21 सितंबर 2015

असहिष्णु युवाओं का सोशल मीडिया पे आतंक और बिहार चुनाव में इसका इफेक्ट

असहिष्णु युवाओं का सोशल मीडिया पे आतंक और बिहार चुनाव में इसका इफेक्ट
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रवीश कुमार जैसे प्रखर और स्पष्टवादी पत्रकार को सोशलमीडिया से किनारा करना, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कुचलने की कुत्सित साजिश की एक वानगी भर है । एम् एम् कुलबर्गी, पनेसर और दाभोलकर की कटरपंथियों द्वारा हत्या इसी वानगी की चरमोत्कर्ष । सोशलमीडिया सामाजिक दायरे को प्रगाढ़ करने की दिशा में एक सशक्त औज़ार माना गया पर इसके साइड इफेक्ट बड़ी खतरनाक रूप से सामने आया है जो बिहार चुनाव में सोशलमीडिया पे हो रही आपसी गाली गलौज के रूप में देखा जा रहा है । एक सामाजिक बुराई के रूप में कट्टरपंथी अपनी वैमनष्यता की विचारधारा को सोशलमीडिया का इस्तेमाल कर विस्तार दे रहे है और राजनेता अपनी स्वार्थ सिद्धि का इसे एक हथियार बना लिया है ।


वर्तमान चुनाव  सोशनमिडिया के अनसोशल इफेक्ट से प्रभावित हो रहा है । इसका उपयोग विरोधियों को प्रायोजित तरीके से बदनाम करने, अपमानित करने और खामोश करने में किया जा रहा है । युवा इस कुत्सित प्रयास का सहज और कारगर हथियार है, जिसे भावनाओं के बाहुपाश में वीयर और शराब के सहारे किया जा रहा है या फिर वैचारिक ब्रेनवाश से भी ।

एक झूठ को हजार बार बोलो तो वह सच हो जाता है । हिटलर के इस कथन को नरेंद्र मोदी और अरबिंद केजरीवाल ने प्रायोगिक रूप से साबित किया । यदि नहीं, तो कालाधन, भ्रष्टाचार, जनलोकपाल और रोजगार के मुद्दे आज गौण न हो गए होते । 

इसी प्रयोग को बिहार में सभी नेता आजमा रहे है । नितीश कुमार के बिजली नहीं तो वोट नहीं का ऐलान गुम हो गया । अराजकता को वो शुतुरमुर्ग की तरह तूफान आने पे बालू में सर छुपा के देख रहे है । लालू जी का चारा घोटाला उनके लिए ग्राह्य हो गया । सुशील मोदी को पिछले दस साल का कुशासन नजर आने लगा जिसमें आठ साल लगभग साथ रहे । और तो और पप्पू यादव अचानक ईश्वरीय अवतार बन गए । उनका अपराधिक इतिहास स्वर्णाक्षरों से लिखा गया हो जौसे, चमकदमक में खो गया । प्रवचनकर्ता बन गए । मुलायम सिंह और ओवैसी देवदूत सरीखे जनता के हमदर्द बन बैठे है । कथित राष्ट्रद्रोही भाषा के प्रखर वक्ता और कानूनविद ओवैसी के बिहार आगमन पे बीजेपी समर्थकों और नेताओं के चमनिया मुस्कान देखते ही बन रहा है । 

वंशवाद को लेकर राहुल गांधी, लालू यादव को लज्जित करने वाले बीजेपी नेताओं के बेटे, बहु टिकट लेकर मचल रहे है । सीपी ठाकुर, अश्वनी चौबे कुछ नाम इसी श्रेणी के है । इनके बेटे विवेक ठाकुर और अनिल शाश्वत उम्मीदवार है । टीवी कैमरे पे भोकारपार के रोते रामविलास पासवान जी के दामाद को देख वंशवाद की निर्लज्जता की परकाष्ठा समझ सकते है । भाई, भतीजे, बेटे सहित लोजपा में रिश्तेदारों को ही टिकट दिया गया है । जिसे नहीं मिला वो रामा सिंह की तरह बागी हुए और जिसे मिला वो सांसद वीणा सिंह ( सूरजभान सिंह की पत्नी) की तरह रात भर में पलटी मार विरोध के लिए माफ़ी मांग ली । 

