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जरुरी नहीं कि
भगवान सबको
सम्मति ही दें!
सबकी
विचारधारा
धार्मिकता
जातियता
सामान हो..
प्रजातंत्र है
मानवीय है...
मतभेदों को
मार ही देना..
कहीं मुझमें भी तो नहीं..
खोजो, पकड़ो, सोंचो..
आज एक नवजात कन्या का फेंक हुआ शव मिला और ह्रदय कारुणिक क्रंदन करने लगा..बेटी को कौन मार रहा है? क्या वह माँ-बाप और डॉक्टर मर रहे या दहेज़ लोभी हमारा समाज मार रहा है..हमें सोंचना होगा...? (अरुण साथी, रिपोर्टर, बरबीघा, बिहार)
द्रवित होकर निकले चंद शब्द..
बेटी की विदाई
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बेटी तुम मत आना
इस दुनिया में!
यहाँ सिर्फ तुम्हरी
मूर्ति की पूजा होती है..
क्या करोगी आ कर?
दहेज़ के लिए मार दी
जाओगी,
या फिर
निर्भया की तरह
रौंद दिया जायेगा
तुम्हारा अस्तित्व...
यहाँ मैं ही हत्यारा हूँ
और मैं ही हत्या का
आलोचक भी..
मैं ही बताऊंगा
एक बेटी को मारना
महापाप है,
ऐसे लोग समाज के
अभिशाप है..
और मैं ही दहेज़
लेकर शान दिखाऊंगा,
मैं ही शान में शामिल हो
तुम्हारे लहू से सने,
तुम्हारे मांस-लोथड़े से बने
पकवान खाऊंगा..
यहाँ
हत्यारा भी मैं हूँ
और
न्यायाधीश भी मैं ही..
मत आना बेटी तुम
मत आना...
बिहार की राजनीती में राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव की सक्रियता ने बिहार की सियासी तापमान बढ़ा दी है। सबसे अधिक सियासी पारा लालू प्रसाद यादव के द्वारा बिहार के सबसे प्रमुख अस्पताल इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान का औचक निरिक्षण किये जाने के बाद बढ़ गया है। अस्पताल के निरिक्षण के बाद विरोधी दलों ने हमला बोल दिया है। बीजेपी नेता सुशील मोदी के सवाल पूछते हुए कहा कि लालू यादव किस हैसियत से सरकारी अस्पताल का निरिक्षण किया। इसका जबाब दे। इससे साफ होता है की बिहार की सत्ता वही चला रहे है। लालू प्रसाद एक सजायाफ्ता है और वो ऐसा करके क्या सन्देश दे रहे है इसका जबाब नितीश कुमार को देना चाहिए।
उधर लालू यादव ने जबाब देते हुए कहा की वो एक निजी अस्पताल में अपने एक मित्र को देखने गए थे और लौटते हुए आईजीआईएम्एस चले गए और मरीजों का हालचाल जाना। इसमें कोई बुराई नहीं है।
वहीँ स्वास्थ्य मंत्री तेजप्रताप यादव में कहा की उनके पिता अस्पताल देखने गए इसमें कोई बुराई नहीं है।
उधर हेल्थ विभाग में चल रहे हलचल में दवा दुकानों में छापेमारी को लेकर भी तरह तरह की चर्चाएं है। ड्रग्स विभाग के द्वारा दवा दुकानों और गोदामों में लगातार छापेमारी की जा रही है। सरकार इसके पीछे अवैध दवा की बिक्री पे रोक को लेकर ऐसा करने की बात कह रही है पर दवा व्यपारियों में अंदर ही अंदर इस बात को लेकर चर्चा काफी गर्म है की इसी बहाने उगाही का काम किया जा रहा है।
जिस तरह पटना के कुछ बड़े दवा व्यपारियो के यहाँ छापे पड़े और चौबीस घंटे तक एक एक चीज को खंघाला गया उससे इस बात को बल भी मिलता है। बताया जाता है की एक व्यपारी के गोदम में जब कुछ नहीं मिला तो एक्सपायरी भेजने के लिए रखी गयी दवा को ही आधार बना कर मुकदमा कर दिया गया।
इस तरह की छापेमारी पटना के साथ साथ सभी जिलों के किया जा रहा है। उगाही की बात कितनी सच और कितनी झूठ है यह तो लेने वाले और देने वाले ही जानते होंगे पर आम चर्चा इसी की हो रही है की नयी सरकार व्यपारियों को इसलिए तंग कर रही है कि वे उसके वोटर नहीं है। नवादा सहित कई जिलों में राजद नेता इस मामले को मैनेज कर रहे है जिससे इस चर्चा को बल भी मिलता है।
