27 दिसंबर 2023

साधुता, संतत्व और पद्मश्री जैन साध्वी माता चंदना जी का आशीष

साधुता, संत्तत्व और पद्मश्री जैन साध्वी माता चंदना जी का सानिध्य 


साहित्यकारों ने अक्सर साहित्यिक अलंकारों में किसी संत , साधु का वर्णन करते हुए कई अलंकरण जोड़े हैं। इन अलंकारों में कई बार पढ़ा है कि उनके चेहरे का आभामंडल दिव्या था। वहां से दिव्य प्रकाश निकल रहे थे । उनके व्यक्तित्व से ऊर्जा का प्रवाह हो रहा था। ऐसा महसूस किया जैसे ईश्वरीय अलौकिकता आभामंडल से प्रवाहमान है। आदि, इत्यादि।
 कुछ इसी तरह के अलंकारों और ईश्वरीय अलौकिकता से मेरा साक्षात्कार मंगलवार को नालंदा जिले के राजगृह के वीरायतन में हुआ । यहां पद्मश्री माता चंदना जी का आशीर्वाद मिला। अलौकिक!

 शरणागत होकर आशीष लिया। स्वयं को उनके चरणों में अर्पित किया तो माताजी ने अपने देवत्व वचनों से मुझे उपकृत किया । साधु, संत, महात्मा, पंडित, मुल्ले , इन सब के प्रति शुरू से ही मेरे मन में आस्था नहीं है। यह मेरा अहंकार ही है। पर है। मैं जल्दी किसी को पैर छूकर प्रणाम नहीं करता। स्वतः प्रेरित होकर करता हूं।

माता चंदना जी की अलौकिक आभा ने मुझे खींच लिया । पैरों को छूकर उनके चरणों में जाकर बैठ गया । वे ईश्वरीय कृपा स्वरूप मुझपर ज्ञानामृत झिड़कने लगीं। जैसे माता का स्नेह बरस रहा हो।

उन्होंने भगवान महावीर के उपदेशों को उद्धृत किया । कहा, मनुष्य अलग-अलग जाति, धर्म में बंटा हुआ है। हिंसा कर रहा है, जबकि ईश्वर एक है।वह किसी को अलग नहीं किए हैं।

उन्होंने कहा, मैं आज तक किसी को यहां जैन धर्म अपनाने के लिए प्रेरित नहीं की। सब की सेवा करती हूं। इसी क्रम में उन्होंने मुझसे केवल एक अपेक्षा मांगी।कहा, मैं चाहूंगी कि आप मांसाहार ना करें। शाकाहारी रहे। मैंने उनको बताया कि मैं शाकाहारी हूं तो वे आह्लादित होकर दोनों हाथ उठाकर मुझे आशीष दी।

कहा, जाती और धर्म के झगड़े नेताओं और धर्म गुरुओं की देन है।

एक उदाहरण प्रस्तुत कर समझाया कि जब मैं वीरायतन में पंछियों को खाना देने के लिए जाती हूं तो वहां अलग-अलग प्रजाति के पंछी होते हैं। जिसमें तोता, मैना, कौवा, गोरैया इत्यादि शामिल है। गिलहरी और चूहा भी आते हैं । सभी एक साथ खाना खाते हैं । वे झगड़े नहीं करते हैं, पर मनुष्य एक समान होकर झगड़े करते रहते हैं।

उन्होंने पूरे विश्व में युद्ध और हिंसा को भी  उद्धृत किया। कहा कि यूक्रेन और इजराइल में युद्ध की विभीषिका से मनुष्य जाति खतरे में है।


मैं बरबीघा रेफरल अस्पताल के प्रभारी डॉ फैसल अरशद  के आग्रह पर उनके साथ वहां गया था। डॉ फैसल का माताजी से अतुल्य जुड़ाव है। माता जी ने वीरायतन को खड़ा करने में डॉ फैसल जी के पिता डॉक्टर आर इसरी के योगदान को याद किया। कहा कि वह नहीं रहते तो वीरायतन आज यहां नहीं रहता। वे लाखों लोगों की सेवा नहीं कर पाती। 

इसी दौरान डॉ फैसल ने बाहर निकलने पर अपना एक संस्मरण सुनाया। कहा कि एक बार मैं शुक्रवार को माता जी के चरणों में आशीष ले रहा था। इसी दौरान जब एक बज गए तो माताजी ने मुझे नमाज पढ़ने के लिए जाने के लिए कहा। स्पष्ट कहा कि सामने मंदिर में जाकर नमाज पढ़ लो। अपने एक सहयोगी को मेरे साथ भेज दिया।


