अपराध करने वालों के लिए जातीय और धार्मिक चोला पहनना सबसे आसान है और आम लोगों का जयकारा लगाना भी परंतु विद्वान और काबिल लोग जब ऐसा करेंगे तो हमारा देश और समाज फिर से कबीलाई युग की ओर जाने को अग्रसर हो जायेगे।।। जरा सोंच के देखिये चारा घोटाले में किस जाति के गरीब लोगों का नुकसान हुआ होगा..।।
24 दिसंबर 2017
चारा घोटाला फैसला- बैकवर्ड बनाम फॉरवर्ड
अपराध करने वालों के लिए जातीय और धार्मिक चोला पहनना सबसे आसान है और आम लोगों का जयकारा लगाना भी परंतु विद्वान और काबिल लोग जब ऐसा करेंगे तो हमारा देश और समाज फिर से कबीलाई युग की ओर जाने को अग्रसर हो जायेगे।।। जरा सोंच के देखिये चारा घोटाले में किस जाति के गरीब लोगों का नुकसान हुआ होगा..।।
23 दिसंबर 2017
गौरी, एक प्रेमकथा 2
गौरी, एक प्रेम कथा
गोरिया!! गौरी को गांव के लोग उसी नाम से पुकारते है। गौरी से गोरिया कैसे हो गयी यह कोई नहीं जानता पर माय कहती है कि गौरी के अत्यधिक खूबसूरत होने की वजह से लोग उसे गोरिया कहने लगे। गौरी है भी बहुत खूबसूरत।
साधारण कद काठी की गौरी हिष्ट पुष्ट है। गोल मटोल चेहरा पे बड़ी बड़ी आंखें है। उसकी आँखों को बिना काजल के आजतक किसी ने नहीं देखा। कमर तक लटके उसके बाल ज्यादातर खुले ही रहते है। गौरी उसे बार बार संभालते हुए परिश्रम करती रहती है। यह उसकी एक अदा है।
दुपट्टा उसकी छति पे कभी टिकना ही नहीं चाहता। वह बार बार सरकता है और गौरी बराबर उसे संभालती है। गौरी सब समझती है। गांव के स्कूल से पांचवीं पास जो है। गांव के लफूये गौरी को फुटबॉलवाबली के नाम से जानते है। रास्ते में कई बार उसे छेड़ते हुए कहते "अरे यार फुटबॉल से खेले के मन है। एक नै दु दु गो से।" पर गौरी जानती है। छेड़छाड़ पे प्रतिक्रिया देने से गांववाले उसे ही दोष देंगे। वह गरीब की बेटी जो है। खैर, गोरिया गांव के मजनुओं की आह बन गयी थी। गोरिया श्रृंगार की बड़ी शौकीन थी। नेल पॉलिस रोज लगाती। दो रुपये का ही सही पर पायल और बिछिया हमेशा उसके खूबसूरत पांव का श्रृंगार बढ़ाती जिसमें एक दर्जन घुंघरू हमेशा संगीत के धुन छेड़ते। सुर ताल के साथ। मजनुओं को उस संगीत प्रेमगीत सुनाई देता। यही प्रेमगीत तो बभनटोली का लफुआ लोहा सिंह का बेटा "बंगड़वा" सुन लिया। "झुन झुन, झुन झुन..! प्रेम धुन! प्रेम धुन! प्रीतम सुन! प्रीतम चुन!" बंगड़वा को यही गीत सुनाई देता।
बंगड़वा, गांव के चौकीदार लोहा सिंह का एक मात्र पुत्र था। लोहा सिंह, चौकीदार कम और गांव का जमींदार ज्यादा था। उसके भय से गांव के बभनटोली में भी कोई नहीं खोंखता था। कहरटोली में तो खैर लोहा सिंह मालिक ही थे। उनका एक मात्र पुत्र बंगड़वा गांव का भोजपुरी फिल्मी। भोजपुरी सिनेमा का दीवाना। बंगड़वा के खौफ की वजह खन्धे में उसी तरह से लोग भागते थे जैसे जंगल में भेड़िये के आने से सभी जीव जंतु भाग खड़े होते।
बंगड़वा ने गोरिया के रूप सौंदर्य के खूब चर्चे सुने थे। उसका असर भी बहुत था। अब उसको कहीं जाना होता तो उसका रास्ता गोरिया के घर के रास्ते से होकर ही जाता। गोरिया के पायल की झंकार उसके दिल की धड़कन थी। वह महीनों बिना कुछ बोले प्रेम रूपी कमल के उस फूल के खिलने का इंतजार करता रहा जिसकी पंखुड़ी में कैद होना हर भंवरे की पहली और अंतिम अभिलाषा होती है।
