12 दिसंबर 2022

आचार्य ओशो रजनीश मेरी नजर से, जयंती पर विशेष

आचार्य ओशो रजनीश मेरी नजर से, जयंती पर विशेष

अरुण साथी

भारत के मध्यप्रदेश में जन्म लेने के बाद कॉलेज में प्राध्यापक की नौकरी करते हुए एक चिंतक के रूप में आगे बढ़ते हुए विश्व के शक्तिशाली देश अमेरिका सहित पूरी दुनिया की सरकार को धर्म और अध्यात्म से डरा देने वाले आचार्य ओशो रजनीश को पढ़ लेना आदमी को, आदमी बनने जैसा है। ओशो कौन थे, इसे बस इस बात से समझ लें की पूरी दुनिया के देशों ने उन्हें अपने देश में प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया। अमेरिका ने स्वीट पाइजन देकर उनकी हत्या करा दी।

आचार्य ओशो रजनीश को भले ही लोगों ने भगवान रजनीश कहना शुरू कर दिया हो परंतु भौतिकवादी से परहेज नहीं करते हुए शारीरिक सुख से आत्मिक सुख की व्याख्या कर संभोग से समाधि तक के सफर को तर्कपूर्ण ढंग से व्यक्त करने वाले चिंतक आचार्य ओशो रजनीश निश्चित रूप से सर्वधर्म समभाव और मानवतावादी एक अवतारी पुरुष थे।


वर्तमान समय में देश और दुनिया भर में धार्मिक कट्टरता का बढ़ना और धर्म के आधार पर अपने अपने धर्म को सर्वश्रेष्ठ बताते हुए मनुष्यता की हत्या बेहद खतरनाक दौर में है। इस दौर में ओशो की प्रासंगिकता सर्वाधिक बढ़ जाती है।


आचार्य ओशो रजनीश ने यूरोपीय देश में रहते हुए भी ईसाईयत पर भी जमकर प्रहार किया। वही इस्लाम पर भी कई करारा चोट किए। हिंदू धर्म की भी जमकर आलोचना की। कहने का मतलब यह कि आचार्य ओशो रजनीश ने मनुष्य को धार्मिक बनने की सीख दी, ना कि धर्म के आधार पर आडंबर करने की।

ओशो की कई बातें आज ही जेहन में हमेशा विपरीत परिस्थिति में कौंध जाता है। बचपन के उस दौर में जब बहुत कम समझ थी। एक ग्रामीण किशोर था। उसी समय ऊपर से कवर फटा हुआ एक पुस्तक हाथ लगी।  कबाड़ के ढेर से उठा उस पुस्तक को जब पढ़ना शुरू किया तो बरबस ही रोचक लगने लगी। उस में पढ़ी गई बातें आज भी जीवन के हर मोड़ पर काम आता है । पुस्तक में पढ़ा की एक राजा ने वित्त मंत्री के लिए एक नौकरी निकाली। उसमें बड़ी संख्या में गणित के विशेषज्ञों ने आवेदन दिया। राजा ने उसमें से कुछ लोगों को चयनित कर के एक बड़े से कमरे में बंद कर दिया। शर्त रखी कि अपने हिसाब किताब जोड़, घटाव कर जो बाहर आएगा उसे ही मंत्री पद मिलेगा । सभी विद्वानों ने गणित के हिसाब से जोड़ , घटाव, गुणा, भाग करना शुरू कर दिया। उसी में से एक व्यक्ति शांत चित्त होकर बैठ गया। कुछ देर के बाद अचानक से उठा और दरवाजा खोलकर बाहर चला गया।

 इस छोटी सी कहानी के माध्यम से ओशो रजनीश ने यह बताया कि सत्य को खुद महसूस करो। तब उसे मानो। जब सत्य की खोज करोगे तो जो सत्य है वह अवश्य मिलेगा। बशर्ते उसे कोई खोज करने वाला हो। इसलिए वह व्यक्ति पहले इस सत्य को खोजने गया कि दरवाजा बंद है अथवा खुला हुआ।

ओशो रजनीश ने स्पष्ट कहा कि ईश्वर है । यह मैं भी मानता हूं। परंतु तुम ईश्वर को खुद जानो तब मानो। किसी के कहने पर मत मान लो। जैसे कि पंडित, मुल्लाह, पोप के कहने से अथवा माता-पिता के कहने से तुम ईश्वर को मान लेते हो।


आचार्य ओशो रजनीश ने यह भी कहा कि आदमी का धर्म क्या होगा इसे बस इतनी सी बात से समझ ले।  कोई मुसलमान के घर में जन्म लिया बच्चा यदि हिंदू के घर पलता है और हिंदू के घर जन्म लिया बच्चा मुसलमान के घर पलता है, तब उसका धर्म क्या होगा? बस इसी बात से तुम्हारे धर्म की व्याख्या हो जाती है।


आचार्य ओशो रजनीश ने अष्टावक्र गीता से लेकर बुद्ध , महावीर लाओत्सो, कन्फ्यूशियस आदि के उदाहरणों को लेकर अपने तर्क की कसौटी पर उसे कसा और दुनिया भर के लोगों को एक नया संदेश दिया। नया जीवन दिया। एक नया मानव बनाया।




लोगों को प्रेरणा भी दिया है। एक कविता, उसी के है साहिल उसी के किनारे , तलातुम में फस कर जो दो हाथ मारे।


