16 मई 2022

एक मुट्ठी छांव की कीमत ₹20

एक मुट्ठी छांव की कीमत ₹20

एक मुट्ठी छांव की कीमत ₹20 होती है। यह पहली बार एहसास हुआ। दरअसल एनटीपीसी सीबीटी 2 एग्जाम देने के लिए पिछले दिनों कानपुर बच्ची के साथ जाना हुआ। एग्जाम के दिन है 1 घंटे बिलंब से ट्रेन पहुंची तो आनन-फानन में रेलवे स्टेशन से 27 किलोमीटर दूर परीक्षा केंद्र पर जैसे तैसे मात्र 1 मिनट पहले पहुंच सका। परीक्षा हॉल में बच्ची प्रवेश कर गई तब जाकर यह ख्याल आया कि अब 2 घंटे इंतजार कहां करें?

 परीक्षा हॉल के आसपास 1-2 भवन ही थे और जिसके दरवाजे बंद थे । बाहर बैठने की कोई व्यवस्था नहीं थी। एग्जाम सेंटर देने वालों के द्वारा यह जरा भी ख्याल नहीं रखा जाता कि विद्यार्थी और उसके अभिभावक कुछ देर कहां बैठेंगे।


 शायद यह इंडस्ट्रियल एरिया था। आस-पास कोई पेड़ पौधे नहीं। बबूल का एक छोटा सा पेड़ दूर दिखाई दे रहा था। जिसके आसपास 100 से अधिक लोग बैठे हुए थे। इसी बीच चाय के सामने चार पांच दुकानें थी। जिसके अंदर प्लास्टिक का छप्पर बनाकर छोटा सा बेड लगाकर बैठने की व्यवस्था की गई थी। दुकानदार से पूछने पर एक मुट्ठी छांव की कीमत ₹20 प्रति व्यक्ति बताया। कोई विकल्प नहीं था तो 2 घंटे के लिए ₹20 देकर वहां बैठ गया। 


प्लास्टिक के छप्पर के नीचे इतनी भीषण गर्मी थी कि कहा नहीं जा सकता। 


 दुकान में थोड़ा बोतल बंद शीतल पानी पी पीकर किसी तरह समय कटा और फिर वहां से कानपुर रेलवे स्टेशन पहुंचा। शाम को 7:00 बजे रेलगाड़ी थी। मतलब कि 6 घंटे तक रेलवे प्लेटफार्म पर इंतजार करना था। उम्मीद नहीं थी कि यह इतना भारी होगा। प्लेटफार्म पर इंतजार करना ठीक उसी तरह रहा जैसे ग्लूकोन डी के प्रचार में तपती धूप में सूरज शरीर से पूरी एनर्जी को खींच लेता हो। 6 घंटे में बेचैन हो उठा। पंखा भी आग उगल रहा। पहली बार पता चला कि कानपुर एक सर्वाधिक गर्म शहर है। 

खैर ट्रेन आई। एग्जाम स्पेशल ट्रेन थी तो ज्यादा भीड़ नहीं थी। कम ही लोग थे। केंद्र सरकार ने इतना ख्याल जरूर रखा के किसी तरह परीक्षार्थी परीक्षा देने के लिए पहुंच जाएं।


 किसी तरह से हम लोग ट्रेन पर सवार हुए और फिर ट्रेन खुल गई भारतीय रेल की परिपाटी यहां खूब दिखाई दी। रेलगाड़ी 5 घंटे विलंब से पटना पहुंची। सुबह 8:00 बजे की जगह दोपहर 1:00 बजे। खैर, बच्चों के जीवन में बच्चों के संघर्ष के साथ खड़े होना बच्चों को तो हौसला देता ही है खुद अपने को भी एक हौसला मिलता है। यह हौसला तब और बढ़ जाता है जब बेटी अपने, स्वावलंबन, सम्मान और स्वाभिमान के लिए दृढ़ता से संघर्ष कर रही हो। जीवन की सार्थकता यही तो है। कहते हैं ना संघर्ष जितना का बड़ा होगा सफलता उतनी बड़ी होगी.....





