27 अप्रैल 2015

गाँव के लोग ...

भूकंप ने सबको डरा तो दिया है पर गाँव के लोग बहुत कम भयभीत है । गेहूँ मैंजने का समय है और खलिहानों में ट्रेक्टर के साथ चलनेवाला हथिया थ्रेसर गडगड गरज रहा है । गाँव में भूसे का गर्दा उड़ रहा है । अपने बेटे को कोसते हुए शिबालक का कह रहे है " नलैकबा दिन-रात टंडेली करते रहो हो । हथिया थ्रेसर में बिना तीन-चार आदमी के मैंजनी होबो है । जीन्स औ टीसट झाड़ के गुटका चिबैते रहो है यहाँ हमरा गाड़-गोहलत होल है ।" भूकंप के बारे में पूछने पे कहते है " हमरा कहाँ पता लगलो, कट्टु ढो रहलियो हल, यहाँ किसान के जिनगी में तो रोज भूकंपे आबो है, एक बीघा में आठ मन गहूँम होलो हें औ ओकरा उपजाबे में ओकरा से जादे खर्चा हो । की करियो छो मासी पैदा है अबरी नै तो अगला बार होतई । 
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गाँव में अफवाह का भी कोई खास असर नहीं दीखता । सब अपने अपने कम के हिसाब से जुटे हुए है । आठ बजते बजते ज्यादातर लोग सो जाते है । नाइकी चाची चिल्ला रही है । "ऐतना पाप धरती पर बढ़ गेलो है बउआ त धरती डोलबे करते नै । कुल पपियहा सब लूट पाट के जग हवन करो है त नाग बाबा पुछिया हिला दे हखिन औ भूकंप आ जा है ।"
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उधर फुफ्फा सुराज सिंह गरम हें । जहाँ दुनिया बेटी के जन्म पे शोक मनाती है और गर्भ में ही मार देती है वहीँ उनकी गाय ने चौथी बार बाछा (बेटा) को जन्म दिया है । बहुत चिंतित है । " बोलहिं तो सोंचलिय की बाछी बिया जेतै त जरोह हो जात पर बाछे बिया रहल हें ।" 
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मैं उसी बाछा के साथ सेल्फ़ी खीच लिया । आज बिसतौरी (जन्म के बीस दिन बाद गाय का दूध पीने की परम्परा) पूरा हो गया है और इसी की माँ का दूध आज से पीने का सौभाग्य मिलेगा । देशी गाय का दूध अहोभाग्य होता है । ओशो कह गए है की मौत तो निर्धारित समय पे ही आनी है फिर मौत से पहने क्या रोज रोज मारना.? फिर ही भूकंप में मरे लोगों की वजह से मन गम में डूब जाता है । उनको एक श्रद्धांजली..

24 अप्रैल 2015

दिनकर की यादों को बिहार सरकार ने जमींदोज किया।(पुण्य तिथि पर राष्ट्रकवि का नमन।)

दिनकर की यादों को बिहार सरकार ने जमींदोज किया।
(पुण्य तिथि पर राष्ट्रकवि का नमन।)
अरूण साथी/शेखपुरा/बिहार
बिहार सरकार साहित्यकारों के प्रति किस प्रकार का भाव रखती है इसकी वानगी है दिनकर जी की स्मृति से जुड़ा शेखपुरा जिला मुख्यालय का ध्वस्त कचहरी भवन। इस भवन में दिनकर जी रजिस्ट्रार की नौकरी करते थे और बिहार सरकार इसे संभालने के बजाय इसे ध्वस्त कर अब यहां एक भव्य मॉल का निर्माण कराएगी। इस भवन को शेखपुरा नगर परिषद के द्वारा ध्वस्त किया गया है। इस दुखद घटना पर दिनकर जी की ही रचना के साथ पुण्य तिथि पर उनको नमन करता हूं......


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हे वीर बन्धु ! दायी है कौन विपद का ?
हम दोषी किसको कहें तुम्हारे वध का ?

