03 फ़रवरी 2023

देश की 40% पूंजी 1 % के हाथ में है और बजट भी उसी के साथ में है

देश को 40% पूंजी 1 %  के हाथ में है और बजट भी उसी के साथ में है


बजट को समझने के लिए अर्थ नीति का ज्ञान होना वर्तमान में आवश्यक है परंतु मोदी सरकार के आने से पहले बजट को आम आदमी की समझ का माना जाता था । खैर, 2014 के बाद बात बदल गई। लोकलुभावन बजट की परिपाटी से हटकर कठोर फैसले हुए।  इस बार का बजट ऊपरी तौर पर लोकलुभावन है।

बजट को आम आदमी की नजर से भी देखना चाहिए। कम समझ रखते हुए भी कल से बजट को पढ़ते देखते कई बातें स्पष्ट रूप से सामने आ गई।

बजट को समझने से पहले एक महत्वपूर्ण बात जो गौण हो गई उसे समझना जरूरी है। इसी जनवरी महीने में विश्व आर्थिक मंच w.e.f. के वार्षिक बैठक दावोस में हुआ । यहां ऑक्सफैम इंटरनेशनल ने रिपोर्ट पेश किया । इस रिपोर्ट को असमानता का रिपोर्ट कहा गया।


इस रिपोर्ट में कहा गया कि भारत में कुल 1% धनी लोगों के पास भारत की कुल पूंजी का 40% हिस्सा है। 

इतना ही नहीं, निचले पायदान से 50% आम लोग भारत की पूंजी के मात्र 3% पर पल रहे।

उपरोक्त दो बातों को समझ कर यह स्पष्ट कर लेना चाहिए कि भारत में अमीर, अमीर होते रहेंगे और गरीब को गरीब होते जाना है।


हालांकि गरीब और अमीर की असमानता के यह खाई आज की बात नहीं है। दरअसल यह मनमोहन सिंह के 1991 में लाए गए उदारीकरण की नीति का ही परिणाम है।


देश के दोनों बड़ी राष्ट्रीय पार्टियां पूंजीवादी पार्टियां हैं। ऐसे में लोक कल्याण और जनकल्याण दोनों बातें अब केवल सजावटी रह गई।


गौर करने की एक बात ऑक्सफैम इंटरनेशनल के रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि देश में धनी लोगों पर 10% अतिरिक्त टैक्स लगाकर गरीबों के पढ़ाई पर खर्च किया जाना चाहिए। साथ ही  कहा कि देश में अरबपतियों पर 2% का कर लगाकर कुपोषण के शिकार लोगों को मदद पहुंचाई जानी चाहिए।


इस बजट में यह सब गायब है। 

आम आदमी की भाषा में अगर कहे तो जब भी कोई जनधन खाता, मुफ्त बिजली और मुफ्त रसोई गैस कनेक्शन की बात करें तो उसको चप्पल दिखाया जा सकता है।

 क्यों? क्योंकि जनधन के ज्यादातर खाते बेकार हो गए हैं और उसमें बीमा का लाभ भी लोगों को नहीं मिलता।  क्योंकि बिजली कनेक्शन और मुफ्त रसोई गैस का कनेक्शन मुफ्त था ही नहीं। यह मायाजाल था । मतलब कि यह गरीबों को ईएमआई पर दिया गया था।


इस बजट में फिर हुआ क्या है। दरअसल इस बजट में नवाचार पर विशेष ध्यान दिया गया है। मतलब के युवाओं को अब स्वरोजगार के लिए ही मन बना लेना चाहिए। सरकारी नौकरी के आस में अपने जीवन को बर्बाद करने से बेहतर है।।

बजट को ऐसे भी समझिए । कौशल विकास कब पर खर्च 1900 करोड़ से बढ़ाकर 3517 किया गया। फार्मा सेक्टर में 100 से बढ़ाकर 1250 करोड़ किया गया। पीएम आवास में 48000 से बढ़ाकर 79590  करोड़ किया गया। एकलव्य स्कूल में 2000 से बढ़ाकर 5943 करोड़ किया गया। इलेक्ट्रॉनिक वाहन में 2908 से बढ़ाकर 5172 करोड़ किया गया। मतलब कि केंद्र बिंदु यही है।


