26 अक्तूबर 2023

आज विश्व कुत्ता दिवस है

 आज विश्व कुत्ता दिवस है

#International_Dog_Day यह स्नेह का रिश्ता है। कुत्ता नाम सुन कई लोग आज भी असहज हो जाते है। आवारा कुत्ते के आतंक को आज भी सनसनी बनाया जाता है। खैर, आज विश्व कुत्ता दिवस है। जिन लोगों ने कुत्ता पाला है, वहीं इसके मर्म को समझ सकते है। यह प्राणी इतना संवेदनशील है कि उसका वर्णन नहीं। मेरा रॉकी तीन साल का हुआ है। घर का सबसे प्यारा सदस्य है। पर यह मानव के भाव को पढ़ सकता है। सूंध सकता है। अपनी भाषा में आपसे बात करता है। 


आपको उत्साहित रखता है। आपके प्रति जिम्मेवार रहता है। मेरा रॉकी बहुत प्रशिक्षित नहीं है। साधारण है। मगर प्यारा है। इसकी सुबह नियमित पांच बजे होती है। पांच बजे मुझे प्यार से आहिस्ते छुकर जगाना चाहता है। कूं कूं की आवाज लगाएगा। यदि नहीं जागा तो मुंह के थुथन से जगाएगा। इसे पता है की कैसे पंजा से नाखुन लग सकता है, सो उसका ख्याल रखता है। नहीं जागा तो पता नहीं कौन सी घड़ी है इसके पास, ठीक सवा पांच में जोर से भैंकेगा। पंजा चलाएगा। उसके बाद बाहर नित्य क्रिया के लिए जाने के लिए उत्साह से भर उठेगा। खूब इतराएगा। बहुत बातें है।
शाम में खेलने के लिए उकसायेगा। आवाज देगा। कुछ देर लुका छुपी खेलने पर शांत हो जाएगा। और कहीं बाहर गया तो राह तकता रहेगा। दरबाजे पर जा जा कर देखेगा। बहुत समय निकल जाने के बाद वहीं बैठेगा। इंतजार करेगा। आने के बाद खूब इतराएगा। यह प्राणी प्रेम, स्वामी भक्ती का जीता जागता उदाहरण है। गली के कुत्ते भी ऐसे ही होते है। उसे खाना और प्यार देकर देखिए। मेरे गांव का तीन कुत्ता मेरे घर को अपना समझ लिया है। जब भूख लगेगी, आ जाएगा। उसकी कहानी बाद में । दुख है कि कुछ लोग शौक से कुत्ता रखते है पर मन भर जाने या मजबूरी में उसे भगा देते है। ऐसे कुत्तों का देख मन भर आता है। मेरे आस पास कई है। हम मनुष्य सच में निष्ठुर है। क्रुर है। से भगा देते है। ऐसे कुत्तों का देख मन भर आता है। मेरे आस पास कई है। हम मनुष्य सच में निष्ठुर है। क्रुर है।

24 अक्तूबर 2023

रिव्यू : फिल्म खुफिया भारतीय सिनेमा का परिपक्व संस्करण

परिपक्व होता भारतीय सिनेमा

अरुण साथी

दो सिनेमा छुट्टी में खत्म किया। नेटफ्लिक्स पर। ओएमजी२ और खुफिया। दोनों नहीं, खुफिया जिंदाबाद।

बात ओएमजी २ का। इसमें पंकज त्रिपाठी के सहज अभिनय को छोर कुछ भी अच्छा नहीं है। क्यों, क्योंकि ओएमजी इतनी अच्छी बनी थी की उससे अच्छा कुछ हो नहीं सकता। फिर भी यौन शिक्षा पर केंद्रित सिनेमा और भारतीय धर्म और महाकाल की खिचड़ी ठीक ठाक है। ओएमजी में परेश रावल, जज साहब का कोई जोड़ नहीं।
खैर, खुफिया। भारतीय सिनेमा का एक परिपक्व संस्करण। कम उम्र से हॉलीवुड फिल्म देखनी का परिणाम रहा की असामान्य सिनेमा स्वीकार न हो सका। पर खुफिया एक सामान्य सिनेमा है। टाइगर, टाइगर जिंदा हैं, जवान जैसे कई सिनेमा इसके करीब भी नहीं ।


जासूसी जीवन का सामान्य और सहज अभिनय तब्बू का। तब्बू मेरी पसंदीदा अभिनेत्री है। आंखों से बात करती। 

