27 अगस्त 2020

मैं भी बनूंगा विधायक

मैं भी बनूंगा विधायक..

अरुण साथी (व्यंग्य)
सोशल मीडिया पे जैसे ही मैंने चुनाव लड़ने की बात लिखी वैसे ही टिप्पणियों का सैलाब आ गया। जैसे कोसी नदी का मुंह किसी में मेरे तरफ ही सीधा कर दिया हो। टिप्पणियों के सैलाब में डूबता-उतरता एक-एक का जबाब ऐसे दे रहा है जैसे शाम में सियार बोल रहा हो। 

सभी की वाहवाही से मन खुशियों के समुंदर में डूब गया। वाह! इतने लोग! मेरी अपनी प्रसिद्धि का उसी दिन मुझे एहसास हुआ। खैर, झाड़ पे चढ़ाना सुना था। अब सोशल मीडिया पे फूलना देख लिया। 



खैर, मैंने अपने कुछ दोस्तों को लगाया। किसी भी पार्टी से टिकट खरीदो भाई। उचित दाम पे। कई दोस्तों ने टिकट खरीदने के दावे कर दिए। बस दाम सुन के पैर तले की जमीन जो खिसकी पाताललोक में धड़ाम से गिरा। एक दोस्त ने फिर चढ़ाया। जितना लगाना हो लगा दो। यह तो इन्वेस्टमेंट है। एक लगाओ। एक करोड़ पाओ।


फिर भी हारना कहाँ सीखा था। व्हाट्सएप विश्वविद्यालय से प्राप्त ज्ञान में बताया गया था कि राजनीति करने के घठाहा होना जरूरी है। सो गांठ बांध लिया। लड़ूंगा।

मैं अपने समाजसेवा के क्षेत्र में किये गए अपने महान कार्यों को याद करने लगा। इस कोरोना काल में गरीबों के बीच तेरह मास्क बांटे है। ढाई सौ ग्राम से इक्कीस पैकेट का बंटवारा किया। हाँ, यह अलग बात है कि एक एक तस्वीर को हर रोज रोज ऐसे डाला जैसे सोनू सूद को मैंने ही पछाड़ दिया हो। सबका एलबम बनाया। और  अभियान में शुरू हो गया।

अपना मूल्य-वान वोट मुझे दीजिये!
बस वोट का मूल्य कान में बिलिये!!

फिर क्या..

अपना बॉयोडाटा बनाया। 
खुद को सोनू सूद का
छ्छेड़ा भाई बताया। 
जनांदोलन की तस्वीर भी 
सेटिंग से बनवाया। 
सभी पार्टियों के कार्यालयों 
में उसे भेजवाया। 
अब मीडिया मैनेजमेंट 
का मामला आया। 
सबसे आसान सभी ने 
उसे ही बताया। 
सभी मीडिया घरानों के बंधुओं ने 
मिलकर दंडवत फरमाया। 
सभी ने पीत-पत्रकारिता के 
अपना अपना दाम बताया।
कुछ को चाय पानी के रेट
तो कुछ मोटा दे निबटाया।

फिर अगले दिन से मुझे ही 
सबसे तगड़ा कैंडिडे बताया।


कुर्ता पैजामा सिलाया।
साथ रहने को मुर्गे पे
कुछ को पटाया।
गांव गांव घूम आया।
लोगों को दुख दूर करने 
का किरिया भी खाया।

सुपरहिट कहानी अभी बाकी है दोस्त...देखते रहिये नंबर 1 ड्रामा सीरियल...






 

13 अगस्त 2020

ईश्वर के नाम पर इंसानियत का कत्ल ना पहली घटना है और ना ही आखरी होगी..


 भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है परंतु पिछले दशकों में इसे परिभाषित करने की प्रक्रिया में तुष्टिकरण की राजनीति ने इसकी परिभाषा बदली और परिणामत: देश में धर्मनिरपेक्ष होना गाली जैसा बन गया। देश में दोनों तरफ से कट्टरपंथी ऐसे हावी हैं जैसे कबीलाई युग में मारकाट करने को हावी होते थे। बेंगलुरु की घटना निंदनीय और दुखद कह देने भर से खत्म नहीं होने वाली घटना नहीं है। इसमें सबसे निराशजनक पक्ष दलित विधायक के होते हुए तुष्टिकरण को लेकर छद्म धर्मनिरपेक्षवादी कांग्रेस सहित अन्य दलों के साथ साथ धर्मनिरपेक्ष की दुहाई देना वाला वर्ग खामोश है।


यह देश को अपमानित करने, तोड़ने और कानून व्यवस्था को चुनौती देने की घटना है। इस घटना में ईश्वर के नाम पर एक पोस्ट किए जाने और नियोजित तरीके से कांग्रेस के विधायक के घर पर हमला करना, कई लोगों की जानें ले लेना, लाखों करोड़ों की संपत्ति को आग के हवाले कर देना बगैर सुनियोजित ढंग से नहीं हो सकता। दिल्ली का दंगा इसी सुनियोजित राजनीति का हिस्सा था। युपी के कमलेश तिवारी के इसी तरह के पोस्ट पर देश में उपद्रव किया गया था। अंतत: उनकी हत्या ही कर दी गई। कुछ दशक पूर्व हम शार्ली हब्दो, मलाला आदि को लेकर आलोचना करते थे। आज हम उस स्थिति में नहीं है। सोशल मीडिया ब्रेन वास से हमारा समाज रोबोटिक हो गया है। एक इसारे पर मानवता का कत्ल आम है।


दरअसल कट्टरपंथी तबका सोशल मीडिया का गलत उपयोग करके देश को तहस-नहस करने में लगे हुए। एक पंथ के कट्टरपंथी को हवा देने में जहां उसी पंथ के बड़ा वर्ग लगा हुआ है वहीं दूसरे पक्ष के लोग भी उसी राह पर चलने का डंका बजाते हुए सीना ठोक रहे। राहत इंदौरी के निधन पर जश्न की बात हो अथवा अमित शाह के पॉजिटिव होने पर जश्न की बात। यह हमारी संकीर्णता और मानवीयता का परिचायक है। राम मंदिर निर्माण की आधारशिला रखे जाने पर जहां एक पक्ष ने जश्न के बहाने दूसरे पक्ष की खिल्ली उड़ाई तो दूसरे पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश की धज्जियां उड़ाते हुए घोषित रूप से वहां मस्जिद होने का ही एलान करते रहे। निश्चित रूप से मंदिर निर्माण देश की लोकतंत्रिक प्रक्रिया का हिस्स है। धर्मनिरपेक्ष हमे दूसरे धर्म से समानता की बात सिखाता है न कि अपने धर्म से दूरी की। वैसे में पीएम का जाना गलत नहीं है।


कुल मिलाकर देश की धर्मनिरपेक्ष छवि खतरे में है। या यूं कहें कि आज यह ध्वस्त हो चुकी है। गंगा जमुनी तहजीब की बातें अब बेमानी लगती है।  चंद लोग इसे बरकरार रखने में लगे हुए हैं। एक बड़ा वर्ग इसे तहस-नहस करने में लगा हुआ है। भारत धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है। इस को लेकर भाजपा के राज्यसभा सांसद राकेश सिन्हा जब यह लिखते हैं कि क्यों है, तो इस सवाल का जवाब सीधा और सपाट आता है कि हमारे पड़ोस के सभी राष्ट्र इस्लामिक कंट्री हैं। बहुसंख्यक वर्ग भारत का धर्म निरपेक्ष विचार का है। वैसे में उसकी विचारधारा को आहत कर इस छवि को नष्ट करने का प्रयास दोनों तरफ से किया जा रहा है और बहुत हद तक इसमें सफलता भी मिल रही है। आगे आगे देखिए होता है क्या।