18 दिसंबर 2021

बलात्कार का आनंद लेता पितृसत्तात्मक समाज

कर्नाटक विधानसभा में कांग्रेस विधायक ने जब बलात्कार रोक नहीं सकती तो उसका आनंद लो जैसे घृणास्पद और नीचतापूर्ण बात कही तो यह पितृसत्तात्मक समाज की मानसिकता का जयघोष ही था। यदि ऐसा नहीं होता तो उस विधानसभा के माननीय अध्यक्ष के चेहरे पर मुस्कुराहट नहीं होती। और उसी विधानसभा में बैठे सभी माननीयों के ठहाके नहीं गूंजते।


ऐसे घृणास्पद कथनों के बाद नीचतापूर्ण राजनीति भी शुरू होती है और कांग्रेस को घेरने के लिए एक बड़ा वर्ग नहीं जुट जाता है जबकि माननीय की मुस्कुराहट पर खामोशी छा जाती है। तर्क-वितर्क में राजनीतिक दलों के प्रवक्ता दूसरे राजनीतिक दलों के नेताओं के वक्तव्य का उदाहरण देकर अपना चेहरा साफ करने लग जाते हैं। पितृसत्तात्मक समाज में ऐसा ही होता है और ऐसा ही शायद होता रहेगा। मुलायम सिंह यादव के कथन, लड़कों से गलती हो जाती है से लेकर इसकी लंबी फेहरिस्त है। बेटी बचाओ का नारा बुलंद करने वाले भी अपने दामन पर लगे इस तरह के दाग को धोने के बजाय, छुपाने में ही अपनी प्राथमिकता दिखाते हैं।

पितृसत्तात्मक समाज की गंदी मानसिकता

दरअसल यह पितृसत्तात्मक समाज की गंदी मानसिकता ही है। बलात्कार जैसे धृणित कृत को पितृसत्तात्मक समाज ने हमेशा से ही संरक्षित और पोषित किया है। यदि ऐसा नहीं किया होता तो बलात्कार की पीड़िता ही समाज में निंदनीय नहीं होती। उसके लिए जीना दूभर नहीं होता। उसके लिए समाज आलोचना के दृष्टिकोण नहीं रखता। जबकि बलात्कार करने वाला पुरुष छाती ठोक कर समाज में जी नहीं रहा होता। उसे समाज प्रतिष्ठित नहीं कर रहा होता। उसकी आलोचना हो रही होती। परंतु बलात्कार के मामले में अन्य सभी जघन्य अपराधों से पितृसत्तात्मक समाज की मानसिकता विपरीत है।

यहां पीड़िता को ही कलंकिनी मान लिया जाता है। पितृसत्तात्मक समाज के कई मामले समाचार संकलन के दौरान देखने को मिले हैं। दो साल में कई बलात्कार के मामले सामने आए हैं। जिसमें कुछ उद्धृत करता हूं। एक बलात्कार के मामले में पैदल अपने गांव जा रही नवविवाहिता को दोपहर के एक बजे गांव के खेत में पूर्ण तरह नग्न कर दो युवकों ने दुष्कर्म की घटना को अंजाम दिया था। इस घटना में आरोपी पकड़े गए। परंतु आज तक उन्हें सजा नहीं हुई। ऐसे कई मामले हैं। जिसमें आरोपियों को कई सालों तक सजावार नहीं ठहराया गया। हाल में ही दुष्कर्म के एक मामले में एक दलित महिला के साथ दुष्कर्म के बाद पूरा पितृसत्तात्मक समाज उसे बचाने में लग गया। प्रशासन, पुलिस और राजनीति का गठजोड़ भी सामने आया। मीडिया के दबाव में प्राथमिकी दर्ज करने की केवल औपचारिकता की गई । 

तीन तलाक और हलाला

दरअसल, पितृ सत्तात्मक समाज का यथार्थ यही है। बेटियों को दबाकर घरों में रखना ही श्रेष्ठकर, इसी सोच का परिचायक है। घरों से निकलने वाली बेटियों को तारती खूंखार आंखें हर जगह  है। ऐसा एक खास धर्म, समाज, वर्ग, जाति में नहीं है। सामान्य तौर पर सभी की यही स्थिति है। कहीं कुछ कम, कहीं कुछ ज्यादा। ऐसा  नहीं होता तो तीन तलाक और हलाला जैसे जघन्य कृत्य को तर्क-कुतर्क से धर्म की आड़ में जायज ठहराने वाला समाज रोड पर आंदोलित नहीं होता। ऐसा नहीं होता तो कोठे पर देह बेचने वाली कलंकिनी केबल नहीं होती, बल्कि उसके खरीदार, तथाकथित प्रतिष्ठित समाज के लोग भी कलंकित कहे जाते।

कल ही बेटियों की शादी की उम्र को 18 वर्ष से बढ़ाकर 21 वर्ष निर्धारित किया गया।  उत्तर प्रदेश के एक सपा सांसद ने बेटियों के आवारागर्दी बढ़ने की बात कह कर इसी पितृ सत्तात्मक समाज के जयघोष किया। सरकार की सोचे है कि बेटियों को इससे अपने कैरियर को संवारने का और मौका मिलेगा।  परंतु पितृ सत्तात्मक समाज की सोच है कि बेटियों को अपना कैरियर नहीं बनाना चाहिए। बेटियों को घरों में आज भी चूल्हा-चौका तक ही सीमित रहना चाहिए। यह एक भोगा हुआ सच भी है। तथाकथित प्रगतिशील समाज के निकृष्ट लोग बाहरी आवरण ओढ़ कर स्त्री की स्वतंत्रता की बात तो करते हैं परंतु जब अपने घर में इस तरह की बात होती है तो स्त्री दमन के सभी को कृतियों, साजिशों, नीचता पूर्ण काम को करने से हिचकते नहीं। इसी पितृसत्तात्मक समाज के तथाकथित प्रगतिशील वर्ग के लोग उनकी हां में हां मिलाते हुए बेटियों के दमन को स्वीकार करते हैं। समाज हमेशा से बेटियों को दोयम दर्जे का ही स्थान देता है। कहने की बात और है, करने की बात और। 
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बेटी स्वतंत्र नहीं सोच सकती 
बेटी स्वतंत्र आगे नहीं बढ़ सकती 
बेटी खोंख नहीं सकती 
बेटी बोल नहीं सकती 
बेटी प्रेम नहीं मांग सकती 
बेटी नापसंद नहीं कर सकती 
बेटी ना नहीं कर सकती 
बेटी बाहर नहीं निकल सकती 
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बाबा शंखा-पानी ढार के बिरान कईला जी

