31 अक्तूबर 2011

रामदेव जी महाराज का सत्ता-साष्टांग आसन। -(चुटकी)


कार्टून-कट पेस्ट कला का प्रयोग कर बिगाड़ा है,
 किन्हीं को आपत्ति हो तो कृपा कर दर्ज कराने का कष्ट न करें..।


बाबा रामदेव जी महाराज की जय हो। महाराज जी ने एक नया आसन खोज लिया है। सत्ता-साष्टांग आसन। इस आसन की खुबियां दिग्गी राजा बता रहे है, आजकल। अनुलोम बिलोम करते-कराते बाबा ने सरकार को कपालभाती कराने कि क्या ठानी बाजी ही पलट गई। यूं बोलना और बात है पर रामलीला मैदान में आसन क्या जमाया सरकार ने पहले लठ-आसन का सहारा लेकर बाबा से हिज....सन करा दिया और फिर आईटी और सीबीआई जैसे प्रबल प्रतापी ब्रहम्आस्त्र का सहारा लेकर करोड़ों की सम्पत्ति क्या खोदनी शुरू की बाबा की हवा ही निकलनी बंद हो गई। रही सही कसर बालकृष्ण जी जड़-बुट्टी महाराज की गरदन धर कर सरकार ने बाबा के प्राण, सुगबा को धर लिया। अजी महाराज, आजकल सौ, पच्चास रूपये के लिए भाई भाई से दगा कर रहा है, यहां तो करोड़ों की बात है, तब फिर बाबा की जुबान पर दिग्गी बिराजमान होकर हंफिया रहे हैं तो इसमें आपको बुरा क्यों लगता है। अपने इतने बड़े इंपायार को बचाने के लिए अन्ना को दिग्गी-वचन सुनाते बाबा पर आप काहे गरमाते है।
आपको तो पता ही है बाबा ने कैसे कैसे इतनी दौलत बनाई है। नहीं पता तो बाबा के आश्रम में जाकर देख लिजिए। नहीं जा सकते तो जो गए है उनसे पूछ लिजिए। जड़ी बुटी को फांक, कितने के प्राण पखेरू उड़ गए। कई लोग आज भी कददू के जूस के चक्कर अस्पताल में है? 
मैं तो कहता हूं आप तो कुछ सिखिए। मैं तो ठहरा जाहिल जट, बीबी से लेकर दोस्त यार तक गरियाता है- बड़का पत्रकार है। क्या मिलता है यह सब करके? कभी अखबार गंदा करते हो कभी ब्लौग स्लौग पर बकबक करते हो? मिलता क्या है? मेरे पास तो इसका जबाब नहीं है पर आप तो समझदार दिखते है, जाइए बाबा के शिविर में और चढ़ावा चढ़ा कर कुछ सिखिए कि कैसे सड़कछाप से अरबछाप बना जाता है...जय बाबा की, जय अरबकमाई टिप्स की..।

19 अक्तूबर 2011

टीम अन्ना पर हमला राजनीति की शतरंजी चाल।


यह तो होना ही था। केजरीबाल पर हमला एक राजनीतिक साजिश है। अन्ना जो कर रहे हैं उससे राजनीतिक के चतुर सुजान के कलेजों पर सांप लोट रहा है। राजनीति कोई हंसी-खेल नहीं होती, सालों-साल तप-तपा कर, अपने-पराये सबके साथ झूठ सच कर-करा, कोई राजनीति में जगह बना पाता है और अन्ना हजारे और उनकी टीम एक झटके में उनके सारे किये-कराये पर पानी फेर रहे हैं।

