चुनाव लोकतन्त्र की सबसे बड़ी ताकत है और यह आम आदमी को सत्ता के सिंहासन पर पहूंचाने का काम करती है, यह बात दिगर है कि सत्ता पर काबीज होने के बाद लोग उसका दुरपयोग करते है या उपयोग। उक्त बातें दैनिक भाष्कर के दिल्ली संस्करण संपादक हरिमोहन मिश्रा ने कही। श्री मिश्रा शेखपुरा में लोकतन्त्र और चुनाव विषयक गोष्ठी को संबोधित करते हुए कही। अपने विचार व्यक्त करते हुए श्री मिश्रा ने कहा कि अमेरिका का लोेकतन्त्र पुंजीवादी लोकतन्त्र है और ओबामा उसका मुखौटा, बबाजूद इसके ओबामा के द्वारा इंस्योरेंस बिल पास करबाना पुंजीबादियों की हार है। उन्होंने कहा कि लोकतन्त्र में चुनाव जनता को सबसे बड़ी ताकत देती है जिसकी वजह से मायावती आज मुख्यमन्त्री बनी हुई है। चुनाव आम आदमी को संवाद का मौका देती है और चौक-चौराहे पर राजनीति की चर्चा होती है। श्री मिश्रा ने साफ कहा कि भारतीय लोकतन्त्र भी पुंजीवाद से प्रभावित है और इसी का परिणाम है कि 60 प्रतिशत सांसद कारोड़पति है जिन्हें यह बात पता है कि सत्ता पैसा पैदा करती है और वह पैसा उनकी जेब में जाता है। इसी का नजीता है कि आपराधियों का एक बड़ा वर्ग राजनीति की शरण में आकर पैसा बना रहा है। अपने संबोधन में श्री मिश्रा ने कहा कि राजीतिज्ञों में वैचारिक रूप से एका है और सांसदों के वेतन के मामले मेंं सभी ने इसे सही ठहरा दिया। आज देश के पास पर्यावरण सहित अन्य महत्वपूर्ण मुददों पर कठोर कदम उठाने वाले राजनेता नहीं है। गोष्ठी को संबोधित करते हुए भाकपा के प्रदेश सचिव जितेन्द्र नाथ ने कहा कि पुंजीवादी लोकतन्त्र को मारना चाहता है और यह संधर्ष सालों से चलता आ रहा है। इस सन्दर्भ में उन्होनें भगवान बुद्ध को उदृत करते हुए कहा कि जब वैष्णववाद के खिलाफ बुद्ध ने हुंकार भरी तो इसी ताकत के बल पर चार पीठ बना कर बुद्ध को भी विष्णु का अवतार धोषित कर दिया गया। जितेन्द्र नाथ ने कहा कि आज आठ लाख इंजिनियर प्रति वर्ष पैदा हो रहा है और दस साल के बाद इंजिनियर तेल बेचने का काम करेगें और इसका उदाहरण बिहार सरकार की नियोजन नीति है। गोष्ठी में बोलते हुए आर. डी. कॉजेल के प्राचार्य भगवती शरण सिंह ने उदारीकरण को विकास का प्रर्याय बताते हुए कहा कि आर्थिक उदारीकरण से ही आज देश का विकास हुआ है और बेरोजगारी की समस्य घटी है तथा युवा एमबीए कर विदेश में नौकरी कर रहें है। गोष्ठी में पत्रकार संजय मेहता, निरंजन कुमार, अरविन्द कुमार, रंजीत कुमार, मनोज कुमार मन्नू, दीपक कुमार, संजीत तिवारी सहित बड़ी संख्या में लोग मौजूद थे।
एक वरिष्ठ अमरीकी अधिकारी ने कथित रूप से एक पत्र लिखकर भारत से कहा है कि भोपाल गैस मामले में और हर्जाना वसूल करने के लिए अमरीकी कंपनी डाओ केमिकल्स पर दबाव डालने से निवेश का माहौल ख़राब हो सकता है.
टेलीविज़न चैनल टाईम्स नाउ का कहना है कि उनके हाथ एक ई-मेल लगी है जो अमरीका के उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार फ्रोमन माइकल ने भारत के योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया को लिखी है.
उन्होंने लिखा है, “डाओ केमिकल्स के मामले पर बहुत शोर सुन रहे हैं. मुझे इस मामले की बहुत ज़्यादा जानकारी तो नहीं है लेकिन बेहतर होगा कि हम ऐसी बातों से बचें जिसका निवेश के माहौल पर ख़राब असर पड़े.”
स्पष्ट है कि निवेश से उनका इशारा भारत में अमरीकी निवेश की ओर है.
डाओ केमिकल्स के मामले पर बहुत शोर सुन रहे हैं. मुझे इस मामले की बहुत ज़्यादा जानकारी तो नहीं है लेकिन बेहतर होगा कि हम ऐसी बातों से बचें जिसका निवेश के माहौल पर ख़राब असर पड़े
अमरीकी अधिकारी
विश्लेषक इस ईमेल को अमरीका की ओर से एक चेतावनी की तौर पर देख रहे हैं.
उनकी ये ईमेल मोंटेक सिंह अहलूवालिया के ईमेल के जवाब में आई है जिसमें उन्होंने फ्रोमन माइकल से विश्व बैंक से रियायती दर पर मदद जारी रखने के लिए अमरीकी मदद की गुज़ारिश की है.
जब मोंटेक सिंह अहलूवालिया से इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि वो अमरीका के साथ ऐसे किसी मामले से जुड़े नहीं हैं जो अदालत में है (भोपाल गैस का मामला).
साथ ही उनका कहना था, “मैं इन दोनों ई-मेल के बीच कोई संबंध नहीं देखता हूं (यानि डाओ केमिकल्स और विश्व बैंक से रियायत के मामले में).”
डाओ केमिकल्स की भूमिका पर भारत सरकार कह चुकी है कि वो मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के फ़ैसले का इंतज़ार कर रही है.
अदालत को ये तय करना है कि जवाबदेही किसकी बनती है—यूनियन कार्बाइड, डाओ या एवरेडी की.
गृहमंत्री पी चिदंबरम का कहना था, “एक बार ये तय हो जाए फिर हम किसी को भी नहीं छोड़ेंगे.”
दबाव की भाषा
वाशिंगटन से विदेश मामलों की जानकार पत्रकार सीमा सिरोही का कहना है कि इस तरह की भाषा अक्सर दबाव डालने के लिए इस्तेमाल की जाती है.
उनका कहना था कि जब 1984 में भोपाल गैस त्रासदी हुई थी उस वक्त भी जॉर्ज बुश सीनियर ने भारत से कहा था कि मामले को ज़्यादा तूल नहीं दें क्योंकि इससे निवेश पर असर पड़ेगा.
ग़ौरतलब है कि हाल में ही ब्रिटिश पेट्रोलियम के तेल कुंओं से रिसाव के बाद अमरीका ने बिना किसी क़ानूनी मुकदमे के ही उनसे भारी हर्जाना वसूला है.
नवंबर में राष्ट्रपति ओबामा भी भारत के दौरे पर आ रहे हैं और माना जा रहा है कि यदि ये मामला बढ़ा तो दोनों देशों के रिश्तों पर असर पड़ सकता है.