12 दिसंबर 2022

आचार्य ओशो रजनीश मेरी नजर से, जयंती पर विशेष

आचार्य ओशो रजनीश मेरी नजर से, जयंती पर विशेष

अरुण साथी

भारत के मध्यप्रदेश में जन्म लेने के बाद कॉलेज में प्राध्यापक की नौकरी करते हुए एक चिंतक के रूप में आगे बढ़ते हुए विश्व के शक्तिशाली देश अमेरिका सहित पूरी दुनिया की सरकार को धर्म और अध्यात्म से डरा देने वाले आचार्य ओशो रजनीश को पढ़ लेना आदमी को, आदमी बनने जैसा है। ओशो कौन थे, इसे बस इस बात से समझ लें की पूरी दुनिया के देशों ने उन्हें अपने देश में प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया। अमेरिका ने स्वीट पाइजन देकर उनकी हत्या करा दी।

आचार्य ओशो रजनीश को भले ही लोगों ने भगवान रजनीश कहना शुरू कर दिया हो परंतु भौतिकवादी से परहेज नहीं करते हुए शारीरिक सुख से आत्मिक सुख की व्याख्या कर संभोग से समाधि तक के सफर को तर्कपूर्ण ढंग से व्यक्त करने वाले चिंतक आचार्य ओशो रजनीश निश्चित रूप से सर्वधर्म समभाव और मानवतावादी एक अवतारी पुरुष थे।


वर्तमान समय में देश और दुनिया भर में धार्मिक कट्टरता का बढ़ना और धर्म के आधार पर अपने अपने धर्म को सर्वश्रेष्ठ बताते हुए मनुष्यता की हत्या बेहद खतरनाक दौर में है। इस दौर में ओशो की प्रासंगिकता सर्वाधिक बढ़ जाती है।


आचार्य ओशो रजनीश ने यूरोपीय देश में रहते हुए भी ईसाईयत पर भी जमकर प्रहार किया। वही इस्लाम पर भी कई करारा चोट किए। हिंदू धर्म की भी जमकर आलोचना की। कहने का मतलब यह कि आचार्य ओशो रजनीश ने मनुष्य को धार्मिक बनने की सीख दी, ना कि धर्म के आधार पर आडंबर करने की।

ओशो की कई बातें आज ही जेहन में हमेशा विपरीत परिस्थिति में कौंध जाता है। बचपन के उस दौर में जब बहुत कम समझ थी। एक ग्रामीण किशोर था। उसी समय ऊपर से कवर फटा हुआ एक पुस्तक हाथ लगी।  कबाड़ के ढेर से उठा उस पुस्तक को जब पढ़ना शुरू किया तो बरबस ही रोचक लगने लगी। उस में पढ़ी गई बातें आज भी जीवन के हर मोड़ पर काम आता है । पुस्तक में पढ़ा की एक राजा ने वित्त मंत्री के लिए एक नौकरी निकाली। उसमें बड़ी संख्या में गणित के विशेषज्ञों ने आवेदन दिया। राजा ने उसमें से कुछ लोगों को चयनित कर के एक बड़े से कमरे में बंद कर दिया। शर्त रखी कि अपने हिसाब किताब जोड़, घटाव कर जो बाहर आएगा उसे ही मंत्री पद मिलेगा । सभी विद्वानों ने गणित के हिसाब से जोड़ , घटाव, गुणा, भाग करना शुरू कर दिया। उसी में से एक व्यक्ति शांत चित्त होकर बैठ गया। कुछ देर के बाद अचानक से उठा और दरवाजा खोलकर बाहर चला गया।

 इस छोटी सी कहानी के माध्यम से ओशो रजनीश ने यह बताया कि सत्य को खुद महसूस करो। तब उसे मानो। जब सत्य की खोज करोगे तो जो सत्य है वह अवश्य मिलेगा। बशर्ते उसे कोई खोज करने वाला हो। इसलिए वह व्यक्ति पहले इस सत्य को खोजने गया कि दरवाजा बंद है अथवा खुला हुआ।

ओशो रजनीश ने स्पष्ट कहा कि ईश्वर है । यह मैं भी मानता हूं। परंतु तुम ईश्वर को खुद जानो तब मानो। किसी के कहने पर मत मान लो। जैसे कि पंडित, मुल्लाह, पोप के कहने से अथवा माता-पिता के कहने से तुम ईश्वर को मान लेते हो।


आचार्य ओशो रजनीश ने यह भी कहा कि आदमी का धर्म क्या होगा इसे बस इतनी सी बात से समझ ले।  कोई मुसलमान के घर में जन्म लिया बच्चा यदि हिंदू के घर पलता है और हिंदू के घर जन्म लिया बच्चा मुसलमान के घर पलता है, तब उसका धर्म क्या होगा? बस इसी बात से तुम्हारे धर्म की व्याख्या हो जाती है।


आचार्य ओशो रजनीश ने अष्टावक्र गीता से लेकर बुद्ध , महावीर लाओत्सो, कन्फ्यूशियस आदि के उदाहरणों को लेकर अपने तर्क की कसौटी पर उसे कसा और दुनिया भर के लोगों को एक नया संदेश दिया। नया जीवन दिया। एक नया मानव बनाया।




लोगों को प्रेरणा भी दिया है। एक कविता, उसी के है साहिल उसी के किनारे , तलातुम में फस कर जो दो हाथ मारे।


 इसमें उन्होंने स्पष्ट रूप से व्याख्या किया है कि किनारे पर बैठने वालों को कभी कुछ हासिल नहीं होता। हासिल वही करते हैं जो तूफान में उतरकर, समुंद्र की गहराइयों में उतर कर दूसरे किनारे तक जाने का हौसला करते हैं ।


एक बड़ी सीख जो मेरे लिए जीवनमंत्र है वह यह कि अपने एक प्रवचन में उन्होंने कहा to behole to be preserved। बचना चाहते हो तो झुक जाओ। उदाहरण में बताया कि तूफान जब आता है तो बड़े-बड़े दरख़्त उखड़ जाते हैं परंतु घास जो झुक जाता है वह बच जाता है। मेरे लिए उनका एक और शब्द जीवन का मूल मंत्र रहा जिसमें उन्होंने कहा की पराजय के क्षण में जो टिक सकता है और विजय में जो हट सकता है। उसका अहंकार तिरोहित हो जाएगा । मतलब अहंकार खत्म होगा। उन्होंने समझाया कि अंधकार ही है जो पराजय में हमें छुप जाने और विजय  में सीना तान कर आगे आने के लिए प्रेरित करता है।




किशोरावस्था में ओशो रजनीश के पढ़ लेने का ही परिणाम था कि प्रेम में पड़ गया।  उन्होंने प्रेम की जो व्याख्या की वस्तुतः वही प्रेम है। शादी विवाह के आडंबर से हटकर उन्होंने प्रेम को प्राथमिकता देने की बात कही। वर्तमान समय के आधुनिक युग में जैसे हम खुद को कबीलाई युग में ले जा रहे हैं और धार्म, सभ्यता, संस्कृति के नाम पर गलत को ही सही ठहराने का चलन है।

ओशो रजनीश ने अपने प्रवचनों में स्पष्ट रूप से कहा कि विवाह नामक संस्था एक समझौता है इसमें प्रेम नहीं है। यह भी कहा कि बाद में प्रेम हो जाए यह संभव है। परंतु प्रेम अगर हो तो ही जीवन सफल और सार्थक होता है। प्रेम विवाह को असफल होने और तलाक के बिंदु पर एक प्रश्न के जवाब में आचार्य ओशो रजनीश ने कहा था कि जब प्रेमी और प्रेमिका प्रेम में होते हैं तो विवाह से पहले जब मिलते हैं तो दोनों अपने-अपने अच्छाइयों को ही दिखाते हैं। और देखते हैं। ऐसे में जब दोनों विवाह के बंधन में बंधते हैं तो उनकी बुराइयां सामने आती है और दोनों को आघात लगता है। यही मूल कारण है कि प्रेम विवाह कई बार असफल होते हैं। यदि हम बुराइयों को देख लें और दिखा दे तो असफलता कम होगी।


आचार्य ओशो रजनीश का मूल मंत्र ध्यान था। उन्होंने संगीत के स्वर लहरियों पर झूमते हुए नाचने को भी ध्यान कहा और संभोग से समाधि तक अपने विवादित पुस्तक में संभोग की प्रक्रिया को भी ध्यान का एक माध्यम बताया और तर्क की कसौटी पर उसे कस दिया।

ओशो ने हंसने गाने को सर्वश्रेष्ठ ध्यान माना। ओशो अपने अपने धर्म को हंसता हुआ धर्म कहते हैं।


 उन्होंने मुल्ला नसरुद्दीन के बहाने कई ऐसे ऐसे चुटकुले सुनाए जो लोटपोट कर दें।

ओशो की एक बात जो सबसे अच्छा लगी वह यह कि उन्होंने यह भी कहा कि तुम वही लोग हो जो तुम्हें चांद दिखाता है तो तुम उसकी उंगली ही पकड़ लेते हो। ईश्वर चांद में है। उंगली में नहीं। उन्होंने यह भी कहा कि महावीर, बुद्ध, रैदास, कबीर ने मूर्ति पूजा का विरोध किया तो लोग उनकी ही मूर्ति बना कर पूजा करने लगे। कबीर ओशो के आत्मा में बसे। धर्म ग्रंथों की जो व्याख्या आचार्य ओशो रजनीश ने की वैसे व्याख्या देखने सुनने को नहीं मिली। कबीर के दोहों को उन्होंने नया आकार दे दिया। 11 दिसंबर पर उनकी जयंती को लेकर आचार्य को मेरा प्रणाम कि मुझे आदमी बनाया।