यह गहन प्रश्न; कैसे रहस्य समझायें ?
दस-बीस अधिक हों तो हम नाम गिनायें।
पर, कदम-कदम पर यहाँ खड़ा पातक है,
हर तरफ लगाये घात खड़ा घातक है।

घातक है, जो देवता-सदृश दिखता है,
लेकिन, कमरे में गलत हुक्म लिखता है,
जिस पापी को गुण नहीं; गोत्र प्यारा है,
समझो, उसने ही हमें यहाँ मारा है।

जो सत्य जान कर भी न सत्य कहता है,
या किसी लोभ के विवश मूक रहता है,
उस कुटिल राजतन्त्री कदर्य को धिक् है,
यह मूक सत्यहन्ता कम नहीं वधिक है।

चोरों के हैं जो हितू, ठगों के बल हैं,
जिनके प्रताप से पलते पाप सकल हैं,
जो छल-प्रपंच, सब को प्रश्रय देते हैं,
या चाटुकार जन से सेवा लेते हैं;

यह पाप उन्हीं का हमको मार गया है,
भारत अपने घर में ही हार गया है।

है कौन यहाँ, कारण जो नहीं विपद् का ?
किस पर जिम्मा है नहीं हमारे वध का ?
जो चरम पाप है, हमें उसी की लत है,
दैहिक बल को रहता यह देश ग़लत है।

नेता निमग्न दिन-रात शान्ति-चिन्तन में,
कवि-कलाकार ऊपर उड़ रहे गगन में।
यज्ञाग्नि हिन्द में समिध नहीं पाती है,
पौरुष की ज्वाला रोज बुझी जाती है।

ओ बदनसीब अन्धो ! कमजोर अभागो ?
अब भी तो खोलो नयन, नींद से जागो।
वह अघी, बाहुबल का जो अपलापी है,
जिसकी ज्वाला बुझ गयी, वही पापी है।

जब तक प्रसन्न यह अनल, सुगुण हँसते है; 
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वीरता जहाँ पर नहीं, पुण्य का क्षय है,
वीरता जहाँ पर नहीं, स्वार्थ की जय है।

तलवार पुण्य की सखी, धर्मपालक है,
लालच पर अंकुश कठिन, लोभ-सालक है।
असि छोड़, भीरु बन जहाँ धर्म सोता है,
पातक प्रचण्डतम वहीं प्रकट होता है।

तलवारें सोतीं जहाँ बन्द म्यानों में,
किस्मतें वहाँ सड़ती है तहखानों में।
बलिवेदी पर बालियाँ-नथें चढ़ती हैं,
सोने की ईंटें, मगर, नहीं कढ़ती हैं।

पूछो कुबेर से, कब सुवर्ण वे देंगे ?
यदि आज नहीं तो सुयश और कब लेंगे ?
तूफान उठेगा, प्रलय-वाण छूटेगा,
है जहाँ स्वर्ण, बम वहीं, स्यात्, फूटेगा।

जो करें, किन्तु, कंचन यह नहीं बचेगा,
शायद, सुवर्ण पर ही संहार मचेगा।
हम पर अपने पापों का बोझ न डालें,
कह दो सब से, अपना दायित्व सँभालें।

कह दो प्रपंचकारी, कपटी, जाली से,
आलसी, अकर्मठ, काहिल, हड़ताली से,
सी लें जबान, चुपचाप काम पर जायें,
हम यहाँ रक्त, वे घर में स्वेद बहायें।

हम दें उस को विजय, हमें तुम बल दो,
दो शस्त्र और अपना संकल्प अटल दो।
हों खड़े लोग कटिबद्ध वहाँ यदि घर में,
है कौन हमें जीते जो यहाँ समर में ?

हो जहाँ कहीं भी अनय, उसे रोको रे !
जो करें पाप शशि-सूर्य, उन्हें टोको रे !