बंगड़वा के मन में क्या था वह वही जाने पर धीरे धीरे वह गोरिया से प्रेम करने लगा था। गोरिया को देखे बिना उसका मन उसी तरह तड़फड़ाने लगता जैसे बछिया के लिए उसकी गाय सुबह शाम तड़फड़ाने लगती है। गोरिया पे नजर पड़ते ही उसे लगता जैसे उसके दिल की हवेली में किसी ने भेपरलाईट जला दिया हो। उसके मन में मंदिर का घंटा बजने लगता। टनटन। टनटन।
आज तीन चार चक्कर लगाने के बाद भी गोरिया उसे दिखाई नहीं दी। वह बेचैन हो गया। उसके मन में तरह तरह के विचार आने लगे। जाने क्या हुआ होगा। बंगड़वा वैसे तो गांव का गुंडा माना जाता था और वह गोरिया के घर घुस के भी पता लगा सकता था पर उसके मन के एक कोने में गोरिया और उसके परिवार के प्रति अजीब सा लगाव था। वही लगाव भय का रूप ले चुका था। बंगड़वा को शाम तक गोरिया नहीं दिखी। वह चारा बिन भैंस सा छटपटाने लगा। उसे इस बात का आज एहसास हुआ कि उसे प्रेम हो गया है।
शाम ढलने लगी थी। गोरखिया जानवर को लेकर घर लौट रहे थे। बंगड़वा आज गाय दूहने भी नहीं गया। माय उसको कहाँ कहाँ ढूंढ रही होगी और वह बुढ़वा पीपल के पेंड के नीचे चुपचाप बैठा था। पीपल के पेड़ के पास से भी गांव के लोग शाम ढलने के बाद नहीं निकलते थे। रास्ता काट लेते। किच्चिन का बास था इसमें। जोईया के माय मारने के बाद से इसी पीपल के पेंड पे रहती है। कई लोगों ने देखा है। शाम होते ही उज्जड बगबग साड़ी पहले किच्चिन निकलती है। उसके पायल की आवाज पूरे गांव में गूंजता है। बंगड़वा भी कई बार सुना है। आज उसे किसी बात की परवाह ही नहीं। वह जैसे सुध बुध खो चुका हो। वह टुकटुक गोरिया के घर की तरफ देख रहा है। दूर से ही सही, गोरिया दिखेगी तो वह पहचान लेगा। अंधेरा होने लगा था पर वह टस से मस नहीं हुआ। पता नहीं क्यों उसे लगता गोरिया घर से निकलेगी और अंधेरे में भी चमचम चमकने लगेगी। उसका मन तो यह भी कहता कि गोरिया उसकी दिल की आवाज अवश्य सुन रही होगी। सिनेमा में उसने देखा है। प्रेम निःशब्द होकर भी बोलता है। हीरोइन दिल की आवाज सुन लेती है। उसे भी लगने लगा कि गोरिया आज इसी पीपल के पेड़ के पास सजधज के आएगी और पायल की धुन पे डांस करेगी....तभी जो उसने सुना और देखा तो उसकी आंखें खुली की खुली रह गयी। जोगिया के माय किच्चिन उसके सामने थी.....
शेष अगले क़िस्त में, इंतजार करिये..
22 दिसंबर 2017
ॐ घोटालाय नमो नमः.. अथ श्री घोटाला मंत्र
घोटाला एक काल्पनिक, सार्वभौमिक और राजनीतिक शब्द है..
घोटाला एक काल्पनिक, सार्वभौमिक और राजनीतिक शब्द है। इसका आविष्कार वैसे तो बहुत पहले ही हो गया था परंतु यह प्रचलन में बोफोर्स घोटाले से अधिक तब आया जब इस शब्द का प्रयोग राजनीतिक उपयोग के लिए किया जाने लगा। हालांकि चारा घोटाले के बाद यह सर्वाधिक प्रसिद्ध हुआ पर चारा घोटाले को समर्थक घोटाला नहीं मानते और विरोधी मानते है।
घोटाला मंत्र
ॐ घोटालाय "नमो नमः" स्वाहा! ॐ हुयम ट्यूम "नमो नमः "टूजी स्वाहा! ॐ "नमो नमः" दामाद जी धरती हँसोताय "नमो नमः" स्वाहा!! ॐ सुखराम बाबाय अपना बनाय स्वाहा!!
