"पति पत्नी और वो सह भौजाई पे चर्चा" एकल संगोष्ठी।
(अरुण साथी)
मिलॉर्ड ने जैसे ही इधर उधर मुँह मारने का लाइसेंस फ्री कर दिया वैसे ही अपने भाय जी के दिल में लड्डू फूटने लगा। वह भी कैडबरी टाइप। धड़ाम धड़ाम। आंख में आगे दर्जनों फेसबुक फ्रेंडनी का चिक्कन-चुप्पड़ चेहरा डांस करने लगा। भाय जी आंख बंद कर सपने में खो गए। कल जिसको इनबॉक्स में चैट किया वही सपने में छा गयी।
तभी भौजाई जी धमक गयी। आंख मूंदे, मुस्कुराते भाय जी को देख वे समझ गयी कि मिलॉर्ड के फैसले से कुछ ज्यादा ही खुश हो रहे हैं। बस क्या था। सुना दी।
"मिलॉर्ड का फैसला पढ़ लेला का जी। तनी बढ़िया से पढिया। साफ लिखल हो पत्नी का मालिक पति नै होबो हे। अब पत्नी के भी पावर हो।"
बस भाय जी के सपना चकनाचूर हो गया। दिल का लड्डू टूट गया। गुमसुम हो अखबार में एक एक अक्षर पढ़ने लगे। तभी भाय जी का नजर भौजाई जी के मोबाइल पे गया। उठा के फेसबुक, व्हाट्सएप चेक करने लगे। इनबॉक्स में बधाई मैसेज का भरमार। बधाई हो, पति की विस्तरी से स्त्री आज़ाद हो गयी। धारा 497 से आजादी मिली। उनके वही दोस्त-यार बधाई दिए हुए थे जिनकी बीबी को भाय जी ने बधाई दी थी।
भाय जी को अब भौजाई पे भरोसा नहीं रहा। बस क्या था। भाय जी फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सएप पे मिलॉर्ड के लिए मन का भड़ास खोल दिया। उंगली तोड़ दिया। सभ्यता संस्कृति का नाम ले ले के कोसने लगे। स्त्री व्यभिचारिणी हो जाएगी। मिलॉर्ड ने कुंठा में फैसला दे दिया। ये मिलॉर्ड कैसे बन गए, आदि, इत्यादि। और गज्जब तो यह हो गया कि कंमेंट में सभ्यता, संस्कृति के नाम पे मिलॉर्ड को गाली-गुत्ता करने वालों की कमी नहीं रही। पोस्ट हिट हो गया। पर ज्यादातर वही दोस्त थे जो भौजाई को इनबॉक्स में खुल्लम, खुल्ला प्यार करेंगे। हसबैंड से अब नहीं डरेंगे हम दोनों। लिख के बधाई दी थी।
आजकल भाय जी सदमे में है। कुछ बोल ही नहीं रहे। आपसे कुछ बोलेंगे तो बताईयेगा। वैसे सोंच रहे कि भौजाई की अध्यक्षता में "पति पत्नी और वो सह भौजाई पे चर्चा" एकल संगोष्ठी का आयोजन कर ही लें। का कहते है जी, ठीक रहेगा..न!!
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