इसी समाज के पितृसत्तात्मक सामाजिक सोच के विरोध की एक बानगी यहां देखने को मिला। जब भोपाल के करेली गांव की एक आईएएस बेटी तपस्या ने अपने पिता को विवाह के समय दान करने से मना कर दिया। बेटियों के विवाह में हिंदू धर्म में बेटी को दान कर पराया करने का एक अमानवीय कृत्य किया जाता है।  बाबा बेटवो से बढ़कर दुलार कैला जी, बाबा शंखा-पानी ढार के बिरान कईला जी। यह गीत, बेटी विवाह का परंपरागत गीत  है।और बेटी को पराया करने के चलन का परिचायक भी। आमतौर पर विवाह के बाद बेटी को पराया धन कहा जाता है। और इसी पराए धन में बेटी दहेज लोभियों के हाथों जलकर मर जाती हैं या सिसक सिसक कर जीती है। समाज उसी के साथ खड़ा होता है। बाकी  यह सब चलता ही रहेगा । बदलने के लिए, मुझे बदलना होगा। हम बदलेंगे युग बदलेगा। टिप्पणी में सकारात्मक बातें कर देना भर कुछ नहीं है। बदलाव अपने स्तर से करना ही देश दुनिया और समाज के बदलाव का जय घोष होगा।

29 नवंबर 2021

स्नेह का रिश्ता

#स्नेही_रिश्ता 

रिश्ते की अहमियत स्नेह से ही है । अपने और पराए की पहचान सुख-दुख में स्नेह से ही होती है। स्नेह ना हो तो अपना भी पराया। स्नेह हो तो पराया अपना। मनीषियों ने भी स्नेह को ही सर्वोत्तम रिश्ता माना है। 

अस्नेही भाई दुर्योधन  ने द्रोपदी का चीरहरण किया। और स्नेही कृष्ण भाई से बढ़कर हुए।

स्नेह ही है जो एक पप्पी (कुत्ता) को परिवार का सदस्य बना देता है। 

मेरे और मेरे परिवार के जीवन में स्नेह सर्वस्व है। स्नेह न हो तो सड़ांध रिश्ते का बोझ ढोना निरर्थक। इसी स्नेह के रिश्ते की डोर से आज मैं पूर्णिया से अपने भतीजे के साथ घर वापस लौटा । वहां के सर्वश्रेष्ठ विद्यालय विद्या विहार में रहकर पढ़ाई करने के दौरान तबीयत बिगड़ने पर मैक्स हॉस्पिटल में भर्ती कराए जाने के बीच कई स्नेहीजनों ने असीम सहयोग दिया। जिससे ICU से निकल आज पुत्र सुरक्षित घर वापसी की। 

इसमें पूर्णिया के पुलिस अधीक्षक दयाशंकर जी लगातार अस्पताल से मॉनिटरिंग करते रहे। शनिवार को तबीयत खराब होने पर मित्र अभय कुमार संजोग से पूर्णिया में ही थे और अभिभावक के रूप में तत्काल अस्पताल पहुंचे। फिर पुनेसरा निवासी बड़े भाई चंदर दा के ससुराल के रिश्तेदारों ने पूर्णिया में रहकर काफी सहयोग किया। फिर हमारे चालक विकास पासवान की बहन ने परिवार जैसा सब कुछ किया। वरुण के सहकर्मी विकास यादव अभिभावक बना।संकट की घड़ी में जब भी कोई साथ खड़ा होता है तो जीवन के अंतिम क्षणों तक मानस पटल पर यादें उकीर्ण हो जाती हैं। 

शेखपुरा से पूर्णिया गए पुलिस अधीक्षक दयाशंकर जी यथा नामः तथो गुणः। लगा नहीं कि मैं अपने घर से दूर परेशानी में हूं। सभी के लिए आभार जैसा शब्द में कम पड़ता है। 

एक लघु कथा: नदी में डूबते बिच्छू को जब संत ने अपने हाथों से बचाया तो बिच्छू ने डंक मार दिया। शिष्य ने पूछा तो संत बोले कि जब बिच्छू डंक मारने के अपने स्वभाव को नहीं छोड़ सकता तो मैं बचने के अपने स्वभाव को क्यों छोड़ दूं...


16 अक्तूबर 2021

दलित सवर्णों से पहले मंदिर में करते हैं प्रवेश, होता है प्रतीकात्मक युद्ध

दलित सवर्णों से पहले मंदिर में करते हैं प्रवेश, होता है प्रतीकात्मक युद्ध
सवर्णों और दलितों के बीच भेदभाव, छुआछूत, शोषण, दमन के किससे से हटकर एक सकारात्मक यथार्थ की दूसरी क़िस्त। हालांकि इस तरह के यथार्थ को ना तो सोशल मीडिया पर ज्यादा उछाल मिलेगा, ना ही बड़े बड़े मीडिया घराने इस को महत्व देंगे। ऐसी बात नहीं है कि सकारात्मक बातें नहीं है पर समाज में घृणा को बढ़ाने के मामले अधिक मिलते हैं। ऐसी बात नहीं होती तो बिहार केसरी डॉक्टर श्री कृष्ण सिंह, ब्राह्मणों और पंडितों से लड़कर मुख्यमंत्री रहते हुए देवघर के मंदिर में दलितों के प्रवेश को लेकर इतना संघर्ष नहीं करते। समाज को दलितों से भेदभाव, छुआछूत मिटाने के लिए संदेश नहीं देते।
खुशी-खुशी सवर्ण दलितों से पराजय को स्वीकार करते हैं। खुशी खुशी उन्हें सबसे पहले मंदिर में प्रवेश करने दिया जाता है। खुशी-खुशी जब दलित मंदिर में पूजा कर लेते हैं तब सवर्णों की पूजा शुरु होती है।


शेखपुरा जिले में यह मामला मेहुस गांव में भी देखने को मिलता है। यह भूमिहार बहुल गांव है। यहां माता माहेश्वरी का सिद्धि पीठ है। जहां नवमी के दिन भूमिहार और दलितों के बीच प्रतीकात्मक युद्ध होता है। इस युद्ध में भूमिहार समाज के लोग रावण की सेना बनते हैं और दलित समाज के लोग राम की सेना बनते हैं ।

दोनों के बीच नवमी के दिन प्रतीकात्मक युद्ध होता है । इस युद्ध में भूमिहार समाज के लोग दलितों को मंदिर में प्रवेश करने से रोकते हैं। दोनों सेना में युद्ध होती है और भूमिहार समाज के लोग इसमें खुशी खुशी हार जाते हैं। और फिर दलित मंदिर में खुशी खुशी प्रवेश करते हैं। जिसके बाद सभी तरह की पूजा गांव में शुरू होती है।


यह परंपरा कई सदियों पुरानी है। ग्रामीण अंजेश कुमार कहते हैं कि इस परंपरा के कई मायने हैं। रावण और राम के युद्ध के बहाने दलित समाज को सम्मान देने और आपसी भेदभाव मिटाने को लेकर यह परंपरा वर्षो से चली आ रही है। दलित समाज के लोग पहले मंदिर में प्रवेश करते हैं तभी मंदिर में किसी तरह की पूजा पाठ शुरू होती है। दलितों के मंदिर में प्रवेश की रोक को लेकर देश दुनिया में कई चर्चाएं हैं परंतु यहां माता महेश्वरी के मंदिर में दलित ही पहले मंदिर में प्रवेश करते हैं। प्रतीकात्मक युद्ध होता है। भूमिहार की हार होती है।और दलित मंदिर में प्रवेश कर पूजा का शुभारंभ करते हैं। भाईचारा और सामंजस्य का यह एक अनूठी मिसाल है जो देश में कहीं नहीं मिलेगी।

