01 फ़रवरी 2023

Mobile Addiction: क्या हम इंटरनेट के अफीम से नई पीढ़ी को नहीं बचा पाएंगे..?

Mobile Addiction: क्या हम इंटरनेट के अफीम से नई पीढ़ी को नहीं बचा पाएंगे..?

अरुण साथी

जब मैं निम्नलिखित पंक्तियों को लिख रहा हूं तब इंटरनेट की दुनिया में 15 साल का सफर है । इस सफर में शुरुआती दिनों के इंटरनेट चलाने की जद्दोजहद और आज सर्वज्ञ इंटरनेट की दुनिया गूगल देवता से आगे बढ़कर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की दुनिया का सफर तय करने का साक्षी बन रहा हूं। हालांकि मोबाइल एडिक्शन के शिकार खुद भी हूं और अनुभव से ज्यादा बड़ा हुआ है।
अनुभव है कि इन्हें निम्नलिखित पंक्तियों को लिखने पर मजबूर हुआ तो क्या हम इंटरनेट के अफीम से नई पीढ़ी को नहीं बचा पाएंगे। यह विचार मन में लगातार करौंधता रहता है। गांव में गरीब मजदूर का बेटा हो या गरीब सफाई कर्मी से लेकर गरीब किसान का बेटा, बेटी। सभी के हाथ में स्मार्ट मोबाइल है और उनमें एक खतरनाक इंटरनेट।

नवजात शिशु का खिलौना भी यही मोबाइल है तो किशोरों और युवाओं की पुस्तक भी यही मोबाइल।


बड़े बुजुर्ग के किस्से कहानी का औजार भी यही है और मनोरंजन का साधन भी।

खैर, इन सब के बीच जो इसका दुष्प्रभाव है वह कई प्रकरणों में उभर कर सामने आया है । यहां बात बच्चों पर इसके दुष्प्रभाव की है। सोशल मीडिया पर कई बार भावनाओं को भड़काने या हथियार लहराने को लेकर किशोर उम्र के लड़के पकड़े जाते हैं।


यह किशोर और बच्चे जुनूनी हो गए हैं। कभी कभी राजनीति को लेकर और ज्यादातर धर्म और जात को लेकर जुनून देखा जाता है।


धार्मिक और जातीय उन्माद से नई पीढ़ी को बचाना शायद ही अब संभव हो सकेगा।


हो यह रहा है कि धार्मिक और भेदभाव के उन्मादी विचार अब बड़ी तेजी से और आसानी से बच्चों की पहुंच में है। परिणाम स्वरूप भेदभाव का शिकार बच्चों के मन मस्तिक में बैठा जा रहा है।


इसी का परिणाम है कि बच्चे उन्मादी और कट्टरपंथी हो जा रहे हैं या आगे बढ़कर कहे कि हो गए हैं।


अभी एक स्कूल के संचालक मित्र ने बताया कि अब स्कूल के बेंच पर और ब्लैक बोर्ड पर धार्मिक उन्माद से जुड़े शब्दों को बच्चे लिख रहे हैं।


राजनेताओं को यह काम करना चाहिए पर दुर्भाग्य से वे इसे खाद और पानी दे रहे हैं। फसल लहलहाने पर वही तो इसे काटेंगे।

दुर्भाग्य से माता-पिता भी लाचार हैं। पिछले कुछ महीनों में कई मामलों का नजदीक से देखने का अवसर मिला है। बच्चों से मोबाइल छीन लेने भर से वे आत्महत्या कर लेते है। मतलब यह कि कोरोना से भी भयावह महामारी की चपेट में अब हमारी नई पीढ़ी है और दुर्भाग्य से इसके टीकाकरण की कोई पहल तक नहीं।

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