों ने देश और समाज को डूबा दिया है। हमारा शोषण हो रहा है। हम इस दुनिया को बदल देंगे। इसी कड़ी में ये नौजवान अपनी गर्म खून के उबाल को सोशल मीडिया में निकाल रहे है। नतीजा समाज के नाम पे ही समाज के लोगों को माँ बहन की जा रही। नेताओं मंत्रियों को भी बख्सा नहीं जा रहा। परिणामतः एक तबका जिसे लगता है कि वह ज्यादा परिपक्व है। खामोश हो गया।

यही है दूसरा तबका। इसे बीजेपी समर्थक भी कह सकते है। इस तबके को  लगता है लालू यादव ज्यादा खतरनाक है बनिस्पत नीतीश कुमार और बीजेपी के। इस तरह आंदोलन और नोटा से लालू यादव की वापसी होगी। ठीक उसी तरह जैसे आनंद मोहन ने वोटकटवा की भूमिका निभाई और लालू यादव का रास्ता साफ आज फिर सवर्ण के नाम पे हो रहा है। यह तबका सोशल मीडिया पे कुछ छुपछुपा के कुछ कुछ लिख भी रहे और गाली सुन रहे है। निष्कर्ष कुछ नहीं दिखता।

लालू यादव का खौफ

बिहार के लालू यादव के खौफ का माहौल आजतक है। बीजेपी और जदयू के लोग कहने लगे कि उपाय क्या है, किसे वोट देगा! कहाँ जाएगा!

बिकल्पहीन राजनीति

तब सवर्णों के किशोरावस्था अथवा नौजवान वाले तबके को नोटा एक बिकल्प दिखाई दे रहे है। यह वैसे ही है जैसे शुतुरमुर्ग तूफान आने पे अपना सर बालू में छुपा के समझता है कि तूफान नहीं आया। नोटा का लाभ भी लालू यादव या महागठबंधन को मिलना है। देश मे कांग्रेस को। पर उस लाभ कोई जिक्र तक नहीं करेगा।

संगठन एक क्यों नहीं

हाँ, एक सवाल स्वघोषित सवर्ण नेताओं से आप सभी जयकारा लगाने वाले करके देखिए। कहिये की समाज हित की बात है तो छोटे छोटे संगठन एक होकर बिकल्प दीजिये। अपने अपने अध्यक्ष जैसे पद को त्याग दीजिये। देखिये समाज हित होगा तो नेता तैयार हो जाएंगे और स्वहित होगा तो तर्क देंगे..बस इस फर्क को समझ लीजिए तब कुछ निर्णय लीजिये..निश्चित ही यह आसन नहीं है..!!

04 सितंबर 2018

मौत से लड़कर रोहित का चला जाना गम दे गया...

मौत से लड़कर रोहित का चला जाना.. गम दे गया..
(अरुण साथी)

मुझे ऑक्सीजन की जरूरत है, कहाँ मिलेगा.…..तकलीफ हो रही है...रोहित का कॉल। एक लड़खड़ाती हुई टूटती आवाज में...

मैंने कहा डॉ मुरारी बाबू जे पास आईये...सर को कॉल किया तो उन्होंने कहा कि आ जाईये यहाँ व्यवस्था है...

रोहित पहुंचा पर ऑक्सीजन भी उसे नहीं बचा सका..एम्बुलेंस बुला ही रहा था कि मौत आ गयी...निर्दयी...

रोहित कौन था...

एक नौजवान। बरबीघा चौपाल व्हाट्सएप ग्रुप का एक हिस्सा। ग्रुप अब ग्रुप नहीं एक परिवार जैसा बन गया। सोशल मीडिया से संपर्क में आया । उसी परिवार का हिस्सा था रोहित। किडनी ट्रांसप्लांट होने के बाद भी कुछ साल बाद फिर खराब हो गया। चिकित्सा जगत फैल। दुबारा ट्रांसप्लांट नहीं हो सकता। डायलिसिस के सहारे रहना होगा। डॉक्टर ने फाइनल कह दिया।

डायलिलिस

हर एक दिन बाद करानी है। सरकारी व्यवस्था देखिये की अनुदान के बाद भी लगभग पर्यवेट इतना खर्च। सो आमआदमी थोड़ा पैसे के अभाव में नीयत समय पे डायलिसिस नहीं कराता। रोहित भी यही किया। दो दिन चार दिन बाद कराता था। हालांकि सोशल मीडिया पे मदद की गुहार ने सकारात्मक असर दिखाया और डायलिसिस के लिए पैसे भी लोगों ने दिए फिर भी वह बचत करता। और आखिर कर सोमवार को उसने आंखों के सामने हो दम तोड़ दी।

अदम्य साहसी
किडनी पेशेंट होतो हुए भी रोहित हर सामाजिक कार्यों में अपनी उपस्थिति दर्ज करता। अदम्य साहसी, परिश्रमी और तेज तर्रार था रोहित। मौत की आहट शायद सुन ली थी। दो दिन पुर फेसबुक पे लिख दिया। तबीयत ठीक नहीं लग रही। अंतिम समय मे भी खूब संघर्ष किया। खुद अकेले गाड़ी चला के जाना और डायलिसिस करा के आना। फिर काम मे जुट जाना। पंद्रह दिन  पहले ही ऑनलाइन प्रोडक्ट बेचने का काम शुरू किया। उसे परिश्रम करते देख हौसला मिलता। स्वतंत्रता दिवस पे खुद जलेबी बनाने की तस्वीर उसने साझा की। दुकान चलाना। सामना लाना।

सोशल मीडिया का परिवार

सोशल मीडिया भले ही नकारात्मक दिखता हो पर यह भी समाज जैसा ही है। समाज में अच्छे बुरे दोनों लोग है। हम अपना अपना समाज बना लेते है। अच्छे लोग अच्छों के साथ बुरे लोग बुरों के साथ। चौपाल एक परिवार जैसा बन गया। हर आदमी परिवार। नकारात्मक लोग दरकिनार हुए और आज भी गाली देते रहते है पर सकारात्मक लोग साथ खड़े है। कोई सदस्य बुरा करता है तो बहुत शर्मिंदगी होती है और लोग परिवार की तरह ही उलाहना देते है। चौपाली ने ऐसा किया। अच्छा करता है तब खुशी होती है और लोग सराहना करते है। समाज यही तो है।

समाज आदमी से बनता है। जैसा आदमी वैसा समाज। आईये अलविदा रोहित के साथ साथ हम सोशल मीडिया के समाज को सकारात्मक, रचनात्मक, सहयोगात्मक बनाए। बरबीघा चौपाल की तरह ही एक प्रतीक बने। रोहित के प्रति यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

एक अभिभावक की तरह उसने अंतिम क्षण में भी मुझे याद किया। उसकी लड़खड़ाती, कांपती, टूटती पर मौत से नहीं डरती आवाज़ कानों को गूंज रही है..
परिवार का एक सदस्य चला गया।

अंत में अरविंद मानव सर द्वारा भेजी गई गीता के श्लोक ही शाश्वत है..

मृत्यु जन्मवतां वीर जन्मना सह जायते।
अद्य वा अब्दशतान्तैर्वा प्राणिनां मरणं ध्रुवम् ।

      श्रीमद्भागवत महापुराण
        दशम स्कंध अ० १

जातस्य हि ध्रुवोरमृत्युं , ध्रुवं जन्म मृतस्य च ।
तस्मात् अपरिहार्थोयं ,न त्वं शोचितुमर्हसि।

गीता अध्याय २