 इसमें उन्होंने स्पष्ट रूप से व्याख्या किया है कि किनारे पर बैठने वालों को कभी कुछ हासिल नहीं होता। हासिल वही करते हैं जो तूफान में उतरकर, समुंद्र की गहराइयों में उतर कर दूसरे किनारे तक जाने का हौसला करते हैं ।


एक बड़ी सीख जो मेरे लिए जीवनमंत्र है वह यह कि अपने एक प्रवचन में उन्होंने कहा to behole to be preserved। बचना चाहते हो तो झुक जाओ। उदाहरण में बताया कि तूफान जब आता है तो बड़े-बड़े दरख़्त उखड़ जाते हैं परंतु घास जो झुक जाता है वह बच जाता है। मेरे लिए उनका एक और शब्द जीवन का मूल मंत्र रहा जिसमें उन्होंने कहा की पराजय के क्षण में जो टिक सकता है और विजय में जो हट सकता है। उसका अहंकार तिरोहित हो जाएगा । मतलब अहंकार खत्म होगा। उन्होंने समझाया कि अंधकार ही है जो पराजय में हमें छुप जाने और विजय  में सीना तान कर आगे आने के लिए प्रेरित करता है।




किशोरावस्था में ओशो रजनीश के पढ़ लेने का ही परिणाम था कि प्रेम में पड़ गया।  उन्होंने प्रेम की जो व्याख्या की वस्तुतः वही प्रेम है। शादी विवाह के आडंबर से हटकर उन्होंने प्रेम को प्राथमिकता देने की बात कही। वर्तमान समय के आधुनिक युग में जैसे हम खुद को कबीलाई युग में ले जा रहे हैं और धार्म, सभ्यता, संस्कृति के नाम पर गलत को ही सही ठहराने का चलन है।

ओशो रजनीश ने अपने प्रवचनों में स्पष्ट रूप से कहा कि विवाह नामक संस्था एक समझौता है इसमें प्रेम नहीं है। यह भी कहा कि बाद में प्रेम हो जाए यह संभव है। परंतु प्रेम अगर हो तो ही जीवन सफल और सार्थक होता है। प्रेम विवाह को असफल होने और तलाक के बिंदु पर एक प्रश्न के जवाब में आचार्य ओशो रजनीश ने कहा था कि जब प्रेमी और प्रेमिका प्रेम में होते हैं तो विवाह से पहले जब मिलते हैं तो दोनों अपने-अपने अच्छाइयों को ही दिखाते हैं। और देखते हैं। ऐसे में जब दोनों विवाह के बंधन में बंधते हैं तो उनकी बुराइयां सामने आती है और दोनों को आघात लगता है। यही मूल कारण है कि प्रेम विवाह कई बार असफल होते हैं। यदि हम बुराइयों को देख लें और दिखा दे तो असफलता कम होगी।


आचार्य ओशो रजनीश का मूल मंत्र ध्यान था। उन्होंने संगीत के स्वर लहरियों पर झूमते हुए नाचने को भी ध्यान कहा और संभोग से समाधि तक अपने विवादित पुस्तक में संभोग की प्रक्रिया को भी ध्यान का एक माध्यम बताया और तर्क की कसौटी पर उसे कस दिया।

ओशो ने हंसने गाने को सर्वश्रेष्ठ ध्यान माना। ओशो अपने अपने धर्म को हंसता हुआ धर्म कहते हैं।


 उन्होंने मुल्ला नसरुद्दीन के बहाने कई ऐसे ऐसे चुटकुले सुनाए जो लोटपोट कर दें।

ओशो की एक बात जो सबसे अच्छा लगी वह यह कि उन्होंने यह भी कहा कि तुम वही लोग हो जो तुम्हें चांद दिखाता है तो तुम उसकी उंगली ही पकड़ लेते हो। ईश्वर चांद में है। उंगली में नहीं। उन्होंने यह भी कहा कि महावीर, बुद्ध, रैदास, कबीर ने मूर्ति पूजा का विरोध किया तो लोग उनकी ही मूर्ति बना कर पूजा करने लगे। कबीर ओशो के आत्मा में बसे। धर्म ग्रंथों की जो व्याख्या आचार्य ओशो रजनीश ने की वैसे व्याख्या देखने सुनने को नहीं मिली। कबीर के दोहों को उन्होंने नया आकार दे दिया। 11 दिसंबर पर उनकी जयंती को लेकर आचार्य को मेरा प्रणाम कि मुझे आदमी बनाया।

34 टिप्‍पणियां:

  1. जहाँ आम आदमी की सोच समाप्त होती है, 20 वीं सदी के प्रखर विचारक ओशो का चिंतन वहाँ से शुरु होता है। विषय धार्मिक हो या सामाजिक, आध्यात्मिक हो अथवा बौद्धिक, ओशो की सारगर्भित और प्रचंड व्याख्या ने उसे नये आयाम तक पहुँचाया।उनके निर्भीक विचारों में धर्म में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से प्रचलित पाखंड़ उजागर हुये जिससे उन्हें सबसे विवादित आध्यात्मिक गुरु माना गया।ओशो की जयंती पर उन्हें समर्पित भावपूर्ण लेख के लिए सादर आभार आपका अरुण जी।ओशो की पुण्य स्मृति को सादर नमन 🙏

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