जा कहो, पुण्य यदि बढ़ा नहीं शासन में,
या आग सुलगती रही प्रजा के मन में;
तामस बढ़ता यदि गया ढकेल प्रभा को,
निर्बन्ध पन्थ यदि मिला नहीं प्रतिभा को,

रिपु नहीं, यही अन्याय हमें मारेगा,
अपने घर में ही फिर स्वदेश हारेगा।

धर्म से बड़ा विज्ञान जगत में दूसरा कोई नहीं ...ओशो

ओशो कहते है :-
विवेक और श्रद्धा मनुष्य के भीतर दो दिशाएं हैं । श्रद्धा का अर्थ है कि मैं मान लूँ, जो कहा जाय । दुनिया में जितने प्रचारवादी है, जितने प्रोपेगैंन्डिस्ट है, चाहे वे राजनीतिज्ञ हों, चाहे धार्मिक हों, वो चाहते है की वो जो कहें आप मान लें । 
उनकी कही बात से आप इंकार न करें । सबकी चेष्टाएँ हैं कि आपका विवेक बिलकुल सो जाय । आपके भीतर एक अंधी स्वीकृति पैदा हो जाय । 

इसका परिणाम यह हुआ है कि जो बहुत कमजोर हैं और जिनके भीतर विवेक की कोई संभावना नहीं है या जिनका विवेक बहुत क्षत था, क्षीण हो गया था या जो साहस नहीं कर सकते थे किसी कारण से अपने विवेक को जगाने का, वे सारे लोग धर्म के पक्ष में खड़े रह गए । और जिनके भीतर थोडा भी साहस था वो धर्म के विरोध में चले गए । उन विरोधी लोगों ने विज्ञान को खड़ा किया और कमजोर लोगों ने धर्म को संभाले रखा । 

धर्म के दरवाजे जबतक विवेकशिल के बंद रहेंगे तब तक वे विज्ञान के पक्ष में खड़े रहेंगे । धर्म के दरवाजे विवेकशील के लिए खुल जाने चाहिए । श्रद्धा धर्म का आधार नहीं रह जानी चाहिए । ज्ञान, विवेक, शोध को धर्म का अंग होना चाहिए । अगर यह हो सका तो तो धर्म से बड़ा विज्ञान इस जगत में दूसरा कोई नहीं होगा । धर्म की खोज करने वालों से बड़ा वैज्ञानिक कोई नहीं होगा । @प्रस्तुति:- अरुण साथी

बूढ़ा बरगद

बचपन का एक बड़ा हिस्सा इसी की गोद में बीता है और जाने कितनी ही यादों को समेटे हुए यह आज भी खिलखिला रहा है । हालाँकि अब यह बूढ़ा हो गया है पर जैसे ही इसके करीब गया तो लगा की इसने मुझे पहचान लिया है । एक अपनापन है मुझे इस बूढ़े बरगद से । जैसे यह भी कोई अपना ही हो; आत्मीय...
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इसकी गोद में बचपन का असीम सुख पाया ।
इसकी हवा में झूलती जड़ों ने हमें झूला झुलाया ।
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माँ सी विशाल हृदय शाखाओं ने चैन से सुलाया ।
माँ की मार से बचने के लिए दिन भर छुपाया ।।
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जेठ की गर्मी और भादो की बारिस से हमें बचाया ।
पशु-पंछी, बूढ़ा-बुतरू, सबने यहाँ जीवन गीत गाया ।।

23 अप्रैल 2015

गजेन्द्र की मौत पर उनको खुशी क्यों है..?