लालू यादव से किसी प्रकार की उम्मीद बेमानी है । रामकृपाल यादव सरीखे हनुमान के नहीं हुए तो किसी और के होंगे, नासमझी है । यदुवंशिवादी नारा लगा के यदि वंशवाद फल फूल रहा है तो इसे और जोर से लगा रहे है । 

मांझी जी, कुशवाहा जी सहित राजनीति के हमाम में सब नंगे है । सब एक दूसरे की लंगटई जानते है । पर नसमझ है, तो जनता ही है । सबकुछ आँखों देखी है । पर जैसे थ्रीडी का कोई आविष्कारी चश्मा जनता की आँखों पे चढ़ा दिया गया है । उसे सावन में अंधे हुए गधे की तरह सबकुछ हरा हरा दिखता है । जनता आँख से देखना छोड़, कान से देखने लगी है । तर्क-कुतर्क जाति-धर्म कान रूपी आँखे है ।

इस सब में सोशल मीडिया पे युवा ऐसे उलझ रहे है जैसे सालों की दुश्मनी है । हर छोटी छोटी बात का छिद्रानुवेशन किया जाता है । नतीजा, कस्बाई इलाकों में लोग फ़ेसबुक पे लिखने से बच रहे है । व्हाट्सएप्प के एडमिन ग्रुप को बंद कर रहे है । चुनावी समर जारी है । परिणाम आना बाकि है पर समाज (सोशलमीडिया रूपी भी) बाँट दिया जा रहा है । 

ऐसे में दुष्यंत कुमार की कविता प्रसंगीक है ।..

"आज सड़कों पे लिखे सैकड़ों नारे न देख ।
घर अँधेरा देख तुम, आकाश के तारे न देख ।।"

14 सितंबर 2015

स्कूल छोड़ नमाज पढ़ने जाते है बच्चे...!

स्कूल छोड़ नमाज पढ़ने जाते है बच्चे...!




(अरुण साथी) 



नमाज़ पढ़ने के लिए स्कूल को बंद कर दिया जाता है । यह पहली बार अनुभव हुआ । शेखपुरा(बिहार) के  रमजानपुर गांव में । जुमे के दिन नमाज के वक्त सभी बच्चे स्कूल से निकल गए । बच्चों से पूछा तो कहा की नमाज पढ़ने जा रहे है । बहुत तकलीफ हुयी । बाद में स्कूल गया तो देखा की सभी मुस्लिम शिक्षक भी नमाज पढ़ने चले गए और एक मात्र हिन्दू शिक्षक स्कूल में है । यानि स्कूल बंद हो गया । टिफिन के बाद फिर स्कूल नहीं खुला । मुस्लिम की अधिक आबादी इस गांव में है । हालांकि हिन्दू बच्चे भी पढ़ते है पर उनको भी छुट्टी मिल जाती है । 


वैसे तो उर्दू विद्यालय को शुक्रवार के दिन बंद ही रखा जाता है जो की गलत है पर हिन्दू विद्यालय ( बच्चों का दिया नाम) भी जुम्मे के दिन नमाज से पहले बंद हो जाते है । छोटे छोटे बच्चे, जिन्हें पढाई करनी चाहिए वो स्कूल छोड़ कर नमाज पढ़ने जाते है । किसी भी कौम के लिए यह सबसे दुखद बात है । शायद मुसलमानों में धार्मिक कट्टरता का एक बड़ा कारक भी यही है । बच्चों की पढाई को धर्म से अधिक महत्व देना चाहिए...आखिर भविष्य में उनको एक नयी दुनिया गढ़नी है । नया समाज बनाना है । यही कारण है की पढ़े लिखे लोग isis से जुड़ कर नरसंहार कर रहे है । क्रूरतम । और मरने वाले भी मुसलमान ही है । कल ही #Ndtv पे एक रिपोर्ट देखि, कैसे लोग अपने देश को छोड़ कर भाग रहे है और यूरोप के देश उन्हें शरण देने से मना कर रहे है ।  

