26 जनवरी 2013
22 जनवरी 2013
चिंता शिविर में आउल बाबा का इमोशन अत्याचार.....
गर्म प्रदेश की राजधानी में गरमा-गर्म चिंता शिविर हुई। कथनी और करनी से उलट आम आदमी का साथ नहीं देने वाले हाथ के चिंता शिविर से आम आदमी को बड़ी उम्मीद थी। आम आदमी ने सोंचा कि कुछ करे न करे पर मंहगाई की मार झेल रहे आम आदमी की चिंता के लिए शिविर तो लगा। पर हाय रे राजनीति! चिंता तो हुई पर आउल बाबा की।
चिंता शिविर की चिंता भी बाजिब थी। साहब इत्ते सालों से एक चिरयुवा आस्तीन चढ़ा चढ़ा कर भाषण पढ़ रहा, गरीब कमला-विमला के घर में भुईंयां में बैठ का हाइजीनिक खाना खा रहा, भटटा पर जाकर किसानों की आंदोलन में उसके साथ खड़ा हो रहा और जनार्दन महाराज उनके कहने पर वोट ही नहीं कर रही। हद हे भाई। इतना भी कोई निष्ठुर होता है।
सो बेलचा पुराण के अनुभवी वाचकों ने चिंता शिविर में आउल बाबा की चिंता में चिंतित दिखे। उनके सबसे करीबी दिग्गी महाराज ने कहा, का उपाय हो कि आउल बाबा वोट को टर्नप कर सके? का करे की इनके पी.... पी... बनने में आसानी हो? हम तो भोंक भोंक के थक जा रहे है। केतना संभांले।
इसी चिंता को जाहीर करते हुए एक पुराण वाचक ने थोड़ी कड़बी बात कह दी। आदरणीय श्री श्री आउल बाबा को अपना भाषण रट कर याद करने के बाद पढ़ना चाहिए, स्टेज पर देख कर पढ़ते है तो जनता समझती है कि इनको भाषण देना ही नहीं आता और इसका उपाय यह है कि उनको रटन्त ज्ञान होना चाहिए?
एक पुराण वाचक ने तो कुछ और ही बात कही, आउल बाबा के मन से जनता का डर निकालना होगा। जब भी देश के सामने बर्निंग पॉरब्लम होती है बाबा कोने में दुबक जाते है? इसके तोड़ के लिए एक मंत्र है ऑल इज बेल...बाबा इसी का पाठ करें और जब भी देश के सामने ऐसी समस्या हो चेहरा देखा कर बोल दे ऑल इज बेल.....।
एक कथा वाचक महोदय ने बड़े पते की बात कह दी, आउल बाबा के चेहरे पर भाषण पढ़ते समय इम्प्रेशन ही कुछ नहीं होता है सो लगता है कि रोबोट है, इसका तोड़ खोजिए?
सो आउल बाबा का पहला भाषण ही इम्प्रेसिव रहा, एक दम फूल इमोशनल। मैडम के भी आंसू झलके और पूरी पार्टी पगला गई! जय हो!
देश की रक्षा में शहीद हुए हजारों सैनिकों की मांओं का रूदन राजनीति के जयकार में डूब गई! एक बेबा को उसके शहीद पति का सर हम लाकर नहीं दे सके? आम आदमी के घर का चुल्हे का बर्नर बंद हो गया? मंहगाई मंहगाई हाय मंहगाई, देश के बाहर आम आदमी इसकी चिंता कर रहा है और चिंता शिविर में उलटबांसी।
अन्त में मौनी बाबा ने आकर कहा, बस बेटा, इसी तरह इमोशन होते रहना। मम्मी से सिखो कैसे आंसू बहा बहा कर पद का त्याग किया? इतना आंसू बहाओ कि देश गरीबी, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, मंहगाई सब इसमें बह जाए...
देश चलाना बड़ा आसन है बाबा, घर चले न चले देश तो चलता रहेगा......
यह सब देख-सुन मैं तो गाने लगा-तेरा इमोशन अत्याचार.....
19 जनवरी 2013
और अब बिहार के खेतों में पैदा हो रही है शराब....