15 अक्तूबर 2021

बली बोल में दलितों और सवर्णों का सामंजस्य

बली बोल में दलितों और सवर्णों का सामंजस्य

अरुण साथी

सवर्णों के द्वारा (खास, भूमिहार-राजपूत) दलितों से भेदभाव, छुआछूत, शोषण, दमन के किस्से आम हैं। परिणामतः वही भेदभाव, छुआछूत, शोषण, पर कहीं-कहीं दमन विपरीत धारा में बहने लगी है। कई राजनीतिक दल के मुखिया, जनप्रतिनिधि, और सत्ताधीश इसी कुंठा के साथ आगे बढ़ रहे हैं। कुछ सामाजिक, राजनीतिक और सोशल मीडिया पे सक्रिय लोग इसमे लगे है।

राजनीति की रोटियां चिताओं पर सेंकी जाने लगी है। भीम आर्मी जैसे संगठन आग में घी देने लगे। नतीजा नफरत, घृणा चरमोत्कर्ष पर है । यह सच है कि भेदभाव, छुआछूत, और शोषण, दमन के शिकार दलित हुए हैं। यह भी सच है कि इन्हीं सब के विरुद्ध सवर्णों ने आवाज उठाई। संघर्ष किया। लड़ाई लड़ी। जीत भी मिली।

 एक सच यह भी है कि अच्छाइयों को उस तरह से प्रचारित प्रसारित नहीं किया जाता जिस तरह से घृणा को। इसी तरह की एक अच्छाई बरबीघा के पिंजड़ी गांव में देखने को मिलती है। वर्षों से यहां यह परंपरा है । बली बोल। थोड़ा अंधविश्वास! थोड़ी परंपरा। बहुत सारा जातीय समानता।

परंतु इसके बारे में कम लोग ही जानते हैं। इस परंपरा में दलित समुदाय की पूरी टोली भूमिहारों के टोले में घर-घर घूमती है। बली बोल का नारा लगता है। हाथ मे लाठी, तलवार, भला, फरसा, गंडासा लिए हुए। भूमिहार अपने घरों के आगे हथियार, भाला, लाठी, झाड़ू रखते हैं। जिसको लांघ कर यह लोग निकलते हैं। मान्यताओं की माने तो यह सुरक्षा की गारंटी है।

दलित के पैर छूटे सवर्ण


इस परंपरा में दलित भगत श्रवण पासवान की भूमिका रहती है। चार-पांच पीढ़ियों से श्रवण पासवान के पुरखे इसके अगुआ रहे। अब श्रवण अगुआ है। उसके पैर सवर्ण जाति के बच्चे, बुजुर्ग महिलाएं सभी छूते हैं। प्रणाम करते हैं। स्वागत करते। शराब लाल रंग का डिजाइनर कपड़ा लपटे रहते है। वहीं कमर में घुंघरू होता है।



सभी का स्वागत होता है। दान दक्षिणा दिया जाता है। उसी तरह से ही गलियों में बीमार और कमजोर लोग सो जाते हैं और उसको लांघ कर दलितों की टोली चलती है। यह मान्यता है कि इससे निरोग लोग रहते हैं। दशकों से भूमिहारों से टोले में एक जगह बली बोल का समापन खास घड़ा को फोड़कर होता है। जहां घड़ा को फोड़ा जाता है और सभी जाति के लोग वहां घड़े का टुकड़ा अपने अपने घर ले जाते है। यह एक परंपरा दो-तीन सौ  साल पुरानी है। कभी तनाव नहीं हुआ ।कभी भेदभाव नहीं हुआ। कभी दलित सवर्ण का टकराव नहीं हुआ। सभी जाति के लोग मिलकर इसे करते हैं। दुर्भाग्य से इस तरह की अच्छाई को प्रचारित और प्रसारित नहीं किया जाता।

23 सितंबर 2021

यात्रा वृतांत:1: जो कहते हैं आजादी अभी अधूरी है उनको जालियांवाला बाग आना चाहिए

यात्रा वृतांत:1: जो कहते हैं आजादी अभी अधूरी है उनको जालियांवाला बाग आना चाहिए

अरुण साथी

यात्रा वृतांत की शुरुआत चौथे दिन से कर रहा हूं। पीछे का वृतांत अगली कड़ी में पेश करूंगा । 

चौथे दिन बुधवार को हम लोग अमृतसर शहर में थे। अमृतसर शहर दो हिस्सों में बंटा हुआ दिखाई दिया। एक हरमंदिर साहिब के आसपास का अंतरराष्ट्रीय दृश्य का मनमोहक अमृतसर तो दूसरा बाहरी बाजार में आम भारतीय बाजार जैसा गंदगी और कांय-किच।
सबसे पहले जालियांवाला बाग की बात। बहुत ही रोमांचक और भावुक। हालांकि पर्यटकों को लुभाने के लिए जालियांवाला बाग को एक अत्याधुनिक साज-सज्जा भी दिया गया है परंतु अंदर में जाने के बाद हर कोई भावुकता से भर जाता है।
हालांकि हर कोई कहना उचित भी नहीं होगा। कुछ नए कपल यहां केवल पिकनिक स्पॉट के रूप में घूमने के लिए आए हुए नजर पड़े। कुछ-कुछ पार्क के जैसा।

वर्तमान के बदलते दौर में ऐतिहासिक स्मरण के स्थल हो या धार्मिक स्थल। मोबाइल, सेल्फी और दिखावा इससे अलग नई पीढ़ी के लिए यहां कुछ भी नहीं होता। धार्मिक स्थलों पर भी पहली प्राथमिकता सेल्फी और फोटो खिंचवाने के दिखाई पड़ती है। हरमंदिर साहिब में भी यही कुछ रहा और जालियांवाला बाग में भी। मन को मारते हुए भी कई तस्वीरें खींचनी ही पड़ी। कुछ तस्वीर अपनी भी। 
खैर, जालियांवाला बाग आजादी के दीवानों के कुर्बानियों की जीवंत निशानी है। जिन्होंने देश के आजादी में योगदान देने के लिए हंसते-हंसते अपना बलिदान दे दिया। 

संकीर्ण रास्ते से आए जनरल डायर ने गोलियों की तड़तड़ाहट से सैकड़ों लोगों को भूंजा दिया। जान बचाने के लिए कई लोग जिस कुआं में कूदे।  वहां जाकर कौन भावुक नहीं होगा। लाशों से वह कुआं भर गया था।

हमारी भावना और आस्था देशभक्ति को भी धर्म से कम नहीं मानती तभी तो हम लोग भारत माता की प्रतिमा स्थापित कर पूजा भी करते हैं ऐसा ही कुछ कुछ जालियांवाला बाग में दिखा।


कुएं को सजा संवार कर खूबसूरत बना दिया गया है परंतु भावनात्मक लोग यहां पहुंच कर सेल्फी तो लेते ही हैं यहां आस्था से प्रभावित होकर रुपये भी कुएं में गिरा देते हैं। आसपास नोट भी पड़े हुए दिखाई पड़े और कुआं के अंदर भी नोट गिरे हुए हैं मिलते हैं।


