25 जनवरी 2015

मर्सिया गीत

मर्सिया गीत
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लाल सलाम कॉमरेड
इन्कलाब  जिंदाबाद

पूंजीवाद का  विकास हो
समाजवाद का नाश हो
साम्यवाद का सर्वनाश हो

विकास और विनाश
पूरकवाद
नवसिद्धांत हो ...

मर्सिया गीत आज
क्यूँ गा रहा भारत
सोचना कॉमरेड

लाल सलाम कॉमरेड
लाल सलाम कॉमरेड




10 जनवरी 2015

मरने वालों की सूची में मेरा नाम

जो लोग प्रर्यायवाची अपशब्दों
की तरह
सेकुलर कहके
डराना चाहते है
यह कविता उनके लिए है.....

सुनो
सीरिया, पेरिस, पेशावर
मुम्बई, गोधरा-गुजरात
में जिन्होंने
मौत का ताण्डव किया
वो भी थे
तुम्हारी ही तरह
धर्मान्ध......

तुम्हारी ही तरह 
उन्हें भी लगता है
खामोश कर दो
काफीरों को..

पर सुनो
सभी धर्मों से समभाव
मेरा है स्वभाव
इसलिए
शार्लों एब्दो 
वालों की ही तरह मैं भी
मरने वालों की सूची में
अपना नाम पसन्द करूंगा....

मारने वालों की सूची में 
तुम्हारा नाम
तुम्हें मुबारक हो......

07 जनवरी 2015

आ थू .....(पेरिस में आतंकी हमले में शहीद पत्रकारों को श्रद्धांजलि)

आ थू .....(पेरिस में आतंकी हमले में शहीद पत्रकारों को श्रद्धांजलि)
मार देना मुझे भी 
पर याद रखना 
ओ मौत के सौदागर 
बहुत लोग है 
जो नहीं डरते मौत से 
और उनका निडर 
रक्तबीज
तेजी से बढ़ता है 
एक मरोगो 
सौ कतार में खड़े होंगे 
सच के लिए 
मरने वाले 
सच के लिए 
लड़ने वाले
और हाँ 
ये खुदा के नापाक बन्दे 
सुन लो 
हम गोलियों से नहीं डरते 
और तुम
कार्टून से डर जाते हो ...
आ थू .....
आ थू .....
(तस्वीर- पेरिस में शहीद पत्रकार का एक कार्टून )

04 जनवरी 2015

‘‘ नमन उस स्वतंत्रता सेनानी को जिन्होंने देश भक्ति नहीं बेचीं"

(अरूण साथी)
आज उस महान स्वतंत्रता सेनानी श्रीकृष्ण मोहन प्यारे सिंह उर्फ लाला बाबू की 115वीं जयंती है जिन्होंने स्वतंत्रता सेनानी का पेंशन यह कहते हुए ठुकरा दी थी कि ‘‘ देश भक्ति बेचने की चीज नहीं है, मैंने जेल में यंत्रणाएं इसलिए नहीं सही थी कि कभी इसका दाम बसूलूंगा।’’ गांधी जी के सच्चे भक्त वही थे और गांधीवाद को अपने जीवन में उतार कर सादगी और जनसेवा को जीवन का मूल बना लिया। 
वे अनगिनत छात्रों को पढ़ाई के लिए प्रतिमाह निश्चित राशि देते थे और जब उनके शुभचिंतकों ने उनसे एक ट्रस्ट बना कर ऐसा करने की बात कही तो वे इसका विरोध करते हुए बोले ‘‘यही षड़यंत्र बनाते है आपलोग। मैं उपकार की दुकान खुलबाउं और यश बटोरू! कैसे सोंच लिया आप सब ने यह सब। मुझे अपने तरह से जीने दिजिए।’’
उनके द्वारा बरबीघा का श्रीकृष्ण रामरूची कॉलेज सहित पूरे बिहार में कई हाई स्कूल और अस्पताल की स्थापना की गई। आज उनके द्वारा स्थापित श्रीकृष्ण रामरूची कॉलेज का जो हाल है निश्चित ही उनकी आत्मा रोती होगी, क्यांेकि वे कहते थे ‘‘ मेरे मरने के बाद मेरी लाश फेंक दी जाय, मुझे दुख नहीं होगा। उसे कुत्ते ले जायें, मुझे शोक नहीं होगा पर यदि मेरी यह प्यारी संस्था लड़खड़ा जायेगी तो मरणोपरांत भी मेरी आत्मा को शांति नहीं मिलेगी।’’      
लाला बाबू ने अपनी सारी संपत्ति अपने भाई को दान में दिया और राज्य सभा सदस्य रहकर भी फकीर ही रहे और अंतिम समय में उनकी मुफलिसी के किस्से सुन कर आंखों से आंसू आ जाते है। कैसे कोई ऐसे दधीची के लिए निष्ठुर हो सकता है? खैर लाला बाबू आज भी इसलिए ही अमर है। नमन है उस सच्च संत को..

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