बरबीघा (शेखपुरा) बिहार
जी हां और अब बिहार खेतों में भी शराब पैदा हो रही है। यह कपोल कल्पना नहीं बल्कि एक हकीकत है। शेखपुरा जिले के बरबीघा का नारायणपुर मोहल्ला अवैध चुलौआ दारू का एक बड़ा केन्द्र है। इसी केन्द्र को ध्वस्त करने के लिए बरबीघा पुलिस ने बड़ी तैयारी के साथ छापेमारी की। इस छापेमारी में चुलौआ दारू के अड्डे पर पुलिस ने बिरानी पाई।
और इसी आशंका पर पुलिस ने दारू के अड्डे के आस पास खेतों में तलाशी शुरू की और फिर मिला खेतों के अंदर गाड़े गए हजारो लीटर शराब।
अवैध शराब माफिया ने अब घरों की जगह खेतों में बड़े बड़े गढ्ढे खोद कर उसके अंदर शराब बना रहे थे। जैसे जैसे पुलिस छापेमारी करती गई वैसे वैसे खेतों से शराब निकलती गई। नारायणपुर मोहल्ले में चार दर्जन से अधिक शराब के अड्डे खेतों में मिले जिसमें शराब बनती पायी गई। इतना ही नहीं जमीन के अंदर जगह जगह तैयार शराब, मिठ्ठा और अन्य शराब बनाने के सामान गाड़े पाये गए।
नारायणपुर के अवैध शराब के काले कारोबार का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इस मोहल्ले में दारू की तालाब भी है। दरअसल मोहल्ले के लोगों ने अवैध शराब निर्माण के क्रम में निकलने वाले जहरीले पदार्थ को ठिकाने लगाने के लिए एक तलाब ही खेद रखी है जिसका नाम दारू तलाब रखा गया। इस तलाब में पानी की जगह दारू ही दारू नजर आता है। कहा जाता है कि इसके अवशेष को यदि जानवर पी ले तो वह तत्काल मर जाता है।
जो भी हो, पर अब खेतों से निकलती शराब को देख लोग दांतों तले उंगली दबा रहे थे।
06 जनवरी 2013
अपना अपना करो सुधार, तभी मिटेगा बलात्कार।
उस लड़की की छाती को कपड़े से कस कर बांध दिया गया है ताकि उसका स्तन सपाट दिखे। बड़े से बेरंग लबादानुमा कपड़ा उसे पहनाया जाता है। कभी उसका श्रृंगार नहीं किया जाता। उसका स्कूल जाना बंद हो गया और उसके पिता लज्जा से उसकी शादी की बात करने कहीं नहीं जाते। कभी उसको मुस्कुराते हुए नहीं देखा जाता। उसका घर से निकलना बंद हो गया और लोग उसे अजीब सी भूखी निगाह से देखते है।
यह भारत की बेटी से हुए बलात्कार के पांच साल बाद का दृश्य है जिसे मैं रोज देखता हूं। उसके साथ बलात्कार करने वाले को दस साल की सजा हो गई पर यह अब भी सजा भोग रही है।
दिल्ली गैंग रेप पर हाय तौबा के बाद से ही मैं लगातार सोंच रह हूं कि आखिर बलात्कार का समाधान क्या है तब सबसे पहले अपनी तरह ही उंगली उठती है।
यही तो वह देश है जहां पॉर्न स्टार सन्नी लियोन को हमने आत्मसात कर लिया। नेट पर इतना खोजा कि वह दुनिया में सबसे अधिक खोजे जाने वाली बन गई। सन्नी लियोन को इतनी शिद्दत के साथ किसने किसने और क्यों खोजा? सन्नी लियोन वही है जो नेट पर ओपने सेक्स करती देखी जाती है और हमारे भारतीय मानस ने उसे स्वीकार कर कौन सा संकेत दिया?
सिर्फ यही क्यों घरों में दिखने वाले घारावाहिक पर अवैध संबंधों की भरमार। कौन देखता है इसे? और इससे भी बढ़ कर कामुक बॉडी स्प्रे का जमाना। पुरूषों के चडडी से लेकर स्प्रे पर सबकुछ अर्धनग्न महिलाऐं ही बेचती है, क्यो?