जालियांवाला बाग की दीवारों पर गोलियों के निशान को चिन्हित कर दिया गया है। इस निशानी को देख कर किसकी आंखें नहीं भर आएगी। बेरहम गोलियों ने सब को छलनी कर दिया।


एक म्यूजियम जैसा बनाया गया है। वहां जालियांवाला बाग कांड का फिल्मांकन कर उसकी प्रदर्शनी लगातार होती रहती है। एक चौंकाने वाली बात यह भी नजर आई कि म्यूजियम में प्रभावित लोगों के परिवार वालों के बयान को लिखित रूप से उद्धृत किया गया है। सोचने की बात यह कि उसमें बयान देने वालों के नाम के साथ जाति का जिक्र किया गया है। पता नहीं इसके संयोजकों ने ऐसा क्यों किया? जाति का विवरण मुझे असहज ऐसा लगा।


"डायर की गोलियों ने हिंदू और मुसलमानों में कोई भेद नहीं किया।" टी एस कार

सबसे पहले इसी पर नजर पड़ी। शायद देश की अखंडता और एकता के संदेश को लेकर यह बोर्ड जालियांवाला बाग में लगाया गया है। इसके साथ ही कई महापुरुषों के वक्तव्य को जगह-जगह बोर्ड में लगाया गया है। इसके माध्यम से यह भी बताने की शायद कोशिश की गई हो कि मुसलमानों का योगदान भी देश की आजादी में रहा है।
देशभक्ति या आस्था कहिए कि यहां बुजुर्ग लोग भी नजर आए। हालांकि पिकनिक के लिए घूमने आए परिवार और न्यू कपल के लिए यह एक पार्क जैसा सुखद एहसास देने वाला है। उनके लिए कुर्बानियों के ऐतिहासिक महत्व का कोई महत्व साफ दिखाई नहीं पड़ा।

जालियांवाला बाग को सुसज्जित भले बना दिया गया है परंतु दीवारों पर गोलियों के वर्तमान निशान हर देशभक्त को अपने शरीर पर लगे होने जैसा एहसास देने लगता है और जो लोग कहते हैं आजादी अभी अधूरी है उन्हें इस एहसास का अनुभव यहां आकर अवश्य करना चाहिए..

अगली कड़ी शीघ्र

17 सितंबर 2021

रिलायंस किराना दुकान और ईस्ट इंडिया कंपनी की फीलिंग

रिलायंस किराना दुकान और ईस्ट इंडिया कंपनी की फीलिंग

छोटे से कस्बाई शहर बरबीघा में भी रिलायंस स्मार्ट का किराना दुकान खुल गया। उसमें सब्जी, फल, मसाला, दूध, पनीर, घी, मक्खन से लेकर दाल चावल, बिस्कुट, चाय सभी कुछ उपलब्ध है।
निश्चित ही पूंजीवाद का यह एक सुरसा स्वरूप है। सब कुछ अपने कब्जे में कर लेने की कवायद दिखती है। यह ठीक वैसे ही मुक्तखोरी की बात होगी जैसे जियो मोबाइल। अब हर हाल में ₹200 महीना देना ही होगा। अनुभव लेने मैं भी गया। समान खरीद में आधा घंटा लगा तो बिल बनाने और चेक कर निकलने में एक घंटा।
बहुत कुछ जानकारी नहीं मिल सका पर बहुत भीड़ थी । शुभारंभ को लेकर। ₹16 किलो की भिंडी एक ₹9किलो। लहसुन ₹49 तो गोभी भी ₹49 प्रति पीस, चीनी 40 । बाजार से सस्ता । पता किया तो पता चला कि कंपनी का ही निर्देश है कि बाजार से हर कीमत पर सब्जी की कीमत कम रखना है। चाहे खरीद ऊंची कीमत पर ही क्यों ना हो।

छोटे व्यापारियों, फुटपाथ पर काम करने वाले, ठेला पर सब्जी बेचने वाले, ठेला पर फल बेचने वालों के पेट पर लात मारने की यह एक बड़ी कोशिश है। और इस कोशिश से भगवान भी गरीबों को नहीं बचा सकते। आखिर अम्बानी की कंपनी जो है!

एक जानकारी जो नोटिस में शायद ही किसी ने किया वह यह दे रहा हूं कि कोविड-19 में परदेस से पलायन कर अपने घर आए लोगों का एकमात्र रोजगार का साधन छोटा-छोटा किराना दुकान, सब्जी, फल दुकान बना और गांव, घर, शहर के गली मोहल्ले में किराना दुकान की भरमार हो गई। कमाई भले ही 10-50 हो पर इंगेज लोग हो गए। अब उन पर भी आफत आएगी।
उपभोक्ताओं को निश्चित ही पहली नजर में सामान सस्ता मिल जाएगा। परंतु 1 किलो भिंडी के लिए जब मॉल में लोग जाएंगे तो अतिरिक्त सामानों की खरीदारी का अतिरिक्त बोझ भी बढ़ेगा । ₹9 में 1 किलो भिंडी खरीदेंगे तो एक, दो दूसरों का सामान भी खरीद कर निकलेंगे और मुनाफा मेकअप हो जाएगा। यही फंडा पहली नजर में समझ में आया।

ग्राहकों को भी फायदा है। ठंडा और दूध छोटे से शहर में कीमत से अधिक वसूले जाते हैं। दूध ₹4 प्रति लीटर प्रिंट से अधिक दुकानदार लेते हैं । ठंडा में प्रति बोतल ₹5 एक्स्ट्रा अनिवार्य रूप से ठंडा के नाम पर लिया जाता है। यहां ऐसी बात नहीं है। इसका असर होगा। दुकानदारों को इसपे विचार करना चाहिए। एक दिक्कत जो आम तौर पे दुकानदार करते है वह कम वजन देने का है। यहां वह नहीं है। एक बात यह भी की दुकानदारों में गहरी चिंता है। शाम में सभी दुकानदार यहां समझने बुझने आ रहे। आखिर अब दैत्याकार किराना दुकानदार से प्रतिस्पर्धा है। रणनीति तो बदलनी ही होगी।

यहां पर एक बात नहीं होगी कि जब हम किसी ठेला से सब्जी खरीदते हैं तो उसके घर का चूल्हा जलता है। उसके बच्चे पढ़ते हैं। और उसके घर में खुशहाली आती हैं। परंतु जब हम यहां से खरीदेंगे तो देश के सारी पूंजी के 25 फीसद पर कब्जा करके बैठे चंद लोगों के पूंजी में ही हम इजाफा करेंगे। किसी का भला नहीं हो सकेगा।

कुछ-कुछ ईस्ट इंडिया कंपनी जैसी फिलिंग होने लगी है। बात भी वैसा ही है। देश में पूंजीवादी सरकार है। गरीबों की सुनने की कोई बात बिल्कुल ही नहीं है और वर्तमान में कोई गांधीजी भी नहीं है जो स्वदेशी आंदोलन जैसा मुद्दा उठा सकें। यहां तो गरीबों की आवाज नक्कारखाने में तूती की आवाज साबित हो जाती है।

