01 अक्तूबर 2023

यात्रा वृतांत भाग 2 : स्काउटलैंट में नारी शक्ति की अनुभूति

 यात्रा वृतांत भाग 2 : स्काउटलैंट में  नारी शक्ति की अनुभूति


तीसरे दिन सभी 6:00 बजे सुबह मेघालय निकलने की तैयारी में लगे और 5:00 बजे से स्नान शुरू हो गया। रितेश ने सत्तू बनाया, चना फूलने दिया था, टमाटर प्याज मिलाया। सभी ने आनंद से खाया। इस बीच माहौल हंसी मजाक का हो गया। टीम में गणनायक मिश्रा और छोटे भाई धर्मवीर सपत्निक थे। धर्मवीर की वजह से मेरे लिए हंसी मजाक का माहौल तो बना पर मैं और मुकेश अपने जज्बातों पर भरसक नियंत्रण रखा । कमान रितेश ने संभाली। एक सुमो पर सभी लोग बैठ गए, या कहिए के ठूंस दिए गए । आठ लोग थे । 170 किलोमीटर की यात्रा एक ओर से थी। लौटना भी था। 

 

मेघालय की ओर हम लोग निकल गए। जैसे-जैसे मेघालय की ओर बढ़ते गए। वैसे-वैसे सब कुछ पराया होता गया। कहते है की मेघालय को मेघों का घर कहा जाता है। रास्ते  में भी लगातार पानी पड़ता रहा। मौसम खुशनुमा। यह भी सुना की मेघालय भारत का स्काउटलैंट है। ऐसा ही दिखा भी।

वहां की सड़कें, वहां की स्वच्छता, वहां का अनुशासन, वहां गाड़ी चलाना, सब कुछ मेरे लिए सिर्फ सिनेमा में देखने जैसा दिखाई पड़ा। सड़कों पर गंदगी लेस मात्रा भी नहीं । सभी अपनी लेन में गाड़ी चला रहे। इसी बीच प्राकृतिक की ऐसी छटा दिखने लगी की सभी अह्लाद से भर उठे। ऊंचे ऊंचे पहाड़ों के ऊपर बादल ऐसे तैर रहे थे जैसे दूब की घास पर ओस की बूंद।


हम सब मोबाइल के कैमरे में प्राकृतिक के अनुपम छटा को कैद करने लगे। बादल नीचे और हम लोग ऊपर। सभी अपने-अपने परिजनों को भी लाइव वीडियो कॉल करके दिखा रहे थे।

मित्र गणनायक मिश्र पत्नी को लेकर इस रमणीय यात्रा पर आए थे तो उनका पत्नी के प्रति स्नेह और अह्लाद छुपाए नहीं छुप रहा था। अलग-अलग पोज देकर तस्वीर उतार रहे थे । वीडियो बना रहे थे । दोस्तों को भी वीडियो बनाने के लिए कह रहे थे। हमलोग उनका मजाक भी बना रहे थे। हंसने का एक कारण खोज लिया गया था।



रास्ते में पहाड़ों के ऊपर से गिरता मनभावन झरना मन को मोह रहा था। इस बीच शिलांग के पास सुमो गाड़ी में थोड़ी समस्या हुई जिसे ठीक करवाने के लिए एक गैराज में रुकना पड़ा। वही मेघालय में प्रवेश करते हैं एक अनोखी चीज देखने को मिली । हालांकि देश के कुछ राज्यों में ऐसी व्यवस्था दिखाई पड़ती ही है। सबसे अधिक जो मुझे चौंकाया वह यह था कि यहां सभी कामों में स्त्रियों का वर्चस्व था। चालक ने बताया कि मेघालय सहित पूर्वोत्तर के कई राज स्त्री प्रधान राज्य है। महिला पुरुषों से कंधा मिलाकर नहीं , बल्कि एक कदम आगे चलती है। तब मुझे समझ आया की मैरी कॉम जैसे शक्तिशाली नारी बॉक्सर यहां से क्यों निकली।



नाश्ता का होटल, चाय की दुकान, फल का दुकान, खिलौने का दुकान, सभी तरह के दुकानों का संचालन केवल और केवल स्त्रियों के द्वारा किया जाता दिखाई पड़ा। मारुती 800 पर सवार दो महिला आई और सड़क किनारे फल की दुकान लगाने लगी। बेहद सजी घजी। खूबसूरत। पर अपने काम के प्रति जरा भी हीनता का भाव नहीं। हम बिहार के लोग तो लाचारी में भी फुटपाथ पर दुकान नहीं लगाना पसंद करते । लगाना भी पड़े तो अनमनस्क ढंग से। जैसे कोई पहाड़ टूट पड़ा हो। वहीं पंजाब, दिल्ली में मजदूरी कर लेना पसंद करते है। यह सब ईगो की वजह से होता है।  


गौराज के बगल में एक छोटी सी चाय और नाश्ते की दुकान संचालित करती एक खूबसूरत महिला भी दिखाई दी। संयोग से वह प्रसन्नचित्त और व्यवहार कुशल महिला थी। धर्मवीर ने उससे मिलकर बातचीत शुरू की तो पता चला कि वह हिंदी में बातचीत कर सकती है। फिर धीरे-धीरे सभी साथी वहां पहुंचे और मेघालय के बारे में जानकारी जुटाना शुरू कर दिया। महिला भी उत्सुकता बस सभी जानकारी देने लगे और जानकारी प्राप्त भी करने लगी । सभी ने प्रश्नों की झड़ी लगा दी परंतु वह उबी नहीं । उसने बताया कि यह दुकान उसकी मां का है।
 उसकी दुकान में पान भी था।बताया कि यहां पान भी बिकता है परंतु पान खाने का अंदाज अलग है। थोड़ा चूना मिलाया जाता है। कथ्था नहीं, जर्दा बिल्कुल नहीं। और सुपारी का कच्चा फल साफ करते हुए पान के साथ खाया जाता है। सुपारी इधर खूब होता है। ताड़ के पेंड जितने लंबे पर पतले पेंड़।



₹10 का एक पान यहां खिलाया जाता है। बताया कि कसेली का जो खराब गुणवत्ता वाला होता है उसे ही हम लोग बाहर भेजते हैं। बाकी बेहतर गुणवत्ता के कच्चा कसेली का उपयोग यहां बहुत लोग करते हैं । महिला और पुरुष सभी इसका उपयोग करते हैं। पान के बारे में उसने पूछने पर बताया कि जिसे आप लोग तामुल कहते हैं। यही पान है। बातचीत में उसने अपना नाम डायना भी बताया। जाते-जाते उसने शांति भूषण मुकेश की ओर इशारा करके पूछा कीआप हिंदू हो । मुकेश ने बताया हां। पूछा ब्रह्मण। पूछा कि कैसे समझे तो उसने मुकेश की शिखा की ओर इशारा कर दिया और उसने यह भी बताया कि यहां ज्यादातर लोग ईसाई हैं और ऐसा ही दिखा। मंदिर कहीं-कहीं ही दिखाई पड़ा।

1 टिप्पणी:

  1. अत्यंत रोचक और जिज्ञासापूर्ण यात्रा वृतांत।
    अगले भाग की प्रतीक्षा है।
    सादर।

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