11 सितंबर 2019

नून रोटी खाएंगे गोदी को ही लाएंगे..

#नून_रोटी_खाएंगे #गोदी_को_ही_लाएंगे.....
अरुण साथी ( व्यंग्यात्मक चुटकी है। ज्यादा खुश या नाराज होने की जरूरत नहीं।)
मूर्खों की कमी नहीं ग़ालिब एक ढूंढो लाख मिलते हैं। जब से पुराने मंत्री जी को तिहाड़ भेजा गया है तब से तिहाड़ जाने वालों की लिस्ट जारी करते हुए दूसरों को बैतरणी में डुबकी लगाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है।
यह प्रमाणिक है। जैसे एन डी तितकारी, नोट के तोशक पे सोने वाले दुख राम,  घोटालों में लतिया दिए गए यदु यदु हाय रब्बा आदि-इत्यादि जैसे महान लोगों ने डुबकी लगाकर अपनी बुद्धिमत्ता प्रदर्शित किया और पुण्य फल के भागी बने। ठीक उसी तरह करने के लिए लिस्ट भी जारी कर दिया गया है। सुना था कि कीचड़ में कमल खिलते हैं। देखा, आजकल सभी जगह कमल ही कमल खिले हुए है।
भला बताइए आज के समय में मूर्खता करने से क्या फायदा । अरे जब तोता को पालतू बना कर उसके मुंह में खून आपने लगा ही दिया फिर वह वर्तमान मालिक की गुलामी क्यों न करें!
अब बताईये, तोता के साथ एक मैना को भी खूंखार बनाकर पीछे लगा दिया जाएगा तो अच्छे अच्छों की पेंट पीली हो जाएगी या नहीं। हुआ है। माया की बत्ती गुल। समाजवादी पुत्र भी मुलायम हो गए। उधर राज की बात यह कि बात बात पे ठोकने पीटने वाले फाकरे की पेंट भी पीली हो गयी है।
राज की बात तो यह भी है की के राज में राज ही राज है। राज यह कि सिंगर जैसे विधायक अपनी मर्दानगी की ठसक दिखाते हुए खुल्लम खुल्ला कहता रहा जब जोगी भए कोतवाल तो डर काहे का।
राज को बात यह भी है। मूर्ख कैसे कैसे होते हैं । एक पत्रकार महाराज स्कूल में जाकर बच्चों को नून रोटी खाने की खबर बना डाली। इन मूर्खाधिराज को किसी ने यह नहीं बताया कि नून रोटी खाएंगे गोदी को ही लाएंगे गाना गा, गा कर गांव वाले झूम झूम कर वोट दिए हैं। अरे गोदी मीडिया के जमाने में चरण पादुका पूजन करके चौधरी, अग्निश, ओम ओम इत्यादि जौसे मलाई खाओ बीस कुमार बनके मेगा-सेसे पुरस्कार पाने का घोर लालच क्यों हो जाता है। लालची।
बने तो अब जेल में चक्की पीसिंग, चक्की पिसिंग, एंड पिसिंग करिए। ठीक है!!

08 सितंबर 2019

लड़ने वाले हारते नहीं..

लड़ने वाले हारते नहीं...

24 ग्रैंड स्लैम जीतने से थोड़ी दूर सरीना। जी हाँ। सारी दुनिया मान रही थी। 24वें ग्रैंड स्लैम भी सरीना ही जीतेगी। वैसे माहौल में लड़ने का हौसला ही बहुत है और कोई जीत जाए तो यह हर किसी को हौसला देता है। प्रेरणा है। लड़ने वाले हारते नहीं।
सोंच कर देखिये। 15वीं वरीयता वालीं बियांका पहली बार यूएस ओपन खेल रही थीं और उसने सरीना को हरा दिया। पिछले साल वह क्वॉलिफ़ाइंग के पहले दौर में ही बाहर हो गई थीं।
कनाडाई खिलाड़ी बियांका वैनेसा एंड्रीस्कू ने यूएस ओपन के फ़ाइनल में सरीना विलियम्स को हरा दिया है।
यह 19 साल की बियांका का पहला ग्रैंड स्लैम टाइटल है। फ़ाइनल में उन्होंने अमरीका की 37 वर्षीया सरीना को 6-3, 7-5 से हराकर यह उपलब्धि हासिल की।
मैच जीतने के बाद बियांका ने कहा, "यह साल ऐसा रहा है मानो कोई सपना पूरा हो गया हो."
"मैं बहुत ख़ुश हूं. इस पल के लिए मैंने बहुत मेहनत की है. इस स्तर पर आकर महान खिलाड़ी सरीना के ख़िलाफ़ खेलना ग़ज़ब की बात है."


