28 मार्च 2010

साईकिल ने भरी लड़कियों में नई जान कई अभिभावक 50 रू0 में खरीद रहे साईकिल



मुख्यमन्त्री नीतीश कुमार के बिहार के विकास के साथ साथ इसके उत्थान को लेकर उनके द्वारा उठाए गए कदमों की जब भी कहीं चर्चा होती है तो उसमें मुख्यमन्त्री कन्या साईकिल योजना का स्थान सर्वोपरी रहता है। मुख्यमन्त्री कन्या साईकिल योजना लड़कियों के लिए महज स्कूल जाने की सुविधा का नाम नहीं रह कर यह छात्राओं में एक नई उर्जा और अत्मसम्मान की योजना बन गई है। अहले सुबह अब छात्राऐं साईकिल को साफ कर विद्यालय के लिए निकलती है और ट्यूशन भी जाती है। खास बात यह कि पांच किलोमिटर दूर गांव में जहां आज से पहले छात्राऐं महज मध्य विद्यालय तक ही पढ़ाई कर पाती थी वहीं आज साईकिल पर सवार होेकर बरबीघा के विभिन्न उच्च विद्यालयों में पढ़ाई के लिए जाती है। साईकिल योजना का लाभ इतना कि अब शाम या फिर सुबह गांव की सड़कों पर मोटरसाईकिल सवार से लेकर अन्य वाहन चालक साईकिल सिखती छात्राओं से सावधान रह कर वाहन चलातें हैं।
साईकिल चलाने को लेकर छात्राओं में भी खासा उत्साह है। तभी तो छात्रा पिंकी की माने तो साईकिल की वजह से अब उसे ट्यूशन तथा स्कूल जाने में परेशानी नहीं होती है और उसके परीक्षा की तैयारी भी अच्छी हो रही है। विभा कुमारी की माने तो साईकिल ने उसके अन्दर एक उत्साह का संचार किया है और पहले पिताजी घर से स्कूल दूर होने की वजह से पढ़ाई जारी नहीं रखने की बात कहते थे पर जब से साईकिल योजना  आई है वह अपने ग्राम तोयगढ़ जिसकी दूर उच्च विद्यालय बरबीघा से पांच किलोमिटर है प्रतिदिन स्कूल आती है तथा सुबह ट्यूशन भी जाती है। छात्राओं को इसको लेकर खासा उत्साह भी है छात्राओं के उत्साह की ही वानगी है कि अब वह अपने भाई से उसकी साईकिल छूने पर झगड़ परती है। वह अत्माविश्वास से कहती है कि साईकिल उसकी है और बिगड़ जाएगी तो दिक्कत होगी।
हलांकि साईकिल योजना को लेकर कई अभिभावको में उत्साह की कमी ही नहीं लापरवाही भी देखी जा रही है तथा अभिभावकों के द्वारा छात्राओं को साईकिल खरीदकर नहीं दिया गया है और उसके बदले महज पच्चास रू0 देकर साईकिल दुकान से कैशमेमो बना कर विद्यालय में जमा करा दिया गया है। छात्राऐं साईकिल खरीदना भी चाहती है पर  अभिभावक साईकिल योजना की 2000 रू0 को अपने व्यक्तिगत कामों में उपयोग कर रहें है। जब इस संबध्ंा में उच्च विद्यालय के प्रधानाध्यपाकों से बात की गई तो उन्होने बताया कि प्रत्येक छात्रा की साईकिल जांच करना सम्भव नहीं है और जिसने कैशमेमो जमा दे दिया माना जाता है कि साईकिल खरीद ली।
विदित हो कि साईकिल योजना के लिए सरकार की ओर से 2000 की राशि का  आवंटन किया गया है तथा साईकिल खरीद करने के लिए अभिभावकों को 300 से 1000 तक की राशि अपना लगाना पड़ता है इसी वजह से कई अभिभावक साईकिल नहीं खरीद रहें है।
साईकिल योजना का एक पहलू यह भी है कि छात्राओं को साईकिल खरीदने के लिए राशि तो दे दी गई है पर संचालन के लिए के लिए कोई दिशा-निर्देश नहीं दिया गया है जिसकी वजह से छात्राओं को ट्रॉफिक  नियमों की जानकारी नहीं होने पर दुर्धटनाऐं होती रहती है।

27 मार्च 2010

बिहार सरकार ने प्रथम मुख्यमन्त्री को किया उपेक्षित. हमारे पुरखे हमारे गौरव (बिहार सरकार के विज्ञापन) में बिहार के प्रथम मुख्यमन्त्री का कहीं जिक्र नहीं। विपक्ष से लेकर सत्ता पक्ष सभी खामोश। श्रीबाबू कें गांव में है निराशा.



बिहार कें प्रथम मुख्यमन्त्री डा. श्रीकृष्ण सिंह, जिन्हें बिहार के स्विर्णम निर्माण और  स्वतन्त्रता आन्दोलन में किए गए कार्यो के लिए बिहार केसारी के नाम से नवाजा गया आज उसी बिहार केसरी का नाम बिहार के निर्माण में किए गए योगदान में कहीं स्थान नहीं दिया गया। जी हां बिहार सरकार के द्वारा बिहार दिवस पर जारी किए गए विज्ञापन हमारे पुरखे हमारे गौरव में बिहार के प्रथम मुख्यमन्त्री की तस्वीर तो नहीं ही प्रकाशित की गई न ही कहीं उनका नाम ही दिया गया। बिहार केसरी के नाम से जाने जाने वाले तथा जिन्हें लोग प्यार से श्रीबाबू कहते है उनके पैतृक गांव शेखपुरा जिले के बरबीघा प्रखण्ड माउर के लोग बिहार सरकार के द्वारा इस प्रकार की उपेक्षा को लेकर काफी मर्माहत है। खास कर उनके साथ कई आन्दोलन में सक्रीय योगदान करने  करने वाले तथा उनके ग्रामीण चन्द्रीका सिंह भी इसे सरकार के द्वारा जानबुझ कर श्रीबाबू की उपेक्षा मानते है। विज्ञापन में तिलकामांझी, सर गणेश, दरोग प्रसार राय, भोल पासवान शास्त्री सहित अनेकों नामों को स्थान दिया गया और जिन्हें बिहार का गौरव माना गया पर बिहार के प्रथम मुख्यमन्त्री का नाम इसमें नहीं दिया गया है। विदित हो कि बिहार के नवनिर्माण में श्रीबाबू का नाम स्वर्णाक्षरों से लिखा हुआ है और बिहारकेसरी की जयन्ती पर नेता श्रीबाबू के विकास के मार्ग पर चलने के कसमें भी खातें है पर आज बिहार के गौरव में श्रीबाबू का नाम नहीं देकर उनको उपेक्षित करने का एक साजिश ही की है।
दूसरी तरफ इसे राजनीति से प्रेरित कदम भी बताया जा रहा है। श्रीबाबू सवर्ण समुदाय से आतें है और आज की राजनीति जिस रास्ते जा रही है उसमें महापुरूषों को भी जाति से जोड़ कर देखा जा रहा है और श्रीबाबू की उपेक्षा सरकार के इसी नज़रिये का परिचायक भी माना जा रहा है जबकि श्रीबाबू ताउर्म जाति तोड़ों के नारों को अपने साथ जीया और उस जमाने में जब छूआ छूत चरम पर था और दलितों का मन्दिर में प्रवेश निषेध था श्रीबाबू ने दलितों कें साथ देवघर मन्दिर में प्रवेश कर जाति बंधन को तोड़ने की मिशाल कायम की आज श्रीबाबू को जाति से जोड़ा जाना सचमुच दुखद है।

