25 जनवरी 2023

बालिका दिवस पर ऑक्सीजन मैन के द्वारा सेनेटरी पैड बिलिंग मशीन लगाया गया

ऑक्सीजन मैन के साथ 

धुर दक्षिणपंथी और भाजपा समर्थक गौरव भैया का मंगलवार को पटना से प्रेम भैया के साथ शेखपुरा आना हुआ। वह अभ्यास मध्य विद्यालय शेखपुरा और हुसैनाबाद मध्य विद्यालय में बालिका दिवस के अवसर पर बच्चियों के लिए सेनेटरी पैड नैपकिन वेंडिंग मशीन लगाने के लिए पहुंचे थे। उन्होंने पहले ही बताया कि अभ्यास मध्य विद्यालय के प्रधानाध्यापक मुरारी जी ने उनसे संपर्क किया है। बालिका दिवस पर सेनेटरी पैड मशीन लगाया जाएगा । 

हमेशा की तरह उनका स्वागत करते हुए हम लोग अभ्यास मध्य विद्यालय और हुसैनाबाद पहुंचे। जहां वेटिंग मशीन लगाई गई । 

उनके साथ गांधीवादी प्रेम भैया भी थे। मंगलवार का दिन अच्छे से गुजरा गौरव भैया का स्नेह अपार है। उन्होंने जबरदस्ती रे वन का चश्मा भी पहनाया और फोटो सेशन भी हुआ। 
फोटो लेने में काफी उत्साह दिखाते हैं और उसे फेसबुक पर भी खूब लगाते हैं। मैं चश्मा के साथ संकोची हो जाता हूं परंतु उनकी जिद्द ने लगाने पर मजबूर किया। खैर, कल का दिन व्यस्तताओं का रहा... आज के इस दौर में दूसरों के लिए कुछ भी करने वाले कम मिलते है, गौरव भैया उनमें से एक हैं।

13 जनवरी 2023

बिहार को जातीय आग में झोंकने की तैयारी

हाय बिहार

बिहार को एक बार फिर नेताओं के द्वारा सोची समझी राजनीति और रणनीति के तहत वोट के लिए जातीय आग में झोंकने की तैयारी कर ली गई है।

 इसी तैयारी के तहत बिहार के शिक्षा मंत्री ने राम चरित्र मानस को फर्जी ग्रंथ बताकर एक बड़े वर्ग की भावनाओं को आहत करने का प्रायोजित काम किया है।


वहीं इसके माध्यम से जातीय ताने-बाने को तोड़कर अपने फायदे की रणनीति पर काम शुरू कर दिया गया है ।

2024 और 2025 तक इस आग को और पेट्रोल दी जाएगी । दुर्भाग्य से बिहार इस आग में जलने के लिए मजबूर होने वाला है। अफसोस कि नीतीश कुमार जैसे प्रखर (अब नहीं) नेता भी कहते हैं कि उनको कुछ पता नहीं, चलिए अब जाति जाति के आग में झुलसने के लिए हम लोग तैयार हो जाएं।

जाति जाति के इसी आग में झुलसने की रणनीति के तहत जातीय जनगणना का काम भी शुरू किया गया है। भारतीय जनता पार्टी के धार्मिक उन्माद को जातीय उन्माद से तोड़ने और काटने की शायद यह रणनीति बनाई गई। परंतु अफसोस की एक बड़े वोटर के धार्मिक भावनाओं से ऐसा खिलवाड़ किया जा रहा जैसे उसकी भावनाओं का कोई कद्र ही नहीं। इस तरह दूसरे धर्मों के ग्रंथों में भी कुछ शब्द है,  उसके लिए एक शब्द नेता कह कर देखें, फिर समझ में आ जाएगा।

जातीय जनगणना बिहार में एक बार फिर से नफरत को हवा दे दी है। सवर्ण समाज के लोग आशंकित हैं। और निश्चित रूप से यह मान रहे हैं कि जनगणना के बाद एक बड़े पैमाने पर दमन की राजनीति शुरू होगी। 

07 जनवरी 2023

फिल्म पठान के बहाने बेशर्मों का रंग

फिल्म पठान के बहाने बेशर्मों का रंग

अरुण साथी

पठान सिनेमा का विरोध भगवा रंग के अश्लील ब्रा पेंटी पहन कर नाचने के लिए और बेशर्म रंग गाने के बोल के लिए हो रहा है, यह सच नहीं है। यह सच होता तो भाजपा सांसद मनोज तिवारी और रवि किशन के भगवा वस्त्र पहने अभिनेत्रियों के साथ उत्तेजक और अश्लील नृत्य का वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है।