27 नवंबर 2022

समीक्षा : खाकी द बिहार चैप्टर , Netflix पर आईपीएस अमित लोढ़ा और महतो गिरोह

समीक्षा : खाकी द बिहार चैप्टर , Netflix पर आईपीएस अमित लोढ़ा और महतो गिरोह

Netflix जैसे मोबाइल ओटीपी मंच पर बिहार के उस दौर की कहानी को आईपीएस अमित लोढ़ा की जुबानी सीने पर्दे पर उतारना और सच के करीब ले जाना अपने आप में बड़ी बात होती है । नेटफ्लिक्स पर बीती रात जागकर खाकी द बिहार चैप्टर के सभी सात सीरीज को एक बार में खत्म कर दिया  । 2005/06 तक के उस दौर को खूनी खेल, अपहरण, रंगदारी,जातीय संघर्ष के लिए जाना जाता है।

उसी दौर के आसपास आईपीएस अमित लोढ़ा ने कुख्यात महतो गिरोह के कहानी को द बिहार डायरी उपन्यास में संजोया तो नेटफ्लिक्स पर प्रख्यात  निर्देशक नीरज पांडे ने वेब सीरीज का रूप दे दिया।


वेब सीरीज में बिहार के एक पुलिस अफसर के जद्दोजहद और अपराध तथा राजनीतिक गठजोड़ के साथ अपराधी का जातीय संरक्षण, सभी कुछ इसमें है । पूरे वेब सीरीज को सच्चाई के आसपास रखते हुए प्रस्तुत किया गया है। हालांकि रोचकता के लिए कहीं कहीं मिठास की चासनी भी है ।


पहली ही कड़ी वहीं से शुरू होती है जहां से चंदन को ठोकने जा रहे एक दरोगा को राजनीतिक दबाव में वापस बुला लिया जाता है । फिर कहानी में दबंगों का वर्चस्व और हत्या, अपहरण का दौर सब कुछ है। पूरी कहानी जिले के कसार थाना के इर्द-गिर्द है।

कसार थाना आज भी अपनी जगह पर है। परंतु इस वेब सीरीज में मुख्य केंद्र यही थाना है । इस थाना के आसपास के गांव का यह ताना-बाना है। उन गांव में आज ही महतो गिरोह के आतंक को लोग याद करते हैं। इस वेब सीरीज में गिरोह के आतंक को मानिकपुर नरसंहार से रेखांकित किया गया है।


पूरी सीरीज को बहुत ही बारीकी से बुना गया है और अगली कड़ी देखने के लिए प्रेरित दर्शक हो जाते हैं । द वेडनसडे फिल्म जिसने भी देखी है वह नीरज पांडे का फैन है। तो इसमें उनके द्वारा सभी किरदारों और पूरी कहानी को जीवंत कर दिया गया है।

आशुतोष राना जैसे बड़े कलाकार भी इसमें हैं परंतु उनके किरदार को कम स्पेस दिया गया। रवि किशन का किरदार भी प्रभावशाली रहा। वहीं अमित लोढ़ा का किरदार कर रहे करण टेकर बखूबी अपने अभिनय का लोहा मनवाया है। चंदन महतो के अभिनय में अविनाश तिवारी ने पूरे चरित्र को जीवंत कर दिया है।

खैर, इस सीरीज में चवनप्राश का किरदार खास रहा। चंदन महतो को कुख्यात बनाने और उसके अंत की पटकथा लिखने तक में।

शेखपुरा जिला के एसपी रहते हुए अमित लोढ़ा ने वाकई में गिरोह का सफाया किया। उसके खौफ को शेखपुरा के सड़कों पर उसे घुमा कर अंजाम तक पहुंचा दिया।

बस एक बात है कि सीरीज का चमनपरास आज राजनीति समाज सेवक है। चंदन महतो का आज भी जेल में ही सही, पर मौज है ।

और हां, आईपीएस अमित लोढ़ा एक बार फिर विभागीय चक्रव्यूह में फंसकर उसी तरह तड़प रहे हैं जैसे वेब सीरीज में।

भले ही बिहार के जंगल राज के दौर की सच्चाई को बयान करती हो परंतु वर्तमान में भी बहुत कुछ नहीं बदला है। अगर बदला होता तो इसी जिले में शराब तस्कर की पिटाई का आड़ लेकर दबाव बनाने के लिए वर्तमान पुलिस अधीक्षक कार्तिकेय शर्मा का पुतला सत्ताधारी दल के द्वारा नहीं जलाया जाता।

इसी जिले ने टाटी नरसंहार में नौ राजनीतिज्ञ की हत्या, दो प्रखंड विकास पदाधिकारी की हत्या, एक कन्या अभियंता की हत्या और जिले के संस्थापक,  दिग्गज राजनीतिज्ञ पूर्व सांसद रहे राजो बाबू की लाश खामोशी से देखी है।

उस दौर के कई कुख्यात लोग आज भी खादी पहनकर लहराते हुए दिखाई दे रहे हैं। बहुत कुछ नहीं बदला है, परंतु समय तेजी से बदल गया। कुल मिलाकर वेब सीरीज शानदार है। पटकथा लेखन, संवाद अदायगी, अभिनय, साज-सज्जा और लोकेशन, सभी कुछ।

वेब सीरीज को 10 में 9 अंक दिया जा सकता है।

16 नवंबर 2022

निरंकुश पत्रकारिता के दौर में स्व नियोजन की बात


Arun Sathi
जब चारों ओर घनघोर अंधेरा हो तो दो तरह के काम किए जा सकते हैं। पहला, हम भी अंधेरे का आधिपत्य स्वीकार कर लें और उसी का साथ हो कर कर सुखचैन का जीवन यापन करें । दूसरा, हम दीया बन जाए। टिमटिमाते दीया। तब क्या होगा। आचार्य ओशो रजनीश कहते हैं कि अंधेरे का अपना अस्तित्व नहीं होता है। जहां भी।जहां कहीं भी रोशनी होगी, वहां से अंधेरे का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा।



जीवन के हर क्षेत्र में दीया बनने की जरूरत है। वह चाहे समाज हो शासन-प्रशासन हो या सीधा-सीधा कहे तो न्यायपालिका, विधायिका, कार्यपालिका और चौथा खंभा भी । ऐसी भी बात नहीं है कि वर्तमान और भूत काल में दीया लोग नहीं बने हैं। खुद जले हैं और प्रकाश फैलाया है। बस हमारे समाज की यह प्रवृत्ति रही है कि वह अच्छाई की चर्चा गाैण कर, बुराई की चर्चा में स्वाद लेता है।
 

आदरणीय कुलदीप नैयर का एक आलेख  सेमिनार से उद्धृत कर रहा हूं। उन्होंने कहा था कि पत्रकार को कभी डीएम, एसपी, जज नहीं समझना चाहिए। दूसरी बात उन्होंने कही थी कि पत्रकार का पेशा नहीं है । यह राष्ट्र और समाज निर्माण की भागीदारी का मंच है। जिम्मेवारी है। पेशा यदि करना हो तो इसके लिए समाज के कई क्षेत्र खाली हैं। वही करना चाहिए।


दुर्भाग्य से इस एक दशक में अचानक से सब कुछ बदल गया है। कर लो दुनिया मुट्ठी में जब यह स्लोगन रिलायंस ने दिया उस समय किसी ने नहीं सोचा होगा कि सच में एक मोबाइल पूरी दुनिया को अपनी मुट्ठी में कर लेगा।
 

हम में से कई साथी उसी दौर के पत्रकारिता कर रहे हैं जब कार्यालय, अस्पताल और चाय की दुकानों से खबरें ढूंढनी पड़ती थी। आज  व्हाट्सएप पर खबरें   चलकर हमारे पास आ जाती है। इस वजह से यह बहुत मुश्किल दौर है। इसी वजह से फेक न्यूज़ का दौर भी है। इसी वजह से पत्रकार  का सम्मान और गरिमा में चौतरफा गिरावट है। न्यूज़ चैनल के ब्रेकिंग न्यूज़ की आपाधापी से निकलकर अब मोजो का युग है। मोबाइल जर्नलिस्ट।  खबर कहीं बनी, हर कोई मोबाइल में उसे कैद कर अपने चहेते लोगों को भेजता है । सोशल मीडिया पर लगाता है । वहां से खबरें प्रसारित हो जाती है।


फिर शुरू हो जाता है पीपली लाइव फिल्म जैसा नजारा। ठीक पीपली लाइव फिल्म में जो होता है वह आज होते हुए आप देख सकते हैं। वह चाहे पटना में ग्रेजुएट चाय वाली का मामला हो, हरनौत का सोनू हो अथवा नवादा में छह लोगों के आत्महत्या के बाद लाशों पर गिद्धों के मोबाइल लेकर मंडराने का, यही सब कुछ देखने को मिल रहा है।


