26 नवंबर 2024

नाचता गाता धर्म और ध्यान

#नाचता_हुआ_धर्म #गाता हुआ #ध्यान

ध्यान को सर्वश्रेष्ठ साधन माना गया है। आचार्य रजनीश ने नाचने को भी ध्यान से जोड़ा और उनके ध्यान करने का सबसे बेहतर तरीका यही है। 
गांव घर में सभी जगह यह ध्यान गांव के लोग सदियों से करते आ रहे हैं । हिंदू और सनातन धर्म की शायद सबसे बड़ी मजबूती यही है। आज भी गांव में मंगलवार को भजन कीर्तन का आयोजन होता है और गांव के लोग सुध बुध खोकर भजन में तल्लीन हो जाते हैं। साल में एक दो बार हरे राम कीर्तन का आयोजन भी इसी ध्यान मार्ग का एक माध्यम है। ऐसी ही एक तस्वीर विष्णु धाम की है। जहां एक बुजुर्ग कीर्तन करते हुए ध्यान मग्न दिखाई दे रहे हैं। पहले पूजा पाठ में भी कीर्तन मंडली को ही बुलाया जाता था। मृत्यु के बाद भी कीर्तन मंडली का गायन की परंपरा थी। हालांकि अब धीरे-धीरे यह खत्म हो रहा।
 बाकी, शास्त्रों का अध्ययन मेरे पास नहीं है। ना ही मैं सनातन धर्म का मर्मज्ञ हूं। व्यवहारिक गांव घर में जो देखता हूं उसको लेकर यह समझ मेरी है।

15 नवंबर 2024

देवता कहलाना आसान नहीं है, सामा चकेवा कथा का मर्म, अरुण साथी..की कलम से..


देवता कहलाना आसान नहीं है, सामा चकेवा कथा का मर्म, अरुण साथी..की कलम से..


मिथिला के क्षेत्र में सड़कों पर सामा चकेवा की मिट्टी की मूर्तियों को बिकता देख रुक गया। हमारे मगध में सामा चकेवा पर्व का चलन नहीं है। या कहीं होगा, तो नहीं पता। 
हमलोग शारदा सिन्हा के गीत, साम चकेवा खेलव हे...चुगला करे चुगली.... बिलैया करे म्याऊँ...से इसे सुना। 


रुक कर जानकारी ली तो सामा चकेवा बहन के प्रति भाई के अगाध प्रेम का त्योहार है।

हालांकि कई जगह अधकचरा जानकारी भी इसी आभाषी दुनिया ने सामा चकेवा के बारे है। 
खैर, आम तौर पर यही है। पर यह इतना ही नहीं है। यह चुगला के चुगली (निंदा) के दुष्परिणाम और इसकी चपेट में भगवान कृष्ण के भी आ जाने और अपनी पुत्री को पंछी बनने का श्राप दे देने की पौराणिक कथा है। स्कंद पुराण में इसका जिक्र है।

कथानुसार, सामा बहुत सुशील और दयालु थी। इसी से वह एक ऋषि की सेवा करने उसके आश्रम जाती थी। 

इसी बीच एक निंदा करने वाला चुगला ने राजा कृष्ण को भरी सभा में क्षमा याचना के साथ सामा को ऋषि आश्रम में जाने को लेकर चरित्रहीन बता दिया। इस झूठे आरोप में वह कृष्ण भी आ गए, जो प्रेम रूप में ही पूज्य है।

 उन्होंने बगैर सत्य का पता लगाए अपनी पुत्री की पंछी बनने का श्राप दे दिया। सामा पंछी बन बृंदावन में विचरने लगी। 

कहीं कहीं यह भी उल्लेख है कि सामा के पति ने उसका साथ दिया। वह भी पंछी बन, उसके साथ हो लिया। 
खैर, इस बीच सामा के भाई चकेवा को जब यह पता चला तो वह बहन को श्राप मुक्त कराने का संकल्प लिया। कठोर तपस्या की। सामा की श्राप मुक्त कराया। 

मिथिला में यही सामा चकेवा का पर्व है। इसमें बहन उपवास करती है। गीत गाती है। आनंद मानती है। 