घोटाला का प्रभाव
घोटाला का प्रभाव बहुत प्रभावशाली होता है। खासकर तब, जब कि इसका उपयोग करनेवाला राजनीतिज्ञ बहुत ही प्रभावशाली हो तथा अपनी बुद्धि और विवेक इस्तेमाल कर वह घोटाले के बाद उतपन्न प्रभाव का लाभ उठाने की कला में परांगत हो।
घोटाले का इस्तेमाल
घोटाला का सबसे बेहतरीन इस्तेमाल राजनीतिज्ञ करना जानते हैं। सबसे पहले यह पता लगाना होता है कि किसने घोटाला किया है। फिर उस घोटाले के तिल को ताड़ बनाना पड़ता है। साथ-साथ आपको राई का पहाड़ ही बनाना पड़ेगा। और जब राई का पहाड़ बन जाएगा तब आप इसका लाभ उठा सकते हैं।
घोटाले का कुप्रभाव
घोटाले का सबसे अधिक कुप्रभाव आम आदमी पर पड़ता है। इसका इस्तेमाल करने वाले जानते हैं कि आम आदमी इमोशनल होता है और वह इमोशनल अत्याचार करने में माहिर खिलाड़ी। कभी-कभी घोटाले को वास्तविक बनाने के लिए कुछ नेताओं को जेल भी जाना पड़ता है। हालांकि उन्हें जेल में स्वर्गीय सुख भी उपलब्ध करा दिया जाता है।
घोटाले का दुष्परिणाम
घोटाले का दुष्परिणाम बहुत ही व्यापक और गंभीर होता है और यह उसी दीमक की तरह है जो दीमक बड़े बड़े दरख़्त को भी धीरे खोखला कर मिट्टी में मिला देता है। इसीका दुष्परिणाम है के आम आदमी वहीं के वहीं है और देश की अस्सी प्रतिशत धन कुछ लोगों के पास चला गया है।
घोटाले का सुप्रभाव
इसका सुप्रभाव आप अपने आसपास भी देख सकते हैं। कुछ लोग चंद दिनों में वहां पहुंच जाते हैं जहां वह आम आदमी के साथ उठने-बैठने, बोलने-बतियाने में कतराने लगते हैं। उनसे मिलने के बाद एरोप्लेन, अमेरिका, इंग्लैंड इत्यादि की बात करते है। उनसे मुलाकात करना उतना ही कठिन हो जाता है जितना कठिन मंदिर में भगवान से मुलाकात करना। बड़ी बड़ी गाड़ियों से चलते हुए ऐसे लोगों को देख मेहनत-मजदूरी करने वाला आदमी अपने अस्तित्व पर सवाल खड़ा कर लेता है। और हाँ ऐसे लोग या तो राजनीति करते है या करने के लिए छटपटाहट में पाए जाते है।
घोटाले का संरक्षक
घोटाला एक सार्वभौमिक, काल्पनिक और राजनीतिक शब्द भले ही है परंतु इसकी पैठ सभी जगह है क्योंकि यह सार्वभौमिक और सर्वमान्य है। इसलिए हम किसी एक पर इसको स्थापित नहीं कर सकते। इसी की वजह से हम कह सकते हैं कि घोटाले का संरक्षक हम सभी बन जाते हैं। भले ही इसका एहसास हमें बाद में हो अथवा नहीं भी हो। इसके सबसे बड़े संरक्षक राजनीतिज्ञ होते हैं क्योंकि वे पटल पर आकर इसका संरक्षण करते हैं। राजनीतिज्ञों का मानना है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में घोटाला एक सर्वमान्य, सार्वभौमिक शब्द है और इसकी अवहेलना अथवा अवमानना कर हम लोकतंत्र की चुनावी व्यवस्था में नहीं चल सकते जहां आम वोटर भी इसी घोटाले के प्रतिफल से उत्पन्न हरे-हरे अथवा अब गुलाबी या गेरुआ गाँधीजी प्राप्त कर सुख का अनुभव करते हैं।
घोटाले का निष्कर्ष
घोटाले का निष्कर्ष मघ्घड़ चाचा से सुनिये।
" सब मिले हुए हैं जी! ॐ घोटालाय नमो नमः.. अथ श्री घोटाला मंत्र का जाप और अपना तिजौरी भरो! देखे नहीं जमीन घोटाला वाला दामाद जी जेल गया! केजरू भैये ने शिला जी को जेल भेज दिया! सुखराम आज राम राम करने लगा! टूजी वाले के पीछे काहे पड़े है सब! जब घोटाला काल्पनिक है तो आप सब भी कल्पना कर लीजिए...का का पिलान बना होगा.. चुनाव हे जी...उनके राज में....कल्पना करिए..मस्त रहिये..बाकी राम राम जपना, पराया माल अपना...।"
#अरुण_साथी/22/12/17
16 दिसंबर 2017
गौरी, एक प्रेम कहानी
गैरी
#अरुण साथी
गौरी के लव मैरिज का पांचवां साल हुआ है। तीन बच्चों को वह आज अकेले चौका-बर्तन कर संभाल रही है। पति ने छोड़ दिया है। उसी पति ने छोड़ दिया जिसके लिए गौरी लोक-लाज छोड़ा, माय-बाप छोड़ा, गांव-समाज छोड़ा। उसी पति को पाने के लिए आजकल वह थाना-पुलिस, कोर्ट-कचहरी का चक्कर लगा रही है। इसी चक्कर में उसे आज फिर वकील साहब डांट रहे है।
"जब भतरा मानबे नै करो हउ त काहे ले ओकरा जेल से छोड़ाबे में लगल हीं।"
गौरी के पास जबाब था पर वह सिर्फ बेबस आंखों से वकील साहब को देखने लगी। गौरी की इसी बेबसी को देख हर कोई सहम जाता है। जाने गौरी की आंखों में ऐसा क्या है? पर कुछ तो है गौरी आंखों में। या कहें सबकुछ है। गौरी की बड़ी-बड़ी आँखों में समुंद्र हो जैसे। उसी समुंद्र में ज्वार-भाटे उठ रहे हो जैसे। गौरी की आंखों में प्रेम की एक गहराई भी हो जैसे। गहराई समुंद्र जितनी, जिसका थाह कोई ना ले सका। उसी गहराई में कहीं कोई ज्वालामुखी बसा हो और जो अचानक से, बिना किसी को बताए भयानक आवाज के साथ गड़गड़ाहट कर फट पड़ी हो। लावा चारों तरफ बिखर बिखर गया हो और उसी लावे में समाज, देश, धर्म, जाति सभी भष्म हो गए हों!