हम सोशल मीडिया के जिस दौर में जी रहे हैं वहां निंदक नियरे राखिए अथवा नहीं, दूर से भी निंदक आपकी निंदा करेंगे । अभी हाल ही में एक बारात में कुछ लोग गए हुए थे। बहुत अच्छी व्यवस्था थी। खूब मिठाई खिलाया गया। गांव के एक बुजुर्ग जो अक्सर चुगली करने में माहिर होते हैं उनसे जब पूछा कि कैसी व्यवस्था है।  उम्मीद थी कि वह कहेंगे कि बहुत शानदार परंतु उन्होंने उस पूरी व्यवस्था में भी कमी खोज ली और कहा कि सब कुछ तो ठीक था परंतु रसगुल्ला बहुत अधिक मीठा था।

मोबाइल जर्नलिज्म के इस दौरान सोशल मीडिया पर खबरों का पोस्टमार्टम भी होने लगा है। अब यदि किसी बाहुबली, दबंग अथवा गैंगस्टर के विरोध में खबरें चलती हैं तो सोशल मीडिया पर उसका पोस्टमार्टम उसके गिरोह के सदस्य सक्रिय होकर करते हैं। कभी कभी तो ऐसा लगने लगता है जैसे सही में सही खबर को उठाकर गलती कर दिया गया हो। सोशल मीडिया पर कम उम्र के लड़कों के हावी होने का ही नतीजा है कि यदि कोई पिस्तौल के साथ अपनी तस्वीर और वीडियो लगाता है तो सभी लोग वाह-वाह करने लगते हैं । मुझे लगता है कि यदि कोई यह भी लिख दे कि वह किसी की हत्या आज कर दिया तो कई लोग उसकी तारीफ कर देंगे आज हम इसी दौर में जी रहे।

परंतु इस दौर में से हमें अच्छी चीजें निकालनी होगी । उदाहरण  खुद बनना होगा। तभी समाज में बदलाव होगा। जैसे पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य ने कहा है कि हम बदलेंगे युग बदलेगा । हालांकि आज हमारी मानसिकता है कि युग बदल जाए परंतु हम नहीं बदले।

02 नवंबर 2022

सोशल मीडिया की आभासी दुनिया से आत्मीय संबंध तक । एक अनुभव

#आभासी दुनिया से #आत्मीय संबंध तक

सोशल मीडिया पर एक दशक बाद सबकुछ बदल गया है। #धार्मिक उन्माद का चरमोत्कर्ष,   जातीय गोलबंदी, #सायबर माफिया, झूठे समाचार, दूसरे को नीचा दिखाना, स्वयं को सर्वश्रेष्ठ बताना, वैभव दिखाना, लड़कियों को आकर्षित करना, विवाहेत्तर संबध की तलाश आदि इत्यादि का आज यह बड़ा मंच गया। 
एक दशक पहले, उस दौर के आभासी दुनिया के लोग आज आत्मीय है। वैचारिक मतभेद के बाद भी कभी किसी को नीचा नहीं दिखाया गया। ऐसे ही दो विचारधारा के लोग आज  #मित्रवत है। घूर दक्षिणपंथी विचारधारा के प्रबल समर्थक सुधांशु शेखर और आधा अधूरा वामपंथी विचारधारा के समर्थक अरुण साथी।
सुधांशु शेखर 7 साल से #ऑस्ट्रेलिया में है। वहां की नागरिकता ले ली है। एनआरआई बन गए। बीजा लेकर अपने घर आए हैं। पुराने गया जिला के कुर्था थाना के उत्तरामा गांव निवासी हैं। अब उनका गांव अरवल में। 
दक्षिणपंथी विचारधारा का इसलिए कि जब भी कभी नरेंद्र मोदी के विरुद्ध, हिंदुत्व के विरुद्ध अथवा सेकुलर से संबंधित पोस्ट किया इनके तीखे कमेंट मिले। कभी कभी फोन करके एक घंटा से अधिक समझाया।

हिंदू मुस्लिम को इनके द्वारा मुसलमानों की धार्मिक survival का सवाल बता कर अक्सर डरा कर चुप करा दिया जाता है। मुसलमानों का हिंदू, ईसाई, सिख, बौद्ध, यहूदी किसी के साथ सामंजस्य नहीं करने का और दूसरे धर्म के लोगों को काफिर मानने का तर्क निरुत्तर कर देता है।
खैर, इससे अलग ऑस्ट्रेलिया के मेलबोर्न से चलकर एक बार फिर अपनी धरती को देखने के लिए बिहार पहुंचे। पटना, बेगूसराय होते हुए मुझसे भी मिलने के लिए आए। तीन दिनों का सानिध्य रहा। अपने बरबीघा के आसपास जो भी जगह थी उसे देखने के लिए ले गया। छठ पूजा का वैभवी देखा और आध्यात्मिक जुड़ाव से भी अनुभव किया। 10 सालों के बाद बहुत कुछ बिहार में नहीं बदलने की बात भी कही । यह भी कहा कि बिजली की व्यवस्था दुरुस्त हो गई है। परंतु सड़क पर गड्ढे ही गड्ढे हैं। हालांकि हम लोगों के लिए सड़क बेहतर है परंतु ऑस्ट्रेलिया के हिसाब से नहीं।
सबसे खास बात यह कि ऑस्ट्रेलिया में बसने के बाद भी उनमें तड़क-भड़क नहीं दिखा। यहां से दिल्ली जाने के बाद मेरे को तेरे को करने वालों के जैसा ऐंठन भी नहीं दिखा। आम चाल बोलचाल की भाषा हिंदी और मगही में बातचीत। साधारण खानपान के बीच उनको विदा कर दिया। आज सोशल मीडिया के वजह से आभासी दुनिया से निकलकर हम लोग आत्मीय संबंध में जुड़ गए हैं और मित्रवत है। बस बहुत है।

नोट: बिहार केसरी का जन्म भूमि, अमामा महाराज का किला भी दिखाया।

29 अक्तूबर 2022

ब्राह्मणवाद से आजादी, छुआछूत से आजादी

ब्राह्मणवाद से आजादी, छुआछूत से आजादी


ब्राह्मणवाद और छुआछूत हिंदू धर्म के लिए इसे सबसे बड़ा अभिशाप माना गया है। इसी को उदाहरण स्वरूप प्रस्तुत करके हिंदू धर्म के विरुद्ध प्रचार करने में बड़े-बड़े महारथी लगे रहते हैं। इसी का परिणाम है कि एक बड़े वर्ग में हिंदू धर्म को लेकर घृणा का भाव व्यापक रूप से देखा जाता है। व्हाट्सप्प विश्वविद्यालय इसमें काफी कारगर साबित हो रहा।
हालांकि मैं हिंदू धर्म का ध्वजवाहक नहीं हूं परंतु एक हिंदू हूं। सनातन धर्म को मानता हूं। इसी वजह से सभी धर्मों के प्रति समान भाव रखता हूं। 

बचपन से कुछ चीजों को देखता रहा हूं जिसको लेकर अब समझ बनी है कि ऐसे सकारात्मक बातों को प्रचारित नहीं किया गया।   

इसी में छठ महापर्व भी शामिल है। छठ महापर्व पर ब्राह्मण से किसी तरह का पूजा नहीं कराया जाता। सारा विधि विधान परंपरागत रूप से की जाती है।

जातीय छुआछूत मिटाने को लेकर डोम जाति से सूप दौरा लेकर उपयोग किया जाता है। उसी में अर्घ्य पड़ता है। माली से फूल लेने, पासी से पानी फल लेने, धोबी से पलटा (व्रती का कपड़ा ) लेने सहित कई जातियों की उपयोगिता इसमें है।

सबसे खास बात के छठ घाट पर सभी जाति के व्रत करने वाली एक साथ भगवान सूर्य की उपासना करते हैं। सभी लोग जब सूर्य की उपासना में अर्घ्य करते हैं तो बगैर जाति देखें जल अर्पण करते हैं। यहां तक कि छठ व्रत करने वाली महिलाओं को बगैर जाति देखे सभी लोग पैर छूकर आशीर्वाद लेते हैं।


18 अक्तूबर 2022

सुखी दांपत्य जीवन का राज

सुखी दांपत्य जीवन का राज

अरुण साथी, (हास्य व्यंग्य)

किसी संत पुरुष ने पत्नी की बनाई कड़वी चाय की प्रशंसा की और अपने भक्तों को सुखी दांपत्य जीवन का इसे ही राज बताया। जब से यह ज्ञान प्राप्त हुआ है इस मंत्र को मान लिया गया है। इस मंत्र रूपी नुस्खे को कई बार आजमाया है। जैसे कि कलेजा पर पत्थर रखकर  पत्नीजी को गाहे-बगाहे रूपमती और गुणवंती बताते रहना पड़ता है। इसका सीधा असर सुखी दांपत्य जीवन पर पड़ता है।
 