खुफिया। सिनेमा में सिनेमा जैसा कुछ नहीं । सबकुछ सहज। 

बांग्लादेशी अभिनेत्री अजमेरी और मिर्जापुर फेम अली फजल का प्रभावशाली अभिनय। निदेशक विशाल भारद्वाज तो खैर प्रयोगधर्मी है ही। सत्या से ही पसंद।

गीत, जाना हो तो मत आना। रेखा भारद्वाज की आवाज का जादू। आह, क्या सूफी गीत है। कबीर और रहिमन का नया संस्करण। बुझे बुझे। आवाज राहुल राम और ज्योति। गीत पसंद आई तो नाम खोजा।


08 अक्तूबर 2023

पितृसत्तात्मक समाज में अब मुखर हो रही बेटियां

 पितृसत्तात्मक समाज में अब मुखर हो रही बेटियां 


पितृसत्तात्मक समाज में अब बेटियां मुखर हो रही हैं । पढ़ाई , लिखाई के दौरान छेड़खानी, सड़कों पर अत्याचार, घर, परिवार, समाज में भेदभाव, दमन, शोषण और प्रताड़ना, ऐसे मुद्दों को मुखर होकर बेटियां मंच पर रखने लगी हैं। ऐसा ही एक प्रसंग शेखपुरा जिला प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन के समारोह में देखने को मिला ।


आदर्श विद्या भारती में इसका आयोजन किया गया था। इसमें संत मेरिस इंग्लिश स्कूल की बेटियों ने इसी मुद्दे को मुखरता से रखा और सामाजिक प्रताड़ना, पितृसत्तात्मक समाज में भेदभाव और दमन को अपने अभिनय से जीवंत कर दिया। 


इस जिवंत मंचन को देखकर सभी उदास हो गए। इसकी खूब तारीफ भी हुई । समाज में बदलाव बेटियों के द्वारा ही संभव है। पितृसत्तात्मक समाज में हम आज भी बेटियों को दमित करके ही रखना पसंद करते हैं।



03 अक्तूबर 2023

बिहार में जातीय गणना: मोहब्बत की दुकान में घृणा का सामान

बिहार में जातीय गणना: मोहब्बत की दुकान में घृणा का सामान

बिहार में जातीय गणना देश की राजनीति को प्रभावित करने के लिए तरकश से ब्रह्मास्त्र की तरह छोड़ दिया गया है। यह सब सहज और सामान्य नहीं है। प्रायोजित और झगड़ा कराकर राजनीतिक रोटियां सीखने के लिए किया गया काम है । भले ही नए गठबंधन के द्वारा मोहब्बत की दुकान चलाने का दावा किया जाता हो परंतु जातीय गणना के माध्यम से इसको देश भर में उछाल कर मोहब्बत की दुकान में घृणा का सामान रख दिया गया है।

ऐसा कहने का तात्पर्य क्या है? इस पर विमर्श करना चाहिए। बिहार में किसी भी चुनाव में चाहे वह पंचायत स्तर का हो, विधानसभा स्तर का हो, लोकसभा का हो, राजनीति करने वाला कोई भी व्यक्ति को पता होता है कि उस क्षेत्र में किस जाति के कितने वोटर है । जाति का गणना बिल्कुल ही सामान्य और सहज प्रक्रिया थी । सरकार के द्वारा जाति गणना का जो आंकड़ा दिया गया है उसमें प्रबुद्ध लोगों की समझ से कोई नई बात नहीं है। जितनी जाति की गणना का आंकड़ा सामान्य लोगों के पास थी उसके आसपास का ही आंकड़ा सरकार ने जारी किया है।


हालांकि सरकार का दावा था कि यह आर्थिक सर्वे है परंतु आर्थिक सर्वे को जारी नहीं किया गया है और राजनीतिक दल के पक्ष और विपक्ष के लोग इस पर चुप्पी साथ लिए हैं। दरअसल आर्थिक सर्वे को जारी किया जाता तो सरकार की एक मानसा दिखाई पड़ती और समाज में उत्थान और पतन का नया आंकड़ा सामने आ जाता परंतु सरकार को इस आंकड़े से मतलब नहीं है।