04 सितंबर 2019

हम मौत के कुआँ में वाहन चलाने के आदी है, सुधारने के लिए कठोरता जरूरी।

अरुण साथी

नए ट्रॉफिक नियम को लेकर हंगामा बरपा है। सोशल मीडिया में जोक्स और पटना की सड़क पे ऑटो का सड़क जाम। सभी का गुस्सा है कि जुर्माना दस गुणा बढ़ा दिया।

खैर, चर्चा होनी चाहिए। सबसे पहले । एक प्रसंग। अपने बिहार के सबसे छोटे से जिले शेखपुरा से। पत्थर हब होने की वजह से यहां ट्रकों की संख्या पर्याप्त से कई गुणा अधिक है। हर दिन कई ट्रक खरीद कर आते है। इसी क्षेत्र से जुड़े एक मित्र ने पूछा। कभी सोंचा है कि नए नए ट्रकों के चालक कहाँ से आ जाते है। उन्होंने बताया। ट्रॉकों के खलासी ( सहचालक) ही कुछ माह बाद नए ट्रॉकों पे चालक होते है! नाबालिग। बगैर सीखे। बगैर लाइसेंस के। परिणामस्वरूप वे सड़कों पे हत्यारे है। यह बसों, स्कार्पियो, बलोरो सब के लिए भी समान है।

खैर। बाइक की बात। खबरों से जुड़े रहने के नाते और हाल में हादसे का शिकार होने के बाद यह कह सकता हूँ कि बगैर हेलमेट बाइक चलाना मौत के कुआँ में चलना है। हमारी आदत ही नहीं है। न हेलमेट। न लाइसेंस। न नियम की जानकारी। नब्बे प्रतिशत बाइकर हेलमेट नहीं लगते। जो लगाते है उनमें आधे हेलमेट बेल्ट नहीं लगाते। परिणामतः रोज हादसे में मौत की खबरों से अखबार रंगे होते है। अभी बाइक से गिर कर महिलाओं की सर्वाधिक मौतें हो रही है। कारण। बाइक पे उल्टा बैठना। कहीं कुछ नहीं पकड़ना। और निश्चिंत होकर आराम कुर्सी जैसा बैठना। हेलमेट नहीं लगाना। फिर थोड़े से झटके में मौत के मुंह में। सीट बेल्ट भी नहीं बांधना हम अपनी शान समझते है। जो लगा ले उसके बुद्धू। नई पीढ़ी तो खैर। बाइक नहीं चलाते। मौत से खेलते है।

मतलब। हम सड़कों पे चलते है तब या तो आत्महत्या करते है। या फिर किसी की हत्या। बहुत कुछ है। जैसे चार पहिये वाहनों में एयर बैग के बिना गाड़ी विदेशों में बेचने की इजाजत नहीं। यहां है। कम पैसे के लालच में हम खरीद लेते है। हमारी सरकार ही हमे मौत के कुआँ में धकेल देती है।

एक आशंका। पुलिस बसूली करेगी। यह सच है। यह खत्म होने वाला नहीं। तब भी। सजा तो हमे मिलनी है। हम लगातार घूस देने से अच्छा नियम पालन को समझने लगेंगे।

लब्बोलुआब। हम बैगर कठोरता के नहीं सुधार सकते। नए नियम हमें मौत के कुआँ में जाने से रोकने के लिए है। हमारी जान बचाने के लिए। हाँ, कठोर है। पर हमारे लिए। हमें इसका स्वागत करना चाहिए।