26 मार्च 2010

मां के कथित डायन होने विरोध में बेटे की हत्या' इंट से चूर चूर कर की गई हत्या



मां के कथित डायन होने का खामीयाजा उसके बेटे को अपनी जान चुका कर देनी पड़ी और इस मामले में एक युवक की हत्या आज इंZट से उसके सर को चुर कर कर दिया गया। युवक की पहचान नालान्दा जिले के सिंधौल निवासी युगेश्वर मिस्त्री के रूप में किया गया।

युवक की हत्या बरबीघा कें सिण्डाय गांव कें खंधे में की गई तथा  शव को घटनास्थल पर ही फेंक दिया गया। इस संबध्ंा में मृतक युवक केंं परिजनों कें द्वारा दर्ज करायी गई प्राथमिकी कें अनुसार नालान्दा जिले के संधौल गांव निवासी मल्लू मिस्त्री कें पुत्र की मृत्यु बिमारी की वजह से दो साल पहले हो गई थी तथा इसको लेकर मललू मिस्त्री कें द्वारा मृतक युगेश्वर मिस्त्री की मां को डायन बताकर जिम्मेवार ठहराया जा रहा था तथा उसके पुत्र के हत्या कर देने की बात लगातार कही जा रही थी और इसी को लेकर गत 24 मार्च को मृतक युवक अपने गांव गया था तथा उसकी अपने पड़ोसी से झड़प भी हो गई थी। इस मामले में मललू मिस्त्री, जगेशर राम एवं गिरानी को सहित अन्य को नामजद किया गया है।

युवक घटनास्थल से थोड़ी ही दूर पर स्थित एक किराये के मकान में सपरिवार में रहता था। हत्या की खबर फैलते ही लोगों में सनसनी फैल गई है। बताया जाता है युवक घर के बगल में ही हो रहे यज्ञ देखने के लिए घर से निकला था तथा रात में घर नहीं लौटा। युवक की हत्या सर के पीछे ईंट से हमला करने से हुई है। धटनास्थल पर इंट भी मौजूद है तथा अत्यधिक खून बहा हुआ है। घटना की खबर मिलने के बाद भी मीशन ओपी पुलिस कई घंटों तक घटनास्थल पर नहीं पहूंची जबकि घटनास्थल से पुलिस चौकी की दूरी मजह कुछ ही फलांग है। जबकि धंटो युवक कें परिजन जार जार कर शव से लिपट कर रोते रहे।

बात चाहे जो हो पर आधुनिकता के इस युग में आज भी लोग अंधविश्वास में डूब कर मनुष्य की विभत्स हत्या कर देते है।

कुछ नहीं हो सकता

कुछ नहीं हो सकता
इस मुर्दों के शहर में
यहां पे बसते है
निर्जीव आदमी
चलता-फिरता
हार-मांस का।

1974 से किए गए
प्रयासों के बाद
थक कर
कहतें हैं वे
शायद ठीक भी कहतें हैं
तो क्या हुआ
मैं भी इसी शहर का हूं
और मैं मुर्दों में शामील नहीं होना चाहता.....

25 मार्च 2010

नेताओ ने फिर गन्दगी उगली.

नताओं को गन्दगी उगलने की आदत सी हो गई है और इस प्रक्रिया में वे सतत एक दूसरे से आगे जाने की होड़ में ऐसी गन्दगी उगलते है जिससे ज्यादा से ज्यादा बदबू हो। इसी होड़ में महाराष्ट्र के मुख्यमन्त्री अशोक कुमार चौहान ने ऐसी बदबू उगली है जिसकी बदबू सारी दुनिया में फैल गई। अशोक चौहान ने कहा कि उनके सरकारी कार्यक्रम में अमिताभ बच्चन बिन बुलाए मेहमान थे। चौहान जी ने अपना काम कर दिया और बदबू फैल गई पर अफसोस कि यह बदबू ऐसे महान इंसान को लेकर है जिनका सम्मान पुरी दुनिया करती है। ऐसे इंसान को लेकर गन्दगी उगली है जिनको लोग भगवान की तरह पूजतें है। अमिताभ बच्चन को महज इसलिए अपमानित करना कि उन्होने गुजरात के मुख्यमन्त्री नगेन्द्र मोदी के गुजरात का ब्राण्ड एम्बेस्टर बनने का काम किया बहुत ही दुखद है। भवानाओं को अपमानित करने का काम कांग्रेस सदा करती आई है पर अमिताभ को गुजरात को लेकर अपमानित करना कहां तक उचित है। अमिताभ बच्चन को अपमानित करने का यह काम कांंग्रेस के मुख्यमन्त्री के द्वारा किया जा रहा है जबकि अमिताभ ने कहा है कि उन्हें सरकार के एक मन्त्री ने बुलाया था। आखिर इस तरह हंगामा क्यों हो। क्या कांग्रेसी अमिताभ के द्वारा प्रचारित बस्तुओं का सेवन नहीं करते। या अमिताभ बच्चन जब उनके साथ थे तो बहुत अच्छे थे और आज बुरे हो गए। लगता है कांग्रेस  भी राज ठाकरे और बाल ठाकरे  की राह पर चल पड़ी है। कांग्रेस की इस गतिविधि से यह भी लगता है कि सोनिया गांधी को खुश करने के लिए कांग्रेसी अतिथि देवों भव: की परंपरा को  भुल कर सोनिया की पिश्चमी सभ्यता को  अपना रहे है।
मेरा मानना है कि अमिताभ बच्चन उस गुजरात का प्रतिनिधित्व कर रहे है जिसकी पहचान विकास है। अमिताभ बच्चन उस गुजरात का प्रतिनिधित्व कर रहें है जिसकी संस्कृति का लोहा पूरी दुनिया मानती है।

तो बदबू उगलने वालों अपना घर तो बचा कर रखो।

दोस्त

गिराकर किसी को
पहूंचना कहीं
नहीं चाहता हूं मैं।

मंजिल पर पहूंचकर भी तो
होता रहेगा हमेशा
उसके दर्द का एहसास...

