गुरुदेव ओशो ने मुझे आदमी बनाया...गुरु पूर्णिमा पे नमन #ओशो
(अरुण साथी)
किशोरावस्था में गुरुदेव #ओशो आशीर्वाद मुझे "मिट्टी का दीया" नामक पुस्तक के रूप में मिला। एक छोटी सी यह किताब मुझे कहीं कबाड़खाने में फेंकी हुई मिली थी। ठीक से याद नहीं। पढ़ने की आदत ने उसे मिला दिया। उस समय उसका कवर नहीं था तो शीर्षक नहीं होने से पता नहीं था कि यह मिट्टी का दिया है पर उस पुस्तक को पढ़ने के बाद जीवन में सोचने और जीने का तरीका ही बदल गया। बहुत दिनों बाद जाना कि वह ओशो की पुस्तक थी। बाद में ओशो को पढ़ते पढ़ते ओशो को कुछ कुछ जानने लगा, जीने लगा और गुरुदेव मानने लगा..
उस पुस्तक के कुछ अंश आज भी जेहन में जिंदा है। एक प्रसंग सुनाते हुए ओशो कहते हैं कि एक राजा को वित्त मंत्री की जरूरत थी और उसके लिए बड़े-बड़े गणितज्ञ पहुंचे। राजा ने सभी को एक कमरे में बंद कर दिया और कहा कि गणितीय जोड़-घटाव से जो दरवाजा खोलकर बाहर आएगा वही मेरा मंत्री बनेगा। सभी महान गणितज्ञ घंटों जोड़ घटाव करते रहे पर उन्ही में एक शांतचित्त बैठकर थोड़ी देर के बाद उठा और दरवाजा खोल कर बाहर चला गया। ओशो कहते हैं कि सबसे पहले सत्य को खोजो। सत्य है कि नहीं। यदि सत्य है तो वह मिलेगा। दरवाजा बंद नहीं था गणितज्ञों ने उसे खोजने का प्रयास नहीं किया। जीवन का मूल मंत्र ओशो ने वहां दिया। उसी प्रसंग में ओशो कहते हैं ईश्वर यदि सत्य है तो अवश्य मिलेगा और ईश्वर है, यह मैं भी कहता हूं। बस उसे खोजने की उत्कंठा होनी चाहिए। यदि सत्य है तो अवश्य मिलेगा। आगे पढ़ने की उत्कंठा हमेशा बनी रही और जीवन में बदलाव आते गए। प्रेम से लेकर जीवन जीने तक ओशो ने सब कुछ सिखाया। प्रेम में छल नहीं करना ओशो ने बताया। प्रेम को सबसे बड़ा धर्म ओशो ने बताया। धर्मों के प्रति कट्टरपन को ओशो ही दूर कर दिया।
ओशो कहते हैं कि यदि एक बच्चा हिंदू के घर में जन्म लें और मुसलमान के घर छोड़ दिया जाए और एक बच्चा मुसलमान के घर जन्म ले और हिंदू के घर छोड़ दिया जाए तब उसका धर्म क्या होगा? यह सोचिए तो धर्म के प्रति आपकी आस्था बदल जाएगी। वाकई यह सोचनीय बात है। किसी भी धर्म के बारे में आपको कौन बताता है। आपके माता पिता, मुल्ला, पंडित, पुरोहित यह थोपा गया धर्म है। यह धर्म आपने नहीं खोजा। धर्म एक सत्य है, शास्वत सत्य। पर उसे आप स्वयं ढूंढिए। महसूस कीजिए। वही धर्म सच्चा धर्म होगा। कई प्रसंग हैं पर जीवन को ओशो के मूल सिद्धांत के अनुसार हमेशा से मैंने छोड़ दिया है। नदी की धार की तरह बहते चलो। कहीं रुको मत। चलते चलो। रुक जाना तालाब बना देगा और तालाब का पानी सड़ जाता है, कीड़े लग जाते हैं। चलता चला जा रहा हूं सतत, अनवरत...
गुरु ब्रह्मा गुरुर्विष्णु: गुरुदेव महेश्वर:।
गुरु साक्षात्परब्रह्म तस्मैश्री गुरुवे नम:।।