27 दिसंबर 2023

साधुता, संतत्व और पद्मश्री जैन साध्वी माता चंदना जी का आशीष

साधुता, संत्तत्व और पद्मश्री जैन साध्वी माता चंदना जी का सानिध्य 


साहित्यकारों ने अक्सर साहित्यिक अलंकारों में किसी संत , साधु का वर्णन करते हुए कई अलंकरण जोड़े हैं। इन अलंकारों में कई बार पढ़ा है कि उनके चेहरे का आभामंडल दिव्या था। वहां से दिव्य प्रकाश निकल रहे थे । उनके व्यक्तित्व से ऊर्जा का प्रवाह हो रहा था। ऐसा महसूस किया जैसे ईश्वरीय अलौकिकता आभामंडल से प्रवाहमान है। आदि, इत्यादि।
 कुछ इसी तरह के अलंकारों और ईश्वरीय अलौकिकता से मेरा साक्षात्कार मंगलवार को नालंदा जिले के राजगृह के वीरायतन में हुआ । यहां पद्मश्री माता चंदना जी का आशीर्वाद मिला। अलौकिक!

 शरणागत होकर आशीष लिया। स्वयं को उनके चरणों में अर्पित किया तो माताजी ने अपने देवत्व वचनों से मुझे उपकृत किया । साधु, संत, महात्मा, पंडित, मुल्ले , इन सब के प्रति शुरू से ही मेरे मन में आस्था नहीं है। यह मेरा अहंकार ही है। पर है। मैं जल्दी किसी को पैर छूकर प्रणाम नहीं करता। स्वतः प्रेरित होकर करता हूं।

माता चंदना जी की अलौकिक आभा ने मुझे खींच लिया । पैरों को छूकर उनके चरणों में जाकर बैठ गया । वे ईश्वरीय कृपा स्वरूप मुझपर ज्ञानामृत झिड़कने लगीं। जैसे माता का स्नेह बरस रहा हो।

उन्होंने भगवान महावीर के उपदेशों को उद्धृत किया । कहा, मनुष्य अलग-अलग जाति, धर्म में बंटा हुआ है। हिंसा कर रहा है, जबकि ईश्वर एक है।वह किसी को अलग नहीं किए हैं।

उन्होंने कहा, मैं आज तक किसी को यहां जैन धर्म अपनाने के लिए प्रेरित नहीं की। सब की सेवा करती हूं। इसी क्रम में उन्होंने मुझसे केवल एक अपेक्षा मांगी।कहा, मैं चाहूंगी कि आप मांसाहार ना करें। शाकाहारी रहे। मैंने उनको बताया कि मैं शाकाहारी हूं तो वे आह्लादित होकर दोनों हाथ उठाकर मुझे आशीष दी।

कहा, जाती और धर्म के झगड़े नेताओं और धर्म गुरुओं की देन है।

एक उदाहरण प्रस्तुत कर समझाया कि जब मैं वीरायतन में पंछियों को खाना देने के लिए जाती हूं तो वहां अलग-अलग प्रजाति के पंछी होते हैं। जिसमें तोता, मैना, कौवा, गोरैया इत्यादि शामिल है। गिलहरी और चूहा भी आते हैं । सभी एक साथ खाना खाते हैं । वे झगड़े नहीं करते हैं, पर मनुष्य एक समान होकर झगड़े करते रहते हैं।

उन्होंने पूरे विश्व में युद्ध और हिंसा को भी  उद्धृत किया। कहा कि यूक्रेन और इजराइल में युद्ध की विभीषिका से मनुष्य जाति खतरे में है।


मैं बरबीघा रेफरल अस्पताल के प्रभारी डॉ फैसल अरशद  के आग्रह पर उनके साथ वहां गया था। डॉ फैसल का माताजी से अतुल्य जुड़ाव है। माता जी ने वीरायतन को खड़ा करने में डॉ फैसल जी के पिता डॉक्टर आर इसरी के योगदान को याद किया। कहा कि वह नहीं रहते तो वीरायतन आज यहां नहीं रहता। वे लाखों लोगों की सेवा नहीं कर पाती। 

इसी दौरान डॉ फैसल ने बाहर निकलने पर अपना एक संस्मरण सुनाया। कहा कि एक बार मैं शुक्रवार को माता जी के चरणों में आशीष ले रहा था। इसी दौरान जब एक बज गए तो माताजी ने मुझे नमाज पढ़ने के लिए जाने के लिए कहा। स्पष्ट कहा कि सामने मंदिर में जाकर नमाज पढ़ लो। अपने एक सहयोगी को मेरे साथ भेज दिया।


वहीं मैं सोच रहा था, आज की दुनिया में हम भले स्वयं को प्रगतिशील कहते हो, परंतु हम गिरावट की हो रही अग्रसर हैं। कुछ लोग आज भी इस धरती और मनुष्यता को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। उन्हीं में से एक माता चंदना जी भी एक हैं। ईश्वर हमें कब, कहां, कैसे बुलाएंगे । कहां मिलें। कहां आशीष दें। यह मुझे पता नहीं होता। ईश्वर सर्वव्यापी हैं। यह पता है मुझे।
और लौटते समय, सिलाव का विश्व प्रसिद्ध खाजा का आनंद तो बनता ही है।

24 दिसंबर 2023

बिहारी लिट्टी चोखा और स्नेह की रेसिपी

बिहारी लिट्टी चोखा और स्नेह की रेसिपी

अरुण साथी

सर्दी शुरू होते ही। लिट्टी चोखा शुरू हो गया। बिहारी लिट्टी चोखा, सिर्फ बिहारी लिट्टी चोखा नहीं होता। उसमें होता है अपनों का प्यार।
लिट्टी चोखा देहाती हो तो उसका स्वाद का क्या कहना। पहले आटा प्रेम से गूंथ कर लोई बनाना। फिर उसके लिए सत्तू तैयार करना दोनों कठिन कार्य है। सत्तू देसी चना का शुद्ध हो तो उसके स्वाद में एक अलग तरह की खुशबू होती है।

सत्तू में औषधीय गुणों से भरपूर जमाइन , मंगरेला तो अनिवार्य जी होता है । फिर अदरक,  प्याज, लहसुन, कच्चा मिर्च उसमें मिलने से स्वाद में और बढ़ोतरी हो जाती है। फिर कहीं नींबू का रस मिलाया जाता है तो कहीं-कहीं यदि घर के अचार का मसाला मिला दीजिए तो फिर स्वाद का क्या कहना।
आटा के गूथने में ही थोड़ा सा घी मिला दीजिए तो वह मुलायम तैयार होता है। फिर तैयार सत्तू को आटा में भरकर गोल-गोल बनाया।

गाय के गोबर का बना गोइठा यदि हो तो क्या कहना। गोइठा को लह लह लहका दीजिए। फिर आग थोड़ा शांत होने पर तैयार किए गए कच्चा लिट्टी को रख या ढक दीजिये। लहराते आग में जब लिट्टी पकता है तो उसका जरैंधा स्वाद भी बेहद स्वादिष्ट लगता है।
आग पर लिट्टी पकाने के दौरान जब फट जाता है तब हम समझते हैं कि  तैयार हो गया। फिर उसे हम लोग अलग कर लेते हैं । फिर उसे जालीदार सूती के कपड़ा में रखकर उसके ऊपर लगे राख को हम लोग निकाल लेते हैं । 