 (अरूण साथी)
जंतर मंतर पे आप पार्टी की रैली में किसान गजेन्द्र जी ने पेड़ से लटक कर आत्महत्या कर ली और आत्महत्या के बाद भी आप नेता केजारीबाल सहित अन्य रैली को संबोधित करते रह गए, यह संवेदनहीनता की पराकाष्ठा है और इसकी जितनी निंदा की जाय कम होगी। इसके पीछे राजनीतिक चमकाने को लेकर भी सवाल उठ रहे है तो इसकी भी न्यायिक जांच होनी चाहिए और सच को सामने लाया जाना चाहिए। इस तरह की अमानवीय घटना को यदि राजनीति चमकाने के लिए प्रायोजित किया गया होगा तो वह केजरीबाल हो यह कि भगवान उसे सजा मिलनी चाहिए।
इस सबके बीच एक बात भी ध्यान खिंचती है। गजेन्द्र की मौत पर एक खेमे में एकबारगी खुशी की लहर क्यों दौर गई? क्या यह सवाल नहीं उठता कि किसानों के मुददे पर घिरे मोदी सरकार का खेमा इस मौत पे मातम कम जश्न अधिक मना रहे है। इस खेमे में कहें तो सोशल मीडिया पर सक्रिया उनके भक्त और कुछ न्यूज चैनल भी शामिल नजर आ रहे है। इस पूरे घटनाक्रम में किसान की मौत का मुददा गौन हो गया और केजरीबाल की रौली में मौत होने और केजरीबाल के रैली करते रहने का मुददा प्रयोजित तरीके से प्रमुख हो गया, क्यों? 
कुछ बातें जो सामने आ रही है वह यह कि गजेन्द्र कोई इतना भी गरीब किसान भी नहीं थे कि आत्महत्या की नौबत हो। वह एक सम्पन्न किसान थे और वह साफा का व्यापारी भी, जिसकी तस्वीरें भी सामने आई है। उनके गांव में शव पहूंचते ही गांव के लोग उन्हें एक शहीद बता रहे है। गांव वालों की माने तो वह किसानों की आवाज सत्ता तक पहूंचाने के लिए अपनी जान की कुर्बानी दी। वे चाहते थे कि किसानों की सही आवाज सत्ता तक पहूंचे, तो क्या आज उसकी आवाज सत्ता तक पहूंच सकी, या कि जो माध्यम है, वही उनकी मौत की आवाज की दिशा को बदल दिया है?
वैसे किसानों की छाती चटटान सी होती है। उसे आत्महत्या नहीं करनी चाहिए। इस तरह के कायराना हरकत से कुछ लोग पूरी किसान कौम को शर्मसार कर रहे है। जो किसान बंजर जमीन की छाती को चीर कर अन्न उपजा ले, वह आत्महत्या क्यों करेगा? 
फिर भी किसानों की समस्याओं को कमतर आंका जाता है। अभी बिहार में धान खरीद में अरबों अरब का घोटाला हुआ है। सभी जिलों में असल किसान का धान व्यापारी औने पैने दामों पर खरीद लिए और फिर उसी को उचीं कीमत पर सरकार को बेच दिया, यह है किसानों की असल समस्या। खेती के समय किसानों को 280 पर बिकने वाला उर्वरक 500 सौ में खरीदनी पड़ती है और अधिकारी कालाबाजारियों से मोटी उगाही कर चुप रहते है, यह है किसानों की असल समस्या। केसीसी लॉन भी असल किसानों को नहीं मिलती और मिलती भी है तो बीस प्रतिशत कमीशन देकर, यह है किसान की असल समस्या। मेरे शेखपुरा जिले में (बिहार) 95 प्रतिशत सरकारी नलकूप बंद है और सरकारी फाइलों पर पच्चास प्रतिशत चालू और फाइलों पर चल रहे इन नलकूपों पर करोड़ों खर्च हो रहे है, यह है किसानों की असल समस्या। अनुदान पर मिलने वाले नलकूप हो यह कृषि यंत्र तीस से चालीस प्रतिशत कमीशन खाई जाती है और किसान  तड़प कर रह जाता है, यह है किसानों की असल समस्या। फसल बीमा का लाभ किसानों को मिलता ही नहीं है, यह है किसानों की असल समस्या। शेखपुरा जिले के किसान मेहनत कर प्याज उपजा लिए है पर आज उसे कोई खरीदने वाला नहीं है, हाय रे किसान...।
किसानों के समस्याओं का अंबार है और खुदा के लिए गजेन्द्र जी की मौत को जाया न जाने दिजिए और किसानों के बाजीब समस्याओं को लाइम लाइट में लाइए, राजनीति से हट कर, ताकि हासिए पर गए किसान फिर से खेती कर सकें और देश खुशहाल हो सके....केजरीबाल की धोर निंदा किजिए पर प्लीज मातम के विषय पर खुशी न मनाइऐ....और अन्त में बिहार में उसी समय आए चक्रवाती तुफान में 60 से अधिक लोग मर गए कोई हमारी भी तो फिक्र किजिए...