अन्ना के अभ्युदय के पहले इस देश में एक भी सर्व-स्वीकार देश का नेता नहीं था। वहीं अटल जी के बाद यह दौर थम गया था। सोनीया गांधी ने प्रधानमंत्री की कुर्सी मजबुरन छोड़ कर देश की नेता बनने का प्रयास किया और उनके ऐसा करने पर कांग्रेसियांे की नाटक-नौटंकी और बाद के प्रहसनों पर देश ने उन्हें अस्वीकार कर दिया। फिर अन्ना नामक एक गांधी टापी धारी ने देश को आवाज दी और सालों से नकारा, निकम्मा, बेकार, काहिल सहित कई संबोधनों को झेलती युवा पीढ़ी और आम आदमी उनके साथ उठ खड़ा हुआ। सालों से सत्ता और राजनीति की मलाई खाते और खाने की आस लगाए राजनेताओं को यह नागवार गुजरी और अन्दर ही अन्दर सभी ने अन्ना और उनके टीम को राजनीति का सबक सीखाने की ठान ली। अन्ना के आंदोलन के बाद राजनेताओं के द्वारा कई तरह की साजिश की गई जिसमें लालू यादव को स्टेंडिंग कमिटि का सदस्य बनाना और उनका यह कहना की अन्ना कमिटि मंे आते और हमसे बात करते हम समाधान निकालते, शरद यादव का यह कि डब्बा को बंद कराईये और सबकी आस बने राहुल का संसद में तोंता रटंत शामिल है।

यहां पर मैं अन्ना और उनकी टीम को हिसार के चुनाव में कांग्रेस का विरोध करने को भी वाजिब मानता हूं। वह इसलिए कि कांग्रेस के कई दिग्गी टाइप नेताओं ने अन्ना को राजनीति में उतर कर हाथ आजमाने की चुनौती दी थी। सो उतर कर दिखा दिया।

नेताओं के जनसरोकार से दूर हट जाने का मलाल सबको है और सभी पार्टियां चोर चोर मौसेर भाई की तरह है। संसद में मंहगाई के मुददे पर भाजपा का कांग्रेस के साथ जाना और वोटिंग में सपा, बसपा और राजद सहित तमाम दलों को कांग्रेस से हाथ मिलना, सब कुछ पब्लिक देखती समझती है। ये पब्लिक है सब जानती है। वह चाहे छद्म सेकुल्रिज्म हो या छद्म कॉम्युनलिज्म। 
हां प्रशांत भुषण के मुद्दे पर कईयों को ऐजराज हो सकता है और होना भी चाहिए पर उनके साथ जो हुआ वह भी गलत है। आखिर देश के उस हिस्से की बात हो रही है जिसके लिए कितने ही जवान शहीद हो गए। वहां के संदर्भ मंे एक बात ही कहना चाहूंगा की वहां के मूल निवासी कश्मीरी पंडित को वहां का नागरीक घोषित कर जो करबना हो करबा लो। और अन्ना ने इस मुददे पर अपना रूख भी साफ कर दिया तो फिर उनके टीम के साथ ऐसा क्यों हो रहा है।
यह पोल्टीक्स है। कांग्रेस हर तरह के हथकंडे अपना का थक चुकी है। वह आर एस एस का साथी से लेकर अन्ना को सेना का भगोड़ा तक साबित करने की कोशिश करके हार चुकी है।
अब कांग्रेस और अन्य पार्टियां भी सबसे पहले अन्ना और उनकी टीम की छवि को तोड़ना चाहती है और यह इसी तरह के प्रयास से संभव हो सकेगा। जितेन्द्र पाठक चाहे जो कोई भी हो इस सबके पीछे राजनीति की यही सोंच काम कर रही है। अब देखना यह होगा कि अन्ना राजनीति के इस शतरंजी चाल से कैसे निवट पाते है क्योंकि मशहूर शायर बशीर बद्र ने कहा भी है-

अगर इंसा से मिलना हो तो लहजों में सियासत रख,
शराफत से खुदा मिल जाएगा, इंसा नहीं मिलता।

14 अक्तूबर 2011

लंगड़ा रे घोड़ी चढ़में की नै। उर्फ आओ पीएम पीएम खेले (व्यंग)



अरूण साथी
शेखपुरा, बिहार


पीएम की कुर्सी क्या हुई मुआ पंडितजी की घोड़ी हो गई, जो-सो, जहां-तहां चढ़ने को बेताब है। मुई घोड़ी तो घोड़ी ठहरी, कोई चढ़ा नहीं की बिदक भी जाती है।