आजादी के बाद जमींदारी उन्मूलन और भूदान आंदोलन जैसे आंदोलनों ने सीलिंग से अधिक जमीन रखने वालों की जमीन पर कब्जा कर लिया। पूंजीवाद की सरकार में देश के 100 पूंजीपतियों के हाथ में 25 फीसद हिस्सा है । पर उसके कब्जे की कोई कल्पना भी नहीं कर सकता । पर एक न एक दिन गरीब के चूल्हे जब खामोश होंगे तो गरीब की आवाज भी बुलंद होगी। लोकतंत्र में माया फैलाकर बहुत दिनों तक इन आवाजों को दबाकर नहीं रखा जा सकता। रिलायंस किराना दुकान में फल, सब्जी बेचने का विरोध तो किया ही जाना चाहिए। परंतु ऐसा करेगा कौन...? जात, धर्म में बांटें लोगों के शोषण की आवाज भला अब कौन, क्यों और किसलिए उठाएगा...? जय श्री राम...

11 सितंबर 2021

विलुप्त हो गई गुरूजी के साथ चकचंदा मांगने की परंपरा, गांव-गांव पूजे जाते थे बुद्धि के देवता गणेश

 अरुण साथी


कई भारतीय संस्कृति और परंपरा विलुप्त भी हो गई। पांच-सात दशक पहले तक ऐसी ही एक संस्कृति और परंपरा का चलन मगध क्षेत्र में गणेश उत्सव चतुर्थी के दिन से शुरू हो जाता था और एक पखवाड़े तक चलता था। इसे चकचंदा का नाम से लोग जानते है। हर गांव के सरकारी अथवा गुरु जी के पाठशाला में बुद्धि के देवता गणेश जी पूजे जाते थे। सरस्वती पूजा का आयोजन हाई स्कूल स्तर पर होती थी।
 
घर-घर घूम कर मांगते थे चकचंदा

भादो शुक्ल पक्ष चतुर्थी के दिन गांव के सभी स्कूल में गणेश की प्रतिमा स्थापित कर पूजा-अर्चना की जाती थी। वही गुरुजी के साथ स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे चकचंदा के लिए गांव में घर-घर जाते थे। जहां गुरु जी को आदर और सम्मान से बैठाने के बाद कहीं अंग वस्त्र तो कहीं आनाज चंदा स्वरूप दिया जाता था।
 
बुजुर्गों को आज भी है याद
इसको लेकर बरबीघा के शेरपर गांव निवासी सत्तर वर्षीय विजय कुमार चांद कहते हैं कि अपने गांव में गुरु जी के साथ हुए चकचंदा मांगने के लिए जाते थे। हाथ में गुल्ली-डंडा लेकर उसे बजाना होता था। गुरु जी चारपाई पर बैठते थे। बच्चे चकचंदा गाते थे । अनाज अथवा वस्त्र इत्यादि अभिभावकों के द्वारा दिया जाता था।
 
65 वर्षीय समाजवादी नेता शिवकुमार कहते हैं कि वह पटना के बाढ़ अनुमंडल अंतर्गत बरूआने गांव में लगन गुरु जी के पिंडा (पाठशाला) पर पढ़ने के लिए जाते थे। गणेश चतुर्थी को चकचंदा मांगने की रस्म होती थी। इसके लिए एक छोटा और एक बड़ा, दो रंगीन डंडा हर बच्चे के हाथ में होता था। जिसे एक निश्चित धुन के साथ एक दूसरे से टकराकर बजाया जाता था। उसमें कपड़े का फीता भी लगा होता था और काफी खूबसूरत लगता था। गुरु जी के प्रति सम्मान की यह एक अनोखी परंपरा थी। गुरु जी बच्चों के साथ 15 दिनों तक घूमते थे। बच्चे चकचंदा गाते थे । उस समय मनोहर पोथी ही प्रमुख पुस्तक होती थी। चकचंदा गाने में अखियां लाल-पियर होलो रे बबुआ। कोठी पर पिटारा देखो इत्यादि गीत शामिल थे।
 
वहीं खोजागाछी निवासी 70 वर्षीय आनंदी पांडे, गोरे सिंह बताते हैं कि वह भी अपने गुरु जी के साथ चकचंदा में जाते थे। भादो चौठ गणेश जी आए, डंडा खेल गुरुजी पठाए यह गाया जाता था। वहीं कवि अरविंद मानव कहते है कि उस समय हमलोग भी निकलते थे। बाउआ रे बउआ लाल लाल झअुआ चकचंदा गाते थे।

04 सितंबर 2021

तेजस ट्रेन में नंग-धड़ंग एमएलए के लूज मोशन का सकारात्मक पक्ष

 तेजस ट्रेन में नंग-धड़ंग एमएलए के लूज मोशन का सकारात्मक पक्ष


हास्य  व्यंग्य
अति आधुनिक तेजस ट्रेन में बिहार के सत्ताधारी पार्टी के एक विधायक जब नंग-धड़ंग अवस्था में घूमते दिखे तो उसकी तस्वीर वायरल करने की अति दुर्भाग्यपूर्ण दुर्घटना घटी। किसी ने इसके सकारात्मक पहलू को नहीं देखा। अब श्रीमान ने बताया कि उनको लूज मोशन हो गया था।  नहीं भी बताते तो लोग मान कर चलते हैं कि जातीय समीकरण और सत्ता के संरक्षण से विधायक बनने पर हाजमा खराब हो ही जाता है। सो इनकाे भी लू मोशन हो गया। वैसे भी बिहारी राजनीति लूज मोशन की शिकार रही है। कभी कभी पीएम मटिरियल बनने के लिए भी लूज मोशन हो जाता है। यह तो अप्राकृतिक प्रक्रिया है।

 सो कौन, कब, कहां बदबू फैला दे, कहा नहीं जा सकता। मंडल, कमंड, जातीय गणना। कितनी बदबू।
 
माना कि वे अर्धनग्न अवस्था में घूमते देखे गए। परंतु यह क्या कम है कि वह पूर्ण रुप से नग्न अवस्था में नहीं दिखाई दिए! यात्रियों ने जब इसका विरोध किया तो उन्होंने मानवता का परिचय देते हुए केवल गाली-गलौज ही की।  अति आधुनिक तेजस ट्रेन के स्पीड का आनंद पूर्ण वस्त्र में कभी नहीं लिया जा सकता। सो इन्होंने प्राकृतिक अवस्था को प्राप्त करते हुए तेजस ट्रेन के अति द्रुतगामी होने का आनंद लेने के लिए केवल अर्धनग्न अवस्था  को चुनकर यात्रियों के साथ-साथ रेल और देश पर अति उपकार किया। भावनाओं को समझें।

