29 मई 2021

महंगाई डायन खाये जात है गाना राजा-द्रोह घोषित

सखी सैंया तो खूबे कमात है, महंगाई डायन खाये जात है। राजा जी ने इस गाने को राजा-द्रोह  घोषित कर दिया है। अभी-अभी भक्ति समाचार प्रसारण चैनलों पर इस खबर की ब्रेकिंग न्यूज़ चली है। बताया गया कि एक अभक्त चैनल पर महंगाई डायन गाना बजाए जाने पर तत्काल बीबीआई ने वहां छापेमारी की और राजा-द्रोह के आरोप में कार्यालय को सील करते हुए  कंपनी के मालिक को जेल में ठूंस दिया।



भक्ति समाचार चैनल पर जब इस खबर का प्रसारण हो रहा था तो कुतर्क कार्यक्रम में राजा जी के खासमखास मंत्री बीरबल ने अपने वक्तव्य में कहा कि राजा को डायन कहना बिल्कुल ही राजा-द्रोह की श्रेणी में आता है। इसमें पाकिस्तान का हाथ है। पाकिस्तान से यह टूलकिट भेजा गया और विपक्षी वामी, सामी, कामी ने मिलकर इस टूलकिट को हवा दी है।

गांव-गांव यह बात जंगल में धुंआ की तरह तेजी से फैल गई। महंगाई डायन गाना किसी की जुबान पर आया तो जेल हो जाएगी। रामखेलावन काका गांव में चौपाल लगाए हुए थे। उधर से रामबुझाबन सिंह गुस्से में भुनभुनाते हुए आ रहे थे।  काका ने पूछा तो भड़क गए। बोले, खेत पटाबे ले ई सुवरथा के नाती दोगुना पैसा मांगों हो। कहलको अरब वाला पानी दोगुना मंहगा हो गेलाें हें। भला बोल्हो, अब की उपजइबों, आ की खाइबों, अ की बचाइबो।


उधर खेलावन काका जब खाने पर घर पहुंचे तो पतोह खाना की थाली ला कर रख दी। कौर मुंह में लेते ही उन्हें अजीब सा लगा।   वे झट से उगल दिए। मन भिन्ना गया। इसमें कोई स्वाद ही नहीं था। उनका गुस्सा कपाड़ पर चढ़ता उससे पहले ही वे डर गए। कोरोना में भी स्वाद चला जाता है। उन्हें भी तो नहीं हो गया। उन्होंने पतोह को आवाज दी। अपना डर बताया । सबको अलग रहने के लिए कहने लगे। ई छुआ-छुत हो। सुनलियो छो हाथ दूर भी उड़ के चल जा हो। सब दूरे रहिया। जाहियो बगैचा में रहबो।

पतोह शांत थी। बिल्कुल ऐसे जैसे टीवी पर कुत्त-भुकबा प्रसारण के दौरान समझदार शांत रहता है। कोई काम नहीं।बोली, बाबू जी। ई कोरोना-तोरोना नै हो। मंहगाई डायन हो। जत्ते पैसे में एक महिना के तेल-मसाला आबो हलो उ अब सोलहवें दिन  झर गेलो। करूआ तेल दु सो के पार हो। अपने के बेटा तो बेराजगार हो। अब चौदह दिन हम्मरे घर चलाबे पड़तो। त बिन तेल मसाला के खाहो। समझ लिहा कोरोना  हो गेलों हें। स्वाद गायब। वैसे भी चौदह दिन कुरन्टीन सरकार रहे ले बोलो हो। रह लिहा। आंय



28 मई 2021

राजा जी के आँसू घड़ियाली आँसू नहीं हो सकते...?

राजा जी के आँसू घड़ियाली आँसू नहीं हो सकते...?

भयानक कोरोना महामारी में राजा जी ने टीवी पर आँसू क्या बहाए जैसे पक्ष - विपक्ष में सैलाब आ गया। राजा जी का आँसू बहाना सभी भक्ति समाचार प्रसारण माध्यमों में सुर्खियों में रहा । ठीक उसी तरह जैसे राजा जी का तितलियों से अठखेलियां करना और मोर के संग मनुहार करना सुर्खियों में रहा।

गांव के चौपाल में इसी की चर्चा हो रही थी। रामखेलाबन काका कहने लगे। विदेशी हाथों में खेलता विपक्ष अब मर्यादाहीन हो गया है। एक राजा के आँसू को घड़ियाली आँसू कहना निंदनीय है। तभी बटोरन बोला, कैसे गलत है। हो सकता हो सही ही हो। कौन जाने। कोई थर्मामीटर है क्या..? वैसे भी राजा जी का घड़ियाल से बचपन का नाता रहा है। हो सकता हो तभी सीख लिया है...!

इसी चर्चा पर एक दिन राजा जी ने अपने दरबारी बीरबल से पूछ लिया, बताओ; क्या मेरे आंसू घड़ियाली आंसू थे ..? बीरबल तो हाजिर जवाब था। बोल दिया। बिल्कुल नहीं हुजूर! आप के आंसू घड़ियाली आंसू नहीं है! बल्कि घड़ियाल के आंसू , आप के आंसू होते हैं।


महाराज, बीरबल बोलता गया। भला बताइए जिस बेटे को माँ गंगा ने बुलाया हो और उसी राजा के राज में, उसी मां की गोद में आदमी की अनगिनत लाशें तैरती मिले तो उस पतीत पावनी माँ के दर्द से कौन बेदर्द न रो दे...!

महाराज आदमी एक संवेदनशील प्राणी है। वह कितना भी कठोर क्यों ना हो आत्मग्लानि तो उसे भी होती ही है। सुना है ऑक्सीजन के बगैर पटपटा कर मुर्गी की तरह आदमी मर गए ! भला बताइए कौन नहीं रोएगा!