24 नवंबर 2023

खड़ूस नाना पाटेकर के बहाने सोशल मीडिया का चाल, चरित्र और चेहरा

 खड़ूस नाना पाटेकर के बहाने सोशल मीडिया का चाल, चरित्र और चेहरा 



अरुण साथी

वाराणसी में एक फिल्म की शूटिंग के दौरान एक किशोर के द्वारा नाना पाटेकर के करीब आकर सेल्फी लेने का प्रयास किया गया। जिसके बाद नाना पाटेकर ने उस किशोर को हल्का सा एक थप्पड़ जड़ दिया । फिर उसे वहां से हटा दिया गया । बुधवार को सोशल मीडिया पर यह वीडियो इतना तेजी से वायरल हुआ की एक बार में ही सिनेमा जगत का वह कद्दावर हीरो, जिसका नाम ही काफी होता है, खलनायक की तरह प्रस्तुत कर दिया गया ।


सोशल मीडिया  पर सक्रीय कोई भी  यदि वाह-वाही पाकर खुद को हीरो समझने लगे, तो यह उसकी ना समझी होगी। वही लोग जरा सी गलती पर खलनायक बनाने में देर नहीं करते, ऐसा चरित्र इसका है।

सोशल मीडिया का चाल, चरित्र और चेहरा बहुत ही नकारात्मक है। नाना पाटेकर एक उदाहरण हो सकते हैं। ऐसे कई उदाहरण भरे हुए हैं। एक उदाहरण इंस्टाग्राम की फेम गुनगुन गुप्ता भी है।

इंस्टाग्राम पर उसको लाखों लोग फॉलो करते और उसके एक अदा पर वाह वाह करने लगते । कम उम्र के इस बच्ची की नादानी से एक युवक के साथ अश्लील वीडियो चैटिंग का वीडियो वायरल कर दिया गया। निश्चित रूप से यह साजिश के तहत ही हुआ होगा। फिर गुनगुन गुप्ता एक खलनायिका की तरह सोशल मीडिया पर ट्रेंड कर गई। इसमें कुछ नमी लोग भी थे जो सभ्यता, संस्कृति और चरित्र की बात करते थे। उन्होंने भी गुनगुन के वीडियो को या तो वायरल किया या फिर उसे पूरा देखने के लिए खूब मेहनत की। उस बच्ची के नग्न वीडियो को देखने की इस भावना से प्रेरित होकर वीडियो देखा भी और फिर उस बच्ची का सोशल मीडिया पर चरित्र हनन भी करने में देर हम नहीं किए। यह हमारे अंदर के कुंठा ही थी।

सोशल मीडिया पर चाल चरित्र और चेहरा बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के माध्यम से भी दिखा। जब उन्होंने विधानसभा में नारी सम्मान को लेकर आपत्तिजनक वक्तव्य दिए तो उसे कई लोगों ने सेक्स एजुकेशन से जोड़कर अपना-अपना ज्ञान बांटना शुरू कर दिया। जबकि पूरे वक्तव्य में सेक्स एजुकेशन जैसी कोई बात नहीं थी। उसकी प्रस्तुति तो निश्चित रूप से निंदनीय थी। 

इस सबके बीच नाना पाटेकर का वीडियो भी सामने आया। जिसमें उन्होंने कहा कि उनके फिल्म के दौरान एक रिहर्सल में इस तरह का दृश्य था और उनको लगा कि वही शूटिंग हो रही है। उन्होंने एक चपत लगा दिया।

खैर, पहली बार इस वीडियो को देखते ही यह समझना चाहिए कि नाना पाटेकर एक बुजुर्ग हैं और वहां सेल्फी लेने आया एक किशोर को यदि उन्होंने एक चपत लगा भी दिया तो कोई बहुत बड़ी बात नहीं हो गई ।

बुजुर्ग ऐसे भी थोड़ा चिड़चिड़ा होते हैं और नाना पाटेकर तो खड़ूस है ही । परंतु वह दिल के अच्छे हैं। सामान्य जीवन जीते हैं । आम लोगों की मदद करते हैं। सबके लिए खड़े होते हैं। परंतु वही नाना पाटेकर जब एक गलती करते हैं तो पढ़े-लिखे विद्वान महारथी से लेकर नई पीढ़ी के भड़काऊ बड़बोले युवा तक, हाय तौबा करने लगे। ये वही लोग थे जिनके द्वारा किसी को चपत लगा देना साधारण सी बात थी।


एक कुंवारी गर्भवती महिला को पत्थर मारने की जब बात आई तो ईसा मसीह ने कहा कि पहले पत्थर वही मारे जो पापी नहीं हो, सोशल मीडिया पर यह बात बिल्कुल नहीं होता। जो जितना बड़ा पापी होता है, वह सबसे पहले पत्थर मारना शुरू कर देता है।