किसानों को मिलने वाले सब्सिडी को कम किया गया । किसानों के अनाज की खरीद के बजट को कम किया गया। यह लगभग 12%  कम किया जाना इस बात का द्योतक है कि किसानों के हित में अब कोई सोचने वाला नहीं।

 किसान को अलग आमदनी की दिशा में ले जाने के लिए बजट में बढ़ोतरी की गई जिसमें मुख्य रुप से किसानों के मत्स्य पालन और डेयरी उद्योग पर फोकस किया गया है। फल उत्पादन को भी बढ़ाने के लिए बागवानी मिशन में बजट दिए गए हैं। मोटे अनाज की बात भी की गई है। हालांकि जनसामान्य तक अभी इसकी जागरूकता नगण्य है।




01 फ़रवरी 2023

Mobile Addiction: क्या हम इंटरनेट के अफीम से नई पीढ़ी को नहीं बचा पाएंगे..?

Mobile Addiction: क्या हम इंटरनेट के अफीम से नई पीढ़ी को नहीं बचा पाएंगे..?

अरुण साथी

जब मैं निम्नलिखित पंक्तियों को लिख रहा हूं तब इंटरनेट की दुनिया में 15 साल का सफर है । इस सफर में शुरुआती दिनों के इंटरनेट चलाने की जद्दोजहद और आज सर्वज्ञ इंटरनेट की दुनिया गूगल देवता से आगे बढ़कर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की दुनिया का सफर तय करने का साक्षी बन रहा हूं। हालांकि मोबाइल एडिक्शन के शिकार खुद भी हूं और अनुभव से ज्यादा बड़ा हुआ है।
अनुभव है कि इन्हें निम्नलिखित पंक्तियों को लिखने पर मजबूर हुआ तो क्या हम इंटरनेट के अफीम से नई पीढ़ी को नहीं बचा पाएंगे। यह विचार मन में लगातार करौंधता रहता है। गांव में गरीब मजदूर का बेटा हो या गरीब सफाई कर्मी से लेकर गरीब किसान का बेटा, बेटी। सभी के हाथ में स्मार्ट मोबाइल है और उनमें एक खतरनाक इंटरनेट।

नवजात शिशु का खिलौना भी यही मोबाइल है तो किशोरों और युवाओं की पुस्तक भी यही मोबाइल।


बड़े बुजुर्ग के किस्से कहानी का औजार भी यही है और मनोरंजन का साधन भी।

खैर, इन सब के बीच जो इसका दुष्प्रभाव है वह कई प्रकरणों में उभर कर सामने आया है । यहां बात बच्चों पर इसके दुष्प्रभाव की है। सोशल मीडिया पर कई बार भावनाओं को भड़काने या हथियार लहराने को लेकर किशोर उम्र के लड़के पकड़े जाते हैं।


यह किशोर और बच्चे जुनूनी हो गए हैं। कभी कभी राजनीति को लेकर और ज्यादातर धर्म और जात को लेकर जुनून देखा जाता है।


धार्मिक और जातीय उन्माद से नई पीढ़ी को बचाना शायद ही अब संभव हो सकेगा।


हो यह रहा है कि धार्मिक और भेदभाव के उन्मादी विचार अब बड़ी तेजी से और आसानी से बच्चों की पहुंच में है। परिणाम स्वरूप भेदभाव का शिकार बच्चों के मन मस्तिक में बैठा जा रहा है।


इसी का परिणाम है कि बच्चे उन्मादी और कट्टरपंथी हो जा रहे हैं या आगे बढ़कर कहे कि हो गए हैं।


अभी एक स्कूल के संचालक मित्र ने बताया कि अब स्कूल के बेंच पर और ब्लैक बोर्ड पर धार्मिक उन्माद से जुड़े शब्दों को बच्चे लिख रहे हैं।


राजनेताओं को यह काम करना चाहिए पर दुर्भाग्य से वे इसे खाद और पानी दे रहे हैं। फसल लहलहाने पर वही तो इसे काटेंगे।

दुर्भाग्य से माता-पिता भी लाचार हैं। पिछले कुछ महीनों में कई मामलों का नजदीक से देखने का अवसर मिला है। बच्चों से मोबाइल छीन लेने भर से वे आत्महत्या कर लेते है। मतलब यह कि कोरोना से भी भयावह महामारी की चपेट में अब हमारी नई पीढ़ी है और दुर्भाग्य से इसके टीकाकरण की कोई पहल तक नहीं।