30 दिसंबर 2009

उत्तर भारत का तिरूपती बनेगा सामस का विष्णुधाम।

शेखपुरा जिले बरबीघा थाना क्षेत्र के सामस गांव में स्थित है विष्ण की यह
आदमकद प्रतिमा। यह प्रतिमा तिरूपती में स्थित बाला जी प्रतिमा से एक फीट
अधिक उंची है तथा इसकी उंचाई सात फिट छ: इंच है जिसकी वजह से यह विश्व
में पूजी जाने वाली विष्णु की सबसे उंची प्रतिमा है। यह प्रतिमा 1992 में
तलाब की खुदाई के क्रम में निकली थी जिसके बाद ग्रामीण स्तर पर एक मंदिर
बनाया गया तथा इसको लेकर अभियान चलाया जाने लगा। आखिरकर बिहार धार्मिक
न्यास बोर्ड के अध्यक्ष किशोर कुणाल की नजर इस पर पड़ी और इसको लेकर पहल
प्रारंभ कर दिया गया और आखिरकर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने यहां
आकर लोगों को अश्वस्त किया कि इसका विकास पर्यटक क्षेत्र के रूप में किया
जाएगा। इस प्रतिमा की खासीयत यह है कि यह पाल काल का बना हुआ बताया जाता
है तथा विष्णु के हाथ में शंख, चक्र, गदा और पद्म भी है। इसके विकास को
लेकर स्थानीय सांसद भोला िंसह के द्वारा भी संसद में सवाल उठाया गया था।
ठसी को लेकर उत्तर बिहार के तिरूपती कहे जाने वाले जिले के बरबीघा के
सामस गांव में स्थित विष्णु की भव्य प्रतिमा को देखने तथा यहां पर्यटन की
संभावनाओं को तलाशने के लिए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने यहां का
दौरा किया। इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रतिमा स्थल को विकसीत कर
उसे पर्यटन क्षेत्र के रूप में विकसीत करने का आश्वासन दिया। मुख्यमंत्री
ने अपने संबोधन में कहा कि बिहार के तिरूपती के रूप में विकसीत कर इस
क्षेत्र के विकास को लेकर अगले माह में पटना में एक विशेष बैठक बुलाई
जाएगी जिसमें मंदिर विकास कमिटि के लोग, जिला प्रशासन, स्थानीय
जनप्रतिनिधी तथा धार्मिक न्यास बोर्ड के अध्यक्ष के अलावा पुरात्तव से
जुडे लोगों के साथ बैठक कर मंदिर के विकास की रूपरेख तय की जाएगी।

28 दिसंबर 2009

श्रीमद्भागवत पदानुवाद पुस्तक पर परिचर्चा आयोजित

शेखपुरा जिले के बरबीघा में जाने माने कवि एवं साहित्कार अरविन्द मानव के
द्वारा पदानुवादित पुस्तक श्रीमदभागवत महापुराण (दशम स्कन्ध) पर परिचर्चा
का आयोजन किया गया। पुस्तक पर आयोजित परिचर्चा में बोलते हुए पूर्व
प्राचार्य डा. नागेश्वर सिंह ने कहा कि सृजनात्मक साहित्य की रचना से
अधिक प्रसव पीड़ा अनुवाद में होती है। सृजनात्मक साहित्य में लेखकों की
उड़ान आकाश की उंचाईयों तक होती है पर किसी पुस्तक का अनुवाद करने वालों
के सामने एक सीमा-रेखा होती है। उन्होने अरविन्द मानव द्वारा अनुवादित
पुस्तक पर बोलते हुए कहा ि क इस पुस्तक की जो सबसे बड़ी बात इसमें उर्दू
सहित किसी अन्य भाषा का प्रयोग नहीं किया गया है जो इसकी सार्थकता सिद्ध
करती है। समारोह में बोलते हुए डा. किरण देवी ने कहा कि मानव जी के
द्वारा रचित रचनाअो में जिवंतता होती है। समारोह में बोलते हुए पूर्व
प्रधानाध्यापक लालो पाण्डेय ने कहा कि भाषा के साथ साथ भाव का सामन्जस्य
ही पुस्तक रचना की सार्थकता है। समारोह का आयोजन विष्णुधाम सामस स्थित
कवि अरविन्द मानव के आवास पर किया गया था। समारोह को प्राचार्य डा.
गजेन्द्र प्रसाद, डा. के. एम. पी. सिंह, पूर्व प्राचार्य डा. मिथलेश
कुमार, प्रो0 रामानन्दन देव, प्रो0 भवेशचंद्र पाण्डेय,प्रो0 विरेन्द्र
पाण्डेय सहित अन्य लोेगों ने समबोधित किया। समारोह में कवि शत्रुध्न
प्रसाद ने पहाड़ है सर पर नामक कवित का पाठ किया। पुस्तक में रूकमणि के
सौंदर्य का वर्णन करते हुए कवि अरविन्द मानव लिखतें हैं- प्रभु माया थी
वैदभी, जो करती वीरों को मोहित।
किशोर तरूण की वय: सन्धि कटि सुन्दर मुख कुण्डल शोभित।। '
श्यामा के सुधड़ नितम्बों पर, मणि युक्त मेखला का बंधन।
उन्नत उरोज धंधराले लट, जिससे कुछ चंचल चारू नयन।।
बिम्बाफल सदृश अधर द्युति से, जो कुन्दकली सम थी उज्जवल।
वे दन्त पंक्तियां रक्तिम थी, मुख पर मुसकान परम निर्मल।।
पुस्तक का प्रकाशन महावीर मंदिर प्रकाशन के द्वारा किया गया है। पुस्तक
का प्रकाशकीय में आचार्य किशोर कुणाल ने इसे एक सार्थक प्रयास बताया है।

काव्य-(कारण)