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और समुन्द्र किनारे सीरिया के एक बच्चे का मिला शव किसे मार्मिक न कर गया होगा । रुला के रख दिया । युद्ध ग्रस्त सीरिया से इसके पिता पलायन कर रहे थे और नाव पलट गयी । पूरी दुनिया इस बच्चे की तस्वीर देख रोई है ।  

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और अपने यहाँ औरंगजेब रोड का नाम बदल के पूर्व राष्ट्रपति के नाम पे मो0 कलाम रोड किये जाने पे एतराज किया गया, धार्मिक कट्टरता चरम पे है । हमारे आदर्श कलाम होने चाहिए,जिन्होंने अपनी विद्वता से दुनिया में अपनी पहचान बनायीं न कि औरंगजेब, जिसकी क्रूरता अपनों को भी नहीं बख्सा... 

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हालांकि हिन्दू होने के नाते हिन्दू कट्टरपंथियों को मैं क्लीन चिट नहीं दे रहा । दोनों सामान है । जहर जहर है । हिन्दू और मुसलमान नहीं । 

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पर एक फर्क है, कई हिन्दू अपने धर्म के कट्टरता के खिलाफ आवाज बुलंद करते है और एम् एम् कुलबर्गी की तरह मारे जाते है पर मुस्लिमों में यह नगण्य है (शायद एक आध हों, जैसे तस्लीम नसरीन)  बल्कि कई जागरूक मित्र की उन्मादी पोस्ट मर्माहत कर जाती है ।  

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मेरा सिर्फ यह कहना है की शिक्षा से बड़ा कोई धर्म नहीं, बच्चों को बख्स दो । उसे स्वतंत्र करो । उसे समझने दो । मुक्त होने दो । और तब वह अपना धर्म स्वयं चुन लेगा...जो सेवा, करुणा और प्रेम का होगा.... 


(कृपया तार्किक तर्क दें, तथाकथित धार्मिक कट्टरपंथी मूढ़ों को यहाँ जहर उगलने कीजरुरत नहीं है)

12 सितंबर 2015

कौन शर्मिदा होगा...?


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यादवी पंचायत ने जिस परिवार को गाँव से तड़ीपार कर दिया वह महिला कल अपनी फरियाद लेकर आई और अपने आँचल से बांध रखे कुछ पैसे खबर छापने के लिए देनी लगी । मैं काठ रह गया । मामला मुसापुर,  बरबीघा, शेखपुरा, बिहार का है..


बारह-तेरह साल पत्रकारिता जीवन में ऐसा कई बार हुआ है पर हमेशा यह तेजतर्रार लोगों द्वारा किया जाता था । पहली बार एक पीड़ित आम ग्रामीण महिला द्वारा ऐसा किया था । शुरुआत के दिनों में ऐसा करने वालों पे गुस्सा करता था पर बाद में इस बात की समझ हुयी की ऐसा चलन आम है और इसको तोड़ने की जरुरत है ।

मैंने महिला को समझाया की आपकी खबर मैंने ही पहली बार प्रमुखता से प्रकाशित किया और मैं आपसे मिला तक नहीं था फिर क्यों आज पैसा दे रही है ?