(इतना सब करने पर लिट्टी चखने का प्रबल इच्छा को आप रोक नहीं सकते। सो हाथ से झाड़ कर उसे ग्रहण करना ही पड़ता है।)


फिर घी के बर्तन में उसको रख कर चारों तरफ घी मिलाया जाता है। कहीं कहीं घी में डुबोकर भी निकाल लेते हैं।

लिट्टी के लिए बैगन चोखा भी बनाना आसान नहीं होता । चोखा बनाने के लिए गोल बैंगन को बीच से काट कर उसमें हरी मिर्च और लहसुन घुसेड़ कर फिर उसी तरह आग में पकाया जाता है।

 टमाटर को भी आग में पका लेने के बाद उसमें कच्चा प्याज, अदरख, पका आलू इत्यादि को मिलाकर बैंगन का चोखा (भर्ता )तैयार किया जाता है । इस बैगन के चोखा को और स्वादिष्ट बनाने के लिए इसमें नींबू का रस निचोड़ा जाता है। धनिया पत्ता मिलाया जाता है। और फिर और स्वाद बढ़ाने के लिए कहीं-कहीं लवण भास्कर भी मिला दिया जाता है।

तब जाकर लिट्टी और चोखा का स्वाद अनमोल हो जाता है। वैसे तो घर में आप इस लिट्टी चोखा का आनंद ले सकते हैं। परंतु यार दोस्त के साथ यदि लिट्टी चोखा का आनंद मिले तो उसका स्वाद और बढ़ जाता है ।

उसमें यदि लिट्टी चोखा कारीगर से नहीं, दोस्तों के साथ खुद से बनाई जाए तो फिर क्या कहना। मतलब की बिहार का लिट्टी चोखा , लिट्टी चोखा नहीं होता। वह अपनेपन की पहचान होती है। उसमें अपनेपन का स्वाद होता है। उसमें प्यार और मनुहार होता है। दोस्तों की अटखेलियां होती है। लिट्टी पकाते वक्त जब आग में हाथ जलता है तो उसमे भी आनंद है। हंसी ठिठोली होता है। सभी लोग बिहारी लिट्टी चोखा का आनंद सामूहिक रूप से लीजिए तो अलग आनंद है।

15 दिसंबर 2023

सांप ही सांप को खा जाता है। दलित मानसिकता और जय भीम

सांप ही सांप को खा जाता है। दलित मानसिकता और जय भीम

कड़वी बात लिख रहा। बुधवार को बरबीघा के श्री कृष्ण राम रुचि कॉलेज के छात्रावास में एक युवक ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। वह इंटर का छात्र था और एनसीसी का कैडर भी था। पूरी तरह से आत्महत्या के इस साफ मामले को परिवार के लोगों ने हत्या में बदल दिया। उसकी प्राथमिकी भी कराई। वही इस छात्रावास के तीन छात्रों को पकड़ के पुलिस के हवाले भी कर दिया।

दोनों तरफ के लोग अनुसूचित जाति से जुड़े हुए थे

कॉलेज के छात्रावास का नाम पूर्व में डॉक्टर श्री कृष्ण सिंह हरिजन छात्रावास था परंतु भीम आर्मी का जब उन्माद चला तो नाम को बदलकर अंबेडकर कल्याण छात्रावास कर दिया गया । वहीं अब इसे कॉलेज के अधिकार क्षेत्र से बाहर करके कल्याण विभाग ने अपने हाथ में ले लिया।

मृतक छात्र का परिवार भीम आर्मी के कथित संगठन से जुड़ाव रखने के कारण पूरी तरह से इसमें साजिश रची गई । बिना वजह सड़क को घंटो जाम रखा गया । इसमें जमकर हंगामा भी किया गया।

पहले इस मामले को छात्रावास के बगल में रहने वाले सवर्ण जाति के लोगों को फसाने की साजिश के तरफ साफ तौर पर प्रयास किया गया। परंतु उसमें कोई सफलता नहीं मिली तो छात्रावास के स्वजातीय छात्रों को ही इसमें फंसा दिया गया।


पुलिस के द्वारा शुरू से ही इसे आत्महत्या बताया जाता रहा। मृतक छात्र के भाई और पिता के द्वारा उसके मोबाइल को छुपा लिया गया। कहा गया कि उसके पास मोबाइल नहीं था। पुलिस ने दबाव बनाया तो सब डिलीट कर मोबाइल दिया गया। इसी से पता चलता है कि मामला कितना संदिग्ध है। वही इंटरनेट पर एक छात्रा का सुसाइड नोट भी वायरल है । जिसमें आर्मी जॉइन नहीं कर पाने की वजह से आत्महत्या करने के बारे में उसने लिखा है।

इस पूरे मामले में भी संगठन से जुड़े लोगों ने भी पुलिस पर दबाव बनाया। यदि इस पूरे मामले में दूसरे किसी भी जाति के लोगों की संलिप्तता होती तो आज पूरे बिहार में हंगामा हो रहा होता।

कहावत भी है कि सांप को जब कुछ खाने के लिए नहीं मिलता तो अपने बच्चों को भी खा जाता है। वहीं एससी ने ही एससी को फंसाया है।

01 दिसंबर 2023

कर्म ही पूजा है, यह एक मंत्र है

 कर्म ही पूजा है, यह एक मंत्र है 


इसकी मूल अवधारणा सनातन धर्म ग्रंथ गीता ही है। इसके लिए अतिरिक्त किसी धर्म के धार्मिक ग्रंथ में ऐसा उदाहरण नहीं मिलता है। यह छोटी बात नहीं है। खासकर वर्तमान इस युग में। आज  जितनी तेजी से हम धार्मिक होने का दवा और दिखावा करते हैं। उतने हम धार्मिक नहीं हो सके हैं । क्योंकि धर्म  धारण करने की चीज है। आज धर्म सोशल मीडिया पर तो दिखता है। समाज, घर, आचरण में बिल्कुल नहीं ।

दरअसल, यदि हम कर्म को पूजा मान लेंगे तो धर्म को हम धारण करेंगे। तब हममें बदलाव आएगा। हम नैतिकवान, प्रेम पूर्ण और संवेदनशील होंगे।  आचार्य ओशो पूछते हैं, हमारा धर्म ग्रंथ हजारों सालों से हमें नैतिक, संवेदनशील तथा धार्मिक बनाने का ज्ञान दे रहा है। आज इस बात का दावा किया जाता है कि हम पहले से और अधिक अनैतिक  और संवेदनहीन हो गए हैं।

तब, हजारों सालों से जो हम धर्म की शिक्षा ले रहे हैं। उसमें कुछ ना कुछ कमी जरूर है। अनुभव भी यही कहता है।  धर्म का दिखावा करने वाले और धर्म को धारण करने वाले, अलग-अलग होते हैं।

