25 जनवरी 2024

दो राहे पर बिहार

पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर की जयंती के बाद बिहार की राजनीति में अति पिछड़े मतदाताओं को रिझाने के सारे उपक्रम का प्रमाण बनकर सामने आया। मंच से वंशवाद की आलोचना करके नीतीश कुमार ने फिर बिहार को असमंजस में खड़ा किया।

 वहीं, कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने के बाद इसकी चर्चा जोड़ पकड़ी। बिहार की राजनीति जातिवादी है। यही सच भी है। इसी बिहार की राजनीति को धर्मवादी बनाने का प्रयास बीजेपी की है। इस सब के बीच बिहार कुछ चीजों में देश से आगे बढ़कर काम भी कर रहा है। पहली बात राम मंदिर के चरमोत्कर्ष धार्मिक राजनीति के अतिवाद से अलग, बिहार ने माता जानकी की जन्मभूमि में राम मंदिर से एक दिन पहले राम जानकी मेडिकल कॉलेज का शुभारंभ करके संदेश दे दिया ।

इससे पहले भी बिहार में 3 लाख शिक्षकों की सरकारी नौकरी देकर केंद्र सरकार को लजा दिया। वहीं केंद्र ने एक लाख रेलवे चालक की नौकरी की जगह मात्र 5000 की नौकरी का आवेदन मांग कर युवाओं का उपहास भी किया।

 युवाओं का उपवास तो अग्नि वीर जैसे योजनाओं से भी किया गया। यह अलग बात है कि धार्मिक अतिवाद से युवाओं को मति भ्रम में डाल दिया गया। बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव जातिवाद के अतिवाद को आगे बढ़ा समाज को बांटने और मत पाने का माध्यम बना लिया। आरक्षण की सीमा बढ़ाकर सवर्ण को राज्य, देश निकाला जैसा संदेश भी दे दिया ।

अब बिहार में नीतीश कुमार आज पलटेंगे कि कल पलटेंगे, यही संदेश हवा में तैर रहा है। मीडिया माफिया के द्वारा प्रायोजित तरीके से इस तरह का संदेश फैलाया जाता है। जन-जन इसे सच भी मान लेता है। राजनीति भी यही है। कब क्या है, कहां नहीं जा सकता। तेजस्वी यादव ने सत्ता में आने से पहले ए टू जेड का नारा बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री के गांव से दिया । यह बेमानी हो गया । बात इतना, बिहार दोराहे पर है। के के पाठक जैसा अधिकारी अति प्रशंसा से प्रफुल्लित हो अतिवाद का शिकार हो, मनमानी कर रहा। कोई टोकने वाला नहीं । इससे, बिहार सरकार के द्वारा दिए गए नौकरी के लाभ को हानि में बदल दिया गया।

उसे यह समझ नहीं की 24 कैरेट सोने से आभूषण नहीं बनता। पी के जनता को उसके घर में जाकर वंशवाद, जातिवाद का नुकसान उनकी भाषा में समझ रहे। अपेक्षित परिणाम यदि निकला तो बिहार फिर से एक संदेश देश को देगा। पर इसकी उम्मीद कम है।

बस।

23 जनवरी 2024

जन-जन में रमे राम का जयघोष

जन-जन में रमे राम का जयघोष


घट घट के वासी राम लला भव्य और दिव्या मंदिर में विराज गए। प्रतिमा दिव्य, जीवंत, जैसे अब बोल देंगे, कि तब बोल दें। मुस्कान तो जैसे सबके जीवन में सुख के आलंबन का संदेश हो..! आंखें, जैसे जीवन को उद्दीप्त कर रही..!
प्रबिसि नगर कीजे सब काजा।
हृदयँ राखि कोसलपुर राजा॥
गरल सुधा रिपु करहिं मिताई।
गोपद सिंधु अनल सितलाई॥1॥

भावार्थ,
अयोध्यापुरी के राजा श्री रघुनाथजी को हृदय में रखे हुए नगर में प्रवेश करके सब काम कीजिए। उसके लिए विष अमृत हो जाता है, शत्रु मित्रता करने लगते हैं, समुद्र गाय के खुर के बराबर हो जाता है, अग्नि में शीतलता आ जाती है॥1॥

गोस्वामी तुलसीदास के इस चौपाई के भावों को जन जन के मन में उतरने की कामना के साथ ही आह्लादित  और प्रफुल्लित मन भारत की सभ्यता और संस्कृति के इस जय घोष का अभिनंदन करता है। 


निश्चित रूप से बर्बर बाबर ने भारत के इसी सभ्यता और संस्कृति को धूमिल करने का प्रयास किया था परंतु भारतीय जनमानस के सनातनी आधार ने 500 सालों की लंबी सहिष्णुता का परिचय देकर विश्व को सहिष्णुता का ही संदेश दिया है।

प्राण प्रतिष्ठा समारोह भव्य और दिव्या रहा। इसमें देश के ख्यातिलब्ध हस्ताक्षरों की उपस्थिति हुई। आह्लादित मनीषियों की आंखें भी यहां छलक आई।


इस सबसे अलग, भगवान राम का जीवन ही शास्त्र के अनुकूल है। भगवान राम का जीवन ही उपदेश है। इस बात को भी हमें नहीं भूलना चाहिए।

सोमवार को सुबह से लेकर रात तक दीपोत्सव ने जन-जन में रमे राम का जयघोष किया। शहर, गांव, घर, गली, सभी तरफ राम का शंखनाद। घरों और गलियों में राम संकीर्तन का नाद गूंज रहा था।

यह सब के सब भाजपा और आरएसएस के द्वारा प्रायोजित नहीं था। यह सब जन-जन रमे राम थे। स्वतःस्फूर्त। आह्लाद प्रस्फुटित।

राजनीतिक दल निश्चित तौर पर वोटो के लाभ हानि के हिसाब से काम करते हैं भाजपा के एजेंडा में ही राम मंदिर प्रथम था, उसने पूरा किया।

कांग्रेस सहित कुछ विपक्षी दलों ने जन भावना का अनादर किया। उसने भी दूसरे पक्ष के वोट को साधने के लिए ही यह सब किया, जो आरोप वह भारतीय जनता पार्टी पर लगाते हैं।

मूलतः भारत के जन-जन के रोम रोम में राम हैं इसी का जय घोष सोमवार को देखने को मिला । मेरे जैसा अकिंचन, अधी तो यह भी नहीं कह सकता की राम के जीवन का लेस मात्रा भी अपने जीवन में कोई उतार ले तो जीवन सफल हो जाए, यह केवल उपदेश देने वाली बात होगी। बस...