काव्य-(कारण)
पूछा दोस्तों ने मुझसे
क्यों प्रेम किया तुमसे
मैने कहा पता नहीं
सभी ने पूछा
पर मां
वो समझती थी केवल
तुम्हारे घरवालेे ने कहा
सारी बुराइयों है मुझमें
कारण सभी जानना चाहतें है
किसे पता है प्रेम में कारण नहीं होता।

27 दिसंबर 2009

भारत श्रीलंका का मैच रद

भारत श्रीलंका का मैच रदद कर दिया गया कारण एक बार फिर भारत की लचर
व्यवस्था और राजनीति ही सामने आ रही है। मैच को रदद करने का कारण पीच का
खराब होना है जबकि मैच प्रारंभ होने से पूर्व ही गावस्कर ने बता दिया था
पीच की स्थित खराब है तो क्यों देश की राजधानी में हो रहे इस मैच में
भारत को शर्मशार होना पड़ा। हलांकि इस सब की वजह से दिल्ली क्रिकेट संध
के अध्यक्ष अरूण जेठली से इस्तिफा मांगा जाने लगा पर क्या यह संभव है कि
जिसकी जिम्मेवारी हो वह जान बुझ कर पीच को खराब कर देगा। यदि सही से
देखें तो पीच की देखभाल का ही महज मामला नहीं है यह तो भारत के पूरे
क्रिकेट पर राजनीति का बोलबाला का मामला हैं। आखिर क्यों क्रिकेट से कोई
वास्ता नहीं रखन वाले को इसका सर्वोसर्वा बना दिया जाता है। क्यों जेठली
सहित सभी जगहों पर क्रिकेट पर कब्जे को लेकर माथापच्ची की जाती है। देखिए
तो यह पूरा मामला पैसे से जुड़ा हुआ है और क्रिकेट की दुनिया आज पैसे
बरसाने वाली मशीन बन गई है।

सेम-सेम शीला दिक्षित

सेम-सेम शीला दिक्षित

दिल्ली की मुख्यमंत्री का शीला दिक्षित एक सुलझी हुई नेत्री मानी जाती
हैं और कई बार उन्होंने इसे साबित भी किया, पर आखिर बिहारियों को बोझ बता
कर उन्होंने यह भी साबित कर ही दिया कि वे भी एक नौकारशाही मानसीकता और
रिजनल फोबिया से ग्रसीत है । आम जनता की भावनाओं से उन्हें कोई लेना देना
नहीं। मुझे तो हंसी आती है जब विधान सभा चुनाव में शीला जी आम आदमी की
सरकार होने का दाबा कर रही थी और वह आम आदमी बिहारी भी होता है।
बिहारियों की जो सबसे दुखद पहलू है वह है उनका बंधूआ मजदूर होना। भले ही
देश से बंधूआ मजदूर की परंपरा खत्म हो गई हो पर बिहार से बाहर बिहारी आज
भी बंधूआ मजदूर की तरह ही जीते है। बिहारी कभी किसी पर बोझ नहीं होता और
बिहारी हमेशा अपना बोझ स्वंय उठाते हैं। दिल्ली से यदि बिहारियों को भगा
दिया जाए तब शायद शीला जी को एहसास होगा कि बिहारी बोझ बनते नहीं बोझ
उठाते है। फिर भी उन्होंने बिहारियों को गाली तो दे ही दिया और राजनीति
के इस खेल को कोई भले न समझे पर बिहार के लोग तेा समझतें है। शीला जी
दिल्ली में कांग्रेस की प्रतिनिघि है और विधान सभा का चुनाव भी बिहार में
होने वाला है तब कांग्रेस से नेता जब बिहार आएगें तो उनसे कोई पूछे न
पूछे मैं तो पूछूगां कि बिहारी बोझ कैसे। बिहारियों ने पूरे भारत में
अपनी प्रतिभा और परिश्रम से लोगों को अपना लोहा मनवाया है और जब हम कहते
है भारत हमारी माता है तो हम बिहारी भी भारत की ही संतान है और मां के
लिए अमीर और गरीब सभी पुत्र समान होतें है। आज बिहार की जो बदहाली है
उसमें शीला जी की पार्टी कांग्रेस का भी बड़ा अहम रोल है। आजादी के बाद
लगभग तीन दशक तक बिहार पर कांग्रेस ने शासन किया और बिहार कें प्रथम
मुख्यमंत्री डा. श्रीकृष्ण सिंह के बाद से बिहार को लूटने में कांग्रेस
का सबसे बड़ा योगदान है । लालू यादव के सहारे भी बिहार को पिछे ले जाने
में कांग्रेस ने वहीं किया जो कुछ दिन पहले तक झारखण्ड में किया जा रहा
था। कभी समय था जब बिहार को अव्वल माना जाता था और आज भी बिहार अपने
सहारे दौड़ने लगा। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कम से कम
बिहारियों के लिए सम्मान की एक शुरूआत तो कर ही दी है।
शीला दिक्षित एक प्रदेश की मुख्यमंत्री है इसलिए उन्हें गालियां तो नहीं
दे सकता पर शिला के लिए सेम सेम, सेम सेम, सेम सेम, सेम सेम तो कह ही
सकता हूं।