सरकार को मतलब है मंडल और कमंडल को फिर से उछल कर लड़ाई पुनर्वापसी की। इसी फार्मूले पर देश में गठबंधन बना है और मंडल कमंडल कि राजनीति में कमंडल को पराजित करने के लिए ही इस फार्मूले को आजमाया गया है जो की काफी करवा और विषैला है।


ऐसा इसलिए क्योंकि यदि सरकार की मंशा दबे हुए लोगों को उठाने की होती तो यह सर्वे या जातीय गणना का आंकड़ा सहज रूप से सर्वे करा कर पेश कर दिया जाता। इस पर ना तो राजनीति होती ना ही देश भर में हंगामा होता और ना ही गांधी जयंती के अवसर पर मोहब्बत की दुकान से घृणा का सामान बेचने का काम किया जाता।

भारतीय जनता पार्टी को देश को बांटने की राजनीति का ठप्पा लगा हुआ है। हिंदू और मुस्लिम के बीच झगड़ा करने का प्रमाण पत्र भी भारतीय जनता पार्टी के पास है । दुर्भाग्य से दूसरे तरफ के लोग भी यही काम करते हैं। परंतु प्रमाण पत्र वितरण संस्थान के द्वारा उनके पास इस तरह का कोई प्रमाण पत्र जारी नहीं किया जाता।

मुस्लिम तुष्टिकरण की बात सर्व विदित है। अभी सनातन धर्म को खत्म करने, रामचरित्र मानस की प्रति जलाने जैसे कई बातें लगातार सामने आए और दूसरे गठबंधन और राजनीतिक दल के लोग चुप्पी साधे रहे।

 

मंडल की राजनीति के उसे दौर के लोगों को पता होगा कि कैसे राजीव गोस्वामी ने मंडल की राजनीति का विरोध करते-करते अपनी जान दे दी। बहुत लोगों की जान चली गई। देश जख्मी हुआ। इसका फलाफल निकाला और पिछड़ी जातियों को आरक्षण के रूप में यह सामने आया।

अगड़ी जाति और पिछड़ी जाति की लड़ाई में यदि यह कहा जाए कि शोषण दमन और दवे कुचले लोगों का अपमान और प्रताड़ना नहीं हुआ तो यह अतिशयोक्ति होगी । निश्चित रूप से ऐसा हुआ है । आजादी के बाद इस पर अंकुश लगाने के प्रयास सार्थक हुए हैं । परंतु इस बात को लेकर अब आम लोगों के मुंह में दही जम जाता है जब इसी प्रकार के शोषण, दमन और प्रतिशोध की भावना से लोकतंत्र में कथित रूप से जाति आधारित बहुसंख्यक करने लगा है।


 

शोषण दमन और हाकमरी की बात का अगड़ी जातियों पर भले लगा हुआ है परंतु आजादी के 76 साल बाद आरक्षण के हथियार से केवल और केवल अगड़ी जातियों पर इस हकमारी का आरोप लगाना ठीक नहीं है।



हाकमरी की बात यदि किया जाए तो दबे लोगों की हक मारी अब उनकी जातियों और उसके वर्गों के लोग के द्वारा ही किया जा रहा है । अनुसूचित जाति और जनजाति के लोग जो अगड़ी जातियों की श्रेणी से भी बढ़कर संपन्न हो गए हैं वही आज उनकी हाकमरी कर रहे हैं।

 आर्थिक सर्वे जारी होता तो यह निश्चित रूप से पता चला कि बिहार में मुसहर, डोम जैसी जातियां किस तरह बदहाली की जिंदगी जी रहे हैं। 10 बाय 10 के एक कमरे में 10 परिवार का रहना हो रहा है और आमदनी का कोई भी स्थाई साधन विकास के इस दौर में भी उनके पास नहीं है । परंतु उनके हिस्से का आरक्षण का लाभ आज भी दूसरी जातियों के इसी वर्ग के लोग हकमारी कर ले रहे हैं और इस पर कोई एक शब्द भी टिप्पणी करने से डरता है।


पिछड़ी जातियों में भी कई ऐसी जातियां हैं जो पिछड़ी जातियों के गरीब और दबे लोगों की हक मार रहे हैं। उन्हीं के जातियों और उन्हीं के वर्गों के लोग के द्वारा ऐसा किया जा रहा है। यह आरक्षण की एक बड़ी विसंगति है परंतु इस पर जो शिकार है उन्हें भी इस बात का एहसास नहीं है और वह भी एक समूह के साथ पीड़ित और शोषण होकर भी अपने आप को खुशनुमा महसूस कर रहे हैं।


