कुम्हार और ईश्वर
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मिट्टी गूंध
चाक पे चढ़ाया
उसे धुमाया
सधे हाथ से
अंदर से सहारा दे
बाहर से दबाया
कुम्हार ने दीया बनाया।।
फिर उसे
आग में पकाया
और बाजार ले आया।।
वही दीया
कोई मज़ार पे
कोई मंदिर में
कोई चमार घर
कोई बाभन घर जला..
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हे कुम्हार
कहीं तुम ईश्वर तो नहीं...