मुबारक हो तुम्हें
तुम्हारी मंजिल।

मैं गिर भी जाउं तो क्या
दर्द का एहसास तो
तुम्हें ही होगा
मेरे दोस्त
मेरे गिरने का....

19 मार्च 2010

17 मार्च 2010

आज भी गांधी ज़िन्दा है...............



अभावों के बावजूद खेतों में अन्न उपजाते किसान के इस रूप को गांधी नहीं कहेगें क्या.....

कटिहार के एक गांव में गर्मा धान की खेत में खर-पतवार की निकाई करने के क्रम ली गई तस्वीर देश के रहनुमाओं से शायद  कह रही  कुछ...

एक तर्जे-तगाफुल है सो वो उनको मुबारक।
एक अर्जे-तमन्ना है सो हम करते रहेंगें।।
फैज अहमद फैज.

16 मार्च 2010

शेखपुरा-अन्तर्राष्ट्रीय स्तर तक खयाति प्राप्त शय्यद शाह हुसेन की मजार पर उर्स मेले का आयोजन किया गया। इस मेले में बंगलादेश, उड़ीसा, पिश्चम बंगाल एवं झारखण्ड सहित देश के कई राज्यों से आए हुए श्रद्धालूओं ने चादर चढ़ाई और मन्नतें मांगी। शाह हुसैन की यह 132वां उर्स था जिसको लेकर बड़ी संख्या में श्राद्धालू जिले के पिण्डशरीफ स्थित मजार पर चदार पोशी की तथा सलामति की दुआऐं मांगी। इसकी जानकारी देते हुए मजार के गददीनशीं रिजवानूल हुदा ने कहा कि दशकों से इस मजार पर चादर चढ़ाने के लोग आते है और लोगों की मान्नयता है कि यहां पर चादर चढ़ने से उनकी मन्नतें पुरी होती है।

15 मार्च 2010

मध्याह्न भोजन में मैला मिलने से बबाल, बच्चों ने किया स्कूल का वहिष्कार खबर के बाद भी नहीं आये पदाधिकारी



शेखपुरा-बिहार
मध्याह्न भोजन योजना किस तरह बच्चों के लिए जी का जंजाल बनता जा रहा है इसका एक और नजारा देखने को मिला बरबीघा प्रखण्ड के मकनपुर डीह प्राथमिक विधालय में। विधालय में बच्चों के लिए बनाए जा रहे भोजन में मैला मिलने के बाद हंगामा खड़ा हो गया और बच्चों ने विधालय का ही बहिष्कार कर दिया और अब बच्चों के अभिभावक बच्चों को स्कूल जाने देना नहीं चाह रहे। इस सम्बंध में रसोईया मन्ती देवी ने बताया कि मध्याह्न भोजन के दाल में मैला मिलने की बात जब प्रभारी प्रधानाध्यापीका आशा रानी को बताया गया तो उनके द्वारा इसपर कोई पहल नहीं ली गई और बच्चों को वही खाना खाने के लिए दिये जाने की बात रसोईया से कही गई। खाने में मैला होने की बात जब बच्चों के कानों तक गई तो उनके द्वारा खाना खाने से  इंकार कर दिया गया और सभी बच्चे विद्यालय से भाग खड़े हुए और अब ये बच्चे विद्यालय नहीं आना चाहते। खाना में मैला होने की बात स्वीकार करते हुए रसोईया ने बताया कि उसके बाद जब खाना किसी बच्चों ने नहीं खाया तो खाने को फेंक दिया गया और  जैसे ही  इसकी भनक ग्रामीणों को लगी तो उनके द्वारा हंगामा किया जाना लगा। इसको लेकर अपना रोष जताते हुए दयानन्द चौधरी कहते है कि विद्यालय में खाना खिलाने को लेकर व्यापक गड़बड़ी है और कभी बच्चों को सही भोजन नहीं दिया जाता है और जब मैला युक्त भोजन बच्चों को खिलाने की बात प्रधानाध्यापिका कह सकती है तो फिर जहर मिला खाना खिलाने में उन्हें क्या परहेज होगा। पूर्व शिक्षा समिति अध्यक्ष दयानन्द चौधरी ने कहा कि इस विद्यालय में ज्यादतार बच्चे महादलित समुदाय के है इसलिए जानबुझ कर उनके साथ भेद भाव किया जाता है। इस अवसर पर छात्र गणेश कुमार, अमरेद्र कुमार ने बताया कि जब उन्हें खाने में मैला होने की भनक लगी तो वे विद्यालय से भाग गए। खाने में मैला होने की खबर भी तत्काल ग्रामीणों के द्वारा पदाधिकारियो को दी गई पर किसी ने इसकी सुध नहीं ली। 
विद्यालय में प्रशासनीक लापरवाही का नजारा भी कई मामलों में देखने को मिला। विद्यालय में  किचन शेड के लिए राशि की उपल्बध्यता के बाद भी किचन शेड आधा अधुरा बना हुआ है और इतना ही नहीं ग्रामीणों ने पंचायत समिति सदस्य भुसण पासवान ने बताया कि विधायल को उत्क्रमित कर मध्य विद्यालय बनाने का प्रस्ताव पंचायत समिति की बैठक मे पारित कराया गया और इसके आलोक में राशि का  आवंटन भी कर दिया गया पर प्रधानाध्यापिका की लापरवाही की वजह से भवन नहीं बन रहा है।

उधर इस सम्बंध में प्रधानाध्याापिका आशा रानी ने बताया कि भोजन में मैला होने की बात का जब उन्हें चला तो उनके द्वारा खाना फेंकबा दिया गया पर ग्रामीण राजनीति की वजह से बच्चों को विद्यालय आने नहीं दिया जा रहा है।