खैर, लालू प्रसाद के बढे गतिविधि सिर्फ विरोधियो के ही नहीं अपनों के भी माथे पे बल ला दिए और लालू प्रसाद के जानकर बताते है को इसी रास्ते लालू प्रसाद बिहार पे अपनी पुराणी पकड़ मजबूत करना चाहते है। अब देखना होगा की नितीश कुमार से इतर लालू प्रसाद के सुपर सीएम होने के दावों को भी हवा निकल रही है।
यमलोक में लोकतंत्र
भूलोक पे लोकतंत्र की वैश्विक सफलता को देखते हुए देवलोक ने भी इसे अपनाने का निर्णय लिया। प्रयोग के तैर पे यमलोक में इसे लागू कर दिया गया। चित्रगुप्त और यमदेव परेशान! मृत्युलोक से आने वालों का स्वर्ग या नरक लोकतान्त्रिक तरीके से डिसाइड होने लगा। इसका कुप्रभाव आम आदमी पे पड़ा। गरीब की हकमारी होने लगी। पूण्य का योग उसे स्वर्ग का हक़दार बता रहा पर यममत उसके विरुद्ध। नेता टाइप आत्मा यममत को तिकड़म से अपने पक्ष में करके स्वर्ग सरक लेते।
शनै शनै यमलोक में चुनाव का समय आ गया। यमराज के सिंघासन ले कब्ज़ा करने बड़े बड़े भूप सब सामने आये। लूट-मार करने वाला, दंगा-फसाद करनेवाला, आतंकवादी और तानाशाह, सभी रेस में लग गए। स्वर्ग और नरक के संयुक्त सम्मलेन में जार्ज पुश नमक एक आत्मा ने अपनी प्रबल दावेदारी पेश करते हुए रासायनिक हथियार के बहाने कई देशों के विनाश की अपनी उपलब्धि गिनाई। फिर दादेन ने यमराज पद के खुद को सरबश्रेठ बताते हुए मानवीय नरसंहार की अपनी क्षमता का वर्णन किया। इस रेस में कई धर्माचार्य शामिल होते हुए अपनी मधुरवाणी से धार्मिक उन्माद फैला कर कराये गए दंगे का सजीव चित्रण किया। फिर किसी ने इसके लिए सबसे उपयुक्त नाम स्वघोषित खलीफा का सुनाया जो धर्म ले नाम पे नरकपिचास से भी ज्यादा क्रूर मौत धरती पे दे रहा है।
फिर आर्यवर्त नामक देश के नेताओं को जब यमराज बनने के इस सुअवसर का पता लगा तब कई असमय ही निकल लिए। नेताओं ने कहा की लोकतान्त्रिक तरीके से प्राणहरण कला में वे प्रांगत है। उन्होंने धर्म, जाति, क्षेत्रवाद सरीखे कई प्राणघातक हथियारों का वर्णन सौदाहरण प्रस्तुत किया।
और अंत में उन्होंने कूटनीतिक प्रहार का प्रयोग करते हुए एलान किया की यदि वो यमराज बने तो जाति के आधार पे आरक्षण लागू कर देंगे। जाति की बहुलता स्वर्ग का आधार होगा, पूण्य नहीं।
इसी बीच यमराज मृत्युलोक से सत्यवान नामक एक युवक का प्राण हरने निकल गए। प्राण हर कर निकल रहे थे कि उसकी पत्नी सावित्री उनके पैरों में लटक गयी। चित्रगुप्त की सलाह से यमराज ने लोकतान्त्रिक नुस्खा अपनाया। कहा " बालिके, मैं जनता हूँ तुम्हारा पति सदाचारी, सत्कर्मी और सत्यवादी है। मैं इसके प्राण लौटा दूंगा पर इसके लिए तुम्हें अपने देश के संसद में सर्वानुमति प्रस्ताव पास करवाना होगा।" इतना कहते हुए यमराज मंद मंद मुस्कुराते हुए चले गए...
आचार्य रजनीश "ओशो" कहते है, दिन तो रोज ही नया होता है लेकिन रोज नया दिन नहीं देख पाने के कारण हम बर्ष में कभी कभी दिन को नया देखने की कोशिश करते है। यह स्वयं को देखा देने की तरकीबों में से एक तरकीब है।
जिसका पूरा बर्ष पुराना हो उसका एक दिन नया कैसे हो सकता है। नया मन जिसके पास हो उसका कोई दिन पुराना नहीं हो सकता है। नया मन हमारे पास नहीं है तो हम चीजों को नया करते है। जबतक जो नहीं मिला, नया होता है। मिलते ही पुराना हो जाता है।
जो स्वयं को नया कर लेता है उसके लिए कोई चीज पुरानी होती ही नहीं। भौतिकवादी चीजों को नया करता है और अध्यात्मवादी स्वयं को नया करता है।