01 मार्च 2016

किसान के मन की बात

किसान के मन की बात

(अरुण साथी, जर्नलिस्ट, बरबीघा, बिहार)

साहेब,
जाने सब दिल्ली में की हो-हल्ला करो हका, समझे में नै आबो हे! यहाँ गरिबका के घर एक साँझ चुल्हा उपासे रहो हे।

अभी सुनो हूँ की बजट-बजट खेलल गेल हें, जेकरा में किसानों खातिर कोय गेम हल। पता नै साहेब, की हल, की नै हल। मुदा हमनी किसनमन के त कुछो नै मिले हे। गरिबका आदमी गरीबे रह गेल।

साहेब,
लंबा-लंबा भाषण तो जब से होश आल हें, सुनिए रहलूं हें! कुछ होल तो आझ तक नहिये हे? उर्वरक के कालाबाजारी नहिये रुकल, खेत में पटवन के साधन नै हे। एक सेर चाउर उपजाबे में नीचू दिया पसीना चू जा हे औ बाजार में जा हूँ त एक सेर चाउर में एक पाकिट निमको नै आबो हे!

साहेब,
हमर खेत में जब टमाटर, पियाज, बैगन रहे हे त ओक्कर कोय मोल नै हे, बकि उहे व्यपारी से हाथ में जा हे तो ऊ सोना हो जा हे, काहे साहेब?

साहेब,
हम्मर खेती आझो भगवान् भरोसे हे, पानी पड़त त ठीक नै त ठनठन गोपाल! अब तो मौसम भी किसनमे से रभसे से, जब मन तब बरसात और जब मन तब गर्मी..! इस सब की है, समझ नै आबे हे।

साहेब,
हम्मर अरके गांव, जवार अब खाली हो गेल हें। जेकरा जरी लूर-बुद्ध होल उहे दिल्ली, पंजाब, सूरत कमाबे ले भाग जा हे, औ आबे हे त चकाचक। हमनी गांव वाला ओकर मुंह टुक्कूर-टुक्कूर बन्दर मखते ताको हूँ! सोंच में पड़ जाहूं कि रात-दिन बैल नियर खटला पर भी देह पर पाव भर मांस नै जमे हे औ परदेश में जाके सब कैसे लाटसाहब बन जाहे!

साहेब,
गांव में कभी-कभार मीटिंग लगे हे तब किसान के बड़की बड़की योजना सुनाबल जाहे, लगे हे जैसे कौनो दोसर दुनिया के बात हे। काहे से की जब ऑफिस में जा हूँ तब उहाँ गरिबका के कुछ नै मिले हे, बाबू साहेब लोग दुत्कार के भगा दे हका! जिनखर खेती से मतलब नै उनखरे किसान सम्मान मिले हे! किसान बाला कर्जा, इन्सुरेंस, सुखाड़ राहत, बीज अनुदान, जाने कत्ते चीज हे किसान खातिर, पर कहाँ साहेब, सब बाबू लोग अपन हाथी नियर पेट पे में सपोर ले हका!

साहेब, टीवी खोलूं हूँ त डर लगे हे, लगे हे जैसे देश जर रहल हें! कहिनो अखलख, कहिनो रोहित बोमिल, कहिनो जेएनयू....? बाप रे बाप, सब जैसे बौरा गेल हें... केकरो अपन धरती माय से मतलबे नै हे! रहत हल तब ई सब बांटे बाला बात कैसे होत हल?
साहेब, हमनी के जे समझ में आबो हो ऊ इहे हो की तों सब आपस में एक्के हा, और सब मिलके घोर-मठ्ठा कर देला हें! सब अप्पन अप्पन वोट के फेरा में धरती माय के करेज काटे में लगल हका बकि हमरा सब के खातिर तो आझो धरती माय, अप्पन माय से बढ़ के हे.....माय तो जनम देलखिन बकि धरती माय परतिपाल करो हका....
साहेब,
कैसू करके धरती माय के बचा ला साहेब, कैसू करले बचा ला....😢

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