28 सितंबर 2024

आज बात प्रशांत किशोर की ....

आज बात प्रशांत किशोर की ....

प्रशांत किशोर,  पश्चिम की कंपनियों में राजनीतिक ब्रांडिंग की नौकरी का अनुभव लेकर अपने देश लौटे और अपने देश के राजनीतिक दलों के लिए  मार्केटिंग और ब्रांडिंग करने लगे। 
नरेंद्र मोदी से सफर शुरू कर केजरीवाल, नीतीश कुमार, ममता बनर्जी आदि, इत्यादि को जीत दिलाने के दावे करते रहे। इन्हीं दावे, प्रति दावे के बीच उनमें भी राजनीतिक महत्वाकांक्षा जागी । उनके पास राजनीतिक दलों के प्रमुख का सानिध्य था । पहले चरण में प्रशांत किशोर ने जो राजनीतिक दांव चली, उसमें  औंधे मुंह गिर पड़े। 

वे कांग्रेस, ममता बनर्जी, जदयू सहित अन्य दालों के सहारे पीछे के दरवाजे से प्रवेश की राह चुनी । नेताओं ने हमेशा की तरह अपने से होशियार के लिए प्रवेश मार्ग को बंद ही  रखा।

इसके बाद प्रशांत किशोर अपने राजनीतिक दलों से प्राप्त अनुभव से अपनी प्राइवेट लिमिटेड राजनीतिक दल के गठन की रणनीति बनाई। रणनीति के तहत जन सुराज में राजनीतिक दलों से अलग युवाओं को कार्यकर्ता नहीं बनाकर, उसे नौकरी दी। वेतन पर रखा। 


चूंकि प्रशांत किशोर का राजनीतिक पार्टियों के  मार्केटिंग और ब्रांडिंग का पेशा था, तो इसका प्रयोग उन्होंने शुरू कर दिया। प्रशांत किशोर की कंपनी में सोशल मीडिया के महारथी की फौज है और इसके उपयोग, दुरुपयोग की महारथ भी है। 

बस, इसी के साथ खेल शुरू हुआ। पदयात्रा पर निकले । उनकी पदयात्रा जहां भी गई उनकी कंपनी के वर्कर गए। भीड़ जुटा, माहौल बनाया। यह राजनीति में पूंजीवाद और पश्चमीकरण की प्रकाष्ठा है।

इस खेल में मीडिया को अपना हिस्सा बनाने के लिए बड़े से बड़े मीडिया मर्डोक को व्यापारिक साझेदार बनाया। 

फिर छोटे-छोटे यूट्यूबर, फेसबुक पत्रकार को भी पकड़ा और वीडियो के दर्शक के अनुसार आमदनी देने का समझौता कर लिया। 

अब माहौल बन गया । इसकी ताकत दिखाने में पटना में प्रदर्शन हुआ। परिणाम आया। सेवानिवृत आईएएस, आईपीएस से लेकर ठेकेदार, व्यापारी, पूंजीपति, लंपट, लठैत, सोशल मीडिया के जन नेता, सोशल मीडिया के समाज सेवी, भौकाल बनाने वालों ने लाइन लगा दी। 

 साथ-साथ विभिन्न जिलों में मुख्य राजनीतिक दल से टिकट की तत्काल उम्मीद छोड़ चुके पंचायत स्तर से लेकर प्रखंड, जिला, विधानसभा और लोकसभा स्तर तक के अति महत्वाकांक्षी उनके पीछे दौड़ लगा दी है। 

सभी वर्तमान में जनसुरज के विचारधारा नीति रणनीति की चापलूसी कर रहे हैं। 

अब कई चुनौतियां भी है । पहले तो यह है कि सभी जिले में जो लोग कथित तौर पर जनसुरज से जुड़े हैं। वे अति महत्वाकांक्षी हैं।  टिकट नहीं मिलेगा तो यह क्या करेंगे, यह एक चुनौती है।

 हालांकि समाज के बीच से सच्चे सेवक को उठाकर जीतने का भरोसा प्रशांत किशोर कई संबोधनों में दे चुके हैं परंतु यह एक असंभव कार्य है। 


दूसरी चुनौती प्रशांत किशोर के सामने प्रशासनिक अधिकारी होंगे। अनुभव बताता है की नौकरी करते हुए आम आदमी को कुत्ते बिल्लियों की तरह दुत्कारने वाले राजनीति में भी वही स्वभाव लेकर आते हैं । 