मामला चाहे जो हो पर मध्याह्न भोजन योजना विद्यालय को भोजनालय बना कर रख दिया और इसकी गाढ़ी कमाई पर कब्जे को लेकर लगातार विद्यालयों में धमासान होता रहता है जिसकी वजह से बच्चों का  भविष्य दांव पर लगा हुआ है।

13 मार्च 2010

जदयू में टूट सुनििश्चत, मंहगाई को विकास मानती है कांग्रेस

राजनीति में  अपने तिखे तेवरों के लिए जाने जाने वाले भाजपा के वरिष्ठ नेता एवं नवादा संसदीय क्षेत्र से सांसद भोला सिंह ने आज फिर एक बार अपने तल्ख बयानों से हलचल मचा दी। जदयू की राजनीति में आए हलचल पर पत्रकारो के द्वारा पुछे गए सवालों के जबाब में सांसद ने स्पष्ट कहा कि सोशलिस्टों का इतिहास रहा है कि जब जब उनको सत्ता मिलती है तो उनकी पार्टी टुट जाती है और सत्ता से अलग होने के  बाद फिर मेल मिलाप होता है। सांसद ने साफ कहा कि महिला आरक्षण बित पर मचे बबाल को लेकर जिसतरह की खिचतान हो रही उसको देखते हुए जदयू का टुटना सुनििश्चत है। सांसद प्रतिनिधि रामविलास सिंह के आवास पर आयोजित संवाददाता सम्मेलन में सांसद ने कहा कि महिला आरक्षण बिल भाजपा नेता अटल बिहारी बाजपेई की उपज है और इसी को मुर्तरूप देने के लिए भाजपा ने कांग्रेस से हाथ मिलाया। उन्होने कहा कि महिला बिल पर कांग्रेस के द्वारा राजनीति की जा रही है और  इसका क्रेडिट लेने के लिए कांग्रेस महिला बिल की भ्रुण हत्या करने पर तुल गई है। सांसद ने सदन मे माशZल के प्रयोग का पुरजोर विरोध करते हुए कहा कि सदन में सभी को अपनी बात रखने की आजादी होनी चाहिए  और जो कुछ  हुआ वह निन्दनीय है। उन्होंन सदन में सभापति के साथ सांसदों के द्वारा किए गए व्यवहार को भी उन्हेने भत्र्सना की। मंहगाई के मुददे पर बोलते हुए संासद ने बेबाकि से कहा कि कांग्रेस के लिए मंहगाई विकास का परिचाययक है और कांग्रेस मानती है कि जितनी मंहगाई होगी उतना विकास होगा। उन्होने ने सदन में मन्त्री के अनुपस्थिति पर नाराजगी जताते हुए कहा कांग्रेस मंहगाई को लेकर गम्भीर ही नहीं है और चुनाव में कांग्रेस जाल बिछा का वोट ले लेती है। इस मौके पर संासद ने पार्टी के संगठनात्क चुनाव को ंशान्तिपूर्ण ढंग से निवटाये जाने की बात भी कही।

नक्सलबाद और आतंकवाद से ज्यादा धातक है मुल्यहीन राजनीति



आतंकवाद और नक्सलबाद मुल्यहीन राजनीति से ज्यादा खतरनाक है और देश का जितना नुकसान आतंकवाद ने नहीं किया उससे ज्यादा नुकसान मुल्यहीन राजनीति ने किया है। आज वर्तमान राजनीति सेवा के आसन से उतर कर बाजर बन गई है जिससे देश को काफी नुकसान हो रहा है। उक्त बातें भाजपा के वरिष्ठ नेता एवं नवादा लोकसभा से सांसद भोला सिंह ने कही। भोला सिंह आर्य समाज के स्थापना दिवस के अवसर पर बरबीघा  आर्य समाज मन्दिर में आयोजित समारोह का उद्धाटन कर रहे थे। इस अवसर सांसद भोला सिंह सम्पूर्णरूप से आध्याित्मक संबोधन करते हुए कहा कि वर्तमान में लोगों की संवेदना मर गई है और इसको जगृत करके ही मानवता को बचाया जा सकता है।आर्य समाज की चर्चा करते हुए सांसद ने कहा कि आदमी महज शरीर है तो  काम, क्रोध, मोह सहित वह अन्य विकारों से भरा रहता है और वह हिरण्यकश्यपु बन जाता है और जब आदमी आत्मा होता है तो वह इन विकारों से दूर प्रहलाद बन का जनकल्याण का कार्य करता है और इसी तरह आर्य समाज आत्मा को जागृत करने का एक आध्यात्मीक प्रक्रिया है जिसमें योग सहायक होता है। इस अवसर पर सांसद ने भगवान बुद्ध, गुरूनानक और कबीर का प्रसंग सुना का लोगों को मानवीय भावना जागृत कर समाज के लिए कुछ सकारात्मक करने की बात कही है। सांसद ने प्रसंगवश स्वामी सहजानन्द को एक प्रचण्ड धूप करार देते हुए कहा कि एक मामूली दीपक भी आखीर दम तक अंधकार से लड़ता है और  अन्त में जीत प्रकाश की होती है।

इस अवसर पर वेद प्रयार महायज्ञ का विधिवत उदधाटन सांसद ने दीप प्रज्वलित कर किया। समारोह में आर्य समाज के मध्यप्रदेश से आए सन्त आनन्द पुरूषर्थी ने कहा कि मनुष्य को देश प्रेमी होना चाहिए तथा देश की सेवा के लिए हर एक को अपने स्तर से कार्य करना चाहिए। श्रीपुरूषार्थी ने कहा राजा के फरमान पर तलाब में सभी कें द्वारा अहले सुबह एक एक लोटा दूध देने की कथा को सुनाते हुए कहा कि इस कथा में सबने यह सोच कर तलाब में सिर्फ पानी डाल दिया कि दूसरा दूध देगा और तलाब में सिर्फ पानी ही रहा। उन्होने लोगों से अपील करते हुए कहा कि आपके आपके लोटे में दूध होना चाहिए ताकि समाज का पतन रोका जा सके।

