29 अगस्त 2021

बहन सूपनखा की नाक नगेंदर ने ही काटी

 बहन सूपनखा  क  नाक नगेंदर ने ही काटी


हास्य व्यंग्य

जमुनालाल विश्वविद्यालय शोधार्थियों के लिए कुख्यात है। एक दिन  कक्ष में  शिक्षा विभाग के निदेशक आए। उन्होंने सवाल किया। बताओ, सूपनखा की नाक किसने काटी? सबको सांप सूंघ गया। तभी कामरेड कनखैया बोला। सर, यह काम नगेंदर ही कर सकता है। वहीं हमेशा जेब में तलवार लिए घूमता है। फिर उसके समर्थन में कक्षा का सबसे मरियल सा दिखने वाला पढ़ाकू अरमिंद भी हाथ खड़ा कर दिया।

बिलकुल सर, मैने अपनी आँखों से देखा। बहन सूपनखा कि नाक नगेंदर ने ही काटी है। इसी बीच अगली बेंच पर हमेशा गुमसुम बैठने वाले शोधार्थी राउल भी खड़ा हुआ। सर, यह सूपनखा कौन है? सभी लोग ठठा कर हंसने लगे।

तभी उटंग पैजामा और सर पर टोपी पहने उरम भी उठा और बोला। यह असहिष्णुता है। सूपनखा जैसी अबला बहन की नाक काट दी गई। बहुत दुर्भाग्यपूर्ण  है। दमितों से अन्याय। जय भीम।

साहब के चेहरे पर असमंजस और अज्ञानता का मिलाजुला भाव आया। चौंक गए। अरे, ऐसी दुर्दशा और उनको पता भी नहीं। फिर उन्होंने वर्ग शिक्षक की तरफ नजरें उठाईं तो शिक्षक महोदय भी हड़बड़ा गए। बोले, जी हाँ सर, जी हाँ सर। बच्चे सही कह रहे हैं, कक्षा में यही सबसे बदमाश है। इसने ही किया होगा।

इस पूरे मसले की शिकायत करने के लिए  पदाधिकारी महोदय डीन के पास पहुंचे।ओमेसी नाम था उनका।सारी बात चपरासी ने चुपके से उन्हें पहले ही बता दी थी। बोले माफ़ करिए सर। नगेंदर ही ऐसा करता है। नाक काटने में वह बहुत माहिर है। अगले दिन अधिकारी महोदय ने मीडिया ब्रीफिंग की। देश में असहिष्णुता का माहौल है, नारी अस्मिता, स्वाभिमान को खतरा है। अगले दिन आंदोलन शुरू हो गया। लोग हाथ में तख्ती लेकर जुटे। कुछ मीडिया चैनल लाइव प्रसारण करने लगे।
उधर, नगेंदर अपने सहपाठियों की सभा को संबोधित कर रहा था। भाइयों एवं बहनों । जब भी राष्ट्र और धर्म के नाक में कोई ऊंगली करेगा। उसकी नाक काट दी जाएगी। राष्ट्रवाद और धर्म हमारी अस्मिता और सह अस्तित्व है। सभी लोग तालियां पीट रहे थे।

25 अगस्त 2021

मोबाइल ने सबकुछ छीना

मोबाइल ने जीवन छीन लिया। जी हाँ! यही सच है। बचपन से पढ़ने लिखने वाला नहीं रहा। होश संभाला तो पढ़ना ही एक मात्र विकल्प दिखा। फिर झोंक दिया। जैसे तैसे। कुछ तो नहीं कर सका तो जीवन की गाड़ी खींचने बुक स्टॉल खोल लिया। यह मेरे पढ़ने के शौक का नतीजा था। अपने नगर का पहला बुक स्टॉल। साथी बुक स्टॉल। उससे पहले साधारण उन्यास पढ़ता था। जिसने सुरेन्द मोहन पाठक और गुलशन नंदा प्रमुख रहे। पाठक जी का किरदार विमल आज भी याद है। और एक सुनील। लपु झंगा पत्रकार। 