26 दिसंबर 2009

प्रेम का यातनागृह, समाज और कानून

प्रेम का यातनागृह, समाज और कानून।
आदि युग से आज तक प्रेम को न तो किसी ने परिभाषित किया है और न ही किसी ने इसको समझार्षोर्षो पर एक बात जो आज के समय में सबसे दुखद है वह है आज का हमारा कानून और हमारा समाज। समाज और कानून दोनों प्रेमियों के लिए यातना गृह के रूप में तब सामने आता है जब प्रेमी समाज के बंधन को तोड़ अपनी जीवन यात्रा स्वतंत्र रूप से प्रारंभ करना चाहतें हैं। इस यातना गृह में यातनाओं की पराकष्ठा है और इसमें शामिल लोग धर्म, समाज और कानून के ठेकेदार है। प्रेमियों के लिए यह समाज यातनागृह तब बनता है जब समाज की उस परीधि से निकल कर प्रेमी बाहर आने की कोशिश करते है जिसके अनुसार समाज के अंदर रह कर अवैध संबंध को बनाए रखा जा सकता है। जिममें परिजन भी मददगार होते है तथा यदि अवैध शारीरिक संबंध के परिणामत: गर्भ रहता है तो गर्भपात की पूर्णत: व्यवस्था रहती है बस मामले को ढका-छुपा होना चाहिए। समाज के इस परीधी में ससुर-बहू और जेठ-देवरानी से लेकर कभी कभी विभ्रन्स चेहरा भी सामने आता है जिसको उधृत करना बलात्कार होगा। परन्तु प्रेमी जब समाज के इस परिधी से निकल कर प्रेम डगर पर यात्रा प्रारंभ करतें है तो समाज का कथित सभ्य चेहरा सामने आता है। इस कार्य को सामज के विरोध में बताते हुए इसके विरोध में सारी सीमाओं को पार कर जाता है। हलांकि इसका एक पक्ष यह भी है कि यही समाज फलंा कि बेटी फलां से फंसी हुई है या फंला तो अपनी बहू से ही फंसा है कह कर चौपालों पर चटखारा लेता है। कानून का भी चेहरा पेे्रमियों के लिए यातनागृह ही है। कानून के रखवाले जो हत्या, बलात्कार और अपहरण सरीखे कारनामों को अंजाम देते रहते है एक बारगी प्रेमियों के गिरफ्तार करने पर कानून की धाराओं को याद करने लगते है और उन्हें भारत का कानून और उसका संविधान भी याद आने लगता है जबकि उन्हीं के द्वारा प्रतिदिन कानून को ताक पर रख कर उसे भद्दी भद्दी गालियां
कानून के इस ठेकेदार को प्रेमी जोड़ा आतंकवादी नजर आने लगता है और समाज और कानून के यातनागृह में प्रेम का यह परिंदा कभी कभी फड़फड़ा कर दम तोड़ देता है। समाज के यातनागृह में वह भी प्रेमियों को गलियाने, यहां तक की काट कर फेंक देने की बात करते हुए इसकी पहल करता है जिसका अवैध संबंध अपने ही घर में किसी से होता है। फिर प्रारंभ होता है पंचायत का फैसला जिसके अनुसार कभी कभी प्रेमियों के लिए अमानवीय यातनाओं से गुजारा जाता है पर धन्य है प्रेम-कहा भी किसी ने सही है कि ``ये इश्क नहीं आसां बस इतना समझ लिजिए, एक आग का दरिया है और डूब कर जाना होगा। कानून के ठेकेदार यह जानते हुए भी कि यह मामला प्रेम प्रसंग का है लड़कियों को वेश्या और चरित्रहीन साबित करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ते। उम्र के हिसाब से बालिग होने के बाद भी मेडिकल टेस्ट के नाम पर परेशान किया जाता है और पुलिस से लेकर अस्पताल तक सभी के मन में यह भी गुदगुदी होती है कि इसके साथ एक मौका हमें भी मिल जाए सलाह वे भी देतें है, शर्म नहीं आती, मां बाप का नाक कटा दिया। धन्य है हमारे मां-बाप भी, बेटी दहेज लोभियों के जधन्य हाथों में बेटी को सौंप कर उनकी नाक नहीं कटती और तब भी उनकी नाक नहीं कटती जब वे अपनी बेटी के हत्यारे से पैसा लेकर समझौत करतें है पर प्रेम विवाह करने वाले बेटी के बाप की नाक कट जाती है। पता नहीं प्रेम की धार इतनी तिक्ष्ण क्यों है।
अन्त में मैं महज उपदेश नहीं देना चाहता और न ही किसी को कोस रहा, बल्कि भोेगे गए सच को रख रहा हूं। कहानी लंबी है फिर कभी, पर इस बहस में सभी भाग लें- कि क्या प्रेम को आज भी मान्यता मिली हैर्षोर्षो कानून और समाज दोनों कि नजरों में प्रेमी आतंकवादी से भी बड़ा गुनहगार क्यों है र्षोर्षो कानून में प्रेमियों के लिए कोई अलग प्रावधान नहीं है क्यों नहींर्षोर्षो उसके लिए भी अपराधियों का वहीं व्यवहार और प्रावधान है जो बलात्कारियों के लिए है आखिर क्योंर्षोर्षो प्रेमी कठधरे में बलात्कारी और अपहर्ता बन कर क्यों जाता हैर्षोर्षो जबाब कौन देगा।