बरसाती नेता....(व्यंग्य)

बरसाती नेता एक अति विशिष्ट विशेषण है और यदि आप अब तक इससे अपरिचित है तो खड़े खड़े आपको राष्ट्रद्रोही और असमाजिक घोषित कर दिया जायेगा । क्यों? क्योंकि तब आप चुनाव के समय एकाएक उग आये विचित्रवीर नेताओं को इसलिए नहीं जानते होंगे कि आप वोट या तो नहीं देते या फिर वोट बैंक की राजनीती नहीं करते । करते होते तो देखते की कैसे चुनाव आते ही बरसाती नेता निकल आये है और टर्र टर्र कर रहे है ।

बरसाती नेता भी विचित्र विचित्र तरह के, कुछ धन पाने से पहले धन लगाने को राजनीती समझने वाले तो कुछ राजनीती को बाप दादा की बपौती मानने वाले । सभी प्रकार के बरसाती नेता मिलते है । पाँच सालों तक जनता को धनार्जन का जरिया समझने वाले नेताजी को एकाएक बरसात आते ही
जनता, जनार्दन नजर आने लगती है । पाँच सालों तक ये बरसाती नेता शीतनिद्रा में चले जाते है तभी ये सब होता है । इसलिए वे शीतनिद्रा में जाने पे जनता से भर मुंह बात नहीं करते, बात कम गाली ज्यादा और चूं चपड़ किये तो लात भी लगाते है । इन दिनों ऐन केन प्रकारेण धनार्जन पहली और आखरी प्राथमिकता होती है । ठेका - पट्टा लो और रोड हो या पूल-पुलिया सबको फाईलो पे बना दो, या कोई बिशेष बात हुयी तो सड़क भी बना देते है पर इसके लिए इनके अभियंत्रकी ज्ञान अपरंपार होती है । गाँव के खेत से रेत निकालो और नेताजी की दुकान से खुद का ब्रांडेड सीमेंट लाओ और जितना पब्लिक कहे उतना मिलाओ और बिल निकलने तक सड़क सुरक्षित रहे भगवान से दुआ मनाओ । धन अर्जित हो गया । कई स्कोप है । सबको करते खामोश है ।


चुनावी नेता दो चार माह में अपना बाजार ऐसे बनाते है जैसे समाज सेवा में उनकी कोई सानी न हो । अख़बार, टीवी और सड़क सब जगह नज़र आने की कला में इनको महारत होती है । वैसे महारत तो इनको अभिनय कला में भी हासिल है । चुनाव के पहले ये नायक की भूमिका तथा चुनाव के बाद खलनायक की भूमिका निभाते है । ऐन चुनाव के समय जाने कहाँ से इनको ब्रह्म ज्ञान प्राप्त होता और भींगी भींगी बिल्ली बन ये गरीब- गुरबा, दबे-कुचलों की भक्ति करने लगते है । बड़ा हो की छोटा सबका पैर पकड़ लेंगें । बेचारी जनता इमोशनली होकर फंस जाती है और नेता नाग बन डंस जाते है ।