12 मार्च 2010

मन्दिर के लिए, दुकानों में आग लगा दी गई।



शेखपुरा.जिला मुख्यालय के आर डी कॉलेज चौराहा के पास स्थानीय लोगों के द्वारा सड़क की जमीन का अतिक्रमण कर बनाए जा रहे मन्दिर को प्रशासन द्वारा हटाये जाने के विरोध में कई दुकानों में आग लगा दी गई। घटना में चाय की दुकानएकिरान दुकान सहित करीब  आधा दर्जन दुकान जल गई। साथ उपद्रवीयों ने कई दुकानों का ताला तोड़ कर उसमें लूट पाट भी की। लोगों में इस बात को लेकर गुस्सा था कि उनके  द्वारा सार्वजनिक जगह पर मन्दिर बनाया  जा रहा था जिसे अतिक्रमण के नाम पुलिस और जिला प्रशासन के द्वारा हटा दिया गया। मन्दिर निर्माण से रोेके जाने से गुस्साए लोगों ने वहीं के स्थानीय दुकानदारों की दुकाने ही जला डाली। यही धर्म है मन्दिर के लिए अपनों को ही तकलीफ दी=-00000000

11 मार्च 2010

मेरे देश में

 मेरे देश में
पिज्जा
एम्बुलेंस से पहले पहूंचती
लूट के बाद पुलिस सजती

मेरे देश में
कार लोन पांच परसेंट पर
एडुकेशन लोन बारह पर मिलती

मेरे देश में
चावल बिकता चालीस रूपये
सिम है मुफ्त में मिलती

मेरे देश में
रही नहीं उम्मीद कहीं अब
चौथेखंभे  से लेकर न्याय तलक है बिकती
मेरे देश में.......

10 मार्च 2010

जार्ज के साथ जो किया उसका खामियाजा भुगतना होगा

चाय की दुकान पर चाय पीने के क्रम में यह चर्चा सुनने को मिली। सभी लोग बिहार मे नीतीश कुमार की मनमानी और शरद यादव की जिद्द पर चर्चा कर रहे थे। लोग जदयू की घटना पर चर्चा करते हुए लालू यादव का जनता दल से अलग होने की चर्चा भी कर रहे थे। सबसे अधिक लोग इसकी चर्चा कर रहे थे की नीतीश कुमार, शरद यादव और ललन सिंह ने जार्ज फर्नाडीस की जो दुर्गति की थी उसका खामियाजा तो  भुगतना ही होग। 
लोग शायद ठीक ही कह रहे थे, मेरा भी यही मानना है। तिकड़म करके देश के सबसे प्रखर समाजबादी नेता जर्जा साहब को अध्यक्ष पद से जिस तरह बेइज्जत कर हटाया गया और उनको औकता बताने की बात कही गई थी यह एक बड़ा पाप था और इसका फल तो भुगतना ही पड़ेगा। आखिर राजनीति किसी का उधर जो नहीं रखती............ 

08 मार्च 2010

अपनी धुमिल राजनीति चमकाने में लग गए लालूजी, मण्डल की आग लगाने की कोशिश



किसी भी संवेदनशील मुददे को किस तरह राजनीति का शिकार बनाया जाता है इसकी वानगी है महिला विधेयक। महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण की बात 14 सालों से चलता आ रहा है और आज तक यह पारित नहीं हो सका। लगता है कि फिर यह पास नहीं होगा। इसको लेकर संसद में जो हुआ वह दुर्भग्यपूर्ण तो था ही पर लालू स्टाइल राजनीति का यह एक ट्रेलर था। बिहार में लालू जी के इन्हीं (सालों) ने तहलका मचाया था और अब यही देश हित की बात कह रहें है। महिला विधेयक के विरोध में सभापति माननीय हामिद अंसारी की माइक को छिनने की कोशिश करना तथा बिल की प्रति छिन कर उसके टुकड़े सभापति के उपर फेंकना भारत के संसदीय इतिहास में एक और काला अध्याय जोड़ गया पर बिडम्बना यह कि सुभाष यादव इसे देश हित में बता रहें है। लोकतन्त्र में विरोध करना जायज है पर संसद के अन्दर इस तरह का विरोध लालू जी के द्वारा एक प्रायोजित विरोध था इसके पीछे लालू जी का स्क्रीप्ट काम कर रहा था। लालू जी बिहार की राजनीति में इसी तरह का तिकड़म लगाते रहे है। बंटो और राज करो। इसी बिहारी राजनीति का उनका सिक्का जब उखड़ गया तो वे एक राजनीतिक मुददे की तलाश में सालों से भटक रहें है। भुखे सियार की तरह लालू जी को यह मुददा मिला है और वे टूट पड़े है। अभी हाल ही में उनके द्वारा एक सभा को संबोधित करते हुए कहा गया था कि समाज को तोड़ने का जो कलंक उनके माथे लगा है उसको धोने के लिए वे जी जान लगा देगें। कुछ लोगों को लगा कि लालू जी का हृदय परिवर्तन हो गया  पर लालू जी और मुलायम सरीखे नेताअो की दुकानदारी ही जाति आधारित राजनीति है। वे हर हाल में किसी न किसी बहाने इस तरह के मुददे को हवा देकर अधर में गई अपनी राजनीतिक चेहरे को चमकाना चाहेगें। महिला बिल जमीन खो चुके  इन नेताओं को जमीन तलाशने में मददगार हो सकती है और मण्डल की आग लगाने की कोशिश की बू इसमें आ रही है। महिलाओं को जाति में बांटने की कोशिश इसी साजिश का हिस्सा है। महिलाऐं तो स्वयं ही एक शोषित समाज का हिस्सा रही है और उनको बांटने की राजनीति महज अपनी दुकान चमकाने की कोशिश है। 

भारत के प्रधानमन्त्री माननीय मनमोहन सिंह और सोनीया गांधी से अपील कि महिला बिल पर राजनीति उनके द्वारा भी नहीं की जाय और जिस तरह सरकार को गिरने से बचाने के लिए अपनी क्षमता को लगाते है उसी तरह की क्षमता लगा कर महिला आरक्षण बिल का पारित करायें। नहीं तो यह भी मंहगाई से ध्यान बंटाने की कांग्रेसी साजीश भर होगी। 

07 मार्च 2010

एक अनूठा गांव है साठ साल से वैष्णव वर्जित है मांस, मछली और मदिरा का सेवन मांस-मदिरा सेवन पर किया जाता है तड़ीपार