29 अगस्त 2021

बहन सूपनखा की नाक नगेंदर ने ही काटी

 बहन सूपनखा  क  नाक नगेंदर ने ही काटी


हास्य व्यंग्य

जमुनालाल विश्वविद्यालय शोधार्थियों के लिए कुख्यात है। एक दिन  कक्ष में  शिक्षा विभाग के निदेशक आए। उन्होंने सवाल किया। बताओ, सूपनखा की नाक किसने काटी? सबको सांप सूंघ गया। तभी कामरेड कनखैया बोला। सर, यह काम नगेंदर ही कर सकता है। वहीं हमेशा जेब में तलवार लिए घूमता है। फिर उसके समर्थन में कक्षा का सबसे मरियल सा दिखने वाला पढ़ाकू अरमिंद भी हाथ खड़ा कर दिया।

बिलकुल सर, मैने अपनी आँखों से देखा। बहन सूपनखा कि नाक नगेंदर ने ही काटी है। इसी बीच अगली बेंच पर हमेशा गुमसुम बैठने वाले शोधार्थी राउल भी खड़ा हुआ। सर, यह सूपनखा कौन है? सभी लोग ठठा कर हंसने लगे।

तभी उटंग पैजामा और सर पर टोपी पहने उरम भी उठा और बोला। यह असहिष्णुता है। सूपनखा जैसी अबला बहन की नाक काट दी गई। बहुत दुर्भाग्यपूर्ण  है। दमितों से अन्याय। जय भीम।

साहब के चेहरे पर असमंजस और अज्ञानता का मिलाजुला भाव आया। चौंक गए। अरे, ऐसी दुर्दशा और उनको पता भी नहीं। फिर उन्होंने वर्ग शिक्षक की तरफ नजरें उठाईं तो शिक्षक महोदय भी हड़बड़ा गए। बोले, जी हाँ सर, जी हाँ सर। बच्चे सही कह रहे हैं, कक्षा में यही सबसे बदमाश है। इसने ही किया होगा।

इस पूरे मसले की शिकायत करने के लिए  पदाधिकारी महोदय डीन के पास पहुंचे।ओमेसी नाम था उनका।सारी बात चपरासी ने चुपके से उन्हें पहले ही बता दी थी। बोले माफ़ करिए सर। नगेंदर ही ऐसा करता है। नाक काटने में वह बहुत माहिर है। अगले दिन अधिकारी महोदय ने मीडिया ब्रीफिंग की। देश में असहिष्णुता का माहौल है, नारी अस्मिता, स्वाभिमान को खतरा है। अगले दिन आंदोलन शुरू हो गया। लोग हाथ में तख्ती लेकर जुटे। कुछ मीडिया चैनल लाइव प्रसारण करने लगे।
उधर, नगेंदर अपने सहपाठियों की सभा को संबोधित कर रहा था। भाइयों एवं बहनों । जब भी राष्ट्र और धर्म के नाक में कोई ऊंगली करेगा। उसकी नाक काट दी जाएगी। राष्ट्रवाद और धर्म हमारी अस्मिता और सह अस्तित्व है। सभी लोग तालियां पीट रहे थे।

25 अगस्त 2021

मोबाइल ने सबकुछ छीना

मोबाइल ने जीवन छीन लिया। जी हाँ! यही सच है। बचपन से पढ़ने लिखने वाला नहीं रहा। होश संभाला तो पढ़ना ही एक मात्र विकल्प दिखा। फिर झोंक दिया। जैसे तैसे। कुछ तो नहीं कर सका तो जीवन की गाड़ी खींचने बुक स्टॉल खोल लिया। यह मेरे पढ़ने के शौक का नतीजा था। अपने नगर का पहला बुक स्टॉल। साथी बुक स्टॉल। उससे पहले साधारण उन्यास पढ़ता था। जिसने सुरेन्द मोहन पाठक और गुलशन नंदा प्रमुख रहे। पाठक जी का किरदार विमल आज भी याद है। और एक सुनील। लपु झंगा पत्रकार। 

खैर, धीरे धीरे साहित्य की अभिरुचि बढ़ी। हंस पढ़ने लगा। फिर रेणु। प्रेमचंद। शरत चंद्र। कमलेश्वर। पढ़ता रहा। जीवन का यह बड़ा बदलाव का दौर रहा।  


खैर, मोबाइल ने सबकुछ छीन लिया। चाह कर भी मोबाइल नहीं छूटता। पढ़ने की लत है पर अब कोशिश करने पे भी एकाग्रता नहीं रहती। 

फिर भी लखनऊ रेलवे स्टेशन पे पसंदीदा पुस्तक दिखी। ले लिया। राग दरबारी। वयं रक्षम।

देखिये कब तक पढ़ता हूँ।

15 अगस्त 2021

अनसुनी कहानी: गरम दल के क्रांतिकारी राजेंद्र प्रसाद का कटा हाथ कोर्ट लेकर आते थे अंग्रेज

अनसुनी कहानी: गरम दल के क्रांतिकारी राजेंद्र प्रसाद का कटा हाथ कोर्ट लेकर आते थे अंग्रेज

अरुण साथी, (बरबीघा, शेखपुरा)
ए मेरे वतन के लोगों जरा आंख में भर लो पानी , जो शहीद हुए हैं उनकी ज़रा याद करो कुर्बानी। आजादी के 75 वें वर्षगांठ के अवसर पर 15 अगस्त को गलियों और शहरों में देशभक्ति गीत गूंजने लगते हैं। इन्हीं देशभक्ति गीतों के द्वारा यह एहसास भी होता है कि देश की आजादी में कितनी कुर्बानियां शहीदों ने दी है। हालांकि बाद में हम इन कुर्बानियों को भूल भी जाते हैं। देश के लिए ऐसे ही कुर्बानी देने वाले एक क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी राजेंद्र प्रसाद भी हैं। जिनका हाथ अंग्रेज चिकित्सकों के द्वारा काट दिया गया और फिर कटे हुए हाथ को अंग्रेज कोर्ट में सबूत के रूप में पेश करते थे। यह क्रांतिकारी राजेंद्र प्रसाद बरबीघा के शेरपर गांव निवासी थे।


क्या हुआ था मामला कैसे कटा हाथ

 राजेंद्र प्रसाद के पुत्र विजय सिन्हा कहते हैं कि उनके पिता दसवीं की पढ़ाई करने के लिए अपने ननिहाल कदम कुआं पटना चले गए। उनके मामा वकील और मुख्तार थे। उनकी पढ़ाई लिखाई पटना में शुरू हुई । इसी बीच में भगत सिंह के गरम दल से जुड़े और क्रांतिकारी बन गए। देश के आजादी का संकल्प लिया और अभियान में जुट गए। इसी अभियान में जुटने के बाद एक अंग्रेज अधिकारी के मौत की योजना क्रांतिकारी साथियों के साथ मिलकर बनाई। वह अंग्रेज अधिकारी ट्रेन से आने वाला था। सारी योजना बनाए जाने के बाद बम से उसे उड़ाने की योजना राजेंद्र प्रसाद ने बनाई