दरअसल एक दौर था मेरे यहाँ जब बिना लिफाफा में पैसा रखे प्रेस विज्ञप्ति तक नहीं आती थी और बाकि बसूली तो खैर कहिये मत । अब शायद कामो बेश इसे ख़त्म करने में सफल रहा हूँ । कम से कम अब न्यूज़ को प्रकाशित करने अथवा रुकबाने के एवज में कोई मुझे पैसा देने का साहस तक नहीं जुटा पाता । और  जब  इसे ही न्यूज़ छप जाये तो कोई पैसा क्यूँ दे.. फिर भी कुछ आज भी है...पर कुछ ही..
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पूछने पर महिला बोली-"बौआ, जहां जहूँ पैसे मांगे हे । सोंचलुं ऐजो लगत । कैसु घर बसा दा ।
महिला के साथ उसकी सास (75 बर्ष) भी थी । बेटे के प्रेम प्रसंग मामले में यादवों ने दो माह पूर्व पंचायत लगा कर बढ़ई परिवार के सारे लोगों को गाँव निकाला दे दिया । उनके मवेशी पे कब्ज़ा कर लिया । घर लूट लिया । महिलाओं के साथ पंचायत में दुर्व्यवहार किया । अब दो माह बाद अन्य लोग गांव में जा बसे पर लड़का के परिवार को बसने नहीं दिया जा रहा है ।
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सुनीता देवी कहती है की उसके एक एकड़ खेत को भी दबंगों ने जोत लिया है । घान लगा दी है । जानवर को बेच दिया है । पुलिस भी उसे ही फटकार लगाती है । वह क्या करे । बेटा गलती किया तो जेल में है । कानून है सजा देगी ।
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समाज के हर क्षेत्र में गिरावट हुयी है । पत्रकारिता भी अछूत नहीं है । समाज के लोग ही यहाँ भी हैं । पर पत्रकारिता की गिरावट से समाज पे दूरगामी असर पड़ा है । जरूत है थोड़ी सी अपने अपने हिस्से की ईमानदारी को बचाये रखने की, इससे बड़ा बदलाव शायद ही हो, पर अँधेरी रात में जुगनू की झिलमिल भी राह दिखती है । एक उम्मीद जागती है । आपने  हिस्से की ईमानदारी बचा लूँ यही बहुत है ...

05 सितंबर 2015

मेरे गुरु कौन है ..?


जिंदगी के चार दशक के सफ़र में आज भी मैं किसे अपना गुरु कहूँ, तय नहीं है । एक निहायत ही गरीब परिवार का बच्चा सरकारी स्कूल में ही पढ़ सकता है। सो, सरकारी स्कूल में ही पढ़ाई की । मैं कभी भी बढ़िया विद्यार्थी नहीं रहा, आज भी नहीं । बस पढ़ने की आदत रही है । खूब पढ़ने की । 

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मेरी पढ़ाई लिखाई अपने फुआ के यहाँ बभनबीघा में हुयी । मध्य विद्यालय बभनबीघा के एक भी गुरु जी याद नहीं है, खास । गुरु जी को हमलोग उनके गांव के नाम से जानते थे । औधे वाले, विरपुरवाले, कोसरवाले,  इत्यादि । स्कूल केवल बैठने और खेलने की जगह थी, बस । गीता सर, ललित सर ने कुछ सिखाया ।
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फिर महात्मा गांधी आदर्श उच्च विद्यालय, बभनबीघा पहुंच गया । अब तक अंग्रेजी नहीं जनता था । ज़ेडएच सर थे वहां । शायद, जाहिद सर । ट्रान्सलेशन को टांसन पढ़ाते थे । कुछो समझ नहीं आता था । रमेश बाबू, बहुत पीटते थे । डरे से पेंट में मूत देते थे। कच्चा करांची रखते थे । कामदेव माटसा, पढ़ाते काम, बोलते ज्यादा थे । बन के गिद्दर, जइहें किधर । उनका डायलॉग था । हाँ, शनिवार को परेड तय, वहां सीखा एक-एक कसरत आज भी याद है । काहे की छड़ी ले के कामदेव सर ठरि रहते थे । 