पत्नी जी को पति से प्रेम हो अथवा नहीं हो परंतु मिर्ची से प्रेम नैसर्गिक है। सो है। आप एक लाख बार कोशिश कर लीजिए इस अटूट प्रेम बंधन को तोड़ना असंभव होगा। इसी मिर्च प्रेम की व्याख्या पत्नी जी के सामने जब करना पड़े तो वहां भी संत का मंत्र काम आता है। पत्नी जी ने आज मशरूम बनाई। खाने के बाद एक मित्र का कॉल आ गया। पत्नी जी वहीं थी। बस क्या था। सुखी दांपत्य जीवन का मंत्र अपना लिया। जब दोस्त ने पूछा कि क्या खा रहे हो और कैसा बना है मैंने कहा, पत्नी जी के हाथ में तो जैसे जादू है। इतना स्वादिष्ट मिर्चाय मशरूम बनाई है कि वर्णन करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं है। स्वाद ऐसा है कि खाते-खाते  आंखों से झर झर खुशी के आंसू बह रहे हैं।  और तो और खाने के तुरंत बाद रसोई में जाकर एक मुट्ठी चीनी से आतीशी स्वाद को  काबू करना पड़ा। 

 

पत्नी जी की पाक कला का प्रशंसक हर पति होता है। ना हो तो जान सांसत में पड़ जाए । इसी पाककला का प्रशंसक मैं भी हूं ।  अब देखिए इटली और चीन के पाक विशेषज्ञों को भारत आकर शोध करना चाहिए। कैसे उनके व्यंजनों में भारतीय प्रतिभावान पत्नियों ने पंच फोरन का छौंक मारकर उसके स्वाद में 12 चांद लगा दिए । पाक कला का ही नमूना है कि मैगी नूडल्स और पास्ता का भारतीय संस्करण पत्नी जी के बुद्धिमान होने का सूचक है। तभी तो इसे मिर्च मसाला के साथ बनाकर सब्जी के रूप में रूपांतरित कर दिया गया है।

संत महाराज के दिए हुए मंत्र अक्सर काम आते हैं। अब एक-दो दिन के बाद गंदे होने पर भी कपड़े को बदलना कानूनन जुर्म हो गया है । उसको चार-पांच दिन पहनना पड़ता है। कभी-कभी प्रेम बस पत्नी जी पूछ ले कि इतने दिनों तक गंदा कपड़ा क्यों पहने हुए हैं तो उन्हें यह बताना पड़ता है कि राष्ट्रीय जल बचाओ अभियान में सक्रिय भूमिका दे रहे हैं।  जब आप यह सब नुस्खा आजमाते हैं तो गुणवंती पत्नी जी यह सोचने पर विवश हो जाती हैं कि पति के रूप में गधा उनको मिला है कि बैल।

14 अक्तूबर 2022

दैनिक जंगल समाचार पत्र में जांबाज बाघ की चर्चा

दैनिक जंगल समाचार पत्र में जांबाज बाघ की चर्चा 


दैनिक जंगल समाचार पत्र में इन दिनों एक जांबाज बाघ के शहीद होने की खबर सुर्खियों में है । खबर कि अपने जंगल और जमीन पर कब्जा कर बैठे जंगल, जानवर और जमीनखोर आदमजात से लड़ते-लड़ते एक जांबाज बाघ शहीद हो गया।
 खबर में यह भी लिखा गया है कि जंगल जमीन और जानवरों से जंगल को बचाने के लिए लड़ते लड़ते शहीद हुए बाघ की तरह का हौसला कोई कोई ही कर पाता है ।


कहा गया है कि आदमजात ने उनके जंगल पर कब्जा कर लिया । इस वजह से जंगल खत्म हो गए ।कई जानवर विलुप्त हो गए। हाथी, बंदर, बिल्ली, कुत्ता, गिलहरी, लोमड़ी, खरगोस इत्यादि जानवरों ने आदमजात से समझौता कर लिया और पालतू होकर उसके साथ रहने लगे।

 और उसी के जैसे हो गए परंतु बाघ शेर चीता यह क्रांतिकारी निकले अभी तक पालतू भी नहीं हुए हैं और शहरीकरण का इन पर प्रभाव नहीं पड़ा है। इस वजह से लड़ते-लड़ते शहीद हो रहे हैं।

 दैनिक जंगल समाचार पत्र में इस बात की भी चर्चा की गई है कि विलुप्त होने के बाद उनकी पूछ बढ़ जाती है । आदम जात दिखावटी प्रेम प्रदर्शन में बहुत ही शातिर है। इसी वजह से अफ्रीका से चीता मंगवा कर दिखावटी प्रेम का जबरदस्त प्रदर्शन किया गया। साथ ही साथ समाचार पत्र के संपादकीय में विशेष तौर पर इस बात की चर्चा की गई है कि आजमजात जंगली जानवरों से भी खूंखार हो गया है। तभी तो एक मरे हुए बाघ की लाश को नोचते हुए आजम जात को देखा गया। इस पर खास टिप्पणी की गई है कि आदम जात का अवगुण जानवरों में नहीं अपनाना चाहिए।

08 अक्तूबर 2022

आदिमानव की पूंछ और वंशजों का विमर्श

आदिमानव की पूंछ और वंशजों का विमर्श
अरुण साथी

 वर्तमान में हम लोग कलिकाल से एक दो  युग आगे बढ़कर खली-बली काल में जी रहे हैं। इस काल में खलबली के अनेकों अनेक कारण  गढ़ लिए जाते है। नहीं कुछ तो, राक्षस के हेयर स्टाईल पर खलबली करने लगेगें। इसमें आगरा और रांची रिर्टन की संख्या सर्वाधिक होती है। ये लोग सर्वाधिक लोकप्रिय सतत हस्त पकड़, उंगली रगड़ यंत्र पर देखे जाते है।
 देहात में कहावत है। जो ज्यादा होशियार होता है वह तीन जगह चखता है। अब चौथे नंबर, जिह्वा पर चखने का चलन भी बढ़ गया।  जरा सा किसी ने गोबर किया नहीं कि चखने में लग जाते है। उसके बाद छाती चौड़ा कर उसे अपने-अपने हिस्से वाले अ-धर्म का बताकर खलबली मचा देते हैं।  

अभी अभी चखने के बाद यह घोषणा कर दी कि महान अहंकारी राक्षस राज उनके वंशज थे। यहां तक कि अपने वंशज के हेयर स्टाइल तक उनको पता है। उनके पूर्वजों का हेयर स्टाइल बदलकर दूसरे राक्षस  जैसा बनाकर उनका अपमान किया गया है। जैसा की सर्वविदित है। बदबू के तेजी से प्रसारित होने के काल में उसके प्रचार प्रसार के लिए  सोशल मीडिया जैसे माध्यम लाए गए हैं। सो बदबू ही बदबू।

आखिरकार मध्धड़ काका तक गांव में यह बात पहुंची। उन्होंने  जाकर पूछ लिया। बताओ तुम्हारे आदिमानव को राक्षस की तरह दिखाया और विरोध दूसरे लोग कर रहे हैं। उनका दावा है कि उनका राक्षस तुम्हारे राक्षस से ज्यादा प्रतापी था।


खैर, सिनेमा बनाने वालों को अब चाहिए कि बनाने के बाद सेंसर बोर्ड से पहले अखिल भारतीय अ-धर्म महासभा में उसे भेजें। जहां वे आदिमानव के पुंछ का विश्लेषण कर यह बता देंगे कि इसमें कितने बाल होने चाहिए। हेयर स्टाइल कैसा होना चाहिए। वस्त्र कैसे होने चाहिए । उसका रंग कैसा होना चाहिए। जूता और उसके रंग भी बताएंगे । यहां तक की कच्छा और बनियान के बारे में भी अपने वंशजों के विशेषज्ञ सब कुछ बता देंगे। इतना ही  यह भी बता देंगें से इसके अभिनेता उनके अ-धर्म का कभी विरोध भी किया है या नहीं।  जय हो खलीबली काल की।

28 सितंबर 2022

महागठबंधन के बिहार में शुभ संकेत

महागठबंधन के बिहार में शुभ संकेत


मुझे नहीं पता बिहार में सरकार क्या करेगी। जातीय और धार्मिक उन्माद के बीच जंग है। सभी अपने अपने मोहरे चल रहे है। देश में धर्म के नाम पर बांसुरी बजा कर बेरोजगारी, मंहेगाई, निजीकरण और मनमानी का दौर है। बिहार में गठबंधन के बदलते ही बहुत कुछ बदल गया। नीतीश कुमार जैसा सुलझा व्यक्तित्व भी पर्दे के पीछे से जातीय खेल को छोड़ पटल कर आकर बैटिंग करने लगे। शायद धर्मिक उन्माद को इसी से रोका जा सकता है, यही समझ बनी हो। उधर, बीजेपी धर्मिक उन्माद में बिहार को लेकर जाने की पूरी ताकत लगा दी है। बिहार का बौद्धिक मानस सहमा हुआ है। 

वहीं महागठबंधन वाली बिहार की सरकार में एक अच्छी बात जो हो रही है वह यह है कि रोजगार की बात होने लगी है। भारतीय जनता पार्टी के सरकार से अलग होते ही बिहार के तमाम वर्ग के युवाओं में सरकारी नौकरी की उम्मीद जगी । यह उम्मीद तेजस्वी यादव के आने से जगी है।