बम बनाने की ट्रेनिंग ली

 राजेंद्र प्रसाद भगत सिंह के अभियान के प्रमुख क्रांतिकारी साथी थे। उन्होंने बम बनाने का प्रशिक्षण लिया था। अपने ननिहाल के घर में छुप कर उन्होंने बम बनाए और फिर एक थैले में भरकर अपने एक सरदार साथी के साथ चुपके से बंका घाट की ओर रेल पर आने वाले अंग्रेज को उड़ाने के लिए चल दिए। इसी दौरान भूलवश बम विस्फोट हो गया। इसी बम विस्फोट में उनका एक साथी शहीद हो गया । जबकि राजेंद्र प्रसाद बेहोश होकर वही पीपल पेड़ के पास गिर गए । फिर उन्हें किसी तरह से मामा के सहयोग से हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया। इसकी भनक अंग्रेजों को लगते ही अंग्रेजों ने साजिश रची और डॉक्टर के सहयोग से इस साजिश को सफल बनाया। डॉक्टरों ने उनका हाथ काट दिया। साथ ही बताया कि बम विस्फोट से जख्मी हाथ खतरनाक हो गया था। हालांकि यह साजिश के तहत किया गया था। हाथ कटने के बाद राजेंद्र प्रसाद ने यह भी कहा कि उनका हाथ तो कट गया परंतु बम बनाने का आईडिया वे अपने साथियों को देते रहेंगे।

कम्युनिस्ट पार्टी के नेता बने

उसके बाद फिर वह जेल चले गए और लगातार संघर्ष भी किया। बाद में कई आंदोलनों में उनकी भूमिका रही। कोलकाता में भी जाकर अंग्रेज अधिकारी पर बम से हमला किया। स्वतंत्रता सेनानी के इस संघर्ष को आज भी देश नमन कर रहा है। बाद के दिनों में राजेंद्र प्रसाद कम्युनिस्ट पार्टी के क्रांतिकारी अभियान नेता बने और गरीबों के हक की लड़ाई लड़ते रहे । बरबीघा का कम्युनिस्ट पार्टी कार्यालय उनके नाम पर ही आज भी स्थापित है।

11 अगस्त 2021

हिन्दू धर्म में बाँस और वंश का सरोकार

#बांस और #वंश

हिंदू धर्मावलंबियों के लिए प्राकृतिक पूजा त्योहार, शादी विवाह से लेकर श्राद्ध तक में दुनिया के सभी धर्मावलंबियों के लिए अनुकरणीय है।

शादी विवाह में गांव में आज भी विवाह से पहले आम के बगीचे में जाकर योग मांगना। उसके अलावा कई विधान है जो प्राकृतिक के इर्द-गिर्द घूमते हैं। जिसमें पेड़ पौधे, कुआं, तालाब शामिल है।

इसी तरह शादी विवाह के बाद बांस की बसेड़ी और वंश का संयोग भी देखने को मिलता है।

दूल्हे का मौरी से लेकर शादी विवाह में लगा हल्दी और अन्य शादी विवाह में गैर जरूरी सामान शादी के बाद बांस के बसेड़ी में जाकर महिलाएं रख आती हैं। जाते हुए महिलाएं भी गीत गाती हुई जाती हैं और लौटते हुए भी गीत गाते लौटती हैं।

 प्राकृतिक पूजा के तौर पर यह माना जाता है कि बांस का वंश वृद्धि में सर्वाधिक सहयोग है और यह कामना लोग करते हैं कि जिस तरह बांस का वंश बढ़ता है वैसे ही परिवार का बढ़े। गांव में बांस का दातुन करना आज भी प्रतिबंधित है। इसका मुख्य कारण वंश वृद्धि बांस की तरह होने की कामना है। इसी तरह की एक तस्वीर संलग्न है।

03 अगस्त 2021

ईश्वर हमें बुला लेते हैं

सोमवार की रात्रि मित्र शांति भूषण  के यहां से  के साथ लौट रहा था तभी मित्र अविनाश काजू  मिले और फिर दर्शन हुआ एक ऐतिहासिक धरोहर से । यह शिव मंदिर बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री डॉ श्री कृष्ण सिंह के जन्म भूमि पर उनके वंशजों के द्वारा आज ही संचालित है। बिहार केसरी के पिता श्री हरिहर सिंह के नाम पर यह स्थापित है। देवकीनंदन सिंह उनके बड़े भाई ने इसकी स्थापना की। देवकी बाबू प्रख्यात ज्योतिषाचार्य हुए और ज्योतिष रत्नाकर पुस्तक आज दुनिया में यह मानक पुस्तक है।




आश्चर्यजनक बात यह कि मंदिर के प्रथम तल पर राजकुमारी देवी संस्कृत विद्यालय का संचालन होता था। स्थानीय लोगों ने बताया कि लालू यादव के जमाने में चरवाहा विद्यालय तो खोला गया परंतु इस तरह के संस्कृत विद्यालय को बंद कर दिया गया था। यहां से संस्कृत में स्थान स्नातक तक की पढ़ाई होती थी। अब उस स्कूल का कोई अस्तित्व नहीं है। ॐ नमः शिवाय

09 जुलाई 2021

मेघ

#मेघ
टिप टिप
टुपुर टुपुर

यह बिरह गीत है
या की है
मिलन संगीत
सुनो तो सही
कुछ देर मौन होकर
दिल से

किसी बिरहन के
आंसूं हैं ये
या की है
क्रंदन
किसी अहिल्या की

अरे हाँ, रुको
यह प्रेम संगीत है
क्या तुम प्रेमी हो
हो न..
(शब्द और छाया अरुण साथी की)

08 जुलाई 2021

सूअर के साथ-साथ आदमी की संवेदनाऐं भी मर गई

निश्चित ही सूअर, सूअर होता है। सूअर का मर जाना। सूअर का मर जाना है। इस पर कोई संवेदना नहीं । यह आम नजरिया समाज का है। होनी भी चाहिए । शहरों के बज-बजाते नालियों में सूअरों को कांच-किचिर करते देख, भला कौन नाक-मुंह नहीं सिकोड़ता। मैंने भी यही मान लिया। 



दो जुलाई की अहले सुबह गांव का विनोद डोम सपरिवार घर के दरवाजे पर पहुंचा। वह अक्सर घर चला आता है। बेरोकटोक । अंदर आकर भैया और भाभी कहकर चिल्लाने लगता है। जब भी पत्नी  शराब पीकर आने की वजह से खाना नहीं देती तो वह ऐसा करता है। रोटी लेकर चला जाता है। 

सोचा कि आज भी कुछ यही हुआ होगा। मैं नीचे नहीं उतरा। पर वह चिल्लाता रहा। मजबूरी बस जब गया तो सभी परिवार के लोग रो रहे थे। बताया कि उसके एक दर्जन सूअर को जहर देकर मार दिया गया। चलकर तस्वीर ले लिजिए। मैंने सोचा कि यह कौन सी बड़ी बात है। सूअर का मरना, आदमी का मरना थोड़ी है।