और हमारे घरों में आने न्युज पेपर से लेकर मैगजीन तक में अर्धनग्न और कभी कभी पुर्ण नग्न महिलाओं की तस्वीर क्यों होती है? और फिल्मों के आइटम सॉंग पर कौन झुमता?
और एक बड़ी ही खतरनाक बात यह कि आज चाइनिज मोबाइल के दौर में बच्चे बच्चे के हाथ में पॉर्न फिल्म है। झुग्गी से लेकर स्कूलों तक छुप छुप कर बच्चो ब्लू फिल्म देख रहे। महज दस रूपयें में चार जीबी मेमोरी भर दिया जाता है।
कामुकता हमारे अंदर है। हम यही सब देखना चाहते है तो बाजार में बैठा बनिया वही दिखाता है। यह हमारे अंदर की कामुकता है जिसका प्रकटीकरण सिनेमा, टीवी, अखबार और सन्नी के रूप मे सामने आता रहता है।
बात साफ है कि हम ज्वलनशील सामान तो जुटा रहे और उसमें चिंगारी भी लगा रहे और चिल्ला रहे है कि आग क्यों लग गई।
अब बलात्कार की बात यहीं से शुरू होती है। पुरूषवादी इस समाज में हम हमेशा से स्त्री को उपभोग की वस्तु समझते रहे है। उसके माथे पर पुरूस्त्व के टीका के रूप में कभी सिंदूर, कहीं चुड़ी, कहीं मंगलसुत्र तो कहीं नाम के साथ ही पुरूषों का नाम। आश्चर्य तो यह कि जिंस और टॉप पहने महिलाओं के हाथों की चुड़ियां भी उसके अधुनिक होने पर सवाल उठाती रहती है।
मतलब कि स्त्री हमेशा से एक तुच्छ और कमजोर प्राणी के रूप में पेश किया गया। उपभोगतावादी समाज में उसे और तेज से बाजार में बैठाया गया और इसी तरह पेश किया जैसे वह कोई वस्तु हो।
और यह पुरूषवादी समाज की ही देन है कि बलात्कार को एक अपराध की तरह ने देखकर हमारा प्रगतीशील समाज इज्जत के साथ देखता है। स्त्री के साथ हुए बलात्कार के बाद ऐसे हो हल्ला किया जाता है कि जैसे उसका सबकुछ लुट गया। और फिर दंभी समाज बलात्कारी से अधिक अपराधी उसे ठहरा देता है जिसके साथ बलात्कार हुआ। इसमें महिलाऐं सर्वथा आगे रहती है। नतीजा बलात्कार से पीड़ित के लिए जिंदगी मौत से बदत्तर हो जाती है।
कैंडल लाइट रोमांटिक मार्च करने वालों में से कोई एक भी आगे आकर यह नहीं कहता कि मैं बलात्कार पीड़ित से विवाह करूंगा। कई लड़कियों के साथ सेक्स का आनंद लूट चुके युवा भी यही चाहता की उसकी होने वाली बीबी का कौमार्य भंग न हो?
इन सब बातों को मैं बलात्कार का मूल अपने गंदे समाज को ही ज्यादा जिम्मेवार मानता हंू। गंदगी को ढांक पोंत कर रखने के आदि इस समाज को सुधारे बिना हम बलात्कार को कम नहीं कर सकते। बिडम्बना यह कि अभी फेसबुक पर ही देखने को मिला जब एक लड़की ने लिखा कि मेरे स्कर्ट प्रतिबंधित मत करो बल्कि बलात्कार तो पुरूष करते है इसलिए शाम से उसके घर से निकलने पर प्रतिबंध लगे।
बात यह कि सबसे पहले बलात्कार की घटना को हमारा समाज सहजता से देखे। संपुर्णता देखे। इज्जत से जोड़कर नहीं। दोष बलात्कारी को दे पीड़िता को नहीं। और इसी सहजता से उसे हमारा समाज अपना ले और फिर कानून अपना काम ईमानदारी से करे और एक निश्चित समय में सजा हो।
और हम अपनी कामुकता को भी संपुर्णता से देखें और इसका परिष्कार करें। हमे अपनी तरफ देखने की आदत डालनी होगी। बात बात पर दूसरों की तरफ उंगली उठा कर हम सबसे बड़ा गुनाहगार बन जाते है।
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