दरअसल, विधानसभा चुनाव में तेजस्वी यादव ने सरकारी नौकरी 10 लाख लोगों को देने का वादा किया था। सरकार बनते ही युवाओं ने तेजस्वी यादव को घेर लिया। हालांकि बीजेपी के द्वारा भी नौकरी और रोजगार के नाम पर महागठबंधन की सरकार को घेरने की कोशिश की गई परंतु इस कोशिश को बिहार के आम जनता ने नकार दिया । क्योंकि जिस सरकार में इतने सालों तक रही उसमें नौकरी की कोई बात नहीं होती थी और केंद्र सरकार तो युवाओं के भविष्य को पाताललोक में ले जाने में लगी हुई ही है अग्निवीर के माध्यम से उसने अंतिम कोशिश भी कर दी।

खैर, लगातार महागठबंधन की सरकार में नौकरी की बात होने लगी है। शिक्षक बहाली की प्रक्रिया की शुरुआत कर दी गई है। जिसके लिए खूब हंगामा हुआ था और युवाओं के द्वारा पटना में आंदोलन भी किया गया था।


कुल मिलाकर लोकतांत्रिक दृष्टिकोण से बिहार एक अच्छी पहल करता हुआ दिख रहा है। सबसे अच्छी बात यह भी है कि तेजस्वी यादव लालू प्रसाद यादव की प्रेत छाया से निकलने की कोशिश में लगातार सकारात्मक काम कर रहे हैं। उधर, इस पूरे प्रसंग में भारतीय जनता पार्टी बिहार को धार्मिक आधार पर ले जाने की कोशिश में साफ साफ दिखती नजर आ रही है। यहां कांग्रेस के नेता कन्हैया कुमार का यह कथन उल्लेखनीय है कि बिहार में विपक्ष में आते ही भारतीय जनता पार्टी को नौकरी और रोजगार नजर आने लगा और इसकी बात पार्टी करने लगी। बीजेपी विपक्ष में रहेगी तो इसी तरह की बात होगी। 

खौर, मेरा भी मन नहीं मानता पर उम्मीद पर दुनिया है। शायद तेजस्वी दो दशक पहले वाले बिहार के भय, भूख और भ्रष्टाचार के कलंक को तोड़ पाने में कामयाब हो तो बिहार के लिए शुभ होगा

06 सितंबर 2022

आईआरसीटीसी का अत्याचार और रेडिमेड चाय

रेडिमेड चाय

रेल की चाय को पीना चाय के शौकीन अब पसंद नहीं करते। मन मार के रह जाते। पिछली यात्रा में जब घर पहुंचा तो श्रीमती को विश्वास नहीं हुआ की रेल गाड़ी में चाय नहीं पी। आज सुबह ही कॉल कर पूछ लिया, चाय पी...! बस चाय पीने के लिए बदनाम ही हूं..!

वैष्णो देवी यात्रा में भी हम सब लोग आईआरसीटीसी की चाय नहीं पीने का मन बना लिए। जैसी चाय आईआरसीटीसी वाले देते है उसे यदि गांव देहात में कोई पिला दे तो कहते है बकरी की मूत जैसी चाय पिला दी। इतना ही नहीं पहले जो पोटली वाली tetley चाय मिलती थी वह भी कमबख्तो ने बंद कर दी। आईआरसीटीसी वाले ग्राहकों को जिस हिसाब से लूटती है उससे अधिक अत्याचार कुछ नहीं।

खैर, आज सुबह ही सोच रहा था चाय भी रेडिमेड मिले तो कितना अच्छा। थोड़ी देर में रेडिमेड चाय लेकर आईआरसीटीसी के वेंडर पहुंच गया। ₹20 की चाय। चाय, दूध, चीनी, अदरख सब मिला हुआ। कॉफी, सूप सब। बस गर्म पानी मिला दो। राहत मिली। अच्छी चाय तो मिली।

26 अगस्त 2022

नेशनल डॉग डे : रॉकी मेरा नाम

नेशनल डॉग डे : रॉकी मेरा नाम

अभी पता चला आज नेशनल डॉग डे है। आज मेरा भी एक साथी डॉग है। इसे कुत्ता कहना और सुनना कतई नागवार लगता है। एक अलग अपनापा है । रॉकी, यही नाम है। कहा जाता है कि दुनिया में मनुष्य का पहला मित्र कुत्ता ही हुआ और यह भी कहा जाता है कि युधिष्ठिर के साथ महाभारत के अंत में केवल कुत्ता ही स्वर्ग गया। इसके प्रेम को दूर से महसूस कर पाना असंभव है। 

यह दिसंबर 2019 में अचानक बच्चों की जिद्द पर घर आ गया। मित्र सुधांशु कांति कश्यप के जीजा जी के पटना डेरा से ।

30 दिन के आसपास का बच्चा था। मां का निधन हो गया था। पूरे परिवार ने लाड प्यार से पाला। दरअसल वह दौर परिवार के लिए असीम वेदना का दौर था। खुशी लेकर आया रॉकी पूरे परिवार को अवसाद के उस दौर से निकाल दिया।

उसी दौर में रॉकी खुशी बन कर आया और परिवार का हिस्सा बन गया । पूरे परिवार को एक खिलौना मिल गया । धीरे-धीरे मेरा भी मन ऐसा जीत लिया कि अब मन ही मन हम दोनों बात कर लेते हैं।

 खुशी में खुश , दुख में उदास। रॉकी है। यह कहने को बहुत कुछ है। बहुत समय लगेगा। बस यह के दरवाजे पर स्कूटर से पहुंचने के पहले ही रॉकी मेरे आने को अपनी संवेदना से महसूस कर खुशी से झूमने लगता है। नाराज होने पर मासूमियत से पंजा बढ़ा कर प्यार जताता है। मोबाइल चलाने पर बार-बार रोककर सहलाने के लिए कहता है। कभी-कभी गोदी में उछल कर गले लग जाता है । पांव के पास अक्सर आकर लेट जाता है। बाकी फिर कभी...

10 अगस्त 2022

पलटते नहीं तो कलट जाते नीतीश कुमार

पलटते नहीं तो कलट जाते नीतीश कुमार

बिहार के राजनीति ने पलटी मारी तो नीतीश कुमार के माथे पर ठीकरा तोड़ दिया गया। पर मामला इतना भी सरल नहीं है। राजद के साथ जाने का निर्णय एक दिन में तो नहीं ही हुआ होगा। और राजनीति में स्थाई दाेस्त और दुश्मन नहीं होने की बात सब जानते मानते है। नीतीश कुमार भी राजनीतिज्ञ ही है। इस सबके बीच बीजेपी को इसका श्रेय सर्वाधिक है। हनुमान चिराग से शुरु हुआ ऑपरेशन नीतीश कुमार योजनावद्ध तरीके से चल रहा था। मंत्रियों की निरंकुशता। स्थानांतरण में लेन देन। अंचल में अधिकारी की लूट। जनता त्रस्त। और आरसीपी को एकनाथ शिंदे बनाने की साजिश।
 इतना कुछ होने के बाद किसी के पास क्या बिकल्प बचता है। राजनीति कें दोस्त से पीठ पर छूरा खाने से अच्छा दुश्मन से सीने पर खाना माना जाता है। नीतीश कुमार ने वही किया। बिहार में नेतृत्व बिहीन बीजेपी के पास एक नेता तक नहीं है। कोर वोटर को भी साइड लाइन कर कुछ वोटरों के लिए सबकुछ दांव पर लगाया गया। नीतीश कुमार के वोटर को तोड़ने की सारी कवायद जारी रहा।  नीतीश कुमार पर जनाधार का अपमान का अरोप वहीं लगा रहे जो राजद के साथ वाले नीतीश कुमार को तोड़ खुश हुए थे। बाकी उद्वव ठाकरे के साथ जो हुआ वह नीतीश कुमार होने देते तो अच्छा था। राजनीति करने वाला हर आदमी महत्वाकांक्षी ही होता है। महत्वाकांक्षा न होती तो संत होते। 

और सबसे अहम बात, देश में बढ़ता धार्मिक उन्माद, बेरोजगारी, मंहगाई, नीजीकरण की मनमानी, अग्नीवीर जैसे कई मुद्दे है जो अंदर अंदर लोगों में आग बन कर सुलग रहा। बाकि समय बताएगा। वैसे राजद से डरे लोगों को जदयू समर्थक कह रहे है नीतीश कुमार है न

तो बीजेपी के प्रखर कार्यकर्ता यह भी कहते दिखे कि हम तो पहले से ही विपक्ष में थे, सुनता कौन था

07 अगस्त 2022

अथ श्री श्वान कथा

अथ श्री श्वान कथा

यह एक मौलिक और सरभौमिक विचारधारा है। असल में कुछ खास प्रजाति के लोगों में श्वान पालने की प्रवृत्ति होती है। यह आसान भी नहीं होता। श्वान को लाड़ प्यार, भोजन भात, विचारधारा और धर्म की खुराक नियमित देनी होती है। 

और हां, श्वान के गले में पट्टा भी बहुत जरूरी है। तभी तो मालिक होने का अहसास होता रहेगा। पट्टे का रंग सफेद, लाल, हरा, नीला, पीला, भगवा, कुछ भी हो सकता है।


अब श्वान के गुणों की व्याख्या भी जरूरी है। वैचारिक और धार्मिक खुराक से श्वान को आदमी बना सकते है और आदमी को श्वान भी!