मैंने इसे नजरअंदाज कर दिया और कुछ बहाने बनाकर उसे घटनास्थल पर जाने के लिए और पुलिस से मिलने के लिए कहा। वह घटनास्थल पर गया।  एक घंटा के बाद सपरिवार फिर घर के दरवाजे पर पहुंच गया।  वहां मुझे चलने के लिए दबाव देने लगा। विनोद की पत्नी बोली, अखबरिया में तोंही ने छापो हो त किदो गरीबका के इंसाफ मिलो हय। हमरो ले कुछ करहो। इस बार भी मैं कहा कि तुम लोग जाओ। मैं आता हूं। फिर चाय बगैरा पीने लगा। मामले को उतने संजीदगी से नहीं लिया। सोचा कि सूअर की मरने की खबर कहां छापेगी। तीसरी बार उसका बेटा फिर आ गया और बोला- बाउ बोला रहलन हें।


घर से पत्नी ने दवाब दिया । जाहो, गरीब ले उहे पूंजी है। अंततः मैं वहां गया। वहां पहुंचा तो सूअर की मरने की वजह से गरीब परिवार के हुए नुकसान का आकलन कर सका । तीन लाख का नुकसान था।  तब जाकर इसकी संवेदनशीलता को समझ सका। दरअसल इस घटना में एक दर्जन से अधिक सूअर की मौत हुई।  एक गर्भवती थी। लदबद। किसी ने  भोजन में जहर मिलाकर रख दिया था।

सभी परिवार जार जार रो रहे थे। 
विनोद की पत्नी बोली- बेटी के ब्याह कुछ्छे दिन बाद हलो,  एकरे भरोसे ब्याह तय कइलियो हल। अब बेटी के ब्याह कैसे होतो। मैं तस्वीर खींचकर घर चला आया। स्थानीय मिशन ओपी पुलिस से मोबाइल पर संपर्क कर प्राथमिकी दर्ज करने का निवेदन किया । दोपहर तक पूरा परिवार थाना के आगे बैठा रहा।  परिवार के बयान लेकर पुलिस ने प्राथमिकी  दर्ज करने का आश्वासन देकर सभी को घर भेज दिया। शाम में सभी मीडिया कर्मियों को थानाध्यक्ष ने बयान दिया कि एफआईआर दर्ज कर लिया गया। सुबह के अखबारों में विनोद डोम के सूअर के मरने की खबर प्रकाशित हो गई।  
 
फिर अचानक चार दिन बाद गांव के मिथिलेश कुमार ने सूचना दी कि गरीब विनोद डोम के साथ पुलिस ने गजब चालाकी और धोखाधड़ी कर दी। इसके नाम से एफआईआर दर्ज नहीं करके। जो आरोपी है उसके एक रिश्तेदार जितेंद्र के नाम से एफआईआर दर्ज कर लिया है। बयान तो इसका लिया गया परंतु हस्ताक्षर उससे करा लिया गया। इसका गवाह तक में नाम नहीं दिया गया । जब इस पूरे परिवार को इसकी सूचना मिली तो यह सब है स्तब्ध रह गया । इसे उम्मीद थी कि एफआईआर के बाद कुछ मुआवजा इत्यादि मिलेगा। अब तो वह भी गया। बेटी के हाथ पीले करने के सपने भी चले गए और गरीब परिवार तीन लाख का नुकसान हो गया। अब इस नुकसान की भरपाई तो नहीं ही होगी, गरीब परिवार को इसी तरह से इंसाफ से ही वंचित कर दिया गया । जिस पुलिस के लिए आदमी की मौत संवेदना नहीं जगाती उसके लिए सूअर की मौत क्या मायने रखेग। सुना की तर माल लेकर सब कुछ मैनेज कर लिया गया।  मतलब, सूअर ही नहीं मरी, हमारी संवेदनाएं भी मर गई।

01 जुलाई 2021

शतकीय पारी के बाद अच्छे दिन आने पर खुशी की लहर

अच्छे दिन आने के भरोसे को पूरा होने पर खुशी की लहर है। पेट्रोल सिंह ने हर बॉल को बाउंड्री के पार भेज कर जब शतक जड़ दिया तो उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। डीजल डालमिया भी सलामी बल्लेबाज  जोड़ी का कर्तव्य निभाया और शतक के करीब पहुंचने की रेस में जी तोड़ मेहनत कर रहा है।



टीम के दोनों सलामी बल्लेबाज को अच्छे दिन आने का भरोसा दिया गया था। टीम के कप्तान और उपकप्तान के सद-प्रयासों से इसमें सफलता भी मिल गई। धुआंधार बल्लेबाजी कर शतकीय पारी से खेलने वाली जोड़ी से जब इस संबंध में पूछा गया तो इस सवाल को करने वाले मीडिया कर्मी को देशद्रोही मानकर घूरते हुए उसने जवाब दिया। चेहरे पर कुटिलता भरी मुस्कान के साथ हर्ष व्यक्त करते हुए कहा कि यह सब कप्तान महोदय के दिशा निर्देश और प्रेरणा की वजह से ही संभव हो सका है। हम दोनों जब विपक्षी टीम के सदस्य थे तो परफॉर्मेंस काफी खराब था। पच्चास-साठ गेंद पर सत्तर रन पर आउट हो जाते थे। दुर्भाग्य से लोग 70-80 रन बनाने पर भी काफी हो हल्ला, उपद्रव, तोड़फोड़ करते थे। आज अच्छे दिन की निशानी है कि दर्शकों तक भक्तिमय माहौल बनाने के सद-प्रयासों के परिणामत: आज सभी जगह भक्तिमय वातावरण है। 
जयकारे गूंज रहे हैं।
जय भ्रता की। 
जय भाग्य विधाता की।

इस उपलब्धि को हासिल करने को लेकर दोनों को समारोह पूर्वक सम्मानित किया गया। राष्ट्रवाद के दिशा में किए गए इस पहल की सराहना की गई और दोनों को प्रखर राष्ट्रवादी का पुरस्कार दिया गया। इस मौके पर टेस्ट खिलाड़ी करूआ साव को भी दोहरा शतक लगाने की शानदार उपलब्धि हासिल करने पर प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया। बताया गया कि टीम के कोच, कप्तान, उप कप्तान के साथ-साथ इस उपलब्धि को हासिल करने में मैनेजिंग टीम के सदस्य अन्डानी-अन्जानी  गुरु घंटालों की देखरेख में कई अन्य खिलाड़ी भी रिकॉर्ड तोड़ उपलब्धि हासिल करने की रेस में शामिल है। 

अपने संबोधन में कप्तान श्री ने कहा कि देश की सेहत और पर्यावरण के लिहाज से पेट्रोल सिंह की यह उपलब्धि एक राष्ट्रवादी कदम है। लोग साइकिल की सवारी करें। परंपरा और संस्कृति को अपनाते हुए बैलगाड़ी का उपयोग माल ढोने, यात्रा करने के लिए भी करना अपनी संस्कृति और धरोहर को सहेजने जैसा होगा। करूआ साव का उपयोग भी सेहत के लिए चिकित्सकीय सलाह के अनुसार नुकसानदायक होता है। अतः इसका प्रयोग ना के बराबर करना ही सही होगा और इस दिशा में हम लोगों का प्रयास काफी सराहनीय हैं। इति श्री। जय श्री राम।