25 दिसंबर 2009

लोगों के जीवन में मिठास धोलने वाले की जिन्दगी कड़वी

लोगों के जीवन में मिठास धोलने वाले की जिन्दगी कड़वी
शेखपुरा जिले के शेखोपुरसराय प्रखण्ड के किसान सालों से ईख की खेती करते
आ रहे है पर अब उनकी परम्परागत खेती धीरे धीरे विलुप्त होने के कगार पर
आ गई है और किसान समस्याओं से जुझते जुझते थककर इसकी खेती करना बंद कर
रहे हैं। प्रखण्ड के नीमी, अंबारी, पनहेसा, महबतपुर, ओनामा सहित दर्जनों
गांवों में किसान ईख की खेती करते थे तथा इससे मिटठा तैयार कर उसे बेचते
थे। पूर्व में किसान ईख की खेती करते थे और उनकी फसल वारसलीगंज चीनी मिल
मे बिक जाती थी और इसी से प्रेरित होकर अधिक से अधिक किसान ईख की खेती
करने लगे। कुछ दिनों के बाद जब चीनी मिल बंद हो गया तो किसानों ने ईख की
खेती का काम बंद नहीं किया और इसे जारी रखा। किसानों ने ईख की खेती को
बंद तो नहीं किया पर धीरे धीरे किसान ईख की खेती करना बंद कर रहें है
और जो किसान आज भी इसकी खेती कर रहे है उसे एक साल के हाड़ तोड़ मेहनत
के बाद भी कुछ नहीं मिलता है। वर्तमान में किसान ईख की फसल काट कर उससे
मिटठा बना रहे है। इस प्रक्रिया में किसान पहले ईख की फसल काट कर उससे रस
निकालने के लिए उसे खलीहान में लेकर जातें है जहां अब परंपरागत बैलों की
जगह डीजल से चलने बाले पेराई मशीन में अपनी ईख की पेराई कराते है जिसके
लिए किसान को एक मोटी रकम पेराई मशीन चलाने के लिए देनी पड़ती है। सरकार
के गलत नितीयों और महंगाई का असर यहां भी देखने को मिलता है। किसानों को
ईख की पेराई के एबज में एक मोटी रकम चुकानी पड़ती है। ईख की फसल उपजाने
के लिए किसान को एक साल पर मेहनत करनी पड़ती है। उसके बाद पेराई कर
प्राप्त रस को परंपरागत चुल्हे पर धीरे धीरे गर्म कर मिटठा मनाया जाता
है। बाजार में भले भी मिटठे की कीमत 35 रू0 प्रतिकिलो है पर किसानों के
यहां से व्यापारी 12 से 15 रू0 प्रतिकिलों खरीदतें है और वह भी उधार।
यहां भी मेहनत करने वाले किसानों के बजाय मोटी आमदनी व्यापारियों की होती
है। किसानों के लिए ईख की खेती करना एक मुिश्कल भरा काम है पर किसान तब
भी अपनी परंरागत खेती करते है। अपनी बदहाली बयां करते हुए किसान सरोज
सिंह ने बताया कि ईख की पैदाबार के लिए यह क्षेत्र प्रसिद्ध है पर अब यह
खत्म होने बाला है और इसका मुख्य कारण सरकार की उपेक्षा और
जनप्रतिनिधियों का इस ओर ध्यान नहीं देना है। उनके अनुसार यदि यहां फसल
की बिक्री की व्यवस्था कर दी जाए तो किसानों मे खुशहाली आ जाएगी पर किसी
के द्वारा इस ओर ध्यान नहीं दिया जाता है।
बहरहाल किसानों के इस समस्या को लेकर किसी भी जनप्रतिनिधियों के द्वारा
कोई पहल नहीं की जाती और किसान अपनी बदहाली पर आठ आठ आसूं बहाते रहतें
है।

मैं भला आदमी नहीं बनना चाहता

मैं भला आदमी नहीं बनना चाहता

मैं भला आदमी नहीं बनना चाहता।
समाज के विभ्रन्स आईने में
संवार कर अपना चेहरा,
तज कर अपना अस्तित्व
पहनना समाजिक मुखौटा,
मैं भला आदमी नहीं बनना चाहता।

मैं नहीं प्रस्तुत कर सकता
खुद को खुली किताब की तरह,
जिसमें है कई स्याह पन्ने
और कहीं कहीं धृणा
और दम्भ से लिखी गई इबारत।
मैं भला आदमी नहीं बनना चाहता।

मैं रोज सुबह उठकर
नहीं दे सकता बांग,
उनके बीच जो करना चाहतें हैं
मेरा जिबह।
काले लिबास मे लिपटे
समाजिक न्यायाधिशों के कठघरे में
साष्टांग लेट
मैं नहीं कर सकता जिरह।
मैं आदमी हूं
आदमी ही रहने दो भला मत बनाओ.

23 दिसंबर 2009

युवाओं को बदलकर ही समाज को बदला जा सकता है।

युवाओं को बदलकर ही समाज को बदला जा सकता है।
व्यक्ति परिष्कार कार्यशाला का आयोजन
शेखपुरा जिले के बरबीघा में अखिल विश्व गायत्री परिवार की युवा मंडलशाखा
के तत्वाधान में एक दिवसीय व्यक्तित्व परिष्कार कार्यशाला का आयोजन किया
गया। इस कार्यशाला का उद्घाटन दीप प्रज्जवलित कर प्रो0 रामान्नदन देव ने
किया।धन्यवाद ज्ञापन जिप सदस्या डा. किरण देवी ने किया। मंच संचालन युवा
मंडल के सदस्य कुणाल कुमार ने किया। इस अवसर पर राकेश चंद्र कश्यप,
श्रीराम राज, अभय,कंचन,रामलेश,दिपेश,प्रणव एवं रामनिवास सहित युवा मंडल
के अन्य सदस्यों ने सक्रिय सहयोग कर कार्यक्रम को सफल बनाया। कार्यक्रम
का अयोजन एसकेआर कॉलेज के सभा कक्ष में किया गया जिसे भव्य रूप से सजाया
गया था। इस अवसर पर मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए 'शांति कुंज
हरिद्वार के प्रतिनिधि मनीष कुमार ने कहा कि अच्छे साहित्य का अध्ययन और
ध्यान के माध्यम से युवा अपने लिए एक सशक्त मार्ग बना सकतें है। उन्होने
कहा कि बदलते समय के हिसाब से युवाओं को बदलना ही होगा नही तो उनकाके
प्रिश्चत करने का समय भी नहीं बचेगा। उन्होने परंपरागत धर्मिक अनुष्ठानों
पर कटाछ करते हुए कहा कि दुगाZ पाठ करने वाले लोग समझते है कि इससे उनका
पाप कट जाएगा जबकि स्वयं मां दुगाZ राक्षसी प्रवृतियों के संघारक है तो
भला वे कैसे किसी पाप को क्षमा कर सकतें है। निशान्त कुमार ने कहा कि जिस
प्रकार कोयले पर जमा राख उसकी लौ को समाप्त कर देता है उसी प्रकार युवाओं
का तेज समाप्त हो गया है। सुधाकान्त कुमार ने कहा कि ओसामा बिन लादेन और
अब्दुल कलाम दोनों ही इंजिनियर है और एक ने अपनी उर्जा का सकारात्कम
उपयोग किया और एक ने नाकारात्मक जिसकी वजह से एक वैज्ञानिक बने और एक
अतांकवादी। उन्होने कहा कि आज अंग्रेजियत की वजह से ही देश का विकास नहीं
हो रहा है। व्यक्तित्ववान युवा ही देश का विकास कर सकते है। समारोह में
बड़ी संख्या में युवक-युवतियां शामिल थी।