 

 जब हम धर्म को  कर्म में धारण करेंगे तो हम समस्त चराचर से प्रेम करेंगे। किसी का अहित नहीं करेंगे। क्योंकि सनातन में आत्मा अमर है। तो जो आत्मा मुझ में है। वही 84 लाख योनियों में है। पशु में है। कुत्ते में है। चींटी में भी है। और फिर सब कुछ बदल जाएगा।

24 नवंबर 2023

खड़ूस नाना पाटेकर के बहाने सोशल मीडिया का चाल, चरित्र और चेहरा

 खड़ूस नाना पाटेकर के बहाने सोशल मीडिया का चाल, चरित्र और चेहरा 



अरुण साथी

वाराणसी में एक फिल्म की शूटिंग के दौरान एक किशोर के द्वारा नाना पाटेकर के करीब आकर सेल्फी लेने का प्रयास किया गया। जिसके बाद नाना पाटेकर ने उस किशोर को हल्का सा एक थप्पड़ जड़ दिया । फिर उसे वहां से हटा दिया गया । बुधवार को सोशल मीडिया पर यह वीडियो इतना तेजी से वायरल हुआ की एक बार में ही सिनेमा जगत का वह कद्दावर हीरो, जिसका नाम ही काफी होता है, खलनायक की तरह प्रस्तुत कर दिया गया ।


सोशल मीडिया  पर सक्रीय कोई भी  यदि वाह-वाही पाकर खुद को हीरो समझने लगे, तो यह उसकी ना समझी होगी। वही लोग जरा सी गलती पर खलनायक बनाने में देर नहीं करते, ऐसा चरित्र इसका है।

सोशल मीडिया का चाल, चरित्र और चेहरा बहुत ही नकारात्मक है। नाना पाटेकर एक उदाहरण हो सकते हैं। ऐसे कई उदाहरण भरे हुए हैं। एक उदाहरण इंस्टाग्राम की फेम गुनगुन गुप्ता भी है।

इंस्टाग्राम पर उसको लाखों लोग फॉलो करते और उसके एक अदा पर वाह वाह करने लगते । कम उम्र के इस बच्ची की नादानी से एक युवक के साथ अश्लील वीडियो चैटिंग का वीडियो वायरल कर दिया गया। निश्चित रूप से यह साजिश के तहत ही हुआ होगा। फिर गुनगुन गुप्ता एक खलनायिका की तरह सोशल मीडिया पर ट्रेंड कर गई। इसमें कुछ नमी लोग भी थे जो सभ्यता, संस्कृति और चरित्र की बात करते थे। उन्होंने भी गुनगुन के वीडियो को या तो वायरल किया या फिर उसे पूरा देखने के लिए खूब मेहनत की। उस बच्ची के नग्न वीडियो को देखने की इस भावना से प्रेरित होकर वीडियो देखा भी और फिर उस बच्ची का सोशल मीडिया पर चरित्र हनन भी करने में देर हम नहीं किए। यह हमारे अंदर के कुंठा ही थी।

सोशल मीडिया पर चाल चरित्र और चेहरा बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के माध्यम से भी दिखा। जब उन्होंने विधानसभा में नारी सम्मान को लेकर आपत्तिजनक वक्तव्य दिए तो उसे कई लोगों ने सेक्स एजुकेशन से जोड़कर अपना-अपना ज्ञान बांटना शुरू कर दिया। जबकि पूरे वक्तव्य में सेक्स एजुकेशन जैसी कोई बात नहीं थी। उसकी प्रस्तुति तो निश्चित रूप से निंदनीय थी। 

इस सबके बीच नाना पाटेकर का वीडियो भी सामने आया। जिसमें उन्होंने कहा कि उनके फिल्म के दौरान एक रिहर्सल में इस तरह का दृश्य था और उनको लगा कि वही शूटिंग हो रही है। उन्होंने एक चपत लगा दिया।

खैर, पहली बार इस वीडियो को देखते ही यह समझना चाहिए कि नाना पाटेकर एक बुजुर्ग हैं और वहां सेल्फी लेने आया एक किशोर को यदि उन्होंने एक चपत लगा भी दिया तो कोई बहुत बड़ी बात नहीं हो गई ।

बुजुर्ग ऐसे भी थोड़ा चिड़चिड़ा होते हैं और नाना पाटेकर तो खड़ूस है ही । परंतु वह दिल के अच्छे हैं। सामान्य जीवन जीते हैं । आम लोगों की मदद करते हैं। सबके लिए खड़े होते हैं। परंतु वही नाना पाटेकर जब एक गलती करते हैं तो पढ़े-लिखे विद्वान महारथी से लेकर नई पीढ़ी के भड़काऊ बड़बोले युवा तक, हाय तौबा करने लगे। ये वही लोग थे जिनके द्वारा किसी को चपत लगा देना साधारण सी बात थी।


एक कुंवारी गर्भवती महिला को पत्थर मारने की जब बात आई तो ईसा मसीह ने कहा कि पहले पत्थर वही मारे जो पापी नहीं हो, सोशल मीडिया पर यह बात बिल्कुल नहीं होता। जो जितना बड़ा पापी होता है, वह सबसे पहले पत्थर मारना शुरू कर देता है।

अपने अंदर की हीनता, ग्लानि, भड़ास निकालने का मंच तो सोशल मीडिया है ही। सोशल मीडिया में सबसे दुखद नकारात्मक पहलू यही है कि जिसे हम कल हीरो मानते हैं और हीरो बनाते हैं उसकी वाह वाह करते हैं। उसे उसकी एक छोटी सी गलती के लिए खलनायक मनाने में जरा सा भी परहेज नहीं करते । उसकी सच्चाई जानने का भी प्रयास नहीं करते । उसकी मजबूरी जानने का भी प्रयास नहीं करते। मतलब कि हमारे अंदर असहिष्णुता कूट-कूट कर भर गया है । सोशल मीडिया पर घृणा और हीनता के यह भावना इतनी तेजी से फैलता है कि हर कोई उसे फैलाने में ही भागीदार बन जाता है ।

सोशल मीडिया में आग लगने के बाद उसकी चिंगारी को और हवा देने का प्रयास ही होता है। यह एक खतरनाक दौर है। बिल्कुल जुंबी की तरह। इस दौर से अछूता कोई नहीं है। परंतु सोशल मीडिया पर रहने वाले लोगों से इतना तो निवेदन जरूर रहेगा की कौवा यदि आपका कान लेकर भाग गया तो दूसरे के कहने पर भरोसा मत करिए, थोड़ी देर रुकिए और अपने कान को देखिए और यदि सही हो तब ही हाय हाय करिए, धन्यवाद।

09 नवंबर 2023

यह, वह नीतीश कुमार नहीं हैं ...

 यह, वह नीतीश कुमार नहीं हैं ...