सब जगह भगदड़ मची है। एक तो आधी जान की घोड़ी और उस पर पंडितजी की सवारी, गोया पंडित जी जबसे चढ़े है उतरने का नाम ही नहीं लेते।(वैसे जो भी चढ़ा है वह राजी से उतरना नहीं चाहता) कई अपने भी इस उम्मीद में मुई घोड़ी को टंगड़ी मार रहे हैं कि वह पंडित जी को पटक दे और उनका नंबर आ जाए। इसी कोशीश में ऐ जी, ओ जी, लो जी, सुनो जी, सब हथकंडा लगा दिया पर राम राम, पंडित जी घोड़ी पर से उतने के बजाय नाक पर रूमाल बांध, दे चाबुक की ले चाबुक-सरपट घोड़ी भगा रहे है।

और, अब विरोधी सब भी बैखला गए हैं। सोते-जागते, पीएम-पीएम खेल रहे है। कभी किसी को पीएम का सपना आ जाता है तो कभी कोई किसी को पीएम का सपना दिखा देता है। मुई भुखी, प्यासी और बिमार घोड़ी पर चढ़ने के लिए पता नहीं सब कब से हंफिया रहें हैं। कहीं कोई अधवैस (युवा) दलित भोजनम् का जाप करते हुए दलित के घर भोजन (सुखी रोटी या फिर माड़-भात नहीं) करते हुए गुनगुना रहा है-
घोड़ी पर चढ़के सवार, 
आया है दुल्हा यार, 
कमरिया में बांधे भ्रष्टाचार....
सब जैसे जबरदस्ती के बराती बन, जय हो, जय हो भज रहे हैं।
और उधर रथ लेकर निकले रूठे महाशय चौरासी की उम्र में घोड़ी पर चढ़ने को बेताब हैं।  कई बार असफल रहते हुए नाक मूंह तुड़बाने के बाद भी गुनगुना रहे-
अभी तो मैं जवान हूं, 
अभी तो मैं जवान हूं। 
मोती कुछ न बोलना, 
मुंह न अपनी खोलना। 
सांस जरा थम तो ले, 
मंदिर जरा हम तो ले....।

ओह, मुई घोड़ी की नन्ही जान और लाख आफत। जब रेस ही लगी हो तो कौन चूकेगा। सो मत चूको चौहान की तर्ज पर सबके साथ तीन टांग वाला लंगरू नाई भी रेस में है। उसके पास भी सबका माथा मूंड़ने का पुराना अनुभव है। उसे आश है कि चार टांग वाले जब सब आपस में लड़-भीड़ रहे है तो शायद उसे मौका मिल जाए। सेठ करोड़ी मल उसे बार बार ललकारता भी रहता है-लंगड़ा रे घोड़ी चढ़में की नै। लंगड़ा रे घोड़ी चढ़में की नै। जय हो।

12 अक्तूबर 2011

पैदा करने वाली मां ने जिंदा बेटी को कफन देकर फेंका, 9 बेटी की मां नें उसे अपनाया।


शेखपुरा (बिहार)

बरबीघा रेफरल होस्पीटल के पीछे एक नवजात शिशु (बेटी) को लाल रंग का कफन ओढ़ा कर जिंदा ही झाड़ी में फेंक दिया गया और वहां से गुजर रही एक महिला को जब नवजात के रोने की आवाज सुनाई दी तो उसने उसे उठा लिया। मामला मंगलवार की रात्री आठ बजे के आस पास की है। मानवीय संवेदनाओं को झकझोर देने वाली इस घटना में जहां जन्म देने वाली मां ने बेटी जानकार नवजात शिशु को जन्म देने के बाद लाल रंग के कफन में लपेट कर ढकनीया पोखर के पास झाड़ी में फेंक दिया वहीं मानवता की मिशाल पेश करते हुए नालान्दा जिले के सारे थाना अर्न्तगत हरगांवां निवासी उषा देवी ने उसे गोद ले लिया। उषा देवी को पहले से ही नौ बेटी है और उसके बाद भी उसने फेंकी हुई बेटी को गोद लेकर मिशाल पेश की है। फेंके हुए नवजात को गोद लेने वाली उषा देवी बच्ची के फेंके जाने पर आक्रोश व्यक्त करती हुए कहती है कि बेटा हो या बेटी बच्चे भगवान के सामान है और समाज और दहेज के डर से ऐसा करना सबसे बड़ा पाप है।