शेखपुरा-वैष्णव जन तो तेने कहिए पीर परायी जाने जे, गांधी जी के  इस गीत को अब किसी सरकारी कार्यक्रम में बजता हुआ ही सुना जा सकता है पर गांधी जी के इस गीत के साथ पूरा एक गांव जी रहा है। शेखपुरा जिला मुख्यालय से सात किलोमिटर की दूरी पर स्थित है मय-अमरपुर गांव। इस गांव की आबादी कुल 1500 सौ है और पूरा का पूरा गांव वैष्णव है। मांस, मदिरा अैर मछली यहां के लोगों ने स्वेछा से वर्जीत कर रखा है, वह एक दो तीन नहीं बल्कि पूरे 60 सालों से। इस गांव में विभिन्न जाति के लोग रहते है जिसमें यादव, मुसहर और पासवान की संख्या अधिक। पर इस गांव के लोग दशकों से एक अजीब परंपरा को अपनाए हुए है और वह है मंास, मछली और मदिरा का सेवन नहीं करने का। यदि गांव के इस परंपरा को कोई तोड़ता है तो पंचायत कर उसे  तरीपाड़ की सजा दी जाती है और इसके बाद समझौत के तहत बाद में पंचायत के द्वारा जुर्मान लगा कर गांव में प्रवेश करने दिया जाता है। इस परंपरा का निर्वहन यहां के मुसहर समुदाय के लोग भी करते है जिनका की मुख्य पेशा ही मुस यानि चुहे पकड़ कर खाना है पर इस गांव के मुसहर भी अपने पैतृक पेशे से दूर रहते है।  इस गांव में किसी के द्वारा मुगाZ अथवा सुअर पालने का काम भी नहीं किया जाता है। स्वेच्छा से वैष्णव हुए  इस गांव के लोग अपनी  इस परंपरा के  बारे में बताते हुए कहते है कि उनके पुर्वज में कोई कबीरपन्थी धर्म को मानने वाला हुआ और उसी ने कोशिश कर गांव वालों को मांस, मछली अथवा मदिरा का सेवन नहीं करने के लिए प्रेरित किया  और इसके  बाद कायम यह परंपरा छ: दशक बाद भी कायम है।

इतना ही नहीं अपनी इस परंपरा को कायम करने के लिए गांव के लोगों ने करीब तीस साल पहले मछलियों का समुहिक दाह-संस्कार  कर एक मिशाल पेश की। ग्रामीण रामदेव यादव बताते है कि एक साल सुखे की वजह से  गांव के तलाब की सभी मछलियां मर गई उसके बाद गांव के लोगों ने प्रत्येक मछली को कफन में लपेट उसे जमीन में गाड़ कर उसका दाह-संस्कार किया। युवक मनोहर की माने तो उसके बाप-दादा के द्वारा बनाई गई इस परंपरा को उसके द्वारा निभाया जा रहा है और उसके बच्चे भी इसको निभाएगे।

कुछ भी हो पर शाकाहार को लेकर जहां आज विश्वस्तर पर कई संगठनों के द्वारा आन्दोलन किया जा रहा 
है और कई धार्मिक संगठन भी शाकाहार और मदिरा सेवन नहीं करने को लेकर जगरूकता अभियान चला रहें है पर सुदूर ग्रामीण ईलाके में रहने वाले गरीब और भोले भाले ग्रामीण एक अनूठी मिशाल पेश कर रहें है।

बहस जारी अभी जारी है...... हुसैन की पेंटिग-हंगामा है क्यों है बरपा थोड़ी सी जो पी ली है।



जी, थोड़ी सी पीने पर हंगामा बरपा कर रहें हैं। यह मुद्दा विवादास्पद है सो इससे बचना चाहिए। क्यों, विवाद से बचने की अपनी आदत जो है, पर विवाद खड़ा करने की आदत भी अपनी ही है। कुछ बात जो मैं कहना चाहूंगा वह यह कि हुसैन की पेंटिग मे हिन्दू देवी देवता की नंगी तस्वीर होना इतना बड़ा जुर्म है कि इसके लिए हम सर कलम तक करने का फरमान दें। कुछ लोगों का तर्क है कि मोहम्मद साहब की पेंटिग बनाकर देखते तो एम एफ को समझ में आता और वे लोग ऐसा करते है तो मैं क्यों नहीं। भाई मोहम्मद के अनुयायी इसीलिए आज आतंकवादी कहला रहे है। वे नहीं चाहते कि महिलाऐं बुर्क छोड़े, वे नहीं चाहते कि महिलाऐं शिक्षित हो, वे नहीं चाहते की कोई नमाज अदा न करे और वे यह भी चाहते है कि सारी दुनिया मेरा ही कथित धर्म को माने। बात खजुराहो की कोई क्यों नहीं करता। खजुराहों की मन्दीर में, जीं हां मन्दीर में देवी देवता कामरत है।

आइऐ थोड़ी और बहस करें, आचार्य रजनीश ओशों को कौन नहीं जानता, वहीं रजनीश जिनके यह कहने पर संभोग समाधी का मार्ग है हंगामा हो गया। उनके कुछ शब्द यहां प्रस्तुत कर रहा हूं यह भी सही है कि सभी इससे इत्तेफाक नहीं रखेगें पर फिर भी........

यदि तुम किसी को सताना चाहते हो तो नैतिकता सबसे अच्छा और सरल उपाय है। उसके जरिए तुम दूसरे में अपराध भाव पैदा कर देते हो। यह सबसे सुक्ष्म यातना है।

...तुम कामवासना का जीवन जीते हो, लेकिन कभी इसकी चर्चा नहीं करते, चर्चा ब्रहम्चर्य की करते हो। भीतर पशु रहता है और बाहर परमात्मा होने का ढोंग करते हो।
..धर्म जगत की बड़ी से बड़ी क्रंाति है। समाज ने जो किया धर्म उसको वापस तुम्हें मौलिक, मूल, निर्दोष स्थिति में लाना चाहता है, जैसे तुम पैदा हुए हो। झेन फकीर कहते है कि तम्हारे मौलिक चेहरे को खोज लेना धर्म है। जिस दिन तुम जन्मे थे उस दिन तुम जो थे न तुम्हें बुरे-भले का कोई ज्ञान था, न तुम्हें जीवन-मरण को बोध था, न तुम्हें कोई भय था न कोई घृणा थी, न कोई आसक्ति थी, न तुम संसारी थे, न तुम संन्यासी थे। इस निर्मलता को पा लेने का नाम सन्तत्व है और धर्म उसकी प्रक्रिया है।
और अन्त में 
ये उनके मिस्जद 
ये उनका मन्दीर
यह जरामवाजों के खुदा का घर है
तो मेरे खुदा यहां नहीं रहते.................शेष फिर।