वकालतखाने में गौरी के साथ ही उसके तीनों बच्चे सहमे से चिपके हुए थे। गौरी का मन नहीं मानता है। बस यही तो जबाब है। गौरी पुलिस से आरजू मिन्नत कर पति को जेल तो भेजवा दिया पर पति को पुलिस गिरफ्त में देख उसका करेजा कांप गया। उसके आंख से आँसू झरने लगे। वह पति के सामने गयी तो पति भड़क गया। गंदी गंदी गालियां देने लगा।
"केतनो कर पर अब तोरा नै अपनइबउ। जेतना मजा लेबे के हलउ उ ले लेलिऔ। अब हमरो पत्नी हइ, बच्चा हइ। समाज हइ। हम्म बाभन तों शुदरनी। दुन्नु के मेल नै होतै!"
बस इसी बात पे तो गौरी का खून खौलने लगता है। लगता है जैसे कोई उसे ईंट के खलखल करते भठ्ठी में आधा गाड़ दिया हो या ज्वालामुखी का सारा लावा किसी ने उसे पिला दिया हो। उसका देह आग सा धधकने लगता है। वह हुंकार करने लगती है। दर्द भरी हुंकार। जैसे किसी ने उसे नहीं उसके प्रेम को चुनौती दी हो। वह गरजने लगी...
"जखने मजा ले हलहिं तखने शुदरनी नै हलिये। साथ सुत्ते में बाभन नै हलहिं। बियाह करे में मन लगलौ। तीन तीन गो ढेनमा- ढेनिया जन्माबे मन लगलौ। तखने तो कहो हलहिं कि तोर देह चन्दन नियर धमको हउ। अखने गमको हियौ। कोढ़िया! कैफट्टा! भंगलहबा!"
गौरी का गुस्सा फिर सातवें आसमान पे पहुंच गया। वह कांपने लगी।
( नोट- सच्ची घटना पे आधारित एक कहानी।)
शेष अगले क़िस्त में, इंतजार करिये..
चित्र गूगल देवता से साभार
14 दिसंबर 2017
राजसमंद
राजसमंद
एक असुर
हाथ में कुल्हाड़ी ले
काटता है
आदमी को
फिर जला देता है
डालकर पेट्रोल
और बनाता है वीडियो
कई असुर
लगाते है
अट्टहास
गाते है
आसुरी गीत
करते है
आसुरी नृत्य
अरे रुको
झांको तो
अपने अंदर
धर्म ध्वज धारी
कोई असुर
हमारे अंदर भी तो नहीं
मंद मंद मुस्कुरा रहा है...
अरुण साथी/14/12/17
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आचार्य ओशो रजनीश मेरी नजर से, जयंती पर विशेष अरुण साथी भारत के मध्यप्रदेश में जन्म लेने के बाद कॉलेज में प्राध्यापक की नौकरी करते हुए एक चिं...
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#कुकुअत खुजली वाला पौधा अपने तरफ इसका यही नाम है। अपने गांव में यह प्रचुर मात्रा में है। यह एक लत वाली विन्स है। गूगल ने इसका नाम Mucuna pr...
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यह तस्वीर बेटी की है। वह अपने माता पिता को माला पहनाई। क्यों, पढ़िए..! पढ़िए बेटी के चेहरे की खुशी। पढ़िए माता पिता के आंखों में झलकते आंसू....