रक्तबीज, जो मार देने पर भी नहीं डरता..
(पत्रकारों की हत्या पे एक पत्रकार "अरुण साथी" की आवाज़ और शहीद साथी को विनम्र श्रद्धांजली)
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नश्वर देह से अनासक्त हो
कलम थामी
और लिया संकल्प
निडरता का...
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संकल्प लिया
जनता-जनार्दन की सेवा
और जनतंत्र की
अमरता का...
रे असुर, रुको
रक्तरंजित हाथों को साफ
करने से पहले
देखो तो,
दिखेगें तुम्हें
हजारों, लाखों
राजदेव
इंद्रदेव
निडर
अमर
अजर
और वह बोलेगा-
"तुम मार देना मुझे फिर से
और मैं फिर से
जिन्दा करता रहूँगा
मुर्दा कौमों को..."
और तब
तुम सोंचने लगोगे
आखिर यह कैसा
रक्तबीज है...
जो मार देने पर भी नहीं मरता...
जो मार देने पर भी नहीं डरता....
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(अरुण साथी, बरबीघा, बिहार)
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (17-05-2016) को "अबके बरस बरसात न बरसी" (चर्चा अंक-2345) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Well said..
जवाब देंहटाएंरक्तबीज कह लीजिये भले पर उनका महान् उद्देश्य ,दृष्टि और विवेक को सतत जाग्रत रख न्याय और नीति के लिये सामाजिक समर्थन हेतु प्रयास करना रहा .जैसे एक से अनेक दीपों के प्रज्ज्वलन की परंपरा.
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