जनसंख्या वृद्धि के इस विसंगतियां में पिछड़े और अनुसूचित जातियों के आंकड़े के बढ़ने का मामला परिवार नियोजन से भी जुड़ा हुआ है। निश्चित रूप से अगड़ी जातियों के लोगों ने परिवार नियोजन के देशव्यापी अभियान में अपनी भागीदारी दी और परिणाम यह हुआ कि उनकी हिस्सेदारी कम होती चली जा रही है और लोकतंत्र में उन्हें निश्चित रूप से हसिए पर धकेल दिया गया है।

आजादी के इतने साल बाद भी दमन और शोषण के उसे पीड़ा से निकलकर प्रतिशोध की भावना से काम कर रहे दूसरी अन्य जातियों के लोगों के लिए अब यह आवाज उठने लगी है कि अगड़ी जातियों के लोगों को किसी टापू अथवा देश के किसी एक हिस्से में जाकर छोड़ दिया जाना चाहिए और उन्हें अपने किस्मत और अपने मेहनत के भरोसे आगे बढ़ाने के लिए अवसर दिया जाना चाहिए।

 परंतु इस देश में यह भी नहीं होने जा रहा। यदि ऐसा हो जाएगा तो वोट बैंक की राजनीति में झगड़ा कराने के अवसर ही खत्म हो जाएंगे और फिर परिवार और व्यक्तिगत रूप से सत्ता के सिंहासन पर बैठकर राजमहल का सुख भोगने वालों को भारी परेशानी हो जाएगी।

01 अक्तूबर 2023

यात्रा वृतांत भाग 2 : स्काउटलैंट में नारी शक्ति की अनुभूति

 यात्रा वृतांत भाग 2 : स्काउटलैंट में  नारी शक्ति की अनुभूति


तीसरे दिन सभी 6:00 बजे सुबह मेघालय निकलने की तैयारी में लगे और 5:00 बजे से स्नान शुरू हो गया। रितेश ने सत्तू बनाया, चना फूलने दिया था, टमाटर प्याज मिलाया। सभी ने आनंद से खाया। इस बीच माहौल हंसी मजाक का हो गया। टीम में गणनायक मिश्रा और छोटे भाई धर्मवीर सपत्निक थे। धर्मवीर की वजह से मेरे लिए हंसी मजाक का माहौल तो बना पर मैं और मुकेश अपने जज्बातों पर भरसक नियंत्रण रखा । कमान रितेश ने संभाली। एक सुमो पर सभी लोग बैठ गए, या कहिए के ठूंस दिए गए । आठ लोग थे । 170 किलोमीटर की यात्रा एक ओर से थी। लौटना भी था। 

 

मेघालय की ओर हम लोग निकल गए। जैसे-जैसे मेघालय की ओर बढ़ते गए। वैसे-वैसे सब कुछ पराया होता गया। कहते है की मेघालय को मेघों का घर कहा जाता है। रास्ते  में भी लगातार पानी पड़ता रहा। मौसम खुशनुमा। यह भी सुना की मेघालय भारत का स्काउटलैंट है। ऐसा ही दिखा भी।

वहां की सड़कें, वहां की स्वच्छता, वहां का अनुशासन, वहां गाड़ी चलाना, सब कुछ मेरे लिए सिर्फ सिनेमा में देखने जैसा दिखाई पड़ा। सड़कों पर गंदगी लेस मात्रा भी नहीं । सभी अपनी लेन में गाड़ी चला रहे। इसी बीच प्राकृतिक की ऐसी छटा दिखने लगी की सभी अह्लाद से भर उठे। ऊंचे ऊंचे पहाड़ों के ऊपर बादल ऐसे तैर रहे थे जैसे दूब की घास पर ओस की बूंद।


हम सब मोबाइल के कैमरे में प्राकृतिक के अनुपम छटा को कैद करने लगे। बादल नीचे और हम लोग ऊपर। सभी अपने-अपने परिजनों को भी लाइव वीडियो कॉल करके दिखा रहे थे।