बिहार की अच्छी सड़कें बन गई काल

बिहार की अच्छी सड़कें बन गई काल


बिहार की सड़कों पर मौत नाच रही है। इतने अधिक लोगों की मौत हो रही है कि कहा नहीं जा सकता। एक्सीडेंट की खबर करते-करते करेजा कहां पर जाता है।

 छोटे से जिले शेखपुरा में लगातार मौतों का सिलसिला चालू है। राष्ट्रीय राजमार्ग 82 पर आज फिर हाईवा और ऑटो की टक्कर में 3 की जान चली गई। गुस्साए लोगों ने हाइवा ट्रक को फूंक दिया। पुलिस मूकदर्शक रही। जबकि प्रत्यक्षदर्शियों की माने तो ऑटो का संतुलन बिगड़ा और तेज रफ्तार हाईवा में उसने जाकर ठोक दिया। इतनी अधिक मौतों के पीछे कई कारण हैं। उनमें एक कारण अच्छी सड़कों पर हमें अभी तक चलना नहीं आया है। यातायात नियमों का पालन तो हमने सीखा ही नहीं है। 

और जिन की जिम्मेवारी यातायात नियमों के पालन कराने का है उनके लिए शराब पकड़ने सहित ढेर सारे काम हैं जिनमे नगद नारायण का दर्शन होता है। ऐसी मौतों को रोकने के लिए उन्हें फुर्सत नहीं।

हादसों में ज्यादातर कम उम्र के लड़कों की जान बाइक हादसे में जा रही है। लग्न के मौसम में इसकी रफ्तार चरम पर है। कम उम्र के लड़के के द्वारा बाइक चलाना, ट्रिपल लोडिंग करना, फुल स्पीड में चलना, रेसर बाइक चलाना आम बात है। रेसर बाइक खरीद कर गार्जियन ही दे रहे हैं। फिर बच्चों की लाश पर रोने के लिए भी वही आते हैं। 

यातायात नियमों में ड्राइविंग लाइसेंस की अनिवार्यता जिला परिवहन विभाग की होती है परंतु उसकी दुर्दशा बिहार के अन्य विभागों की दुर्दशा की तरह ही है। भ्रष्टाचार का बोलबाला ₹10 हजार देने पर अनपढ़ आदमी को भी लाइसेंस दे दिया जा रहा। जितने लोगों को ड्राइविंग लाइसेंस पिछले कुछ महीने में मिला है उनमें से सभी लोगों को कंप्यूटर का बिल्कुल ही ज्ञान नहीं। माउस भी नहीं पकड़ सकते परंतु यह सभी लोग कंप्यूटर ऑनलाइन टेस्टिंग में पास कर जाते हैं जबकि उन्हें कुछ भी ज्ञान यातायात नियम का नहीं है।

 पैसे लेकर इन्हें पास करा दिया जाता है। इसकी जांच हो तो 99% लोग को इस बात में पकड़े जा सकते हैं। फिर बगैर ड्राइविंग टेस्ट लिए ही ड्राइविंग लाइसेंस जारी हो जाता है। सब पैसे का खेल है और इस वजह से मौत सड़कों पर घूमती है। स्थिति यह है कि ऑटो और रिक्शा 10 साल के बच्चे भी चला रहे हैं परंतु पुलिस उस पर कार्रवाई नहीं करती। कम उम्र के लड़कों के बाइक अथवा अन्य वाहन चलाने पर उनके गार्जियन पर ₹25000 जुर्माना का प्रावधान है परंतु पुलिस यह नहीं करती है। हेलमेट, प्रदूषण, इंसुरेंस इत्यादि पर भी कठोर जुर्माना लगाने का प्रावधान केंद्र सरकार के द्वारा किया गया है परंतु पुलिस इस पर भी शिथिलता बरती है। कुल मिलाकर हमारे समाज की जिम्मेवारी तो है ही जिनके जिम्मे यह जिम्मेवारी है वह भी इसका पालन नहीं करते हैं और सड़कों पर मौत नाच रही है।