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दशवाँ में जाने के बाद फूफा के छोटे भ्राता ने जब चैलेंज किया तो पढ़ने की ललक जगी और स्वाध्याय में जुट गया । अहले सुबह की पढ़ाई को सर्बोत्तम मान, भीड़ गया । चोरी से परीक्षा दे मैट्रिक पास कर गया । फ़ास्ट डिवीजन । पहुँच गया एसकेआर कॉलेज । पहला दिन, पहली घंटी । जीवन को एक नया मोड़ दे दिया । 

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प्रो0 मो0 रिजमी सर का क्लास था और उनकी अमिन शयानी सी मीठी आवाज आज भी कानों में गूंजती है । उन्होंने हमें प्रेरित किया । खासकर कमजोर बच्चों को । कहा कि "जो बच्चे कमजोर है वो बस इतना करें की कुछ घंटे तेज बच्चे से अधिक पढ़े । जैसे तेज बच्चा 14 घंटे पढ़ाई करता है तो आप 16 करिये । निश्चित सफलता मिलेगी ।" उनका दिया यह मूल मन्त्र मेरे जीवन का एक बड़ा परिवर्तन कर गया । जीवविज्ञान मेरा प्यारा विषय बन गया । स्वाध्याय मेरा जीवन । बाद में देव बाबू ने फूल-पत्ती पढाई तो लगा जौसे किसी बगिया में हों । जीवंत चित्रण । बोर्ड पे जब डायग्राम बनाते तो फूल खिल जाते ।

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अंग्रेजी और फिजिक्स में मैं बेहद कमजोर था । सो ट्यूशन चाहिए । आर्थिक कमी के बाबजूद पढ़ने गया । अंग्रेजी के लिए महावीर चौक पे  जेपी सर थे (शायद), सुना है अभी बिहारशरीफ में बहुत फेमस है, उन्होंने जब अंग्रेजी सिखाई तो लगा ही नहीं की मैं कमजोर विद्यार्थी था । कुछ ही महीनों में मेरी पकड़ बन गयी । अपने बैच का सबसे तेज़ गिना जाने लगा । 


फिजिक्स के लिए मेहुस कॉलेज के रामशंकर सर थे । महावीर चौक पे ही पढ़ाते थे । देवघर जाने के रास्ते मिलने वाले रामपुर के निवासी । फिजिक्स क्या पढ़ाई जैसे खिस्सा सुना रहे हो । एक दम रोचक बना दिया । उनके द्वारा बताया गया “डीजल” का एक एक बात आज तक याद है । 


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कभी अच्छा विद्यार्थी भले न रहा पर किताबें पढ़ने के शौक ने मुझे आदमी तो बना ही दिया । बाद में कम्प्यूटर भी सीखा तो खुद से ही । वह 1994 का साल था । बस चलाते चलाते सिख गया । 

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अंत में यही लगता है कि जिस दिन किसी अन्तः से प्रेरणा जग गयी की उसे पढ़ना है उसी दिन वह पढ़ लेगा । नियमित स्वाध्याय सबसे सार्थक विकल्प है । और पुस्तक ही सर्वश्रेष्ठ गुरु है । 


बाकि आज भी गणित हमरा कुछो बुझे ले नै आबो हो औ हिंदी के टांग तोड़े में माहिर हियो....जैसे तैसे...गाड़ी चल रहलो हें...जहाँ तक पहुंचे...




औ हाँ, बढ़िया बढ़िया लिखे के आदत त प्रेम पत्र लिखला से ही सिख गेलियो । थीन पेपर पर अक्षर बना के और शेरो-शायरी के साथ बहुत्ते प्रेम पत्र लिखे है भाय...से आज भी लिखे ले कुछ-कुछ आ जा हो....बकि बकलोल तो हम आज भी हैयिये हियो...