एक सच यह भी है कि बेशर्म रंग गाने के विरोध के बहाने ही कई तथाकथित लोगों के अंदर की अश्लीलता सामने आई और सोशल मीडिया पर बेशर्म रंग गाने के फोटो और वीडियो उन्होंने खूब शेयर किया।
एक सच इसमें यह भी है कि यदि धार्मिक आधार पर विरोध हुआ होता तो राम तेरी गंगा मैली गाने में मंदाकिनी की अश्लीलता (कट्टरपंथियों के अनुसार) विरोध का कारण बनती, परंतु उस समय गानों के बोल से गंगा मैली नहीं हुई। 


साफ बात, सच यह है कि वे लोग (कट्टरपंथी)  शाहरुख खान (मुसलमान)का विरोध कर रहे।

कारण वही गिनाया जा रहा। पाकिस्तान परस्ती। राष्ट्रभक्ति पर सवाल। यही ढाल है। कट्टरपंथी मानसिकता को तर्कपूर्ण ठहराने का।

ऐसी बात नहीं है कि भाजपा की सरकार के संरक्षण की वजह से ही यह हो रहा है। कांग्रेस, समाजवादी, वामपंथी, ममता बनर्जी इत्यादि भी यही करती है।

कुछ ही लोग हैं जो इन चीजों की सूक्ष्मता को समझते हैं। वहीं कई लोग अपने-अपने गुणा–भाग के अनुसार विरोध करते हैं।

हालांकि सोशल मीडिया के दौर में एजेंडा के हिसाब से विरोध और समर्थन का पोल भी खुल कर सामने आ ही जाता है।

ऐसा नहीं होता तो राजस्थान में कांग्रेसी सरकार के समय नूपुर शर्मा के द्वारा एक कथित ऐतिहासिक तथ्य को टीवी चैनल पर रखने भर से किसी की हत्या नहीं कर दी जाती।

ऐसा नहीं होता तो उत्तर प्रदेश में कमलेश तिवारी पर कथित तौर पर मुस्लिम कट्टरपंथियों के द्वारा ईशनिंदा के आरोप में देश को नहीं जलाया जाता और तिवारी की हत्या नहीं होती।

राजनीतिक दल, धार्मिक संगठन, तथाकथित बौद्धिक वर्ग और सरकारें अपने-अपने हिसाब से दंगाई और गुंडों का बचाव तथा विरोध करती रही हैं। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सिख विरोधी दंगा और गुजरात दंगा जैसे कई उदाहरण है।

उपरोक्त बातों के लिए केवल राजनीतिक दल और नेताओं को जिम्मेदार ठहराने का चलन रहा है। इस वजह से हम अपनी जिम्मेदारियों से बच निकलते हैं।

यह अधूरा सच है। पूरा सच पहले मुर्गी की पहले अंडा जैसा उलझा हुआ है।

नौवा़खली में महात्मा गांधी भी इन चीजों से लड़े होंगे।

अपनी समझ स्पष्ट है। धर्म के इस अफीमी उन्माद से हमारी एक पूरी नई पीढ़ी कट्टरपंथी और उन्मादी हो गई है। जो पीढ़ी रोटी, रोजगार, महंगाई की बात करती वह धर्म के उन्माद की बात करती है।


जो पीढ़ी अनुसंधान, विज्ञान, आईटी सेक्टर, रॉकेट, चांद, मंगल ग्रह की बात करती वह कट्टरपंथ की भाषा बोल रही है।

 जो पीढ़ी खेती किसानी की गुणवत्ता सुधार, अधिक उपज, गरीबों की सेवा और प्रगतिशीलता कि बात करती, वह हजारों साल पुरानापंथी परंपरा, सभ्यता, संस्कृति, संस्कार की खोखली बातें करने लगी है।


और बस, उसी तर्क में पहले मुर्गी की पहले अंडा के विवाद में वे (कट्टरपंथी) पहले तवा गर्म करते हैं. फिर मसाला बनाते हैं। फिर अंडे को फोड़कर आमलेट बना कर उसे चट कर जाते हैं। 

बात स्पष्ट है। हमारे अंदर ही घृणा और हिंसा है ।  कभी राष्ट्र के नाम पर। कभी धर्म के नाम पर। कभी जाति के नाम पर । कभी गांव के नाम पर । कभी गोतिया के नाम पर। हम इसका प्रकटीकरण करते रहते हैं।


05 जनवरी 2023

एक स्वतंत्रता सेनानी के नाम राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर का पत्र

लाला बाबू के साथ मेरा परिचय बहुत पुराना है और ख्याल है, यह केवल परिचय नहीं, आरंभ से ही आत्मीयता और बन्धुत्व रहा है।

लाला बाबू के साथ मेरी पहली मुलाकात सन् 1933 ई० में हुई थी जब बरबीघा के प्रस्तावित एच० ई० स्कूल का प्रधानाध्यापक बनकर काम कर रहा था और जब वे जेल से छूटकर आये थे। जेल में उन्होंने अपनी दाढ़ी बढ़ा ली थी और चेहरे की उस रोशनी से दीप्त वे घर पहुँचे थे। उस समयं की उनकी छवि के बारे में क्या कहूँ ? बहके हुए कवि से लेकर भगवान पैगम्बर तक उन्हें कुछ भी समझा जा सकता था। मुझे उनका वह रूप खूब पसन्द आया था। पीछे जब उन्होंने चेहरे को उस रोशनी को विदा कर दिया, तब एक खास चीज उनके चेहरे से सचमुच विदा हो गयी