नरेगा में लाखों का घोटाला, मजदूरों के हस्ताक्षर के बिना ही निकाल लिए उनके मेहनत की कमाई।

नरेगा में लाखों का घोटाला, मजदूरों के हस्ताक्षर के बिना ही निकाल लिए
उनके मेहनत की कमाई।
नालान्दा जिले का मामला
जिले के मेहूस में स्थित डाकघर के सिंधौल गांव में तैनात 'शाखा के
संचालक के द्वारा लाखों की राशि पंचायत रोजगार सेवक को बिना मजदूर के
हस्ताक्षर और उनके भौतिक सत्यापन के बिना ही दे दिया। यह मामला तब सामने
आया जब दलित विकास समिति के बरबीघा स्थित 'शाखा मे दलित समुदाय के लोगों
ने फरीयाद किया। मजदूरों ने बताया ि कवे लोग नालान्दा जिले के सरमेरा
प्रखण्ड के गोवाचक गांव के निवासी है। वे लोग पिछले कई माह से पूर्व
नरेगा योजना के तहत पैन की खुदाई का काम उनलोगों ने किया था पर कई माह
बीत जाने के बाद भी उन लोगों को जब मजदूरी नहीं मिली तो वे लोग अपना
पासबुक सिंधौल गांव स्थित डाकघर में जाकर मांगने लगे इसके बाद डाकघर के
प्रभारी मथुरा सिंह ने बताया कि पासबुक पंचायत रोजगार सेवक प्रामोद
कुमार के पास है। जब हमलोगों के द्वारा पासबुक की मांग की गई तो उसने कई
जगह सादे पन्ने पर हस्ताक्षर करा लिया। कई माह के बाद जब उन लोगों को
पासबुक मिला तो उसमें जमा सारे रूपये निकाल लिया गया था। इस अवसर पर
मौजूद मजदूर उर्मिला देवी के पास बुक संख्या 995 से 3772, बीणा देवी
पासबुक संख्या 460 से 4539, मंजू देवी पासबुक संख्या से 4361,बीणा देवी
पासबुक संख्या 465 से 4461, सुरेश दास पासबुक संख्या 494 से 2661,
लक्ष्मीणीया देवी पासबुक संख्या 474 से 4539,पुतुल देवी पासबुक संख्या
467 से 4450 तथा आशा देवी पासबुक संख्या 461 से 3204 रू0 निकाल लिया गया
है। इस तरह की लिस्ट की संख्या सौ से अधिक हैे और सभी पासबुक से तीन
हजार के आस पास की राशि निकाल ली गई। मजदूरों के द्वारा जब अपने हक की
बात कही जाने लगी तो उसे जान से मारने की धमकी भी रोजगार सेवक के द्वारा
दिया जाने लगा। हार कर मजदूर बिहार दलित समिति के पास फरीयाद लेकर
पंहूचे। नरेगा से जुड़े इस मामले का सामने आना महल एक वानगी है हकीकत
यह है कि डाकघर के पदाधिकारी , मुखीया और रोजगार सेवक के सहयोग से
नरेगा की राशि को लूटा जा रहा है और इस बात को सभी जानते है पर सरकारी
काम मजह फाइलों पर सही हो तो मामला दब ही जाता है।

20 दिसंबर 2009

प्रोजेरिया बीमारी से ग्रसित ब्यूटी की हत्या करना चाहतें है उसके पिता.

प्रोजेरिया बीमारी से ग्रसित ब्यूटी की हत्या करना चाहतें है उसके पिता
मां की ममता ने उसे बचाया
तिल तिल कर मौत के  करीब जा रही है ब्यंटी
फिल्म पा की कहानी सभी को अच्छी लगी होगी और उसमें  अमिताभ बच्चन के रौल
की लोग सराहना भी कर रहें है । इस फिल्म में अमिताभ ने ऑरो नामक बच्चे का
रौल निभाया है जो कि प्रोजेरिया नामक बीमारी से ग्रसित है। प्रोजरिया
बीमारी से ग्रसित बच्चे पर आधारित फिल्म को भले ही सराहना मिल रही हो पर
इस तरह के बच्चों की जिन्दगी आम परिवारों में क्या होती है यह देखने को
मिल रहा है शेखपुरा जिले के बरबीघा थाना क्षेत्र के कजीचक गांव में। यहां
भी इस बिमारी से ग्रसीत एक बच्ची है पर उसके पिता ही उसकी हत्या करना
चाहतें और जब उसकी मां ने उसे बचाने का प्रयास किया तो उसे बेटी के साथ
ही घर से निकाल दिया गया। संयोगिता फिलहाल अपने पिता के घर में रह रही
है। संयोगिता की शादी जमुई जिले के अलीगंज थाना क्षेत्र नोनी गांव निवासी
जयराम प्रसाद के पुत्र रामानुग्रह प्रसाद के साथ 1999 में हुई थी।
रामानुग्रह प्रसाद सीआईएसएफ में नौकरी करता है। शादी के बाद संयोगिता ने
एक बेटी को जन्म दिया तब लोगों ने खुशियां मनाई पर जब कुछ दिनों के बाद
पता चला के बेटी मानसीक रूप से विकलांग है तो परिजनों में शोक का लहर
दौर गया। एक तो बेटी उपर से मानसीक रूप से विकलांग भला इससे शादी कौन
करेगा। इसी को लेकर संंयोगिता के ससुर और उसके पति के द्वारा ब्यूटी की
हत्या का प्रोग्रम बनाया गया पर संयोगिता के द्वारा जब इसका विरोध किया
गया तो उसके साथ मारपीट की गई और उसे घर से भगा दिया गया। संयोगिता ने
बताया कि उसके परिजन पहले ब्यूटी के ईलाज के लिए काफी प्रयास किया जिसके
तहत बाबा रामदेव के यहां भी करीब दो साल तक इसका ईलाज कराया गया पर सुधार
नहीं होने पर इससे छुटकारे की बात मन में उठी जिसका विरोध उसके द्वारा
किए जाने के बाद उसे भी घर से भगा दिया गया। संयोगिता की माने तो 13 साल
की ब्यूटी कुछ खाना नहीं खाती है और वह  सिर्फ दूध पीकर ही जिन्दा रह रही
है। उसकी मां के अनुसार ब्यूटी आज रूपये के  आभाव की वजह से सही भोजन
नहीं मिलने और उचित दवाई नहीं मिलने के कारण धीरे धीरे मौत के करीब जा
रही और वह चाह कर भी इसे नहीं  बचा पा रही है। उसने बताया कि उसके पिता
के पास इतने अधिक पैसे नहीं है कि ब्यूटी का  ईलाज और इसका भरपूर भोजन
दिया जा सके जिसकी वजह से वह मौत के करीब जा रही है। अपनी ``ऑरो´´ बेटी
को बचाने के लिए संधर्ष कर रही  मां आज लोगों से अपने बेटी को बचाने की
गुहार कर रही है देखना है कि उसकी गुहार कहां तक  असर लाती है।