04 मार्च 2010

हुसैन साहब का यह कहना की किसी ने साथ नहीं दिया बहुत दुखी करता है।

जिनको मां की तस्वीर में भी नंगनता दिखे उनसे क्या उम्मीद। मां तो ममता होती है और जब हम अपने घरों में बच्चे को दूध पिलाती मां की तस्वीर लगाते है तो उसमें अश्लीलता कहां दिखती है। हुसैन साहब ने बहुत गलत किया सचमुच गलत किया। हिन्दू होने का दंभ भरने वालों ने आग लगाया और अपनी राजनीति की रोटी सेकी पर आहत हुआ भारत की आत्मा , पर हुसैन साहब का यह कहना की किसी ने साथ नहीं दिया बहुत दुखी करता है। मुझे याद है बिहार के इस कस्वाई नगर में भी हुसौन के समर्थन में प्रेस विज्ञप्ति आई और अखबरों में छोटी सी जगह बनाई। कतर की नागरीकता लेकर हुसैन साहब ने सचमुच गलत किया। एक सवाल तो है ही कि कतर में हुसैन साहब को अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता होगी। जनाब हुसैन साहब यह भारत ही है जहां आपके साथ कई लोग है और हिन्दु के मठाधिशों को कहना चाहूंगा कि क्या अजन्ता और एलोरा की गुफाओं में कामरत तस्वीर हिन्दू धर्म को खत्म कर दिया। वहां भी तो भगवान को कामरत दिखाया गया है वह भी कई सौ साल पहले। अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता महज एक शब्द नहीं है बल्कि एक व्यापक विचार है जिसके सहारे भारत की आत्मा जीवित है और जीवित आत्मा को मारने का निरन्तर प्रयास भी इस देश में किया जाता रहा है। कुछ लोग के द्वारा अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता को विकृत मानसिकता का पोषक बताया जा रहा है परन्तु कसौटी यह किसने बनायी कहीं हमारी मानसिकता ही विकृत तो नहीं। छोड़ न दो भाई, हिन्दू धर्म प्रेम और सेवा से चलता और और नंगी पेंटिंग बनाने से वह खत्म होने वाली नहीं। हां राजनीति जरूर हो रही है और हम भी उसीका हिस्सा है।

03 मार्च 2010

खत्म हो सांसद का कोटा-मुलायम सिंह ने संसद में उठाई आवाज

मुलायम सिंह यादव ने आज संसद में एक बहुत ही गम्भीर मुद्दे को उठाया है। हलांकि उनकी मंशा इस मुद्दे को दूसरी तरह से उठाने की थी पर कहते कहते सही बात कह गए। समाजबादी नेता मुलायम सिंह ने कहा कि सांसद कोटे की राशि को दो करोड़ से बढ़ा कर दस करोड़ कर दिया जाय या फिर इसे खत्म कर दिया जाय। मुलायम सिंह का साथ इस मुददे पर लालू प्रसाद यादव ने भी दिया। लालू जी ने जोड़ देकर कहा कि सांसद कोटे को खत्म कर दिया जाय दो करोड़ में काम नहीं चलता। वास्तव में सांसदों की मंशा चाहे  अपने कोटे को बढ़ना ही हो पर एक सच जो सामने आया वह यह कि सांसद कोटे को खत्म करने पर गम्भीरता से  विचार किया जाना चाहिए। इस राशि से किसी का भला हो ना हो पर नेताओं और उनके बेलचों का भला जरूर हो रहा है। दो करोड़ की राशि का बन्दरबांट किस तरह किया जाता है इसको बहुत लोग करीब से जानते है। सांसद कोटे के तहत अपने गांव में सामुदायिक भवन से लेकर नाली और खरंजी का प्रस्ताव रखने बाले उनके समर्थकों को इस बात की प्रवाह नहीं होती कि इस राशि से सार्वजनिक काम किया जाए बल्कि यह मंशा रहती है कि काम होगा तो उन्हें भी डकारने का मौका मिलेगा। सांसद निधी से 15 से 20 प्रतिशत माननीय सांसद का कमीशन बनता है तथा उसके बाद पदाधिकारियों का कमीशन भी यही होती है और फिर जो महोदय विकास का काम करवाते है वे भी कोई धर्मात्मा नहीं होते और अपनी बचत अधिक से  अघिक हो इसके लिए सभी तरह के उपाय लगाते है। सांसद निधि से  बने भवनों एवं सड़को की हाल पांच साल में जब दुबारा नेताजी अपने क्षेत्र जाते है तो बदहाल हो चुका होता है। उसपर भी किस किस को खुश रखें यह  एक  अलग परेशानी है। सभी चुनाव में वोट देने और मदद करने का दाबा करते हुए ठेका दिए जाने की मांग करता है और इसके बाद कार्यकत्र्ता कहीं रहते ही नहीं सभी ठेकेदार बन जाते है। कुल मिलाकर सांसद  निधि से क्षेत्र का विकास तो हो ही नहीं रहा और उल्टा राशि की बन्दरबांट हो जाती है।  इसलिए इस मशले पर गम्भीरता और कठोरता से विचार कर सांसद कोटों को बन्द कर दिया जाना चाहिए।

02 मार्च 2010

हुड़दंग आज भी जारी है मेरे दोस्त.........................



हुड़दंग आज भी जारी है मेरे दोस्त.........................


अभी अभी आंख खुली, करीब दस बज रहे है, सारे शरीर में हरारत है, थकान बहुत हो गई। देर रात तक होली खेलता रहा। सुबह सात बजे से शुरू हुई होली देर रात तक अपने चरम थी। फागुन की गीतों और ढोलक-झाल की थापों पर झूमते-नाचते लोग, गलियों में धूमना और दोस्तों के दरवाजे पर दस्तक, सबकुछ आनन्द के अतिरेक सा। सुबह मिटटी की होली जो प्रारंभ हुई तो वह दोपहर तक चली। सारे शरीर पर कीचड़ ही कीचड़, दोस्तों की बीबी को रसोई से खींच कर कीचड़ में डुबोआ, दोस्तों ने भी ऐसा ही किया। मोटरसाईकिल की डिक्की में मिटटी भरकर उसमें पानी भर दिया दो तीन मोटरसाईकिल पर सभी दोस्त सवार हो सड़कों पर हुड़दग मचाया। फैजाबाद मोहल्ले में मस्जीद के पर मिल गए वार्ड पाषर्द मो0 अनवर साफ सुथरे, स्नान कर आए थे उनके सामने मोटरसाईकिल रूकी और सभी उनपर ऐसे टुट परे मानों किसी ने माधुमक्खी के छते को छेड़ दिया हो। होली के आनन्द का अतिरेक मेरे घर में होता है। मेरी बीबी रीना से होली खेलने में सभी डरते है या कहें कि उत्साहित रहते है। मिट्टी की होली में सभी को कीचड़मय करना सभी के जबाब पर हाजीरजबाब और सभी को लाजबाब करती होली मनाती है वह। करीब एक धंटे के इण्टरवल के बाद कुर्ता पहन फिर हमलोग निकले रंगों से सराबोर होने, शाम में थोड़ी ठंढ थी सो रंगों में भींगने में ठंढ भी लग रही थी और आनन्द भी आ रहा था। शाम शाम तक भींगें। लोगों को गुलाल लगाया। पुआ और दहीबड़े का लुत्फ उठाया। देर शाम जब हमलोगो सोंचा कि अब रंग नही गुलाल से होली खेलेंगें तो महिलायें बाज नहीं आयी और रंगती ही रह गई।