खैर, धीरे धीरे साहित्य की अभिरुचि बढ़ी। हंस पढ़ने लगा। फिर रेणु। प्रेमचंद। शरत चंद्र। कमलेश्वर। पढ़ता रहा। जीवन का यह बड़ा बदलाव का दौर रहा।  


खैर, मोबाइल ने सबकुछ छीन लिया। चाह कर भी मोबाइल नहीं छूटता। पढ़ने की लत है पर अब कोशिश करने पे भी एकाग्रता नहीं रहती। 

फिर भी लखनऊ रेलवे स्टेशन पे पसंदीदा पुस्तक दिखी। ले लिया। राग दरबारी। वयं रक्षम।

देखिये कब तक पढ़ता हूँ।

15 अगस्त 2021

अनसुनी कहानी: गरम दल के क्रांतिकारी राजेंद्र प्रसाद का कटा हाथ कोर्ट लेकर आते थे अंग्रेज

अनसुनी कहानी: गरम दल के क्रांतिकारी राजेंद्र प्रसाद का कटा हाथ कोर्ट लेकर आते थे अंग्रेज

अरुण साथी, (बरबीघा, शेखपुरा)
ए मेरे वतन के लोगों जरा आंख में भर लो पानी , जो शहीद हुए हैं उनकी ज़रा याद करो कुर्बानी। आजादी के 75 वें वर्षगांठ के अवसर पर 15 अगस्त को गलियों और शहरों में देशभक्ति गीत गूंजने लगते हैं। इन्हीं देशभक्ति गीतों के द्वारा यह एहसास भी होता है कि देश की आजादी में कितनी कुर्बानियां शहीदों ने दी है। हालांकि बाद में हम इन कुर्बानियों को भूल भी जाते हैं। देश के लिए ऐसे ही कुर्बानी देने वाले एक क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी राजेंद्र प्रसाद भी हैं। जिनका हाथ अंग्रेज चिकित्सकों के द्वारा काट दिया गया और फिर कटे हुए हाथ को अंग्रेज कोर्ट में सबूत के रूप में पेश करते थे। यह क्रांतिकारी राजेंद्र प्रसाद बरबीघा के शेरपर गांव निवासी थे।


क्या हुआ था मामला कैसे कटा हाथ

 राजेंद्र प्रसाद के पुत्र विजय सिन्हा कहते हैं कि उनके पिता दसवीं की पढ़ाई करने के लिए अपने ननिहाल कदम कुआं पटना चले गए। उनके मामा वकील और मुख्तार थे। उनकी पढ़ाई लिखाई पटना में शुरू हुई । इसी बीच में भगत सिंह के गरम दल से जुड़े और क्रांतिकारी बन गए। देश के आजादी का संकल्प लिया और अभियान में जुट गए। इसी अभियान में जुटने के बाद एक अंग्रेज अधिकारी के मौत की योजना क्रांतिकारी साथियों के साथ मिलकर बनाई। वह अंग्रेज अधिकारी ट्रेन से आने वाला था। सारी योजना बनाए जाने के बाद बम से उसे उड़ाने की योजना राजेंद्र प्रसाद ने बनाई


बम बनाने की ट्रेनिंग ली

 राजेंद्र प्रसाद भगत सिंह के अभियान के प्रमुख क्रांतिकारी साथी थे। उन्होंने बम बनाने का प्रशिक्षण लिया था। अपने ननिहाल के घर में छुप कर उन्होंने बम बनाए और फिर एक थैले में भरकर अपने एक सरदार साथी के साथ चुपके से बंका घाट की ओर रेल पर आने वाले अंग्रेज को उड़ाने के लिए चल दिए। इसी दौरान भूलवश बम विस्फोट हो गया। इसी बम विस्फोट में उनका एक साथी शहीद हो गया । जबकि राजेंद्र प्रसाद बेहोश होकर वही पीपल पेड़ के पास गिर गए । फिर उन्हें किसी तरह से मामा के सहयोग से हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया। इसकी भनक अंग्रेजों को लगते ही अंग्रेजों ने साजिश रची और डॉक्टर के सहयोग से इस साजिश को सफल बनाया। डॉक्टरों ने उनका हाथ काट दिया। साथ ही बताया कि बम विस्फोट से जख्मी हाथ खतरनाक हो गया था। हालांकि यह साजिश के तहत किया गया था। हाथ कटने के बाद राजेंद्र प्रसाद ने यह भी कहा कि उनका हाथ तो कट गया परंतु बम बनाने का आईडिया वे अपने साथियों को देते रहेंगे।