19 दिसंबर 2009

....और एक माह के शिशू को छोड़ कैद में है मां´

.....और एक माह के शिशू को छोड़ कैद में है मां´
पुलिस नहीं दर्ज कर रहा मामला
एक माह के शिशू के बगैर उसके मां को कैद में रखा गया है। यह मामला बरबीधा
थाना क्षेत्र के सामाचक मोहल्ले का है। मामला कुछ यूं है कि पटना सीटी
मोहल्ले के डमरीयाही घाट निवासी विजय यादव की पुत्री संगीता कुमारी उर्फ
जहन्नवी ने बरबीघा के सामाचाक निवासी महेश प्रसाद के पुत्र आर्दश राज से
माता पिता के मर्जी के बगैर प्रेम विवाह रचा लिया। इस प्रेम विवाह के बाद
दोनो प्रेमी-प्रेमिका पति पत्नी के रूप में दो साल से रह रहे है। दोनो
के विवाह की खबर जब परिजनों को लगी तो उनके द्वारा दोनेां को अलग करने की
काफी कोशिश की गई पर लड़की के राजी खुशी से शादी करने की बात जान कर
लोगों की एक न चली और वे थक कर घर बैठ गए। इस बीच संगीता कुमारी पिछले
माह एक लड़के को जन्म दिया और इसकी सूचना संंगीता के द्वारा अपने मां को
दी गई। अपनी बेटी के मां बनने की खबर के बाद संगीता के माता पिता मोबाइल
के द्वारा संपर्क करने लगे और यह सिलसिला चल निकला। मामले में पेचिदगी तब
आई जब संगीता के पिता 30 नवम्बर को अपने एक परिजन के श्राद्ध कार्यक्रर्म
में भाग लेने अपनी बेटी को एक दिन के लिए मायके ले जाने आ गए। एक दिन की
बात सोच संगीता भी अपने बच्चे को छोड़ यह सोच कर चली गई की शाम में जा
रहे है सुबह आ जाएगे पर घटना के चार दिन बीत जाने के बाद आज तक संगीता को
यहां नहीं आने दिया जा रहा है। इस संबंध में जब आर्दश राज के द्वारा अपने
ससुर से संपर्क किया गया तो उन्होने संगीता को भूल जाने की बात कही नहीं
तो जान से मारने धमकी दी या झुठे मुकदमे में फसाने की बात कही। यह सब जान
का आदशZ राज अपने दुधमुंहे बच्चे को पालने की कोशिश कर मिडिया से
फरीयाद कर रहे है कि किसी तरह इस दुधमुंहे बच्चे को इसकी मां मिल जाए।
आदशZ ने बताया कि इस बीच संगीता ने चोरी से एक दिन मोबाईल से संपर्क कि
तथा बताया कि उसे एक कमरे में बंद रखा गया और अब बरबीघा नहीं जाने देने
की बात कही जा रही है। उधर इस मामले को लेकर जब आदशZ राज जब बरबीघा
पुलिस के पास गया तो मामला दर्ज करने के बजाया उसे दत्कार कर भगा दिया
गया।
इस पूरे प्रकरण में दुधमूंहें बच्चे की जिन्दगी दांव पर लगी हुई है तथा
वह पिछले चौबीस घंटे से दूध भी नहीं पिया है। दुधमूंहा शिशू अपने नाना से
अपनी मां को आजाद करने की गुहार लगाता हुआ रो रहा है अब देखना होगा की
उसकी यह फरीयाद रंग लाती है या नहीं!