कार्तिक पूर्णिमा को सामा चकेवा की प्रतिमा का विसर्जन होता है। यह कठोर कथा है। भगवान कृष्ण भी निंदा करने वालों से प्रभावित होकर या समाज से डरकर अपनी पुत्री को श्रापित कर दिया। समाज में सतयुग में राम, द्वापर में कृष्ण से लेकर कलयुग तक निंदा और उसका प्रभाव समान है। कई युग बीते पर निंदा और आलोचना का कुप्रभाव नहीं बदला। 

सामा–चकेवा

युग युगांतर से
यही हुआ, हो रहा

भरी सभा में
किसी ने सीता को
तो किसी ने सामा को
चरित्रहीन कह दिया...
सीता अग्नि परीक्षा दी
सामा श्रापित हो गई...

आज भी कोई निकृष्ट 
जब किसी के चरित्र
पर सवाल उठाता है
तो देवता कहलाने
हम सामा को 
श्रापित कर देते है..

आखिर देवता कहलाना
न कल आसान था,
न आज आसान है..
है कि नहीं...








12 नवंबर 2024

कुकुअत , खुजली वाला पौधा

#कुकुअत खुजली वाला पौधा 

अपने तरफ इसका यही नाम है। अपने गांव में यह प्रचुर मात्रा में है। यह एक लत वाली विन्स है। गूगल ने इसका नाम Mucuna pruriens (L.) DC. (Velvet bean) किवांच, कवाछ बताया है। 
कुकुअत का दुरुपयोग बचपन में बदमाश बाराती खुजली कराने के लिए किया है। इसके फली के रोएं के संपर्क में आने से भयंकर खुजली होती है। 

खैर, इसकी लता, पत्ते को बचपन से पहचानता हूं। पर पहली बार इसके फूल दिखे। काला रंग है। गुच्छे में। खूबसूरत। इसके कली, इसके फूल और इसकी फली, सभी तस्वीर खींची और सभी के लिए यहां प्रस्तुत किया। 
एक बात और। इसका नया नाम कवाछ पता चला। फिर माय की याद आ गई। जब बचपन में बदमाशी करता तो माय कहती

" छौंड़ा एक दम कवाछ लगा दे छै। बिगड़ गेलई हैं।"

आज उस कवाछ का मतलब समझ में आया।

06 नवंबर 2024

मारबो रे सुगबा धनुख से...सुग्गा गिरे मूर्छाय...

मारबो रे सुगबा धनुख से...सुग्गा गिरे मूर्छाय... 

सुबह आंख खुली। छठ गीत बजाने के लिए निर्धारित समय से पहले मोबाइल ऑन किया। शारदा सिन्हा का गीत बजाया। 

"मारबो रे सुगबा धनुख से...सुग्गा गिरे मूर्छाय। आदित्य होई न सहाय...फिर मोबाइल में नोटिफिकेशन आया। छठी मईया ने शारदा सिंहा को अपने पास बुला लिया। कल अफवाह के बाद विश्वास नहीं हुआ। सोचा फिर खबर झूठ हो। पड़ताल किया। पता नहीं क्यों इस बार खबर झूठ नहीं निकली। 

छठ व्रत में शारदा सिंहा का गीत मंत्र है। यह न बजे तो उपासना अधूरी। माय की फिर याद आ गई। किशोरावस्था में जब कभी छठ पर किसी दूसरे का भोजपुरी गीत बजाता तो माय गुस्से में आ जाती। 

" नै सुनो छीं रे छौंडा, शारदा सिन्हा वाला बजो छौ तउ बजाउ, नै तो बंद कर। दोसर के गीत जरिको निमन नै लगो छै...!!"

छठ व्रत के दिन ही छठी मईया ने अपनी स्वर कोकिल उपासिका को अपने पास बुला कर उनकी साधना को सिद्धि में बदल दिया।


मंत्र घर में शारदा सिन्हा का छठ मंत्र गूंज रहा है

"झिल मिल पनिया में नैय्या फंसल बाटे, कैसे के होई नैय्या पार हो दीनानाथ।"

सदा सर्वदा गूंजता रहेगा। 


नमन...