कुछ धनपशु नेता जी भी चुनावी बरसात में निकल आते है और धन को वोट के लिए दोनों हाथ से लुटाते है । जनता समझती है की नेताजी बुद्धू है और वो कभी यह तो कभी वह चंदा के नाम पे पैसे ऐंठ लेती है । नेताजी के पैसे से कहीं यज्ञ होता है तो कहीं क्रिकेट टूर्नामेंट । कभी कोई अपने पल्ले का वोट बैंक दिखा के नोट ऐंठ लेते है । नेताजी सोंचते है बच्चू जितना लूटना हो लूट लो! जानता हूँ की राजनीती मल्टी टाइम इंभेस्टमेंट है और एक बार मौका मिला नहीं की मल्टी टाइम रिकवरी होने लगती है । एक लगाओ लाख पाओ । 

अब जब राजनीती हाई प्रॉफिट का धंधा बन गया है तो धंधेबाज लोग पूंजी फंसा रहे है पर हाँ ऐसे समय में समाजवाद, साम्यवाद, बुर्जुआ, सामंतवाद आदि- इत्यादि आदर्शों के सहारे राजनीती करने वाले खूसट- खर्राट लोग चाय चौपाल की हासिये पे बैठ सुनहले भारत पे भाषण देते रहते है; देते रहेंगे...

17 अप्रैल 2015

खौराहा कुत्ता ( व्यंग्य)

गाँव-देहात में यह बात सभी लोग जानते है कि गाँव में खौराहा कुत्तों का एक गिरोह होता है जो किसी शरीफ को गाँव में घुसने नहीं देते , उसपे झंझुआ के टूट पड़ते है । झंझुआहट में वो इतना हल्ला करते की पास से गुजरने वाला कोई भी सहम जाये ।
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एक खूबी यह भी होती है की वह जोर जोर से भौंकता है । इतना ही नहीं जब कोई मजबूत दुश्मन सामने हो तो वह और जोड़ से भौंकता है । वह अपने बड़े बड़े केनाइन दाँत को जबड़ा जान से ज्यादा फार के दिखता है ताकि सामने वाले को लगे की यह खतरनाक है । पर एक बात किसी को पता नहीं होता की खौराहा कुत्ता चाहे जितना जोर जोर से भौंके और बड़े बड़े दन्त दिखाए पर वह अपनी दुम हमेशा पिछुआड़े में दबाये रखता है । 
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खौराहा कुत्तों की जमात बहुत पवार फुल होती है पर सभी भौंकने की कला में ही केवल माहिर नहीं होते है बल्कि वो भ्रष्टाचार, चोरी, बेईमानी और धर्म और जाति के नाम पे मार काट करने की कला में भी पारंगत होते है । 
इन खौराहा कुत्तों के द्वारा गाँव में किसी शरीफ आदमी को धुसने नहीं दिया जाता है और चोर उचक्कों को इनके द्वारा दुम दबा कर स्वागत किया जाता है । गांव में जब भी कोई चोर घुसता है बेचारे निकल लेते है और जैसे ही कोई शरीफ आदमी घुसा नहीं की ये ऐसे भौंकने लगते है जैसे प्रलय आने वाली हो ।
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अब आपको अपने आस पास खौराहे कुत्ते नजर आने लगे है तो इसमें मेरा कोई दोष नहीं बस आप डरिये नहीं क्योंकि ये केवल भौंकते है, काटते नहीं...

07 अप्रैल 2015

झपसु मियाँ... ( एक सच्ची घटना)