मित्र गणनायक मिश्र पत्नी को लेकर इस रमणीय यात्रा पर आए थे तो उनका पत्नी के प्रति स्नेह और अह्लाद छुपाए नहीं छुप रहा था। अलग-अलग पोज देकर तस्वीर उतार रहे थे । वीडियो बना रहे थे । दोस्तों को भी वीडियो बनाने के लिए कह रहे थे। हमलोग उनका मजाक भी बना रहे थे। हंसने का एक कारण खोज लिया गया था।



रास्ते में पहाड़ों के ऊपर से गिरता मनभावन झरना मन को मोह रहा था। इस बीच शिलांग के पास सुमो गाड़ी में थोड़ी समस्या हुई जिसे ठीक करवाने के लिए एक गैराज में रुकना पड़ा। वही मेघालय में प्रवेश करते हैं एक अनोखी चीज देखने को मिली । हालांकि देश के कुछ राज्यों में ऐसी व्यवस्था दिखाई पड़ती ही है। सबसे अधिक जो मुझे चौंकाया वह यह था कि यहां सभी कामों में स्त्रियों का वर्चस्व था। चालक ने बताया कि मेघालय सहित पूर्वोत्तर के कई राज स्त्री प्रधान राज्य है। महिला पुरुषों से कंधा मिलाकर नहीं , बल्कि एक कदम आगे चलती है। तब मुझे समझ आया की मैरी कॉम जैसे शक्तिशाली नारी बॉक्सर यहां से क्यों निकली।



नाश्ता का होटल, चाय की दुकान, फल का दुकान, खिलौने का दुकान, सभी तरह के दुकानों का संचालन केवल और केवल स्त्रियों के द्वारा किया जाता दिखाई पड़ा। मारुती 800 पर सवार दो महिला आई और सड़क किनारे फल की दुकान लगाने लगी। बेहद सजी घजी। खूबसूरत। पर अपने काम के प्रति जरा भी हीनता का भाव नहीं। हम बिहार के लोग तो लाचारी में भी फुटपाथ पर दुकान नहीं लगाना पसंद करते । लगाना भी पड़े तो अनमनस्क ढंग से। जैसे कोई पहाड़ टूट पड़ा हो। वहीं पंजाब, दिल्ली में मजदूरी कर लेना पसंद करते है। यह सब ईगो की वजह से होता है।  


गौराज के बगल में एक छोटी सी चाय और नाश्ते की दुकान संचालित करती एक खूबसूरत महिला भी दिखाई दी। संयोग से वह प्रसन्नचित्त और व्यवहार कुशल महिला थी। धर्मवीर ने उससे मिलकर बातचीत शुरू की तो पता चला कि वह हिंदी में बातचीत कर सकती है। फिर धीरे-धीरे सभी साथी वहां पहुंचे और मेघालय के बारे में जानकारी जुटाना शुरू कर दिया। महिला भी उत्सुकता बस सभी जानकारी देने लगे और जानकारी प्राप्त भी करने लगी । सभी ने प्रश्नों की झड़ी लगा दी परंतु वह उबी नहीं । उसने बताया कि यह दुकान उसकी मां का है।
 उसकी दुकान में पान भी था।बताया कि यहां पान भी बिकता है परंतु पान खाने का अंदाज अलग है। थोड़ा चूना मिलाया जाता है। कथ्था नहीं, जर्दा बिल्कुल नहीं। और सुपारी का कच्चा फल साफ करते हुए पान के साथ खाया जाता है। सुपारी इधर खूब होता है। ताड़ के पेंड जितने लंबे पर पतले पेंड़।



₹10 का एक पान यहां खिलाया जाता है। बताया कि कसेली का जो खराब गुणवत्ता वाला होता है उसे ही हम लोग बाहर भेजते हैं। बाकी बेहतर गुणवत्ता के कच्चा कसेली का उपयोग यहां बहुत लोग करते हैं । महिला और पुरुष सभी इसका उपयोग करते हैं। पान के बारे में उसने पूछने पर बताया कि जिसे आप लोग तामुल कहते हैं। यही पान है। बातचीत में उसने अपना नाम डायना भी बताया। जाते-जाते उसने शांति भूषण मुकेश की ओर इशारा करके पूछा कीआप हिंदू हो । मुकेश ने बताया हां। पूछा ब्रह्मण। पूछा कि कैसे समझे तो उसने मुकेश की शिखा की ओर इशारा कर दिया और उसने यह भी बताया कि यहां ज्यादातर लोग ईसाई हैं और ऐसा ही दिखा। मंदिर कहीं-कहीं ही दिखाई पड़ा।