तब फिर श्वान के लिए इशारा ही काफी होता है। भौंकना, उठना, बैठना, सोना, जागना, खाना, पीना, हगना, मूतना सब...!

श्वान का एक गुण यह भी होता है कि वह खुद को अपने इलाके का (धर्म, साहित्य, समाज, राजनीति) शेर समझता है।

आज अंतरजाल के युग में भौंकने वाले श्वान की बहुलता है। श्वान पालक भी इसे ही सर्वाधिक पसंद करते है। 






19 जून 2022

अग्निपथ पे लथपथ अग्निवीर

भ्रम जाल से देश नहीं चलता
अरुण साथी
सबसे पहले अग्निपथ योजना का विरोध करने वाले आंदोलनकारियों से निवेदन है कि सार्वजनिक संपत्तियों का नुकसान नहीं करें, यह आपका नुकसान है। अपका देश है। विरोध का अन्य तरीका भी कारगर है।  जिस तरह से आंदोलन उग्र है उससे आप सेना में भर्ती वाले जवान ना रहकर गुंडई करने वाले बन गए। जमाना इसी तरह के गोदी मीडिया का है। अभी आपको गुंडा की तरह प्रस्तुत किया जा रहा है। यह आपकी गलतियों से हुआ है। अहिंसक आंदोलन से आप देश भर के लोगों का समर्थन प्राप्त कर सकते थे परंतु आज देश भर में आपकी आलोचना भी हो रही है।

दूसरी बात, यह हर किसी को पता नहीं होगा कि आपके माता-पिता पेट काटकर आपको तीन चार साल तक सेना में भर्ती के लिए मेहनत कराते हैं। यह ज्ञान बांटने  वालों  को  पता  नहीं  होगा  कि  आपके  माता  पिता  नमक  रोटी  खाकर  आपको  पेट  भर दूध देते है। 4 बजे सुबह आप जगते हैं और धरती का सीना नंगे पांव चाक करते हैं। दौड़ते हुए आपके आंखों में तो सपने होते ही है आपके माता-पिता, भाई-बहन के आंखों में भी सपने पलते है। 


खौर, कई लोग कई तरह के सवाल कर रहे हैं।  जब इस अग्निपथ स्कीम को लागू किया तो माेदी जी को जरूर पता होगा कि देश भर में इसका विरोध होगा। रणनीति है कि वे चुप रहेंगे। उन्हें पता होगा कि कितने दिनों तक आंदोलन चलेगा देखते हैं। उनकी यह नीति लगातार रही है। और उन्होंने बिल्कुल प्लानिंग से यह काम किया है। योजना लागू करने के साथ ही आईटी सेल पर व्हाट्सएप ज्ञान भी शुरू हो गया। यह सभी को पता है कि सोशल मीडिया पर कुतर्क का जाल है। 

खैर, कुछ सवाल ज्ञान बांटने वालों से है
1
50 हजार प्रत्येक वर्ष नियमित सेना की भर्ती होती है तो क्या 25 प्रतिशत अग्निवीर को प्रत्येक वर्ष 50,000 नियमित रूप से बहाली होगी।
2
50 हजार प्रत्येक साल नियमित बहाली के हिसाब से यदि युवाओं को रोजगार देने का दावा अग्निवीर से किया जा रहा है तो कम से कम 2 लाख प्रत्येक साल बहाली होनी चाहिए, होगी क्या
3
सैनिकों के लिए मिलने वाले अन्य सुविधाओं का लाभ नौकरी करते और नौकरी करने के बाद मिलेगा यथा, केंद्रीय विद्यालय में बच्चों का नामांकन, रेलवे हवाई यात्रा में सुविधा, मेडिकल सुविधा इत्यादि
4
25% अग्निवीर को नियमित करने का दावा किया गया है तो फिर इसके लिए अप टू 25% क्यों कहा जा रहा है। 25% की गारंटी क्यों नहीं दी जा रही और वह 25% प्रत्येक साल होने वाले 50,000 बहाली जितना होगा क्या
5
यदि रोजगार देने की मंशा सरकार की थी तो 50,000 प्रत्येक साल होने वाले नियमित बहाली से अलग अग्निवीर की बहाली को क्यों नहीं रखा गया
6
सेवानिवृत्त सैनिकों के लिए आज भी अर्ध सरकारी और निजी क्षेत्रों में नौकरी की सुविधा है। क्या अग्निवीरों के लिए इसके अतिरिक्त कोई सुविधा मिलेगी


अब कुछ समाधान
1
सरकार की मंशा युवाओं को रोजगार देने की थी तो नियमित बहाली को चालू रखा जाता। 2 साल तक जो मामला लंबित था उसकी बहाली हो जाती और नियमित बहाली में कोई छेड़छाड़ नहीं होता।
2
अग्नीपथ योजना नियमित बहाली से अलग लागू किया जाता है। यह स्वेछिक होता, जो इसमें जाना चाहते हैं उसका स्वागत किया जाता है।
3
नियमित बहाली को धीरे-धीरे कम किया जाता और अग्नि वीरों को 25% योजना के तहत उधर लिया जाता है।
4
अग्नीपथ योजना को लेकर पहले ही देशभर में बात रखी जाती। युवाओं के विचार लिए जाते।  मीडिया में विमर्श होती तो युवाओं के मन दुविधा नहीं होती।

5
नियमित बहाली के लिए दौड़, ऊंची कूद, लंबी कूद, गोला फेंक, लिखित  परीक्षा  का जितना मापदंड है अग्निवीर के लिए इस मापदंड को आधा किया जाता ताकि अधिक से अधिक युवाओं को रोजगार मिलता।

15 जून 2022

#प्रधानमंत्री जी के नाम खुला खत

#प्रधानमंत्री जी के नाम खुला खत

#अग्निवीर 

देश के युवाओं को आपसे कुछ विशेष उम्मीद तो नहीं थी परंतु इस तरह से युवाओं के जीवन को, उसके पूरी कैरियर को अंधे कुएं में धकेल दीजिएगा इसकी भी उम्मीद नहीं थी। 

युवाओं के जीवन को अग्निपथ से कम आपने नहीं बना दिया। 4 साल अग्निवीर के रूप में सेना की संविदा पे नौकरी 21000 महीना वेतन पाकर 4 साल के बाद रिटायर्ड होकर 10 लाख लेकर युवा आगे क्या करेंगे...?

 यह शायद आपने सोच रखा है। जी हां! युवाओं के जीवन को पूरी तरह से बर्बाद करने की यह योजना कॉन्ट्रैक्ट पर सेना के नौकरी और फिर वहां से निकलकर कॉन्ट्रैक्ट पर अस्पताल, प्राइवेट बैंक में 10 हजार पर गार्ड की नौकरी और अपना पूरा जीवन बर्बाद .. !

प्रधानमंत्री जी आपको तो पता ही होगा कि 4 साल तक युवा कड़ाके की ठंड, भीषण गर्मी में भी लगातार कंक्रीट के सड़कों को अपने खाली पांव से रौंद देते हैं और तब जाकर सेना में भर्ती होते हैं। पता है प्रधानमंत्री जी जिस जगह पर नौजवान ऊंची कूद और लंबी कूद करते हैं वहां बजरंगबली के तस्वीर लगा कर पूजा पाठ करते हैं। उनके लिए वह स्थान मंदिर से कम नहीं होता। 

आपको पता है प्रधानमंत्री जी
सेना में भर्ती होते ही युवाओं के आंखों में सपने चमकने लगते है।

 सेना में भर्ती होते ही उन्हें अपने बूढ़े मां बाप के सपने को पूरे होते देखने के सपने आने लगते हैं।

 अपनी बहन के अच्छे घर में शादी के सपने आने लगते हैं। उस जवान के भी शादी के लिए रोज घर पे बरतुहर आने लगते है। 

 प्रधानमंत्री जी 

ऐसे युवाओं के सपनों को तोड़ देना ठीक ही है। सपने देखना बहुत बुरी बात है। आप के राज में तो बिल्कुल ही देशद्रोह।

 खैर, जो युवा जय श्रीराम के नारे लगाकर अंधभक्त बने हैं उनके साथ यही होना भी चाहिए, जय श्री राम...

16 मई 2022

एक मुट्ठी छांव की कीमत ₹20

एक मुट्ठी छांव की कीमत ₹20

एक मुट्ठी छांव की कीमत ₹20 होती है। यह पहली बार एहसास हुआ। दरअसल एनटीपीसी सीबीटी 2 एग्जाम देने के लिए पिछले दिनों कानपुर बच्ची के साथ जाना हुआ। एग्जाम के दिन है 1 घंटे बिलंब से ट्रेन पहुंची तो आनन-फानन में रेलवे स्टेशन से 27 किलोमीटर दूर परीक्षा केंद्र पर जैसे तैसे मात्र 1 मिनट पहले पहुंच सका। परीक्षा हॉल में बच्ची प्रवेश कर गई तब जाकर यह ख्याल आया कि अब 2 घंटे इंतजार कहां करें?