18 दिसंबर 2009

कहानी फ्राइडे पढ़ने के बाद,

आदरणीय अजीत जी
प्रमुख न्यूज 24
उनकी कहानी फ्राइडे पढ़ने के बाद,
सादर प्रणाम
बिहार के शेखपुरा जिला के बरबीघा प्रखण्ड से यह पत्र मैं आपको लिख रहा  है। लिखने का खास कारण यह कि पटना पुस्तक मेला से ``वक्त है एक ब्रेक का´´ नामक पुस्तक को खरीदा। पुस्तक को खरीदने का मुख्य कारण मिडिया से मेरा जुड़ाव ही था। मैं शेखपुरा जिला से साधना न्यूज के लिए स्टींगर का काम करता हूं साथ ही अखबारों में समाचार प्रेषण से जुड़ा हूं। ईमेल से यह पत्र भेजना चाहता था पर मेल पता गलत था सो नहीं जा सका। आपके न्यूज 24 चैनल का नियमित दशक हूं। पुस्तक में आपकी कहानी फ्राइडे पढ़ी। पढ़ कर खुशी भी हुई और दुख भी। खुशी यह जानकर की रेलमपेल की जिंदगी में भी अपनी भावनाअो को उकरने में आपने ईमानदारी दिखाई है और एक यथार्थ को सामने लाया है, दुख यह जानकर की ड्रग्स एडिक्ट पत्रकारिता के लिए कोई ड्रोप टेस्ट आज नहीं है। दुख इस बात का भी कि सबकुछ जानकर भी आज हम भीष्म पितामह की भूमिका में आ गए है। किसी को पाण्डव बनना होगा। इस व्यथा पर ही शायद दिनकर जी ने लिखा होगा समर शेष है नहीं पाप का भागी केवल व्यध्र, जो तटस्थ है समय लिखेगा उसका भी अपराध! आज दिल्ली से दूर छेटे से कस्बे मेंभी पत्रकारिता को लेकर यही मारकाट है। जैसे तैसे लोग पत्रकार बन कर उगाही करने का काम कर रहें है। पत्रकारिता का कोई आदश हमारे सामने नहीं? जन सारोकार आपके चैनलों पर भी नजर नहीं आता दोषी कौन।
बस इतना ही
प्रणाम
अरूण साथी

faimly of sanjar

दुबई में फंसा बिहार का युवक

दुबई में फंसा बिहार का युवक
गया था कमाने अब दफनाना पड़ रहा है शव
परेदश जाकर कमाने का सपना लिए जब कोई घर से बाहर निकलता है तो वह सोंच भी
नहीं सकता है कि वह एक जाल में फंसकर जिन्दगी की दुआ मांगता फिरेगा।
शेखपुरा जिले के बरबीघा थाना क्षेत्र के फैजाबाद मोहल्ले के निवासी पप्पु
उर्फ संजर हसन ने परिवार की खुशी के लिए परेदश जाने का सपना देखा और इसी
को पूरा करने के लिए रात दिन एक कर जुट गया। अंजर और उसकी अम्मी के आंखों
में अपने टुटे फुटे घर की खुशहाली का सपना था जो उसके परोस के कई घरों
में साकार हो चुका था। अंजार ने अपनी बेरोजगारी मिटाने और घर में खुशहाली
लाने के लिए दुबई जाने का फैसला किया और इसके लिए उसके परिजनों ने जैसे
तैसे 70000 रू0 कर्ज लेकर जुटाया और वह झारखण्ड राज्य के घनबाद के
पाथरडीह स्थित एक दलाल के हाथों में जाकर दे दिया। दुबई जाने के लिए अंजर
ने इलेक्टीसीयन का प्रशिक्षण भी लिया और फिर दुबई जाने के लिए जुट गया।
दलाल ने अंजर को दुबई में इलेक्टीशियन में हेल्पर का काम दिलाने का बादा
किया और यही सपना लिए अंजर ईद के बाद दुबई चला गया। दुबई जाने के बाद
अंजर को पता लगा कि जैसे तैसे पैसा इक्क्ठा कर वह परदेश तो आ गया पर यहां
उसका कोई सपना साकार होने वाला नहीं है। अंजर को पहले तो कुछ दिन एक
मिस्जद में काम लगा दिया गया जहां उसे ईमामों की सेवा करने के काम में
दिया गया पर कुछ ही दिनों के बाद अंजर को एक अस्पताल में लगा दिया गया
जहां उसे अस्पताल की सफाई से लेकर शौचालय की सफाई तक काम थमा दिया गया।
हद तो तब हो गई जब अंजर से मृतकों के दफनाने के काम को करने के लिए कहा
गया और उसे कब्रिस्तान में काम दिया गया। इस काम को करने के लिए कहे जाने
के बाद अंजर का सपना चकनाचूर हो गया और वह फूटफूट फूटफूट कर रोते हुए
अपने घर पर फोन कर अपनी अम्मी को सारी जानकारी दी और वहां से आना चाहा पर
अंजर तो वहां फंस चुका था और उसका पासपोर्ट भी जब्त कर लिया गया था। जब
अंजर ने फोन कर अपने परिजनों को बताया कि उसके रहने और खाने की कोई
व्यवस्था नहीं है और वह फुटपाथ पर सोता है तो उसकी अम्मी अपने बेटे को घर
वापस आने के दिशा में पहल करने लगी पर वहां से आने के लिए टिकट की
व्यवस्था करने के लिए पैसे नहीं थे जो भी था वहां बेटे को विदेश भेजने
में खर्च कर दिया गया।
अब अंजर की मां अपने बेटे को विदेश से घर वापस लाने के लिए मोहल्ले के
लोगों से गुहार लगा रही है और हार कर मोहल्ले के लोगों ने भी चंदा कर
अंजर के लिए एयरोप्लेन का टिकट खरीदने की पहल की है पर वह अभी काफी नहीं
हो रहा है इसलिए अंजर की मां मिडिया के माध्यम से अपने बेटे को वापस लाने
की गुहार लगा रही है अब देखना होगा कि इसपर कितनी पहल होगी।

16 नवंबर 2009

मीडिया के पास ख़बर नही!

मीडिया के पास ख़बर की कमी है। आज मीडिया ख़बर कम बकवास जयादा दिखा रही है। टीआरपी के खेल मे समाचार चैनल लोगों से कटता जा रहा है। आज जब भी समाचार के लिए चैनल खोलता हूँ तो कभी दाती महाराज की बकवास भरी चुटकुले आ रहा होता है अथवा बिग बॉस की नौटंकी। चैनल देखने का मन अब नहीं करता और इसका कारण चैनलों का चिल्लाना भी है। चैनलों का chillahat ही है की समाचार देखने के लिए घंटों इंतजार करने के बाद भी कोए समाचार हाथ नही लगता । कभी पाकिस्तान की खबर तो कभी नकली नोट का। आम आदमी की ख़बर अब चैनलवाले चलाना पसंद नही करते या फ़िर पत्रकार ऐसी ख़बर बनते नहीं। देश की राजधानी में ही कई बरी ख़बर है पर उसकी तरफ़ से मुहं मोर कर हम चल देतें है। चैनल पर परेम टाइम मे बरी ख़बर आती है पर उसमें भी आम आदमी नजर कम ही आता है।

13 नवंबर 2009

कोरा और राज के लिए कांग्रेस को सजा हो.