(अरुण साथी)
"की हो झा जी, की मर्दे; आदमी साठा तब पाठा, वियाह कर ले बेटबा-पुतहुआ ठंढा हो जइतौ ।" झपसु मियाँ जब नित्य दिन की भाँति अपने दालान पे बैठने आये अपने मित्र कपिल झा को वियाह करने की सलाह दी तो एकबारगी सब ठठा के हँस पड़े । ऐसे ही थे झपसु मियाँ । बीते दिनों उनका इंतकाल हो गया तो गाँव भर के लोग उनके जनाजे में शामिल हुए और गाहे बेगाहे उनके कर्मो का बिश्लेषण होने लगा ।
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छः फुट से एक-आध इंच अधिक ऊँचा । गोरा-चिट्टा । संस्कारी । उजर बगबग कुर्ता, गमछा, धोती उनको दूर से पहचानने के लिए काफी था । पीछे ढेंका खोंस के धोती पहनना उनको जमींदारी रुबाब देता था । सभी उनको सदा- सर्वदा इसी रूप में देखा है । 75 साल की उम्र में भी प्रति दिन दाढ़ी बनाना उनका शगल था । नमाज, टोपी, दाढ़ी जैसे धार्मिक आडम्बर का प्रदर्शन करते उनको किसी ने नहीं देखा । गाँव में मस्जिद तो थी नहीं पर तीन किलोमीटर दूर बरबीघा के मस्जिद में वो जुमा का नमाज पढ़ने कभी  कभार जाते थे पर वही धोती पहन के, ढेंका खोंस के....
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झपसु मियाँ पाँच सौ घर हिन्दुओं की बस्ती बिहार के शेखपुरा जिले के बरबीघा स्थित बभनबीघा गाँव में एक मात्र घर मुस्लिम परिवार के मुखिया थे । वैसे तो उनका नाम नसीरुद्दीन था पर इस नाम से पूरे गांव में उनको कोई नहीं जानता । उनका बड़ा परिवार था और सबको संभाल के रखना उनकी जिम्मेवारी । बच्चों के नाम भी राजेश, छोटे, बेबी, रूबी.. यही सब । किसी को शायद ही एहसास हुआ हो की वो एक मुसलमान है । आपसी प्रेम, सौहार्द, भाईचारा जैसे सारे शब्द इस गांव और इस परिवार तक आकर लघु हो जाते ।
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गाँव  में खेती बाड़ी के मामले में बड़े किसान और आधुनिक खेती के दम पे अच्छी पैदाबर प्राप्त करने वाले । आज से तीस साल पहले अपने बचपन के बहुत सारे दिन उनके बिजली से चलने वाले एक मात्र बोरिंग पे स्नान करके बिताये है । उनके बगीचे से अमरूद, फनेला चुराये....।
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गाँव में किसी की भी मौत हो वो बेहिचक झपसु मियाँ के बोरिंग पे लगे बंसेढ़ी से बांस काट के ले आते और उसी की रंथि बनती । उनके यहाँ ख़ास अवसर पे जब भी भोज होता तो पूरा गाँव भोज खाने जाता । भोज की सारी ब्यवस्था के लिए गांव के हिन्दू ही प्रमुख होते और इसमें उनके परिवार का भी दखल नहीं होता । भोज से पहले भंडार संकलप करने के लिए पंडित जी आते तो उनको दक्षिणा भी झपसु मियाँ ही देते । और वो जब भोज खाने जाते तो एक साथ पंगत में बैठ कर खाते । 
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उनकी एक खासियत यह भी थी की यूँ तो वो ऊपरी तौर बहुत ही धीर और गंभीर थे पर अंदर से एक बच्चे का स्वभाव । गाँव में किसी की साली आती तो वो उसको छेड़े बिना नहीं छोड़ते चाहे वह उनके बच्चे की उम्र की ही क्यों न हो । जैसे ही किसी ने परिचय कराया की यह मेरी साली है तो बोल पड़ते.."बड़ी खूबसूरत हखुन, एतबर गो गाँव में इनखरा ले दूल्हे नै है हो मर्दे, वियाह करा दहीं..बेचारी मसुआल हखिन..।"