मेरे गांव में फिर होलैया की टीम निकली। ढोलक-झाल पर झुमते लोग घर-घर घूम होली के गीत गाये। जलबा कैसे के भरी जमुना गहरी, जलबा कैसे के, ठारी भरी नन्दलाल जी निरखे, निहुरी भरी भींगें चुनरी, तथा यौवना के श्रृगार चोलिया काहे न लइला हो बालम और फिर अंखिया भइले लाल एक नीन्द सोऐ दे बलमुआ इन गीतों पर सारा जहां जैसे झूम झूम गया। जिनके घर मेहमान आए हुए है वहां महफिल जमती है और उनके स्वागत में होली गायी गई। मेहमानों का मतलब दामाद या बहनोई से है को अश्लील, इतनी भद्दी भद्दी गालियां दी जाती है कि सुन कर घबरा जाएगा और वह भी बुजुर्गो के श्रीमुख से, पर बुरा न मानों होली है कह दो सब खत्म, और सदाआनन्द रहे यह द्वारे होली मोहन खेले होली हो गाते हुए टीम आगे चली जाती है इस काफीले का अन्त मन्दिर में भगवान के भजन के साथ हो जाता है। हलांकि बहुत से गांव में यह परंपरा अब धीरे धीरे खत्म होती जा रही है और नई पीढ़ी मे कोई ढोलक बजाने बाला और होली गाने वाला नहीं मिलता तथा शराब रंग में भंग कर रहा है पर फिर भी होली का आनन्द अभी बाकी है। 


खास बात जो होली मे अब दिखने लगी है वह है जाति और धर्म के बंधन का टूटना। मुस्लीम भाईयों ने भी जम कर होली खेली और रंगों का उत्सव मनाया वहीं मुसहर और डोम जाति के लोगों ने भी सवर्णें के माथे पर रंग लगाया। तभी तो लेमुआ डोम का बेटा विनोद मालिक के संबोधन के साथ नहीं बल्कि बबलू भैया के संबोधन के साथ माथे पर अबीर लगाया। मन प्रसन्न हो गया और यह उन्हें देखना चाहिए जो मोटे चश्में से समाज को देखते है और बांटने की राजनीति करते है।

जुर्म है हॉकी खिलाड़ी शिवेन्द्र पर लगा प्रतिबंध भारत सरकार करे पहल

हॉकी के विश्व कप में भारत के साथ अन्याय हो रहा है। भारत के लिए गोल करने वाले शिवेन्द्र को इस जुर्म की सजा मिली जिसने वह किया ही नहीं। शिवेन्द्र  को इस बात की सजा मिली जिसके लिए किसी ने शिकायत नहीं की। साफ लगता है कि आस्टलिया के रेफरी ने अपने देश की मैच को देखते हुए ऐसा किया है। सभी इसका विरोध कर रहे है। भारत सरकार को इसपर पहल करनी चाहिए।  आखिरकार यह भारत के खिलाड़ियों के हौसले तोड़ने की साजीश ही तो है। हॉकी के खिलाड़ी इसकी वजह से तनावग्रस्त है। मेजवान भारत के साथ ऐसा करके लिए रेफरी ने जता दिया कि भारत के हॉकी से सभी डरते है।

01 मार्च 2010

मैंने अपना दिल हॉकी को दिया, चार एक से भारत ने पाकिस्तान को हराया-चक दे इण्डिया।


टेलीविजन पर सहवाग, राठौर और प्रियका को यह कहते सुन कि फिर दिल दो हॉकी को, बहुत दुख होता है अपने राष्टीय खेल की इस दुर्दशा को देख पर खुशी भी होती है कि एक सार्थक प्रयास किसी ने प्रारंभ तो किया। आखिर एक एक कदम से ही हम मंजील तक पहूंचते है। और फिर मैंने ने अपना दिल हॉकी को दिया और हॉकी ने भी मेरा दिल जीत लिया। यहां बिहार के शेखपुरा जिले के बरबीघा जैसे कस्वाई शहर में हम कई दोस्तों ने कहा कि हम भी हॉकी को फिर से दिल देगें। उस हॉकी को जिसने देश की खातीर आठ ओलम्पिक गोल्ड मेडल जीते। इसी के तहत हम सभी ने टीवी पर इसका आनन्द लिया पर यहां बिजली ही तो नहीं रहती और जब बिजली गुल हो गई तो सभी मोबाईल से दूसरे शहर में जहां बिजली थी मैच का हाल लाइव सुनते रहे। और रोमांचक मुकाबले में भारत ने पाकिस्तान को चार एक से हराया। गजब ताकत का प्रदशन करना पड़ता है हॉकी में। माथे से पसीना चूना मुहावरे को चरितार्थ होता ध्यानचन्द स्टेडियम में देख रहा था। खेल के 27वें मिनट में शिवेन्द्र ने जब गोल दागा तभी से चक दे इण्डिया की गुंज होने लगी। और फिर सन्दीप सिंह ने 35 वें तथा 57वें मिनट में गोल दाग चक दे चक दे कर दिया। दूसरे हाफ के प्रारंभ होते ही प्रभोजोत ने गोल दाग कर अपनी मंशा बता दी। भारत की जीत पर राष्टपति प्रतिभा पाटील ने भी बधाई दी और मुझे अफसोस हो रहा है तो यह कि मैं स्टेडिमय मे बैठ कर मैच नहीं देख पाउगा।