28 अगस्त 2019

अशांन्ति की तलाश

अशांन्ति की तलाश

अरुण साथी

370  और 35 ए में तीन की प्राथमिकता है। ठीक वैसे ही इसे हटाये जाने से तीन को जलन हो रही है। एक पड़ोसी पाक। दूसरा अपने देश के नापाक। तीसरा युवराज गैंग।

जार जार घड़ियाली आंसू बहा रहे हैं। दुख का कारण कश्मीर है। 70 सालों तक कश्मीर से उनकी राजनीति चलती थी । आज एक झटके से राजनीति को खत्म कर दिया गया। बावजूद वे निराश नहीं है ।

राजनीति के बारे में कहा जाता है कि यह संभावनाओं का खेल है। बाबू लोग कश्मीर में अपनी इन्हीं संभावनाओं के तहत अशांति की तलाश में जाना चाहते हैं परंतु जाने नहीं दिया जा रहा, घोर कलयुग आ गया।

इंटरनेट बंद है।फोन बंद है। इससे भी काफी परेशानी हो रही है। पाकिस्तान प्रायोजित जितना झूठा वीडियो वायरल हो रहा है उसका कोई फायदा तो नहीं मिल रहा। अब इंटरनेट चालू होता है तो कश्मीर को लहकाने में मदद मिलती।

अब बारूद के ढेर पर कश्मीर बैठा है और बाबू लोग को आग लगाने नहीं दिया जा रहा । वाकई में यह घोर असंवैधानिक बात है।

इसीलिए बाबू लोग काफी नाराज हैं और इस कदम को असंवैधानिक इमरजेंसी का हालात और ना जाने क्या क्या कह रहे हैं। संविधान की हत्या कहना तो आम बात हो गई है। भला बताइए कि जिस कश्मीर में पहले पत्थरबाजों के गिरोह का आतंक था। अब ऐसी खबर नहीं आ रही तो बाबू लोगों को परेशानी तो होगी। अब इनकी राजनीति कैसे चलेगी। भाई लोकतंत्र में विपक्ष को भी जिंदा रहने का अधिकार है कि नहीं।

माना कि आप बहुत कुछ अच्छा कर रहे हैं परंतु सब कुछ अच्छा कर दीजिएगा तो विपक्षी क्या चुल्लू भर पानी मे डूब कर आत्महत्या कर ले।

इसी बीच एक मघ्घड़ काका ने पूछ लिया। अच्छा बताइए आज से पहले कश्मीर क्या बुद्धम शरणम गच्छामि का माहौल था? क्या कश्मीर में पत्थरबाजी नहीं होती थी? क्या कश्मीर में आतंकवादियों और सेना के बीच मुठभेड़ नहीं होता था? आए दिन लोग नहीं मारे जाते थे? सब टुकुर टुकुर उनका मुंह ताकने लगा...

26 अगस्त 2019

वह हृदय नहीं पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं

अरुण साथी
जम्मू कश्मीर सचिवालय पर तिरंगा झंडा लहराया। इस तस्वीर को देख मां भारती के पुत्रों का कलेजा चौड़ा हो गया। परंतु अफसोस यह की इसी मां भारती के कई कुपुत्र के सीने में अचानक से दर्द होने लगे हैं। वे काफी आहत दिखते हैं। उनके आहत होने का कोई ठोस वजह सामने नहीं आता। धर्म के नाम पे समर्थन एक वजह है। कश्मीर से 370 हटाए जाने के बाद कुछ लोग अंध विरोधी हो गए हैं। और उन्हें अपनी माटी, अपने देश और अपने देशभक्ति को भी कटघरे में खड़ा कर दिया। या यह भी कहें कि इसी बहाने उनका देशद्रोह खुलकर सामने आ गया।
महा कवि मैथिलीशरण गुप्त लिखते हैं "जो भरा नहीं भावों से, बहती जिसमें रसधार नहीं। वह हृदय नहीं पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं ।।
आज कितने पत्थर हृदय वाले लोग भारत मां के आंचल को कलंकित कर रहे हैं। दुनिया भर में भारत की बदनामी हो रही है। इसमें अरुंधति राय, शहला रशीद, कॉंग्रेस पार्टी से लेकर कई बड़े बड़े नाम हैं तो आम लोगों में मुख्य रूप से कई मुस्लिम समुदाय के लोग इसमें खुलकर सामने आए।
यह बेहद ही अफसोस जनक और दुर्भाग्यपूर्ण है कि जब मां भारती की बात आती है वहां भी लोग राजनीतिक विरोध के रूप में अपने ही देश का विरोध करते हैं। वैसे में छद्म सेकुलरिज्म का जो दाग देश में कई लोगों पर लगा है वह सच होकर सामने आता है।
दरअसल कोई भी सेकुलर उस समय चुप हो जाता है जब उससे इन बिंदुओं पर सवाल पूछा जाता है कि आखिर अपने ही देश का विरोध क्यों ? वैसे ही एक बहस के दौरान जब एक मित्र ने पूछ लिया कि बांग्लादेश को आजाद करा कर जब भारतीय सेना लौट रही थी तो बिहार के किशनगंज पूर्णिया इत्यादि  मुस्लिम बहुल क्षेत्र में ट्रेन  पर पथराव किया गया था। ऐसा क्यों ? इसका जवाब मैं नहीं दे सका।
आज ही कई लोग 370 को लेकर छाती पीट रहे हैं । परंतु मां भारती के पुत्रों का छाती चौड़ा हो रहा है। जो कश्मीर आज तक मेरे देश का हिस्सा नहीं था उसे देश का हिस्सा बनाकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश का मान बढ़ाया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर सवर्ण आरक्षण और तीन तलाक पर उनके पहल को लेकर ही लगातार उनके समर्थन में रहा हूं। परंतु अंध विरोधी मैं कभी नहीं हो सकता।
हां आलोचना होनी चाहिए। लोकतंत्र की यही मजबूती है। परंतु स्वस्थ आलोचना ही लोकतंत्र को मजबूत कर सकता है। अस्वस्थ, बीमार, कुंठित और हीन भावना से ग्रसित आलोचना देश को दुनिया भर में बदनाम करेगा। कर रहा है। आज अफगानिस्तान, सऊदी अरब, बहरीन, मालदीप, अफगानिस्तान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मुस्लिम बहुल देश होते हुए भी देश का सर्वोच्च सम्मान दिया जा रहा है। इससे भी देशभक्तों का सीना चौड़ा होता है। परंतु देश में वह लोग जो कहते हैं कि देश में बोलने की आजादी नहीं है। प्रधानमंत्री के मौत की दुआ खुलेआम सोशल मीडिया पर मांग रहे। गाली दे रहे । वैसे में उन पर यह देशद्रोही होने का आरोप लगता है तो इसको झूठ कैसे कहा जा सकता।