अपने अंदर की हीनता, ग्लानि, भड़ास निकालने का मंच तो सोशल मीडिया है ही। सोशल मीडिया में सबसे दुखद नकारात्मक पहलू यही है कि जिसे हम कल हीरो मानते हैं और हीरो बनाते हैं उसकी वाह वाह करते हैं। उसे उसकी एक छोटी सी गलती के लिए खलनायक मनाने में जरा सा भी परहेज नहीं करते । उसकी सच्चाई जानने का भी प्रयास नहीं करते । उसकी मजबूरी जानने का भी प्रयास नहीं करते। मतलब कि हमारे अंदर असहिष्णुता कूट-कूट कर भर गया है । सोशल मीडिया पर घृणा और हीनता के यह भावना इतनी तेजी से फैलता है कि हर कोई उसे फैलाने में ही भागीदार बन जाता है ।

सोशल मीडिया में आग लगने के बाद उसकी चिंगारी को और हवा देने का प्रयास ही होता है। यह एक खतरनाक दौर है। बिल्कुल जुंबी की तरह। इस दौर से अछूता कोई नहीं है। परंतु सोशल मीडिया पर रहने वाले लोगों से इतना तो निवेदन जरूर रहेगा की कौवा यदि आपका कान लेकर भाग गया तो दूसरे के कहने पर भरोसा मत करिए, थोड़ी देर रुकिए और अपने कान को देखिए और यदि सही हो तब ही हाय हाय करिए, धन्यवाद।

09 नवंबर 2023

यह, वह नीतीश कुमार नहीं हैं ...

 यह, वह नीतीश कुमार नहीं हैं ...


 2005 से पहले और उसके बाद नीतीश कुमार की पहचान शांतचित, सौम्यतापूर्ण, तर्कपूर्ण, तथ्यों के साथ   बातों को रखने की थी। उस दौर से निकलकर जब बिहार नीतीश कुमार के सोशल इंजीनियरिंग के दौर में प्रवेश किया तो बिहार में बदलाव के आश्चर्यचकित नतीजे देखने को मिले। उस दौर में नीतीश कुमार के सोशल इंजीनियर होने में कमोबेश सभी जातियों में उनके स्वीकार्यता थी। इसके लिए बिहार में सड़कों का जाल बिछाना, बिजली की व्यवस्था करना, बेटियों की शिक्षा और बेटियों के लिए आरक्षण और नौकरी नीतीश कुमार के ऐतिहासिक कामों में शामिल है।


परंतु पिछले कुछ महीनों से नीतीश कुमार के वक्तव्य, व्यवहार और फिर विधानमंडल में स्त्री को लेकर दिए गए आपत्तिजनक टिप्पणी से यह तो निश्चित हो गया  कि यह, वह नितेश कुमार नहीं है । ऐसा क्यों और कैसे हुआ है, यह व्यक्तिगत और राजनीतिक विषय है।

परंतु केंद्र की राजनीति में विपक्ष को एकजुट करके बिहार के मुख्यमंत्री ने केंद्र के नरेंद्र मोदी सरकार को चुनौती की जिस सीमा रेखा पर लाकर खड़ा किया और वहां से आगे बढ़े सफर में अचानक से नीतीश कुमार के मनो दशा में आए बदलाव सभी के लिए दुखी करने वाला है।


परंतु अचानक से विधानमंडल में उनके द्वारा बेहद ही अपमानजनक तरीके से बेटियों के लिए की गई टिप्पणी उनके सारे किये धरे पर पानी फेर देने जैसा रहा। या कहा जो सकता है कि नीतीश कुमार ने एक झटके में सब कुछ खो दया। 

यह निश्चित रूप से पूरे बिहार को शर्मसार होने का एक बड़ा कारण भी बन गया। परंतु इस सबके बीच बिहार में जातिवादी कार्ड के तहत जातियों की गणना, आर्थिक स्थिति की गणना और फिर आरक्षण को बढ़ाकर 65% करने का राजनीतिक खेल। कुल मिलाकर राजनीति के शतरंज पर शह-मत और घोड़े के ढाई चाल का ही खेल है। बिहार में 1लाख 20 हजार शिक्षकों की नियुक्ति करके निश्चित रूप से नीतीश कुमार ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आगे एक बड़ी चुनौती रखी है।

इस बहाली में पारदर्शिता, निष्पक्ष परीक्षा का संचालन, परिणाम में पारदर्शिता और फिर नियुक्ति से लेकर सभी जगह उत्साहपूर्ण माहौल में पारदर्शिता पूर्ण व्यवहार देश के लिए एक मिसाल बना। परंतु विधानमंडल में दिए गए वक्तव्य से निश्चित रूप से मेरे साथ ही पूरा बिहार है शर्मसार हुआ । हालांकि उन्होंने माफी मांगी परंतु माफी मांगने के भाव में संवेदना की कमी थी।

 बिहार किस ओर जाएगा यह कह पाना निश्चित तौर पर  असंभव है। राजनीतक संभावनाओं के अपार दरवाजे खुलने वाले हैं। राजनीति में जदयू का मतलब नीतीश कुमार है । और जब नीतीश कुमार कमजोर हुए हैं तब बिहार  की सत्ता, सामाजिक संरचना, बिहार की राजनीति, अनिश्चित और कमजोर होगी , इतना तो निश्चित है।