तीसरी चुनौती है बिहार के जातिवाद को तोड़ने की । प्रशांत किशोर एक ब्राह्मण है। चुनाव में इसका प्रयोग होगा । अभी के माहौल में वे करेजा चीर कर दिखा दें, तब भी वोट में जाति एक कड़वा सच है और वह अभी रहेगा ही। 

अब प्रशांत किशोर ने भाजपा की चिंताएं बढ़ा दी है। राजद, स्वाभाविक रूप से मन ही मन प्रफुल्लित है। 

 प्रशांत किशोर के साथ अभी अगड़ी जातियां के मुखर लोग ज्यादा दिख रहे हैं। ये आज भी लिजर्ड सिंड्रोम से बाहर नहीं आ पा रहे। केवल इनको ही लगता है दुनिया को बदल देंगे। 

और कुछ बनिक और कुछ धनिक भी अपने  लालच में सामने आए हैं। 

यादव, मुसलमान जिसके साथ हैं, रहेंगे। अत्यंत पिछड़ी जातियां इधर-उधर आसानी से नहीं होती। दलितों के लिए सवर्ण नेता आज सर्वाधिक घृणा के पात्र है। 

अब बिहार में नीतीश कुमार के स्वास्थ्य कारणों से कमजोर पड़ने के बाद बिहार में नेतृत्व की विकल्पहीनता अपने चरम पर है। उनकी अपनी पार्टी में खटपट सामने आ चुका है।

 भाजपा के पास भी इसकी कमी है। बाद में संगठनों से आयातित विकल्प आएंगे । यह अलग बात है। 

तेजस्वी यादव ने अपनी राजनीति की लॉन्चिंग के बाद एक दो असफलताओं से सीख कर ए टू जेड का नारा दिया।  यह केवल मंचीय नारा रह गया।

 वर्तमान में , आमतौर पर राजनीति करने वाले नेताओं की तरह ही सोशल मीडिया और अपने पिता के पूर्व के कुछ से घृणा और कुछ का तुष्टिकरण की राजनीति की राह पर तेजस्वी यादव चल रहे हैं। अपने शासन काल में धन जोड़ो अभियान ही चलाया। आदमी नहीं जोड़ सके। 

चिराग पासवान! पिता और स्वजातीय के लिए अलाउद्दीन का चिराग भर हैं, बस।

 अभिनेता रहे हैं तो उनका अभिनय पिता के पुण्यतिथि से लेकर सभी राजनीतिक कार्यक्रमों में भी दिखता है। 

तब एक उम्मीद प्रशांत किशोर हैं। विकल्पहीनता का विकल्प। आंधों में काना राजा।

अब विकल्प बनेंगे, कितना सीट लायेंगे, कितना बदलाव करेंगे, सब भविष्य के गर्भ में है । भविष्यवाणी अक्सर झूठी अथवा प्रायोजित होती है।

वर्तमान में केजरीवाल का छलावा प्रशांत किशोर की प्रेत बाधा है। उससे भी बड़ी प्रेत बाधा , नीतीश कुमार का सामाजिक न्याय के नारे के साथ बिहार के विकास के लिए खींच दी गई बहुत बड़ी रेखा है। इस रेखा से बड़ी रेखा खींच सकने का विजन तक अभी किसी अन्य नेता और पार्टियों में दिखाई नहीं पड़ता है। बस।



21 सितंबर 2024

नवादा में महा दलितों के घर जलाने की बेदर्द घटना और दबंगों की जाति

नवादा में महा दलितों के घर जलाने की बेदर्द घटना और दबंगों की जाति 


बिहार पुनर्मूषको भव की राह पकड़ लिया है। शनै शनै सब कुछ घट रहा। सब कुछ डरावना है। इसी में नवादा में तीन दर्जन महा दलितों के घरों को जला दिया गया। पर नवादा की घटना में राजनीति और समाज का दोहरा चरित्र भी स्पष्ट रूप से सामने आया। चर्चा उसी की है। 
आग लगाने की घटना में पहली खबर जो ब्रेक हुई इसमें दबंगों के द्वारा दलितों के घरों को जलाने की खबर थी। पूरे विपक्ष ने इसे पकड़ लिया, राहुल गांधी से लेकर तेजस्वी तक। सब भड़क गए। आम तौर पर दबंग का मतलब सवर्ण जाति मान लिया जाता है। पर कई घटनाओं की तरह, यहां भी सच कुछ और निकला। 