14 अगस्त 2019

मौत से साक्षात्कार

मौत से साक्षात्कार

अरुण साथी

यह दूसरी बार घटना घटी। मौत मुलाकात करके लौट गयी। गुरुवार के दिन दोपहर दैनिक जागरण कार्यालय बाइक से जा रहा था। आपाधापी और जद्दोजहद, जिंदगी का एक हिस्सा बन गया हो जैसे। प्रोफेशनल, व्यवसायिक और पारिवारिक। इन तनावों के उथलपुथल के बीच दस किलोमीटर बाइक का सफर। बीच में कई फोन कॉल्स। सभी को रुक कर तो एक को चलते चलते रिसीव कर लिया। अमूमन ऐसा नहीं करता। बाइक सड़क पे थी और मन जिंदगी की जद्दोजहद में। स्पीड चालीस के नीचे।

आमतौर पे अपनी बाइक से ही जाता था पर माइलेज नहीं देने की वजह से भाई का बाइक ले गया। संकेत साफ था। बाइक स्टार्ट नहीं हो रही थी। रास्ते मे दो बार बंद हुई।
खैर, फिसिर फिसिर मेघ के बीच चल रहा था। आजकल मन के कोने से आवाज उठा रही थी। रुक जाओ। बहुत भागमभाग है। ठहरो। फिर लगता। यही परिश्रम तो अपनी पूंजी है। शेष क्या! न पुरखों का धन। न सहारा। चलो रे मन। चलते रहो।
इसी सब के बीच सड़क किनारे खड़ा एक बाइक सवार अचानक सामने आ गया। पीछे से ट्रक। एक दम से ब्रेक लिया और धड़ाम। फिर होश नहीं। लगा कि मर ही गया। फिर होश आने लगा तो कई परिचित चेहरे संभाल रहे थे। मदद के हाथ कई लोगों के बढ़े। कोई मेरे मित्रों को सूचना दे रहे थे तो कोई मुझे सांत्वना। तब मैंने अपने सर से हेलमेट खोला।
सभी ने डॉ कृष्ण मुरारी बाबू के पास पहुंचाया। प्राथमिक उपचार शुरू हुआ। हाथ में फ्रेक्चर। पैर में चोट। हेलमेट ने बचा लिया।
फिर तो इस नाचीज की खैर खबर लेने दोस्तों और हितचिंतकों का हुजूम उमड़ पड़ा। सभी ने राहत की सांस ली।
फिर केहुनी के नीचे की हट्टी टूटने की वजह से ऑपरेशन की बात हुई। मुरारी बाबू ने बिहारशरीफ के डॉ अमरदीप नारायण को रिकमेंड किया। डॉ फैसल अरसद सर ने भी सही कहा। सो चला गया। ऑपरेशन हुआ।
ऑपरेशन थियेटर के अंदर जब मुझे बेहोश किया गया अथवा होश में आने से पहले। अवचेतन मन फिर मृत्यु से साक्षात्कार कराता रहा। संवाद भी हुआ। जीवनचक्र चल पड़ा। उल्टा। पुराने दिन याद आ गए। घर के खामोश चूल्हे। माँ की मौन आंखें। पिता का अधर्म। बचपन का अभाव। विवाह। तिरस्कार। अपमान। अपनों का परायापन। परायों का अपनत्व।
किशोर होते ही घर का बोझ। अपनी इच्छाओं की हत्या। भाई का लक्ष्मण होना। पत्नी का प्रेम। रेंगते हुए चलना। फिर उठ बैठना। फिर अपने का पराया होना। पैर खींचना। दोस्तों का प्रेम। और नफरत भी। भरोसे के लिए जीना। भरोसे का टूट जाना। फिर अपने बच्चों का बड़ा हो जाना। पिता के प्रति उसका समर्पण। बच्चों में अभाव का अहसास।
फिर किसी का कहना,
मौत तो सुनिश्चित है। फिर। डर कैसा। सुनों। लड़ता रहूंगा। चलता रहूंगा। गिरता रहूंगा।
इन्हीं संवादों के बीच। अवचेतन मन कराह भी उठा। जैसे सामने से कोई कह रहा था। सुनो। दुनिया गोल है। सपाट नहीं। रिश्ते, नाते, अपना, पराया। कोई किसी के साथ नहीं मरता। किसी के जाने के बाद भी जिंदगी चलते रहती है। वैसे ही जौसे। रेलगाड़ी का सफर। जिसको जहां उतारना है, उतरे। चढ़ना है, चढ़े। जिंदगी और मौत। उतारना। चढ़ना। छुक छुक। छुक छुक।