वहीं मैं सोच रहा था, आज की दुनिया में हम भले स्वयं को प्रगतिशील कहते हो, परंतु हम गिरावट की हो रही अग्रसर हैं। कुछ लोग आज भी इस धरती और मनुष्यता को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। उन्हीं में से एक माता चंदना जी भी एक हैं। ईश्वर हमें कब, कहां, कैसे बुलाएंगे । कहां मिलें। कहां आशीष दें। यह मुझे पता नहीं होता। ईश्वर सर्वव्यापी हैं। यह पता है मुझे।
और लौटते समय, सिलाव का विश्व प्रसिद्ध खाजा का आनंद तो बनता ही है।

24 दिसंबर 2023

बिहारी लिट्टी चोखा और स्नेह की रेसिपी

बिहारी लिट्टी चोखा और स्नेह की रेसिपी

अरुण साथी

सर्दी शुरू होते ही। लिट्टी चोखा शुरू हो गया। बिहारी लिट्टी चोखा, सिर्फ बिहारी लिट्टी चोखा नहीं होता। उसमें होता है अपनों का प्यार।
लिट्टी चोखा देहाती हो तो उसका स्वाद का क्या कहना। पहले आटा प्रेम से गूंथ कर लोई बनाना। फिर उसके लिए सत्तू तैयार करना दोनों कठिन कार्य है। सत्तू देसी चना का शुद्ध हो तो उसके स्वाद में एक अलग तरह की खुशबू होती है।

सत्तू में औषधीय गुणों से भरपूर जमाइन , मंगरेला तो अनिवार्य जी होता है । फिर अदरक,  प्याज, लहसुन, कच्चा मिर्च उसमें मिलने से स्वाद में और बढ़ोतरी हो जाती है। फिर कहीं नींबू का रस मिलाया जाता है तो कहीं-कहीं यदि घर के अचार का मसाला मिला दीजिए तो फिर स्वाद का क्या कहना।
आटा के गूथने में ही थोड़ा सा घी मिला दीजिए तो वह मुलायम तैयार होता है। फिर तैयार सत्तू को आटा में भरकर गोल-गोल बनाया।

गाय के गोबर का बना गोइठा यदि हो तो क्या कहना। गोइठा को लह लह लहका दीजिए। फिर आग थोड़ा शांत होने पर तैयार किए गए कच्चा लिट्टी को रख या ढक दीजिये। लहराते आग में जब लिट्टी पकता है तो उसका जरैंधा स्वाद भी बेहद स्वादिष्ट लगता है।
आग पर लिट्टी पकाने के दौरान जब फट जाता है तब हम समझते हैं कि  तैयार हो गया। फिर उसे हम लोग अलग कर लेते हैं । फिर उसे जालीदार सूती के कपड़ा में रखकर उसके ऊपर लगे राख को हम लोग निकाल लेते हैं । 


(इतना सब करने पर लिट्टी चखने का प्रबल इच्छा को आप रोक नहीं सकते। सो हाथ से झाड़ कर उसे ग्रहण करना ही पड़ता है।)


फिर घी के बर्तन में उसको रख कर चारों तरफ घी मिलाया जाता है। कहीं कहीं घी में डुबोकर भी निकाल लेते हैं।

लिट्टी के लिए बैगन चोखा भी बनाना आसान नहीं होता । चोखा बनाने के लिए गोल बैंगन को बीच से काट कर उसमें हरी मिर्च और लहसुन घुसेड़ कर फिर उसी तरह आग में पकाया जाता है।

 टमाटर को भी आग में पका लेने के बाद उसमें कच्चा प्याज, अदरख, पका आलू इत्यादि को मिलाकर बैंगन का चोखा (भर्ता )तैयार किया जाता है । इस बैगन के चोखा को और स्वादिष्ट बनाने के लिए इसमें नींबू का रस निचोड़ा जाता है। धनिया पत्ता मिलाया जाता है। और फिर और स्वाद बढ़ाने के लिए कहीं-कहीं लवण भास्कर भी मिला दिया जाता है।

तब जाकर लिट्टी और चोखा का स्वाद अनमोल हो जाता है। वैसे तो घर में आप इस लिट्टी चोखा का आनंद ले सकते हैं। परंतु यार दोस्त के साथ यदि लिट्टी चोखा का आनंद मिले तो उसका स्वाद और बढ़ जाता है ।

उसमें यदि लिट्टी चोखा कारीगर से नहीं, दोस्तों के साथ खुद से बनाई जाए तो फिर क्या कहना। मतलब की बिहार का लिट्टी चोखा , लिट्टी चोखा नहीं होता। वह अपनेपन की पहचान होती है। उसमें अपनेपन का स्वाद होता है। उसमें प्यार और मनुहार होता है। दोस्तों की अटखेलियां होती है। लिट्टी पकाते वक्त जब आग में हाथ जलता है तो उसमे भी आनंद है। हंसी ठिठोली होता है। सभी लोग बिहारी लिट्टी चोखा का आनंद सामूहिक रूप से लीजिए तो अलग आनंद है।