 परीक्षा हॉल के आसपास 1-2 भवन ही थे और जिसके दरवाजे बंद थे । बाहर बैठने की कोई व्यवस्था नहीं थी। एग्जाम सेंटर देने वालों के द्वारा यह जरा भी ख्याल नहीं रखा जाता कि विद्यार्थी और उसके अभिभावक कुछ देर कहां बैठेंगे।


 शायद यह इंडस्ट्रियल एरिया था। आस-पास कोई पेड़ पौधे नहीं। बबूल का एक छोटा सा पेड़ दूर दिखाई दे रहा था। जिसके आसपास 100 से अधिक लोग बैठे हुए थे। इसी बीच चाय के सामने चार पांच दुकानें थी। जिसके अंदर प्लास्टिक का छप्पर बनाकर छोटा सा बेड लगाकर बैठने की व्यवस्था की गई थी। दुकानदार से पूछने पर एक मुट्ठी छांव की कीमत ₹20 प्रति व्यक्ति बताया। कोई विकल्प नहीं था तो 2 घंटे के लिए ₹20 देकर वहां बैठ गया। 


प्लास्टिक के छप्पर के नीचे इतनी भीषण गर्मी थी कि कहा नहीं जा सकता। 


 दुकान में थोड़ा बोतल बंद शीतल पानी पी पीकर किसी तरह समय कटा और फिर वहां से कानपुर रेलवे स्टेशन पहुंचा। शाम को 7:00 बजे रेलगाड़ी थी। मतलब कि 6 घंटे तक रेलवे प्लेटफार्म पर इंतजार करना था। उम्मीद नहीं थी कि यह इतना भारी होगा। प्लेटफार्म पर इंतजार करना ठीक उसी तरह रहा जैसे ग्लूकोन डी के प्रचार में तपती धूप में सूरज शरीर से पूरी एनर्जी को खींच लेता हो। 6 घंटे में बेचैन हो उठा। पंखा भी आग उगल रहा। पहली बार पता चला कि कानपुर एक सर्वाधिक गर्म शहर है। 

खैर ट्रेन आई। एग्जाम स्पेशल ट्रेन थी तो ज्यादा भीड़ नहीं थी। कम ही लोग थे। केंद्र सरकार ने इतना ख्याल जरूर रखा के किसी तरह परीक्षार्थी परीक्षा देने के लिए पहुंच जाएं।


 किसी तरह से हम लोग ट्रेन पर सवार हुए और फिर ट्रेन खुल गई भारतीय रेल की परिपाटी यहां खूब दिखाई दी। रेलगाड़ी 5 घंटे विलंब से पटना पहुंची। सुबह 8:00 बजे की जगह दोपहर 1:00 बजे। खैर, बच्चों के जीवन में बच्चों के संघर्ष के साथ खड़े होना बच्चों को तो हौसला देता ही है खुद अपने को भी एक हौसला मिलता है। यह हौसला तब और बढ़ जाता है जब बेटी अपने, स्वावलंबन, सम्मान और स्वाभिमान के लिए दृढ़ता से संघर्ष कर रही हो। जीवन की सार्थकता यही तो है। कहते हैं ना संघर्ष जितना का बड़ा होगा सफलता उतनी बड़ी होगी.....





बिहार की अच्छी सड़कें बन गई काल

बिहार की अच्छी सड़कें बन गई काल


बिहार की सड़कों पर मौत नाच रही है। इतने अधिक लोगों की मौत हो रही है कि कहा नहीं जा सकता। एक्सीडेंट की खबर करते-करते करेजा कहां पर जाता है।

 छोटे से जिले शेखपुरा में लगातार मौतों का सिलसिला चालू है। राष्ट्रीय राजमार्ग 82 पर आज फिर हाईवा और ऑटो की टक्कर में 3 की जान चली गई। गुस्साए लोगों ने हाइवा ट्रक को फूंक दिया। पुलिस मूकदर्शक रही। जबकि प्रत्यक्षदर्शियों की माने तो ऑटो का संतुलन बिगड़ा और तेज रफ्तार हाईवा में उसने जाकर ठोक दिया। इतनी अधिक मौतों के पीछे कई कारण हैं। उनमें एक कारण अच्छी सड़कों पर हमें अभी तक चलना नहीं आया है। यातायात नियमों का पालन तो हमने सीखा ही नहीं है। 

और जिन की जिम्मेवारी यातायात नियमों के पालन कराने का है उनके लिए शराब पकड़ने सहित ढेर सारे काम हैं जिनमे नगद नारायण का दर्शन होता है। ऐसी मौतों को रोकने के लिए उन्हें फुर्सत नहीं।

हादसों में ज्यादातर कम उम्र के लड़कों की जान बाइक हादसे में जा रही है। लग्न के मौसम में इसकी रफ्तार चरम पर है। कम उम्र के लड़के के द्वारा बाइक चलाना, ट्रिपल लोडिंग करना, फुल स्पीड में चलना, रेसर बाइक चलाना आम बात है। रेसर बाइक खरीद कर गार्जियन ही दे रहे हैं। फिर बच्चों की लाश पर रोने के लिए भी वही आते हैं। 

यातायात नियमों में ड्राइविंग लाइसेंस की अनिवार्यता जिला परिवहन विभाग की होती है परंतु उसकी दुर्दशा बिहार के अन्य विभागों की दुर्दशा की तरह ही है। भ्रष्टाचार का बोलबाला ₹10 हजार देने पर अनपढ़ आदमी को भी लाइसेंस दे दिया जा रहा। जितने लोगों को ड्राइविंग लाइसेंस पिछले कुछ महीने में मिला है उनमें से सभी लोगों को कंप्यूटर का बिल्कुल ही ज्ञान नहीं। माउस भी नहीं पकड़ सकते परंतु यह सभी लोग कंप्यूटर ऑनलाइन टेस्टिंग में पास कर जाते हैं जबकि उन्हें कुछ भी ज्ञान यातायात नियम का नहीं है।

 पैसे लेकर इन्हें पास करा दिया जाता है। इसकी जांच हो तो 99% लोग को इस बात में पकड़े जा सकते हैं। फिर बगैर ड्राइविंग टेस्ट लिए ही ड्राइविंग लाइसेंस जारी हो जाता है। सब पैसे का खेल है और इस वजह से मौत सड़कों पर घूमती है। स्थिति यह है कि ऑटो और रिक्शा 10 साल के बच्चे भी चला रहे हैं परंतु पुलिस उस पर कार्रवाई नहीं करती। कम उम्र के लड़कों के बाइक अथवा अन्य वाहन चलाने पर उनके गार्जियन पर ₹25000 जुर्माना का प्रावधान है परंतु पुलिस यह नहीं करती है। हेलमेट, प्रदूषण, इंसुरेंस इत्यादि पर भी कठोर जुर्माना लगाने का प्रावधान केंद्र सरकार के द्वारा किया गया है परंतु पुलिस इस पर भी शिथिलता बरती है। कुल मिलाकर हमारे समाज की जिम्मेवारी तो है ही जिनके जिम्मे यह जिम्मेवारी है वह भी इसका पालन नहीं करते हैं और सड़कों पर मौत नाच रही है।

18 मार्च 2022

उसना चावल का कम होता चलन

#उसना_चावल #ब्राउन_राइस 


ब्राउन राइस के बारे में बहुत जानकारी मुझे नहीं है । गूगल करने पर भी स्पष्ट जानकारी कहीं नहीं है। अपने यहां  उसना (देहाती-उसरा) चावल खाने की परंपरा रही है। उसना चावल बनाना काफी कठिन काम है ।
धान को चूल्हे पर दो बार उबाला जाता है फिर उसे सुखाने के बाद मिल में चावल अलग किया जाता है। इसका रंग भी ब्राउन होता है। हो सकता है इसे ही ब्राउन रईस कहते हों । सुना है कि ब्राउन राइस खाने का चलन महानगरों में बढ़ रहे हैं परंतु गांव में अब उसना चावल खाने वाले लोग कम हो गए हैं।
 घरों में उसना चावल बनाने के लिए महिलाओं को काफी मशक्कत करनी पड़ती है । ऐसे में धीरे-धीरे किसान उसना चावल नहीं बनाते हैं । धान को बेच लेते हैं। बाजार से पॉलिस चावल खरीद कर खाते हैं। अरवा चावल खाने का प्रचलन इधर नहीं है।

 खैर हर साल की तरह गृह मंत्री के कई बार स्पष्टीकरण ( #हुरकुच्चा) के बाद उनके परिश्रम से उसना चावल को मिल से पिता-पुत्र मिलकर चावल बना कर घर ले आये। होली अपने यहां एक दिन बाद है तो छुट्टी का सदुपयोग भी हो गया।

29 जनवरी 2022

यात्रा वृतांत: काशी कॉरिडोर और योगी मोदी

काशी कॉरिडोर 

अंदर मोबाइल कैमरा ले जाने की मनाही है। काशी विश्वनाथ मंदिर के आसपास पूजा सामग्री विक्रेता दुकानदार अन्य जगहों के पूजन सामग्री बिक्री के दुकानदारों की तरह ही थे। धर्म के प्रखर धंधेबाज। या कहिये बसूलीबाज।

 भारी-भरकम झोला देखा नहीं की पूजन सामग्री की कीमत दोगुना कर देते हैं। सभी के एजेंट चेहरे पढ़ने में माहिर होते हैं । तो उनके भी एजेंट ने चेहरा पढ़ लिया। दुकान में बहुत इज्जत के साथ बैठाया। बैग रखवाया। जूते खुलवाए। खूब सम्मान से बात की।