कम्युनिस्ट पार्टी के नेता बने

उसके बाद फिर वह जेल चले गए और लगातार संघर्ष भी किया। बाद में कई आंदोलनों में उनकी भूमिका रही। कोलकाता में भी जाकर अंग्रेज अधिकारी पर बम से हमला किया। स्वतंत्रता सेनानी के इस संघर्ष को आज भी देश नमन कर रहा है। बाद के दिनों में राजेंद्र प्रसाद कम्युनिस्ट पार्टी के क्रांतिकारी अभियान नेता बने और गरीबों के हक की लड़ाई लड़ते रहे । बरबीघा का कम्युनिस्ट पार्टी कार्यालय उनके नाम पर ही आज भी स्थापित है।

11 अगस्त 2021

हिन्दू धर्म में बाँस और वंश का सरोकार

#बांस और #वंश

हिंदू धर्मावलंबियों के लिए प्राकृतिक पूजा त्योहार, शादी विवाह से लेकर श्राद्ध तक में दुनिया के सभी धर्मावलंबियों के लिए अनुकरणीय है।

शादी विवाह में गांव में आज भी विवाह से पहले आम के बगीचे में जाकर योग मांगना। उसके अलावा कई विधान है जो प्राकृतिक के इर्द-गिर्द घूमते हैं। जिसमें पेड़ पौधे, कुआं, तालाब शामिल है।

इसी तरह शादी विवाह के बाद बांस की बसेड़ी और वंश का संयोग भी देखने को मिलता है।

दूल्हे का मौरी से लेकर शादी विवाह में लगा हल्दी और अन्य शादी विवाह में गैर जरूरी सामान शादी के बाद बांस के बसेड़ी में जाकर महिलाएं रख आती हैं। जाते हुए महिलाएं भी गीत गाती हुई जाती हैं और लौटते हुए भी गीत गाते लौटती हैं।

 प्राकृतिक पूजा के तौर पर यह माना जाता है कि बांस का वंश वृद्धि में सर्वाधिक सहयोग है और यह कामना लोग करते हैं कि जिस तरह बांस का वंश बढ़ता है वैसे ही परिवार का बढ़े। गांव में बांस का दातुन करना आज भी प्रतिबंधित है। इसका मुख्य कारण वंश वृद्धि बांस की तरह होने की कामना है। इसी तरह की एक तस्वीर संलग्न है।

03 अगस्त 2021

ईश्वर हमें बुला लेते हैं

सोमवार की रात्रि मित्र शांति भूषण  के यहां से  के साथ लौट रहा था तभी मित्र अविनाश काजू  मिले और फिर दर्शन हुआ एक ऐतिहासिक धरोहर से । यह शिव मंदिर बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री डॉ श्री कृष्ण सिंह के जन्म भूमि पर उनके वंशजों के द्वारा आज ही संचालित है। बिहार केसरी के पिता श्री हरिहर सिंह के नाम पर यह स्थापित है। देवकीनंदन सिंह उनके बड़े भाई ने इसकी स्थापना की। देवकी बाबू प्रख्यात ज्योतिषाचार्य हुए और ज्योतिष रत्नाकर पुस्तक आज दुनिया में यह मानक पुस्तक है।




आश्चर्यजनक बात यह कि मंदिर के प्रथम तल पर राजकुमारी देवी संस्कृत विद्यालय का संचालन होता था। स्थानीय लोगों ने बताया कि लालू यादव के जमाने में चरवाहा विद्यालय तो खोला गया परंतु इस तरह के संस्कृत विद्यालय को बंद कर दिया गया था। यहां से संस्कृत में स्थान स्नातक तक की पढ़ाई होती थी। अब उस स्कूल का कोई अस्तित्व नहीं है। ॐ नमः शिवाय