घरों को जलाने वाले दलित और पिछड़ा जाति के लोग ही निकले। अब बात बदल गई। अब छांपो छांपो हो रहा। 

मतलब, अत्याचार की गंभीरता भी अब जाति वाद की जद में है।


खैर, नवादा में यह भी सामने आया की अभी कम से कम बिहार में मुसहर से बेवश और लाचार कोई जाति नहीं है। इनको बल दे कर उठाने की जरूरत है। पर नहीं, क्रिमिलियर के विवाद में सबसे आगे बढ़कर इसका विरोध करने वाले ही मुसहर के घरों को आग के हवाले कर दिया। 

आज वहां वेवशी है। सहानुभूति की औपचारिकता है। और राजनीति है। भला इनका होना नहीं है। 

होना रहता तो 1995 से केस चल रहा। फैसला आ गया होता।


खैर, बिहार पीछे जा रहा। अपराध बढ़े ही नही, अपराधी रेस में है। कौन किससे आगे। 

बिहार का वह जंगलराज का दौर था जब शान से कहा जाता था कि मेरे कुटुम रंगदार है। उसी दौर को लाने की सुगबुगाहट है। 

कैसे हो रहा। सबको पता है। 

इतना ही नहीं, सर्वे में जमीन मालिकों से लूट, अंचल में खुलेआम डकैती, प्री पेड बिजली मीटर से पॉकेटमारी सब कुछ हो रहा है। किसी की कोई सुनता नहीं है।

11 सितंबर 2024

जिंदाबाद आदमी है डॉक्टर कृष्ण मुरारी जी।

जिंदाबाद आदमी है डॉक्टर कृष्ण मुरारी जी।

71 वर्ष की उम्र में दूसरे जन्म का दूसरा जन्म दिन हर्षोल्लास से मनाना बहुत बड़ी है। डॉक्टर कृष्ण मुरारी जी। डॉक्टर होकर भी समाज से जुड़े रहे। समाज के होकर, समाज के साथ रहे। 
आज के दौर में बुराई तो एक ढूंढो, हजार मिलेंगे। बुराई ढूंढने वाले भी लाखों है। बस दूसरों की तरफ उठी एक उंगली पर हमारा अहंकार इतना होता है कि अपनी तरफ के तीन उंगलियों को भूल जाते है।
इसी को लेकर निदा फाजली की गजल है।

जब किसी से कोई गिला रखना
सामने अपने आईना रखना

यूँ उजालों से वास्ता रखना
शम्मा के पास ही हवा रखना

घर की तामीर चाहे जैसी हो
इस में रोने की जगह रखना

मस्जिदें हैं नमाज़ियों के लिये
अपने घर में कहीं ख़ुदा रखना

मिलना जुलना जहाँ ज़रूरी हो
मिलने-जुलने का हौसला रखना

पर हम अब कहां आईना रखने में विश्वास रखते है। 

खैर, बात डॉक्टर कृष्ण मुरारी जी की। कल ही जब साथ बैठे भुट्टा खा रहे थे तो हंसते हुए कहा, "मरना तो एक दिन है ही तो क्यों नहीं जी भर कर जी लें।"

जीवन के कठिन से कठिन घड़ी में इनको उदास, हताश नहीं देखा। 

कई बातें है। पर केवल एक बात। दूसरे कोरोना काल में ये शेखपुरा के सिविल सर्जन थे। इसी बीच इनका किडनी फेल हो गया। ये डायलिसिस कराते हुए अपना काम मजबूती से करते रहे। कभी पीछे नहीं हटे, डटे रहे। बोलते थे, "धुत्त, जे होतय। देखल जयतै।"

उस महामारी के पहले दौर में ही इन्होंने कहा था, "अरे यह कोई महामारी है । इसका वायरस तो साबुन से हाथ धोने से मर जाता है। डरना क्या है। हाथ धोते रहिए। सावधानी रखिए।"

फिर 68 वर्ष की उम्र में इनका किडनी ट्रांसप्लांट हुआ। ये जरा भी नहीं डरे। पॉजिटिव सोचते रहे। आज उसी ट्रांसप्लांट की वजह से ये अपना दूसरा जन्म दिन, गोशाला में बड़े आयोजन के साथ मना रहे। जिंदादिली। जिंदाबाद है। 

इनके शतायु होने की प्रार्थना ईश्वर से करते है।