राज ठाकरे और मधु कोरा कांग्रेस की देन है। कांग्रेस की इस गलती की उसे सजा मिलनी चाहिए। कोरा और राज के पास खोने के लिए कुछ नही है। यदि किसी को लूटने और मारने की छूट हो तो वह वही काम करेगा और दोनों को सरकार ने यह छूट दी है। दोनों घटना साबित करती है की देश नेताओं के लिए कुछ नही, सत्ता के लिए कुछ भी करेगें। राज प्रकरण पर मिडिया को थोरा सावधान रहना चाहिय। राज प्रचार चाहता है और मीडिया वह दे रही है। कोरा प्रकरण पर भी मिडिया कटघरे मे है। जब कोरा लूट रहे थे तो मिडिया भी सहभागी था। मिडिया को भी करोरों का ऐड मील रहा था और फ़िर मिडिया जो आज चिल्ला रही है पहले कहाँ थी जब लूट हो रहा था यानी इस हमाम मे हम सभी नंगे है.

10 नवंबर 2009

प्रभास जोशी नही रहे !

पत्रकारिता जगत के एक ऐसे स्तम्भ का चला जाना निश्चित ही दुखद है जिन्होंने आदर्शो को अपने साथ जिया। प्रभास जोशी का जाना वैसा ही है जैसा की घनघोर अंधेरे मे टिमटिमाते एक दीया का बुझ जाना। पत्रकारों के लिए प्रभास जी प्रकाश पुंज की तरह थे जिसे टिमटिमाता देख बादशाह के द्वारा कराके की सर्दी में मौत की सजा पाने वाले का रात भर तलाव में गुजारना।प्रभास जी को दूर दिल्ली में ही नहीं बिहार के एक कस्बाई नगर बरबीघा मे भी शिददत से याद किया जा रहा है। प्रभास जी को याद करते हुए शेखपुरा जिला के बरबीघा में स्थित नवजीवन अशोक पुस्तकालय विमर्श गोष्टी का आयोजन किया गया जिसमे स्थानिये पत्रकारों के अलावा बारी संख्या बुद्हीजिबी मौजूद थे। गोष्टी में प्रभास जी के द्वारा मिडिया के बाजारीकरण का बिरोध किए जाने का मुद्दा बोलते रहा। खास कर प्रभास जी का बेबाकीपन और साहस की चर्चा करते हुआ डॉ नागेश्वर ने कहा की जोशी को aadarsh मन यदि पत्रकारिता किया जे तो देश के आगे कोई समस्या नही रहेगी।




08 जून 2009

पत्रकार का पतन

पत्रकार समाज का प्रहरी होता है। क्या यह सच है। बहुत हद तक लोग ऐसा ही समझते है पर सच्चाई इस से इतर है। आज का पत्रकार समाज का आइना नही बल्की ब्यापारी हो गया है। आज पत्रकार सुबह उठकर समाचार नही खोजता बल्की रुपया खोजता है। पत्रकारों का पतन आज चरम पर है एसा मैं चीढ़ कर नही कह रहा । मैं देख कर कह रहा हूँ। समाचार आज सच कम ग़लत अधिक होता है। पैसे लेकर समाचार बनने का आज दौर है। ऐसे दौर me चौथे kambhe को कौन bachayega।

13 अप्रैल 2009

मिडिया का बाजार और बिकते पत्रकार
दस साल से मिडिया जगत से जुरे होने पर आज से पहले गौरव मह्सुश करता था पर आज मुझे शर्म आ रही है की मई एक पत्रकार हूँ। आए भी कौण नही? पहली बार पता लगा की समाचार बिक गया है। एक बैठक कर प्रबंधक हमेई सुचना देतें हे की आपको चुनाव का कवरेज़ नहीं करना है। आब कोए भी चुनावी समाचार छपने के पैसे लगेगे। एकबारगी तो बिश्वाश ही निही हुआ पर यह सच था। हम जिश अख़बार के लिए कम करते थे वह ही नही वाकी सभी अखवार भी बीक गया है। मैं बिहार के शेखपुरा जिले से राष्ट्रीय सहारा मे रिपोर्टिग करता हूँ। जब यह बात हमने अपने मित्र और दैनिक जागरण के रेपोतेर को बताई तो उन्हें विश्वाश ही नही हुआ पर जब उनके अख़बार ने भी यह सुचना दी तो हम सभी सकते मे रह गयी। सच पुछीये तो रुलाई आ गयी। आज से पहले हम लोग ख़ुद को समाज का पहरेदार बताते थे समाचार पर लोग भरोसा करते थे पर आज, भरोषा तो लोग आज भी कर रहे है पर उनके साथ कथित चौथा स्तम्भ धोखा कट रहा है। जो समाचार लोग पढ़ रहे है वह एक झूठ है अख़बार का समाचार बिक गया है। रुपया देकर कोए नेता कुछ भी छापा सकता है। जय हो एस देश का जिसे दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र माना जाता है और उष लोकतंत्र में इसके बिरुद्ध बोलने बाला कोए नही। एक मात्र परभात ख़बर मे एस्कोलेकर ख़बर छपी थी बाकी किसे ने बिरोध नही किया सभी पत्रकार जो सच के लिए संगर्ष कर रहे थे आज आहात है। आप और हम इसका बिरोध करें आवाज उठाएं चाहे तरीका कोए भी हो.जय हिंद.