बिहार की शिक्षा नीति पर अक्सर सवाल उठते रहे है और परिक्षाओं में नकल यहां की परंपरा है। बिहार में शराब नीति और शिक्षा नीति दोनों आलोचना का विषय बना हुआ है। शराब और शिक्षा नीति एक दो और हजार नहीं बल्कि पीढ़ियों के लिए स्वीट प्याजन साबित हो गया है।
शराब नीति का हाल यह है जिन गांवों में दूध की गांगा बहती थी वहां आज शराब की सरकारी दुकानों में बच्चे और युवा शराब पीते नजर आते है। जिन गांवों की चौपालों की बैठकी में देश और दुनिया का हिसाब-किताब लिया जाता था वहां आज गाली गलौज होता है।
खैर! अभी परीक्षा का समय है और नकल को लेकर शेखपुरा जिला में छात्राओं ने जमकर हंगामा किया। जिलाधिकारी संजय सिंह ने जब नकल करते एक ही कमरे में 64 छात्राओं को पकड़ा तो सबको निलंबित कर दिया। फिर क्या था बबाल तो होना ही था। सो बबाल इतना बढ़ गया कि काबू पाने के लिए पुलिस को कई राउण्ड गोलियां चलानी पड़ी।
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दरअसल नकल की बिहारी परंपरा के पीछे भी एक सच है। यह बिहार सरकार की गलत शिक्षा नीति का परिणाम है। इंटर की पढ़ाई के लिए किसी भी कॉलेज-स्कूल में शिक्षक नहीं है। वानगी देखिए। शेखपुरा जिले का एसकेआर कॉलेज बरबीघा में पिछले पांच साल से विज्ञान पढ़ाने के लिए एक भी शिक्षक नहीं है। बाबजूद इसके प्रति साल विज्ञान में नामांकन लिया जाता है और विद्यार्थी परीक्षा देते है।
दरअसल डिग्रियों के सहारे नौकरी की लगन वर्तमान सरकार ने पैदा कर दी है। पढ़ाई होती नहीं तो विद्यार्थी नकल करने को मजबूर होगें ही। पोशाक, साईकिल और छात्रवृति के लिए पैसा तो दिया जाता है पर पढ़ाई के लिए कोई व्यवस्था नहीं है। सो वर्तमान सरकार नकल रोकने पर जोर तो दे रही है पर नकल करने के लिए भी यही उकसा रही है और यह बिहारीपन के उस मद्दे को मारने का काम है जिसके दम पर देश और दुनिया में बिहार का डंका बजता है।