 2005 से पहले और उसके बाद नीतीश कुमार की पहचान शांतचित, सौम्यतापूर्ण, तर्कपूर्ण, तथ्यों के साथ   बातों को रखने की थी। उस दौर से निकलकर जब बिहार नीतीश कुमार के सोशल इंजीनियरिंग के दौर में प्रवेश किया तो बिहार में बदलाव के आश्चर्यचकित नतीजे देखने को मिले। उस दौर में नीतीश कुमार के सोशल इंजीनियर होने में कमोबेश सभी जातियों में उनके स्वीकार्यता थी। इसके लिए बिहार में सड़कों का जाल बिछाना, बिजली की व्यवस्था करना, बेटियों की शिक्षा और बेटियों के लिए आरक्षण और नौकरी नीतीश कुमार के ऐतिहासिक कामों में शामिल है।


परंतु पिछले कुछ महीनों से नीतीश कुमार के वक्तव्य, व्यवहार और फिर विधानमंडल में स्त्री को लेकर दिए गए आपत्तिजनक टिप्पणी से यह तो निश्चित हो गया  कि यह, वह नितेश कुमार नहीं है । ऐसा क्यों और कैसे हुआ है, यह व्यक्तिगत और राजनीतिक विषय है।

परंतु केंद्र की राजनीति में विपक्ष को एकजुट करके बिहार के मुख्यमंत्री ने केंद्र के नरेंद्र मोदी सरकार को चुनौती की जिस सीमा रेखा पर लाकर खड़ा किया और वहां से आगे बढ़े सफर में अचानक से नीतीश कुमार के मनो दशा में आए बदलाव सभी के लिए दुखी करने वाला है।


परंतु अचानक से विधानमंडल में उनके द्वारा बेहद ही अपमानजनक तरीके से बेटियों के लिए की गई टिप्पणी उनके सारे किये धरे पर पानी फेर देने जैसा रहा। या कहा जो सकता है कि नीतीश कुमार ने एक झटके में सब कुछ खो दया। 

यह निश्चित रूप से पूरे बिहार को शर्मसार होने का एक बड़ा कारण भी बन गया। परंतु इस सबके बीच बिहार में जातिवादी कार्ड के तहत जातियों की गणना, आर्थिक स्थिति की गणना और फिर आरक्षण को बढ़ाकर 65% करने का राजनीतिक खेल। कुल मिलाकर राजनीति के शतरंज पर शह-मत और घोड़े के ढाई चाल का ही खेल है। बिहार में 1लाख 20 हजार शिक्षकों की नियुक्ति करके निश्चित रूप से नीतीश कुमार ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आगे एक बड़ी चुनौती रखी है।

इस बहाली में पारदर्शिता, निष्पक्ष परीक्षा का संचालन, परिणाम में पारदर्शिता और फिर नियुक्ति से लेकर सभी जगह उत्साहपूर्ण माहौल में पारदर्शिता पूर्ण व्यवहार देश के लिए एक मिसाल बना। परंतु विधानमंडल में दिए गए वक्तव्य से निश्चित रूप से मेरे साथ ही पूरा बिहार है शर्मसार हुआ । हालांकि उन्होंने माफी मांगी परंतु माफी मांगने के भाव में संवेदना की कमी थी।

 बिहार किस ओर जाएगा यह कह पाना निश्चित तौर पर  असंभव है। राजनीतक संभावनाओं के अपार दरवाजे खुलने वाले हैं। राजनीति में जदयू का मतलब नीतीश कुमार है । और जब नीतीश कुमार कमजोर हुए हैं तब बिहार  की सत्ता, सामाजिक संरचना, बिहार की राजनीति, अनिश्चित और कमजोर होगी , इतना तो निश्चित है।

26 अक्तूबर 2023

आज विश्व कुत्ता दिवस है

 आज विश्व कुत्ता दिवस है

#International_Dog_Day यह स्नेह का रिश्ता है। कुत्ता नाम सुन कई लोग आज भी असहज हो जाते है। आवारा कुत्ते के आतंक को आज भी सनसनी बनाया जाता है। खैर, आज विश्व कुत्ता दिवस है। जिन लोगों ने कुत्ता पाला है, वहीं इसके मर्म को समझ सकते है। यह प्राणी इतना संवेदनशील है कि उसका वर्णन नहीं। मेरा रॉकी तीन साल का हुआ है। घर का सबसे प्यारा सदस्य है। पर यह मानव के भाव को पढ़ सकता है। सूंध सकता है। अपनी भाषा में आपसे बात करता है। 


आपको उत्साहित रखता है। आपके प्रति जिम्मेवार रहता है। मेरा रॉकी बहुत प्रशिक्षित नहीं है। साधारण है। मगर प्यारा है। इसकी सुबह नियमित पांच बजे होती है। पांच बजे मुझे प्यार से आहिस्ते छुकर जगाना चाहता है। कूं कूं की आवाज लगाएगा। यदि नहीं जागा तो मुंह के थुथन से जगाएगा। इसे पता है की कैसे पंजा से नाखुन लग सकता है, सो उसका ख्याल रखता है। नहीं जागा तो पता नहीं कौन सी घड़ी है इसके पास, ठीक सवा पांच में जोर से भैंकेगा। पंजा चलाएगा। उसके बाद बाहर नित्य क्रिया के लिए जाने के लिए उत्साह से भर उठेगा। खूब इतराएगा। बहुत बातें है।
शाम में खेलने के लिए उकसायेगा। आवाज देगा। कुछ देर लुका छुपी खेलने पर शांत हो जाएगा। और कहीं बाहर गया तो राह तकता रहेगा। दरबाजे पर जा जा कर देखेगा। बहुत समय निकल जाने के बाद वहीं बैठेगा। इंतजार करेगा। आने के बाद खूब इतराएगा। यह प्राणी प्रेम, स्वामी भक्ती का जीता जागता उदाहरण है। गली के कुत्ते भी ऐसे ही होते है। उसे खाना और प्यार देकर देखिए। मेरे गांव का तीन कुत्ता मेरे घर को अपना समझ लिया है। जब भूख लगेगी, आ जाएगा। उसकी कहानी बाद में । दुख है कि कुछ लोग शौक से कुत्ता रखते है पर मन भर जाने या मजबूरी में उसे भगा देते है। ऐसे कुत्तों का देख मन भर आता है। मेरे आस पास कई है। हम मनुष्य सच में निष्ठुर है। क्रुर है। से भगा देते है। ऐसे कुत्तों का देख मन भर आता है। मेरे आस पास कई है। हम मनुष्य सच में निष्ठुर है। क्रुर है।

24 अक्तूबर 2023

रिव्यू : फिल्म खुफिया भारतीय सिनेमा का परिपक्व संस्करण

परिपक्व होता भारतीय सिनेमा

अरुण साथी

दो सिनेमा छुट्टी में खत्म किया। नेटफ्लिक्स पर। ओएमजी२ और खुफिया। दोनों नहीं, खुफिया जिंदाबाद।

बात ओएमजी २ का। इसमें पंकज त्रिपाठी के सहज अभिनय को छोर कुछ भी अच्छा नहीं है। क्यों, क्योंकि ओएमजी इतनी अच्छी बनी थी की उससे अच्छा कुछ हो नहीं सकता। फिर भी यौन शिक्षा पर केंद्रित सिनेमा और भारतीय धर्म और महाकाल की खिचड़ी ठीक ठाक है। ओएमजी में परेश रावल, जज साहब का कोई जोड़ नहीं।
खैर, खुफिया। भारतीय सिनेमा का एक परिपक्व संस्करण। कम उम्र से हॉलीवुड फिल्म देखनी का परिणाम रहा की असामान्य सिनेमा स्वीकार न हो सका। पर खुफिया एक सामान्य सिनेमा है। टाइगर, टाइगर जिंदा हैं, जवान जैसे कई सिनेमा इसके करीब भी नहीं ।


जासूसी जीवन का सामान्य और सहज अभिनय तब्बू का। तब्बू मेरी पसंदीदा अभिनेत्री है। आंखों से बात करती। 

खुफिया। सिनेमा में सिनेमा जैसा कुछ नहीं । सबकुछ सहज। 

बांग्लादेशी अभिनेत्री अजमेरी और मिर्जापुर फेम अली फजल का प्रभावशाली अभिनय। निदेशक विशाल भारद्वाज तो खैर प्रयोगधर्मी है ही। सत्या से ही पसंद।

गीत, जाना हो तो मत आना। रेखा भारद्वाज की आवाज का जादू। आह, क्या सूफी गीत है। कबीर और रहिमन का नया संस्करण। बुझे बुझे। आवाज राहुल राम और ज्योति। गीत पसंद आई तो नाम खोजा।


08 अक्तूबर 2023

पितृसत्तात्मक समाज में अब मुखर हो रही बेटियां

 पितृसत्तात्मक समाज में अब मुखर हो रही बेटियां 


पितृसत्तात्मक समाज में अब बेटियां मुखर हो रही हैं । पढ़ाई , लिखाई के दौरान छेड़खानी, सड़कों पर अत्याचार, घर, परिवार, समाज में भेदभाव, दमन, शोषण और प्रताड़ना, ऐसे मुद्दों को मुखर होकर बेटियां मंच पर रखने लगी हैं। ऐसा ही एक प्रसंग शेखपुरा जिला प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन के समारोह में देखने को मिला ।


आदर्श विद्या भारती में इसका आयोजन किया गया था। इसमें संत मेरिस इंग्लिश स्कूल की बेटियों ने इसी मुद्दे को मुखरता से रखा और सामाजिक प्रताड़ना, पितृसत्तात्मक समाज में भेदभाव और दमन को अपने अभिनय से जीवंत कर दिया। 


इस जिवंत मंचन को देखकर सभी उदास हो गए। इसकी खूब तारीफ भी हुई । समाज में बदलाव बेटियों के द्वारा ही संभव है। पितृसत्तात्मक समाज में हम आज भी बेटियों को दमित करके ही रखना पसंद करते हैं।



03 अक्तूबर 2023

बिहार में जातीय गणना: मोहब्बत की दुकान में घृणा का सामान

बिहार में जातीय गणना: मोहब्बत की दुकान में घृणा का सामान

बिहार में जातीय गणना देश की राजनीति को प्रभावित करने के लिए तरकश से ब्रह्मास्त्र की तरह छोड़ दिया गया है। यह सब सहज और सामान्य नहीं है। प्रायोजित और झगड़ा कराकर राजनीतिक रोटियां सीखने के लिए किया गया काम है । भले ही नए गठबंधन के द्वारा मोहब्बत की दुकान चलाने का दावा किया जाता हो परंतु जातीय गणना के माध्यम से इसको देश भर में उछाल कर मोहब्बत की दुकान में घृणा का सामान रख दिया गया है।

ऐसा कहने का तात्पर्य क्या है? इस पर विमर्श करना चाहिए। बिहार में किसी भी चुनाव में चाहे वह पंचायत स्तर का हो, विधानसभा स्तर का हो, लोकसभा का हो, राजनीति करने वाला कोई भी व्यक्ति को पता होता है कि उस क्षेत्र में किस जाति के कितने वोटर है । जाति का गणना बिल्कुल ही सामान्य और सहज प्रक्रिया थी । सरकार के द्वारा जाति गणना का जो आंकड़ा दिया गया है उसमें प्रबुद्ध लोगों की समझ से कोई नई बात नहीं है। जितनी जाति की गणना का आंकड़ा सामान्य लोगों के पास थी उसके आसपास का ही आंकड़ा सरकार ने जारी किया है।


हालांकि सरकार का दावा था कि यह आर्थिक सर्वे है परंतु आर्थिक सर्वे को जारी नहीं किया गया है और राजनीतिक दल के पक्ष और विपक्ष के लोग इस पर चुप्पी साथ लिए हैं। दरअसल आर्थिक सर्वे को जारी किया जाता तो सरकार की एक मानसा दिखाई पड़ती और समाज में उत्थान और पतन का नया आंकड़ा सामने आ जाता परंतु सरकार को इस आंकड़े से मतलब नहीं है।


सरकार को मतलब है मंडल और कमंडल को फिर से उछल कर लड़ाई पुनर्वापसी की। इसी फार्मूले पर देश में गठबंधन बना है और मंडल कमंडल कि राजनीति में कमंडल को पराजित करने के लिए ही इस फार्मूले को आजमाया गया है जो की काफी करवा और विषैला है।


ऐसा इसलिए क्योंकि यदि सरकार की मंशा दबे हुए लोगों को उठाने की होती तो यह सर्वे या जातीय गणना का आंकड़ा सहज रूप से सर्वे करा कर पेश कर दिया जाता। इस पर ना तो राजनीति होती ना ही देश भर में हंगामा होता और ना ही गांधी जयंती के अवसर पर मोहब्बत की दुकान से घृणा का सामान बेचने का काम किया जाता।

भारतीय जनता पार्टी को देश को बांटने की राजनीति का ठप्पा लगा हुआ है। हिंदू और मुस्लिम के बीच झगड़ा करने का प्रमाण पत्र भी भारतीय जनता पार्टी के पास है । दुर्भाग्य से दूसरे तरफ के लोग भी यही काम करते हैं। परंतु प्रमाण पत्र वितरण संस्थान के द्वारा उनके पास इस तरह का कोई प्रमाण पत्र जारी नहीं किया जाता।

मुस्लिम तुष्टिकरण की बात सर्व विदित है। अभी सनातन धर्म को खत्म करने, रामचरित्र मानस की प्रति जलाने जैसे कई बातें लगातार सामने आए और दूसरे गठबंधन और राजनीतिक दल के लोग चुप्पी साधे रहे।

 

मंडल की राजनीति के उसे दौर के लोगों को पता होगा कि कैसे राजीव गोस्वामी ने मंडल की राजनीति का विरोध करते-करते अपनी जान दे दी। बहुत लोगों की जान चली गई। देश जख्मी हुआ। इसका फलाफल निकाला और पिछड़ी जातियों को आरक्षण के रूप में यह सामने आया।

अगड़ी जाति और पिछड़ी जाति की लड़ाई में यदि यह कहा जाए कि शोषण दमन और दवे कुचले लोगों का अपमान और प्रताड़ना नहीं हुआ तो यह अतिशयोक्ति होगी । निश्चित रूप से ऐसा हुआ है । आजादी के बाद इस पर अंकुश लगाने के प्रयास सार्थक हुए हैं । परंतु इस बात को लेकर अब आम लोगों के मुंह में दही जम जाता है जब इसी प्रकार के शोषण, दमन और प्रतिशोध की भावना से लोकतंत्र में कथित रूप से जाति आधारित बहुसंख्यक करने लगा है।


 

शोषण दमन और हाकमरी की बात का अगड़ी जातियों पर भले लगा हुआ है परंतु आजादी के 76 साल बाद आरक्षण के हथियार से केवल और केवल अगड़ी जातियों पर इस हकमारी का आरोप लगाना ठीक नहीं है।



हाकमरी की बात यदि किया जाए तो दबे लोगों की हक मारी अब उनकी जातियों और उसके वर्गों के लोग के द्वारा ही किया जा रहा है । अनुसूचित जाति और जनजाति के लोग जो अगड़ी जातियों की श्रेणी से भी बढ़कर संपन्न हो गए हैं वही आज उनकी हाकमरी कर रहे हैं।

 आर्थिक सर्वे जारी होता तो यह निश्चित रूप से पता चला कि बिहार में मुसहर, डोम जैसी जातियां किस तरह बदहाली की जिंदगी जी रहे हैं। 10 बाय 10 के एक कमरे में 10 परिवार का रहना हो रहा है और आमदनी का कोई भी स्थाई साधन विकास के इस दौर में भी उनके पास नहीं है । परंतु उनके हिस्से का आरक्षण का लाभ आज भी दूसरी जातियों के इसी वर्ग के लोग हकमारी कर ले रहे हैं और इस पर कोई एक शब्द भी टिप्पणी करने से डरता है।


पिछड़ी जातियों में भी कई ऐसी जातियां हैं जो पिछड़ी जातियों के गरीब और दबे लोगों की हक मार रहे हैं। उन्हीं के जातियों और उन्हीं के वर्गों के लोग के द्वारा ऐसा किया जा रहा है। यह आरक्षण की एक बड़ी विसंगति है परंतु इस पर जो शिकार है उन्हें भी इस बात का एहसास नहीं है और वह भी एक समूह के साथ पीड़ित और शोषण होकर भी अपने आप को खुशनुमा महसूस कर रहे हैं।


जनसंख्या वृद्धि के इस विसंगतियां में पिछड़े और अनुसूचित जातियों के आंकड़े के बढ़ने का मामला परिवार नियोजन से भी जुड़ा हुआ है। निश्चित रूप से अगड़ी जातियों के लोगों ने परिवार नियोजन के देशव्यापी अभियान में अपनी भागीदारी दी और परिणाम यह हुआ कि उनकी हिस्सेदारी कम होती चली जा रही है और लोकतंत्र में उन्हें निश्चित रूप से हसिए पर धकेल दिया गया है।

आजादी के इतने साल बाद भी दमन और शोषण के उसे पीड़ा से निकलकर प्रतिशोध की भावना से काम कर रहे दूसरी अन्य जातियों के लोगों के लिए अब यह आवाज उठने लगी है कि अगड़ी जातियों के लोगों को किसी टापू अथवा देश के किसी एक हिस्से में जाकर छोड़ दिया जाना चाहिए और उन्हें अपने किस्मत और अपने मेहनत के भरोसे आगे बढ़ाने के लिए अवसर दिया जाना चाहिए।

 परंतु इस देश में यह भी नहीं होने जा रहा। यदि ऐसा हो जाएगा तो वोट बैंक की राजनीति में झगड़ा कराने के अवसर ही खत्म हो जाएंगे और फिर परिवार और व्यक्तिगत रूप से सत्ता के सिंहासन पर बैठकर राजमहल का सुख भोगने वालों को भारी परेशानी हो जाएगी।

01 अक्तूबर 2023

यात्रा वृतांत भाग 2 : स्काउटलैंट में नारी शक्ति की अनुभूति

 यात्रा वृतांत भाग 2 : स्काउटलैंट में  नारी शक्ति की अनुभूति


तीसरे दिन सभी 6:00 बजे सुबह मेघालय निकलने की तैयारी में लगे और 5:00 बजे से स्नान शुरू हो गया। रितेश ने सत्तू बनाया, चना फूलने दिया था, टमाटर प्याज मिलाया। सभी ने आनंद से खाया। इस बीच माहौल हंसी मजाक का हो गया। टीम में गणनायक मिश्रा और छोटे भाई धर्मवीर सपत्निक थे। धर्मवीर की वजह से मेरे लिए हंसी मजाक का माहौल तो बना पर मैं और मुकेश अपने जज्बातों पर भरसक नियंत्रण रखा । कमान रितेश ने संभाली। एक सुमो पर सभी लोग बैठ गए, या कहिए के ठूंस दिए गए । आठ लोग थे । 170 किलोमीटर की यात्रा एक ओर से थी। लौटना भी था। 

 

मेघालय की ओर हम लोग निकल गए। जैसे-जैसे मेघालय की ओर बढ़ते गए। वैसे-वैसे सब कुछ पराया होता गया। कहते है की मेघालय को मेघों का घर कहा जाता है। रास्ते  में भी लगातार पानी पड़ता रहा। मौसम खुशनुमा। यह भी सुना की मेघालय भारत का स्काउटलैंट है। ऐसा ही दिखा भी।

वहां की सड़कें, वहां की स्वच्छता, वहां का अनुशासन, वहां गाड़ी चलाना, सब कुछ मेरे लिए सिर्फ सिनेमा में देखने जैसा दिखाई पड़ा। सड़कों पर गंदगी लेस मात्रा भी नहीं । सभी अपनी लेन में गाड़ी चला रहे। इसी बीच प्राकृतिक की ऐसी छटा दिखने लगी की सभी अह्लाद से भर उठे। ऊंचे ऊंचे पहाड़ों के ऊपर बादल ऐसे तैर रहे थे जैसे दूब की घास पर ओस की बूंद।


हम सब मोबाइल के कैमरे में प्राकृतिक के अनुपम छटा को कैद करने लगे। बादल नीचे और हम लोग ऊपर। सभी अपने-अपने परिजनों को भी लाइव वीडियो कॉल करके दिखा रहे थे।

मित्र गणनायक मिश्र पत्नी को लेकर इस रमणीय यात्रा पर आए थे तो उनका पत्नी के प्रति स्नेह और अह्लाद छुपाए नहीं छुप रहा था। अलग-अलग पोज देकर तस्वीर उतार रहे थे । वीडियो बना रहे थे । दोस्तों को भी वीडियो बनाने के लिए कह रहे थे। हमलोग उनका मजाक भी बना रहे थे। हंसने का एक कारण खोज लिया गया था।



रास्ते में पहाड़ों के ऊपर से गिरता मनभावन झरना मन को मोह रहा था। इस बीच शिलांग के पास सुमो गाड़ी में थोड़ी समस्या हुई जिसे ठीक करवाने के लिए एक गैराज में रुकना पड़ा। वही मेघालय में प्रवेश करते हैं एक अनोखी चीज देखने को मिली । हालांकि देश के कुछ राज्यों में ऐसी व्यवस्था दिखाई पड़ती ही है। सबसे अधिक जो मुझे चौंकाया वह यह था कि यहां सभी कामों में स्त्रियों का वर्चस्व था। चालक ने बताया कि मेघालय सहित पूर्वोत्तर के कई राज स्त्री प्रधान राज्य है। महिला पुरुषों से कंधा मिलाकर नहीं , बल्कि एक कदम आगे चलती है। तब मुझे समझ आया की मैरी कॉम जैसे शक्तिशाली नारी बॉक्सर यहां से क्यों निकली।



नाश्ता का होटल, चाय की दुकान, फल का दुकान, खिलौने का दुकान, सभी तरह के दुकानों का संचालन केवल और केवल स्त्रियों के द्वारा किया जाता दिखाई पड़ा। मारुती 800 पर सवार दो महिला आई और सड़क किनारे फल की दुकान लगाने लगी। बेहद सजी घजी। खूबसूरत। पर अपने काम के प्रति जरा भी हीनता का भाव नहीं। हम बिहार के लोग तो लाचारी में भी फुटपाथ पर दुकान नहीं लगाना पसंद करते । लगाना भी पड़े तो अनमनस्क ढंग से। जैसे कोई पहाड़ टूट पड़ा हो। वहीं पंजाब, दिल्ली में मजदूरी कर लेना पसंद करते है। यह सब ईगो की वजह से होता है।  


गौराज के बगल में एक छोटी सी चाय और नाश्ते की दुकान संचालित करती एक खूबसूरत महिला भी दिखाई दी। संयोग से वह प्रसन्नचित्त और व्यवहार कुशल महिला थी। धर्मवीर ने उससे मिलकर बातचीत शुरू की तो पता चला कि वह हिंदी में बातचीत कर सकती है। फिर धीरे-धीरे सभी साथी वहां पहुंचे और मेघालय के बारे में जानकारी जुटाना शुरू कर दिया। महिला भी उत्सुकता बस सभी जानकारी देने लगे और जानकारी प्राप्त भी करने लगी । सभी ने प्रश्नों की झड़ी लगा दी परंतु वह उबी नहीं । उसने बताया कि यह दुकान उसकी मां का है।
 उसकी दुकान में पान भी था।बताया कि यहां पान भी बिकता है परंतु पान खाने का अंदाज अलग है। थोड़ा चूना मिलाया जाता है। कथ्था नहीं, जर्दा बिल्कुल नहीं। और सुपारी का कच्चा फल साफ करते हुए पान के साथ खाया जाता है। सुपारी इधर खूब होता है। ताड़ के पेंड जितने लंबे पर पतले पेंड़।



₹10 का एक पान यहां खिलाया जाता है। बताया कि कसेली का जो खराब गुणवत्ता वाला होता है उसे ही हम लोग बाहर भेजते हैं। बाकी बेहतर गुणवत्ता के कच्चा कसेली का उपयोग यहां बहुत लोग करते हैं । महिला और पुरुष सभी इसका उपयोग करते हैं। पान के बारे में उसने पूछने पर बताया कि जिसे आप लोग तामुल कहते हैं। यही पान है। बातचीत में उसने अपना नाम डायना भी बताया। जाते-जाते उसने शांति भूषण मुकेश की ओर इशारा करके पूछा कीआप हिंदू हो । मुकेश ने बताया हां। पूछा ब्रह्मण। पूछा कि कैसे समझे तो उसने मुकेश की शिखा की ओर इशारा कर दिया और उसने यह भी बताया कि यहां ज्यादातर लोग ईसाई हैं और ऐसा ही दिखा। मंदिर कहीं-कहीं ही दिखाई पड़ा।

29 सितंबर 2023

ठाकुर का कुआं विवाद और वामपंथी विधायक का सहयोग

ठाकुर का कुआं विवाद और वामपंथी विधायक का सहयोग
3 दिन पूर्व आरा के तरारी से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी लेनिनवादी के दूसरी बार विधायक सुदामा प्रसाद मिलने पहुंचे। वे पार्टी के कार्यक्रम में आए हुए थे। इस बीच वे मिलने के लिए आए । तीन, चार घंटे का साथ रहा। उनका स्वागत सम्मान किया । नब्बे के दशक में छात्र संगठन आइसा के जिला अध्यक्ष होते हुए इनका सानिध्य मिला और वामपंथी के प्रति रुझान हुई।

उनकी सहजता, मृदु भाषी होना और इनका अपनापन किसी को भी कायल बना लेता है।

मैं और ग्रामीण मिथिलेश मिट्ठू उनके सानिध्य में कई साल जिले में रहकर वामपंथी को मजबूत करने का काम किया था । आज यह विधायक है। बहुत ही अभाव में जीवन जी कर विधायक बने हैं । परंतु बनने के बाद किसी तरह का अहंकार दिशा इन पर हावी नहीं हो सका। बातचीत के लंबे दौड़ के बाद हम लोग खाने के लिए मधुबन होटल के लिए जब निकले तो उन्होंने अपनी गाड़ी की अगली सीट पर मुझे बिठाया और खुद मिट्ठू की गाड़ी पर जाकर बैठ गए। इतना सहज..!!

यह बताते हैं कि  तीन चार लाख रुपये चंदा कर वे विधायक बन जाते हैं जो आज की राजनीति में मील का पत्थर है। ज्यादातर वामपंथी आज भी राजनीति में इसी तरह के उदाहरण प्रस्तुत करते हैं।

खैर, आज बात राष्ट्रीय जनता दल के राज्यसभा सांसद के ठाकुर का कुआं विवाद पर।

सामंतवादी प्रवृत्ति के लोगों ने निश्चित रूप से भेदभाव और छुआछूत रखा , परंतु अब इसका परिवर्तित रूप दूसरे तरह से भी सामने आने लगा है। वामपंथ का वर्ग संघर्ष की विचारधारा अब जातीय संघर्ष के रूप में है। जय भीम का नारा इस छुआछूत का विपरीतार्थक और उग्रवाद रूप में सामने आया है।

इस बीच ठाकुरों और ब्राह्मणों के बीच विवाद गहरा गया है और सोशल मीडिया पर कई जगह अपमानजनक बातें हो रही हैं । नेता इसे हवा दे रहे। इनमें अभी जेल से छुटकारा आए आनंद मोहन का नाम प्रमुखता से है। लालू प्रसाद यादव के राज्य में बिहार पीपुल्स पार्टी के माध्यम से इसी आनंद मोहन की स्वर्ण राजनीति का छलावा लोगों को आज भी याद है।

वैसे में सुदामा प्रसाद ने पिछली बैठकी में सहजतापूर्वक कई बातें बताई जिनका उल्लेख करना आज के समय में आवश्यक है क्योंकि समाज को बांटने वाले, समाज में सकारात्मक बातों को दबाकर नकारात्मक बातों को ही आगे रखते हैं।


अपनी बातचीत में सुदामा प्रसाद ने बताया कि बरबीघा में रहते हुए भूमिहारों के सानिध्य में रहकर उन्होंने वामपंथी का आंदोलन चलाया और कैसे-कैसे संघर्ष में लोगों का साथ मिला । मुझे तो याद नहीं था परंतु उन्होंने ही याद दिलाया कि पटना जब वह जाते थे तो हम लोग चंदा करके सौ– डेढ़ सौ रुपया उनको भाड़ा और रास्ते का खर्च देते थे। यह बात उन्हें आज भी याद है। साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि कटिहार के रेलवे प्लेटफार्म पर बुक स्टॉल चलने वाले सुधीर राय भी भूमिहार समाज के थे और उन्होंने वामपंथ की लड़ाई में उनके जबरदस्त साथ दिया जबकि वह आरएसएस और भाजपा से जुड़े हुए थे। अलग विचारधारा के होकर के भी वे उनसे प्रभावित थे और उनका आज भी उनसे पारिवारिक रिश्ता है । बताया कि जब भी वह कटिहार जाते थे या आते थे तो वह अपने जेब से कुछ पैसे देते थे यात्रा में टिकट वगैरा भी काटकर दे देते थे।

साथ ही बताया कि आईपीएफ के जमाने में जब वह संघर्ष कर रहे थे आरा में उस समय वह जेल से निकले तो एक बहुत ज्यादा परिचित नहीं न होकर भी एक व्यक्ति उनसे मिलने के लिए आए । वे किराए के छोटे से कमरे में पत्नी के साथ उस समय रह रहे थे। वह काफी आहत हुए और उन्होंने पूछा कि आपके पास घर नहीं है तो मैंने बताया कि मेरे पास घर के लिए जमीन नहीं है। इस पर वे राजपूत समाज के होते हुए भी अपना दो कट्ठा जमीन निशुल्क मेरे नाम कर दी।


आज के लिए यह इसलिए आवश्यक है क्योंकि नेताओं के द्वारा नफरत की राजनीति सभी तरफ से चलती है। मोहब्बत की दुकान चलाने वाले लोग भी  साथ-साथ नफरत की दुकान चलाते हैं। सभी का मोहब्बत और नफरत अपने-अपने वोट बैंक के हिसाब से होता है। वैसे में समाज को बांटने का एक बार फिर से पूरा प्रयास बिहार में और तेजी से तेज हो गया है। बिहार में अति पिछड़ा को लेकर आगे बढ़े नीतीश कुमार की राजनीति अब अवसान पर है। उनकी राजनीति पर कब्जे की राजनीति तेजी से आगे बढ़ा है। देश की राजनीति में राहुल गांधी भी जातिगत जनगणना के पैरोकार बन गए। ऐसे समय में नफरत को मोहब्बत में बदलना बिल्कुल ही संभव नहीं , फिर भी सकारात्मक बातों को मंच मिलना चाहिए। लोगों को सच्चाई बतानी पड़ती है, बस इसीलिए।

27 सितंबर 2023

विश्व पर्यटन दिवस और बदहाल बिहार

 विश्व पर्यटन दिवस और बदहाल बिहार 


आज विश्व पर्यटन दिवस है । ऐसे में हम बिहार के लोगों को हमेशा से बाहर जाने पर शर्मिंदा होना पड़ता है। ऐसी बात नहीं की बिहार में पर्यटन की संभावना नहीं है परंतु बाहर के राज्यों की तुलना में हम पांच प्रतिशत ही पर्यटन का विकास कर सकें। इसके कई कारण हो सकते हैं परंतु एक सबसे बड़ा कारण राजनीतिक इच्छा शक्ति का अभाव है। इसमें जाति और धर्म के नाम पर राजनीति कर वोट बटोर लेना पहली प्राथमिकता होती है, बाकी सब हासिये पर रह गया। इसके लिए किसी भी एक पार्टी को जिम्मेवार नहीं ठहरा सकते। क्योंकि भाजपा सहित सभी प्रर्याप्त समय तक यहां शासन की है।



राजगीर, सरकार की प्राथमिकता में रही है। जू सफारी, शीशा का पुल सहित कई योजनाओं को यहां दिया गया परंतु आज भी पर्यटन के मामले में उस स्तर का यहां कुछ भी नहीं है। सड़कों पर गंदगी, शौचालय में बदबू, पर्यटकों से दुर्व्यवहार यहां आम बात है। 



गया जी हो या वैशाली। सभी जगह यही स्थिति है । नवादा का ककोलत जैसा झरना दूसरे राज्यों में होता तो देश-विदेश से पर्यटक आते हैं परंतु यहां कुछ भी नहीं। अब जाकर कुछ शुरू हुआ है। बिहार का भीम बांध, श्रृंगी ऋषि, देव का सूर्य मंदिर, कैमूर का मुंडेश्वरी देवी मंदिर, गोपालबाद का भावे मंदिर, सासाराम का जल प्रपात। कई ऐसी जगह है जहां पर्यटन की संभावनाएं थीं परंतु बिहार में उसका विकास नहीं हो सका। पटना का पटन देवी मंदिर शक्तिपीठ होते हुए भी पर्यटन के क्षेत्र में उपेक्षित ही रह गया और यह सब निश्चित रूप से सरकार की प्राथमिकता में पर्यटन का नहीं होना ही प्रमुख कारक है। अभी सासाराम का जलप्रपात देखने का मौका मिला था । इतना खतरनाक चिकनापन वाली जगह की जरा सी लापरवाही में किसी की जान चली जा सकती है । और इतना खतरनाक के यहां बिहार में शराब बंदी के बाद भी सैकड़ो जगह पर आए हुए पर्यटक शराब के नशे में खुलेआम शराब पीते और मुर्गा बनने देखे गए। सुरक्षा के नाम पर शून्य व्यवस्था। सड़क में इतनी बदहाल की कई जगह गाड़ियां फस जा रही थी।

ऐसा इसलिए कहना पड़ रहा है कि दूसरे राज्यों में जो लोग भी जाते हैं बिहार से उन्हें यह कमी महसूस होती है। एक उदाहरण है मेघालय का यह एलिफेंटा जलप्रपात का नजार है। इसे देखकर आप आश्चर्यचकित होंगे । इतना साफ सुथरा । छोटी-छोटी चीजों का भी ध्यान रखा गया । शौचालय तक में साफ सफाई। हां एक बात यह भी है कि इसमें केवल सरकार के भरोसे सब कुछ नहीं हो सकता। आम लोग को भी सजग होना पड़ेगा । 


ऐसा इसलिए की मेघालय के एक जलप्रपात के पास चाय और स्नैक्स की दुकान पर जब हम लोग चाय पीने के लिए रुके तो एक मित्र ने स्नेक्स का उपयोग करने के बाद उसके रैपर को सड़क के किनारे फेंक दिया। दुकानदार दुकान से बाहर आकर उनसे दो बार निवेदन किया कि उसे उठाकर डस्टबिन में डालिए और डस्टबिन में डलवा दिया। यह होती है आम आदमी की संकल्प शक्ति।