 इस सबके बाद लाकर में मोबाइल बैग इत्यादि रख दिया।  बस 2 मिनट के बाद ही चेहरे के हाव-भाव और तेवर बदल गए। एक टोकरी प्रसाद हाथ में थमा या और 501 का है। दोनों प्राणी के हाथ में दो टोकरी । दोनों हक्का-बक्का । जरा सा मुकुंदाना, एक गेंदा फूल का माला, यही सब। ऊपर से एक ₹10 वाला प्लास्टिक के मोतियों का माला।
मैंने कहा भैया यह तो बहुत मंहगी है। तो क्या, लेना तो पड़ेगा। प्रसाद के बिना पूजा कैसे। मैंने कहा कि थोड़ी थोड़ी सस्ती वाली दे दो। फिर मोतियों की माला निकाल लिया। और ₹200 कीमत कम हो गया। आंखें लाल पीली कर ली। जैसे निगल ही जाएगा। मन ही मन कह रहा हो। जैसे औकात नहीं तो क्यों आ जाते हो काशी।
 बाबा विश्वनाथ का आशीर्वाद लेने। बहुत हुज्जत के बाद 251 की एक टोकरी कीमत तय हुई । फिर मंदिर में प्रवेश के लिए गया। सुरक्षा के काफी सख्त इंतजाम। भीड़ बहुत कम । अंदर प्रवेश करने के बाद कुछ ही देर लाइन में लगने पर बाबा विश्वनाथ के दर्शन हुए। जल चढ़ाया। फिर काशी कॉरिडोर की नक्काशी, कलाकारी, सौंदर्य देखने में लग गया।


 इस सब देखने के बाद कुछ देर के लिए ध्यान में वही बैठ गया। शांतिपूर्ण अनुभूति। निकलने से पूर्व एक पर्यटकों की टोली आई। आपस में बातचीत के दौरान वे लोग बोल रहे थे । पहले के समय में जो काम राजा महाराजा करते थे। वही काम मोदी योगी कर रहे हैं। इससे बेहतर क्या हो सकता है। वही एक जानकार ने बताया कि पहले सौ-दो सौ लोगों को ही परेशानी होती है। अब पांच हजार लोग यहां आराम से आ सकते हैं।

मैं पर्यटकों के बीच कुछ देर के लिए बैठा। लोग आपस में बातचीत कर रहे थे कि कैसे मुगल आक्रांताओं ने मंदिर को कई बार तोड़ दिया। नामोनिशान मिटाया । फिर राजा महाराजा अपने स्तर से मंदिर का निर्माण करवाए। मंदिर के ऊपरी भाग पर सोने के लिए पतर काफी आकर्षक दिख रहे थे। बगल को ज्ञानबापी मस्जिद भी बहुत कुछ कह रही थी।





27 जनवरी 2022

यात्रा वृतांत: वनारस में धर्म का धंधा

यात्रा वृतांत: वनारस में धर्म का धंधा 

अरुण साथी

वाराणसी के दशाश्वमेध घाट पर यह तस्वीर देख रहे हैं। वर्तमान धार्मिक राजनीतिक हस्तक्षेप और धार्मिकता का प्रतीक भी आप मान सकते हैं । चेहरे पर चमकीले रंग लगाकर भगवान की आकृति बच्चों ने उकेरी है परंतु इसकी फटेहाली इसके अंदर के कपड़ों में आप देख सकते हैं। हालांकि कई लोग बच्चों के साथ सेल्फी ले रहे थे । इसके एवज में बच्चे पैसे भी ले रहे थे।
 मैंने फोटो खींच ली। बच्चे लटक गए। फोटो खींचे हैं। तो पैसा लगेगा। फ्री में फोटो खींचने नहीं देंगे। बहुत बच्चे जिद करने लगे।

 मैं सोचने लगा। यह तो अबोध बच्चे हैं। जब राजनीति के बड़े-बड़े धुरंधर भगवान को बेच रहे हैं तो बच्चे अगर ऐसा कर रहे हैं तो कौन सा पाप है। देश का यही हाल है। हमारा, आपका, सबका। कोई खरीदार है। तो कोई दुकानदार। धर्म का धंधा चोखा चल रहा है।

#भगवा का #जलवा #काशी

#काशी में #भगवाधारी #बाबा ने अचानक से कल्याण हो कह दिया। उत्कंठा जगी। सहयोग राशि बढ़ा दी। अमूमन मैं ऐसा नहीं करता। लाचार और कमजोर की सेवा कर देता हूं । पर ऐसे लोगों का नहीं। फिर भी..

 तभी वहां दूसरे भगवाधारी भी पहुंच गए और खुद के लिए भी मांग करने लगे। मैंने इग्नोर किया तो भड़क गए । ऐसे भड़के जैसे उनका कर्जा रखा हुआ हो। फिर बहस हुई और इसी बात के बीच एक वृद्ध बुजुर्ग #भिखारी भी कूद पड़े और उसे लताड़ लगाने लगे। जबरदस्ती क्यों करते हो। दान खुशी की चीज है। 

मुझसे बोलने लगे

वस्त्र - वस्त्र का अंतर है साहब । यह लोग भगवा पहन कर हम लोगों से भी गए बीते हैं। हम लोग कभी जबरदस्ती नहीं करते परंतु इन लोगों के द्वारा कई लोगों से बहुत बदतमीजी की जाती है। परंतु हम लोग ही तिरस्कार पाते हैं। नाम पता पूछने पर जौनपुर निवासी #बांकेलाल बताया।



04 जनवरी 2022

समाजवादी इत्र

समाजवादी इत्र 

 यह तो जुलुम है भाई ! अब ऐसे लोगों को थर्ड डिग्री ना दे कोई तो क्या करें...? देश से लेकर प्रदेश तक उनका कहर (सॉरी लहर) है और इत्र कारोबारी ने समाजवादी इत्र लांच कर सीधा मुंह पर तमाचा जड़ दिया।

 भाई देखा नहीं कि कैसे अधर्म संसद में एक असंत ने महात्मा को भरे मंच से गाली दी। श्रोताओं ने ताली दी। जैसा कि होना था। बहादुर चुप । तो समझ लेना था कि वर्तमान में महात्मा के अनुयाई नहीं जो एक गाल पर थप्पड़ लगे तो दूसरा गाल आगे कर दे।

 यहां फंडा क्लियर है। ऐसे में किसी कारोबारी की खुल्लम-खुल्ला चुनौती बर्दाश्त से बाहर है। सो आईटी-ईडी नामक विरोधी संघरक यंत्र का प्रयोग मजबूरी में करना पड़ा। अब रोने से क्या फायदा। पहले सोचना चाहिए था।

01 जनवरी 2022

नव वर्ष का सरकारी जूता उपहार

नव वर्ष का सरकारी जूता उपहार

 
अरुण साथी

नव वर्ष पर सरकार ने लोगों के सेहत का ध्यान रखते हुए उपहार दिया है। सरकार ने जूते मंहगे कर दिए हैं। यह एक दूरगामी फैसला है। महंगाई बढ़ाओ भक्तजन संघर्ष समिति की  बहुसदस्य सदस्यों ने सरकार को रिपोर्ट सौंपी।  कहा गया कि राम का नाम लेकर देश में पेट्रोल महंगा हुआ। डीजल पेट्रोल से कंधा से कंधा मिलाकर पहली बार चल रहा है। यह समतामूलक समाज के निर्माण में एक सर्वश्रेष्ठ कदम है। इसी के साथ रसोई गैस को दोगुना महंगा करके सरकार ने लोगों को अपने पैसे में खुद आग लगाने से रोकने की एक सराहनीय पहल की है। इसका शुभ प्रभाव पड़ा है। अनाज, बिस्कुट, सीमेंट आदि-अनादि वस्तुएं महंगी हुई है।
अच्छे दिन वाली सरकार है आई, कमर जोड़ महंगाई लाई। मजबूत देश के लिए मजबूत कमर का होना जरूरी है। देश की सभ्यता, संस्कृति से लोगों को जोड़ने और उनके सेहत का ख्याल रखने के लिए महंगाई आवश्यक है। लोगों के लिए पैदल चलना, गोबर-गोईठा से खाना बनाना, बैलगाड़ी का प्रयोग करना भारतीय सभ्यता, संस्कृति रही है। इसे पुनर्स्थापित करने के लिए वर्तमान सरकार कृत संकल्पित है।


देश और सभ्यता संस्कृति विरोधी ताकतें सर उठा रही है। ऐसी ताकतें जूता चलाओ आंदोलन शुरू कर सकती है। खुफिया विभाग ने भी यह रिपोर्ट सौंपी है। सरकार ने आनन-फानन में जूता पर जीएसटी बढ़ाकर उसे महंगा करने का निर्णय लिया। अब लोग पैदल चलेंगे तो स्वास्थ्य बढ़िया होगा। वैसे भी आदिम युग में पैदल ही लोग चलते थे। हमारी सभ्यता में जूता पहनने की परंपरा नहीं रही है। यह पाश्चात बीमारी है। पैदल चलना एक्यूप्रेशर का काम भी करता है। कई बीमारियों को दूर भगाता है। ना रहेगा जूता, ना चलेगा जूता। जय श्री राम। नव वर्ष मंगलमय हो।