25 मार्च 2010

दोस्त

गिराकर किसी को
पहूंचना कहीं
नहीं चाहता हूं मैं।

मंजिल पर पहूंचकर भी तो
होता रहेगा हमेशा
उसके दर्द का एहसास...

मुबारक हो तुम्हें
तुम्हारी मंजिल।

मैं गिर भी जाउं तो क्या
दर्द का एहसास तो
तुम्हें ही होगा
मेरे दोस्त
मेरे गिरने का....

1 टिप्पणी:

  1. ""मैं गिर भी जाउं तो क्या
    दर्द का एहसास तो
    तुम्हें ही होगा
    मेरे दोस्त
    मेरे गिरने का....""

    Bahut hi pyari lines hai..bahut badhiya likha hai apne.

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