बरबीघा में काम करते समय मैं लाला बाबू के गहरे सम्पर्क में आ गया और ज्यों-ज्यों उनके समीप पहुंचता गया, उन पर मेरी सहज श्रद्धा में वृद्धि होती गयी। देशभक्ति का बाण उनकी हड्डी तक विंधा हुआ था और क्रान्तिकारी भावनाओं का सरूर उन पर गहराई से छा गया था। अपने परिवार के प्रति उनके भीतर मोह मुझे कभी भी दिखाई नहीं पड़ा। परिवार का सारा बोझ उनके छोटे भाई पर था, लाला बाबू देश के लिए फकीरी धारण किए हुए थे ।


स्त्री शिक्षा के लिए उनके भीतर बहुत बड़ा उत्साह था। किन्तु उनका गाँव, बिहार के प्रायः सभी गाँवों की तरह, मध्यकालीन संस्कारों में आकण्ठ डूबा हुआ था । तेऊस जमीन्दारों का गाँव था। लाला बाबू खुद जमींदार थे। लेकिन, जमींदारी संस्कारों को छोड़कर लाला बाबू चमक उठे थे, जैसे साँप केंचुल छोड़कर जगमगाने लगता है। लाला बाबू चाहते थे कि गाँव की बेटियाँ शिक्षा प्राप्त कर नयी दृष्टि प्राप्त करें। लेकिन जमींदारी संस्कृति लड़कियों को अन्धकार में रखना चाहती थी। अतएव बाज मामलों में लाला बाबू अपने गाँव में अजनबी की तरह जी रहे थे। मुझे याद है, अपने गाँव की एक सभा में उन्होंने भाषण देते हुए कहा था, हाजिरीन ! मैं चाहता हूँ कि मेरी छाती फट जाय और आप मेरे दर्द को देख लें ।

छोटे जमींदार बड़े ही नकली जीवन के आदी थे। बस पकड़ने को अगर उन्हें बरबीघा आना पड़ता तो बरबीघा तक वे कहारों के कंधे पर आते थे। मगर बस अगर शहर से बाहर पकड़ना होता तो पैदल ही सड़क तक पहुँच जाते थे। मगर, लाला बाबू का जीवन नकली नहीं था। उन्होंने अपने को उन लोगों से एकाकार कर लिया था, जिनके बीच उन्हें काम करना था। और जनता उन्हें बहुत प्यार करती थी। रोब-दाब की पेंच लाला बाबू में न आज है, न सन् 1933 में थी। फिर भी, जब मैं बरबीघा में था, लाला बाबू उस इलाके के बेताज बादशाह थे।

तब से लाला बाबू के जीवन को मैं दूर और समीप से बराबर देखता रहा हूँ और बरावर मेरा यही भाव रहा है कि लाला बाबू में स्पृहा नहीं है, स्वार्थ नहीं है, सेवा के पुरस्कार की कामना नहीं है। बिहार केसरी उनके परम आराध्य थे किन्तु उन्होंने जब लाला बाबू को अकारण कष्ट पहुँचाया, तब भी लाला बाबू का आनन मलिन नहीं हुआ, न उनके भीतर कोई ईष उत्पन्न हुई।

कांग्रेस के जो नेता और कार्यकर्त्ता आज बिहार में काम कर रहे हैं, उनके बीच लाला बाबू का मैं अरयंत श्रेष्ठ कोटि में गिनता हूँ।


 आदमी की सफलता पदों की भाषा में नहीं आंकी जानी चाहिए। पद सिधाई से हासिल नहीं होता, न सिधाई से चलनेवाला आदमी पदों पर ठहर पाता है। दुनिया को रोशनी उन लोगों से नहीं मिलती, जो दुनियादारी की दृष्टि से सफल समझे जाते हैं। सफलता चाहे कितनी भी बड़ी क्यों न हो, वह सीमित चीज है। रोशनी की धार बड़ी असफलताओं से फूटती है। राम, कृष्ण, ईसा और गांधी असफल होकर मरे, इसीलिए वे संसार को आज तक प्रकाश दे रहे हैं। इसी प्रकार, विनोवा, साने गुरुजी, जयप्रकाश और कृपलानी असफलता के उदाहरण हैं। इसीलिए उनके साथ रोशनी जुड़ी हुई हैं।

सफलता पायी अथवा नहीं, 
उन्हें क्या ज्ञात ? 
दे चुके प्राण । 
विश्व को चाहिए उच्च विचार ? 
नहीं, केवल अपना बलिदान ।

राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर