अशांन्ति की तलाश
अरुण साथी
370 और 35 ए में तीन की प्राथमिकता है। ठीक वैसे ही इसे हटाये जाने से तीन को जलन हो रही है। एक पड़ोसी पाक। दूसरा अपने देश के नापाक। तीसरा युवराज गैंग।
जार जार घड़ियाली आंसू बहा रहे हैं। दुख का कारण कश्मीर है। 70 सालों तक कश्मीर से उनकी राजनीति चलती थी । आज एक झटके से राजनीति को खत्म कर दिया गया। बावजूद वे निराश नहीं है ।
राजनीति के बारे में कहा जाता है कि यह संभावनाओं का खेल है। बाबू लोग कश्मीर में अपनी इन्हीं संभावनाओं के तहत अशांति की तलाश में जाना चाहते हैं परंतु जाने नहीं दिया जा रहा, घोर कलयुग आ गया।
इंटरनेट बंद है।फोन बंद है। इससे भी काफी परेशानी हो रही है। पाकिस्तान प्रायोजित जितना झूठा वीडियो वायरल हो रहा है उसका कोई फायदा तो नहीं मिल रहा। अब इंटरनेट चालू होता है तो कश्मीर को लहकाने में मदद मिलती।
अब बारूद के ढेर पर कश्मीर बैठा है और बाबू लोग को आग लगाने नहीं दिया जा रहा । वाकई में यह घोर असंवैधानिक बात है।
इसीलिए बाबू लोग काफी नाराज हैं और इस कदम को असंवैधानिक इमरजेंसी का हालात और ना जाने क्या क्या कह रहे हैं। संविधान की हत्या कहना तो आम बात हो गई है। भला बताइए कि जिस कश्मीर में पहले पत्थरबाजों के गिरोह का आतंक था। अब ऐसी खबर नहीं आ रही तो बाबू लोगों को परेशानी तो होगी। अब इनकी राजनीति कैसे चलेगी। भाई लोकतंत्र में विपक्ष को भी जिंदा रहने का अधिकार है कि नहीं।
माना कि आप बहुत कुछ अच्छा कर रहे हैं परंतु सब कुछ अच्छा कर दीजिएगा तो विपक्षी क्या चुल्लू भर पानी मे डूब कर आत्महत्या कर ले।
इसी बीच एक मघ्घड़ काका ने पूछ लिया। अच्छा बताइए आज से पहले कश्मीर क्या बुद्धम शरणम गच्छामि का माहौल था? क्या कश्मीर में पत्थरबाजी नहीं होती थी? क्या कश्मीर में आतंकवादियों और सेना के बीच मुठभेड़ नहीं होता था? आए दिन लोग नहीं मारे जाते थे? सब टुकुर टुकुर उनका मुंह ताकने लगा...