15 दिसंबर 2023

सांप ही सांप को खा जाता है। दलित मानसिकता और जय भीम

सांप ही सांप को खा जाता है। दलित मानसिकता और जय भीम

कड़वी बात लिख रहा। बुधवार को बरबीघा के श्री कृष्ण राम रुचि कॉलेज के छात्रावास में एक युवक ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। वह इंटर का छात्र था और एनसीसी का कैडर भी था। पूरी तरह से आत्महत्या के इस साफ मामले को परिवार के लोगों ने हत्या में बदल दिया। उसकी प्राथमिकी भी कराई। वही इस छात्रावास के तीन छात्रों को पकड़ के पुलिस के हवाले भी कर दिया।

दोनों तरफ के लोग अनुसूचित जाति से जुड़े हुए थे

कॉलेज के छात्रावास का नाम पूर्व में डॉक्टर श्री कृष्ण सिंह हरिजन छात्रावास था परंतु भीम आर्मी का जब उन्माद चला तो नाम को बदलकर अंबेडकर कल्याण छात्रावास कर दिया गया । वहीं अब इसे कॉलेज के अधिकार क्षेत्र से बाहर करके कल्याण विभाग ने अपने हाथ में ले लिया।

मृतक छात्र का परिवार भीम आर्मी के कथित संगठन से जुड़ाव रखने के कारण पूरी तरह से इसमें साजिश रची गई । बिना वजह सड़क को घंटो जाम रखा गया । इसमें जमकर हंगामा भी किया गया।

पहले इस मामले को छात्रावास के बगल में रहने वाले सवर्ण जाति के लोगों को फसाने की साजिश के तरफ साफ तौर पर प्रयास किया गया। परंतु उसमें कोई सफलता नहीं मिली तो छात्रावास के स्वजातीय छात्रों को ही इसमें फंसा दिया गया।


पुलिस के द्वारा शुरू से ही इसे आत्महत्या बताया जाता रहा। मृतक छात्र के भाई और पिता के द्वारा उसके मोबाइल को छुपा लिया गया। कहा गया कि उसके पास मोबाइल नहीं था। पुलिस ने दबाव बनाया तो सब डिलीट कर मोबाइल दिया गया। इसी से पता चलता है कि मामला कितना संदिग्ध है। वही इंटरनेट पर एक छात्रा का सुसाइड नोट भी वायरल है । जिसमें आर्मी जॉइन नहीं कर पाने की वजह से आत्महत्या करने के बारे में उसने लिखा है।

इस पूरे मामले में भी संगठन से जुड़े लोगों ने भी पुलिस पर दबाव बनाया। यदि इस पूरे मामले में दूसरे किसी भी जाति के लोगों की संलिप्तता होती तो आज पूरे बिहार में हंगामा हो रहा होता।

कहावत भी है कि सांप को जब कुछ खाने के लिए नहीं मिलता तो अपने बच्चों को भी खा जाता है। वहीं एससी ने ही एससी को फंसाया है।

01 दिसंबर 2023

कर्म ही पूजा है, यह एक मंत्र है

 कर्म ही पूजा है, यह एक मंत्र है 


इसकी मूल अवधारणा सनातन धर्म ग्रंथ गीता ही है। इसके लिए अतिरिक्त किसी धर्म के धार्मिक ग्रंथ में ऐसा उदाहरण नहीं मिलता है। यह छोटी बात नहीं है। खासकर वर्तमान इस युग में। आज  जितनी तेजी से हम धार्मिक होने का दवा और दिखावा करते हैं। उतने हम धार्मिक नहीं हो सके हैं । क्योंकि धर्म  धारण करने की चीज है। आज धर्म सोशल मीडिया पर तो दिखता है। समाज, घर, आचरण में बिल्कुल नहीं ।

दरअसल, यदि हम कर्म को पूजा मान लेंगे तो धर्म को हम धारण करेंगे। तब हममें बदलाव आएगा। हम नैतिकवान, प्रेम पूर्ण और संवेदनशील होंगे।  आचार्य ओशो पूछते हैं, हमारा धर्म ग्रंथ हजारों सालों से हमें नैतिक, संवेदनशील तथा धार्मिक बनाने का ज्ञान दे रहा है। आज इस बात का दावा किया जाता है कि हम पहले से और अधिक अनैतिक  और संवेदनहीन हो गए हैं।

तब, हजारों सालों से जो हम धर्म की शिक्षा ले रहे हैं। उसमें कुछ ना कुछ कमी जरूर है। अनुभव भी यही कहता है।  धर्म का दिखावा करने वाले और धर्म को धारण करने वाले, अलग-अलग होते हैं।

 

 जब हम धर्म को  कर्म में धारण करेंगे तो हम समस्त चराचर से प्रेम करेंगे। किसी का अहित नहीं करेंगे। क्योंकि सनातन में आत्मा अमर है। तो जो आत्मा मुझ में है। वही 84 लाख योनियों में है। पशु में है। कुत्ते में है। चींटी में भी है। और फिर सब कुछ बदल जाएगा।