और अपने पडोसी पंडीजी की पत्नी को वो रोज चिढाते... " सुन्लाहीं हो पंडीजी नै हखिन औ उनकर घर में ऐ नया मर्दाना के जाते देखलिय..." और पंडीजी के कन्याय छिद्धीन छिद्धीन गाली देना शुरू कर देते ...
 और वही पंडीजी जी जब पैसे के अभाव में इलाज कराने से असमर्थ थे और मरणासन्न, तो झपसु मियां को तकलीफ होने लगी । पंडीजी के घर जाकर हाँक लगायी और रिक्शा बुला कर पैसा देकर उनको इलाज कराने भेज दिया । 
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सरस्वती पूजा का चंदा देने में भले ही गांव के बड़े बड़े बाबू साहेब बच्चों को दुत्कार देते पर झपसु मियाँ पहले प्रेम से चंदे की राशि को लेकर तोड़ जोड़ करते और फिर जेब से पैसा निकाल दे देते । 
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आज जहाँ धार्मिक उन्माद और अतिवाद हिन्दू और मुसलमान दोनों तरफ से चरम पे है तो वैसे में झपसु मियां को पढ़कर दोनों पक्षों के अतिवादी शर्मसार होंगें... भले ही वो कुतर्क कुछ भी दे... आदमी है, तो शर्म तो आएगी ही..राजतिज्ञ यदि धर्म का जहर न बोयें यो भारत में सौहार्द की फसल ऐसे ही लहलहाएगी....।

03 अप्रैल 2015

बेटी के साहस और संघर्ष को सलाम

बरबीघा (बिहार)
बेटी, ममता, त्याग की प्रतिमूर्ति ही नहीं साहसी भी होती है । ऐसा देखने को मिला तोयगढ़ गांव में जहाँ एक बेटी ने अरेंज मैरेज में तिलक के बाद लड़का का एक हाथ कट जाने पर अगले ही दिन परिवार के विरोध के बावजूद उसी से शादी की और उसकी सेवा में जुट गयी । 

यह साहसी बेटी विजय सिंह की पुत्री संध्या (ग्रेजुएट) है जिसने भागलपुर के सुल्तानगंज के निजी कम्पनी में इंजिनियर सौरभ से शादी की । दरअसल 20 मार्च को सौरभ का तिलक हुआ और 22 को रिस्तेदार को ट्रेन चढ़ाने के क्रम में उनका एक हाथ पूरी तरह कट गया । यह जानकारी संध्या के परिवार को मिली तो सबने तिलक का पैसा वापस लेकर दूसरी जगह शादी करने की सोंची पर स्वाति ने सबसे कहा की 26 को शादी हो जाती और फिर ऐसा होता तो आप क्या करते? मेरी किस्मत में इसी से शादी लिखी है तो इसी से करुँगी और 24 को पटना में इलाज के दौरान ही मंदिर में शादी हो गयी । संध्या का लड़के से एक दो बार ही मोबाइल से बात हुयी थी और उसने प्रेम, करुणा, त्याग, सहास और संघर्ष की ऐसी मिशाल पेश की कौन इसको सलाम नहीं करेगा......

02 अप्रैल 2015

यज्ञ का आयोजन या अधर्म...

बरबीघा, बिहार
मेरे यहां यह मौसम यज्ञ का मौसम है। दर्जनों गांव में महायज्ञ का आयोजन किया जा रहा है जिसमें करोड़ों रूपये खर्च होने है। इस तरह का आयोजन आज कोई धार्मिक कार्य नहीं रह कर एक आधार्मिक काम बन गया है।
वानगी देखिए, शेखपुरा जिले के चेवाड़ा थाना पर ग्रामीणों ने हमला कर थानाध्यक्ष सहित पुलिसवालों को इसलिए पीट दिया कि थानाध्यक्ष ने व्यापारियों और वाहन चालकों से मारपीट कर यज्ञ के नाम पे चंदा बसूली करने से लोगों को मना किया।
दूसरी वानगी यह कि बरबीघा में होने वाले महायज्ञ में एक बच्चे को जहां यज्ञ होना था उसी मंदिर के खंभे से बांध कर इसलिए बेरहमी से पीटा गया क्योंकि कथित तौर पर वह लोगों से इसी यज्ञ के नाम पर नकली रसीद छपा कर चंदा उगाही कर ठगी कर रहा था।
धर्म के ममज्र्ञ मुझे समझाने का कष्ट करें की यह

कौन सा और कैसा धर्म है?