29 दिसंबर 2013

जीवन का मंत्र....आज एक पुरानी कहानी

बचपन में सुनी कहानी आज भी चरितार्थ है। खासकर केजारीबाल के संदर्भ में। एक बुढ़ा आदमी जब मरने लगा तो उसने अपने बेटा को बुलाकर कहा कि चलो तुमको समाज के बारे में अच्छी तरह सबक दे देता हूं। उसने एक घोड़ा मंगाया और उसके उपर खुद बैठ बेटा को लगाम पकड़ कर चलने के लिए कहा। कुछ दूर जाने पर लोगों ने बुढ़े की निंदा करनी प्रारंभ कर दी। कैसा आदमी है बुढ़ा हो गया और घोड़ा पर बैठ कर चल रहा है बेटा से लगाम खिंचा रहा है।
फिर उसने बेटा को घोड़ा पर बैठा दिया और खुद लगान पकड़ कर चलने लगा। थोड़ी दूर जाने के बाद लोग बेटा की निंदा करने लगे, कैसा नालायक बेटा है, खुद घोड़ा पर बैठा है और बाप पैदल चल रहा है। घोर कलयुग है।
फिर दोनों घोड़े के उपर बैठ गए चलने लगे। थोड़ी दूर जाने के बाद लोग दोनों की निंदा करने लगे। कैसा अमानुष है? जरा दया नहीं? बेचारे घोड़े की जान ले लेगा?
फिर अन्तिम विकल्प के तौर पर दोनो पैदल चलने लगे। फिर लोगों ने निंदा करनी शुरू कर दी। वेबकुफ आदमी है। घोड़ा रहते हुए भी पैदल चल रहा है।
मेरे लिए यह कहानी जीवन का मंत्र है। इसके बाद कुछ नहीं बचता। आज केजरीवाल के प्रसंग में यह कहानी प्रसांगिक है।

4 टिप्‍पणियां:

  1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  2. ये सन्दर्भ सभी अपने जीवन में भी पाते हैं कभी न कभी...

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  3. अच्छा करो या बुरा कहने वाले हमेशा गलती निकालते रहते है ...!

    Recent post -: सूनापन कितना खलता है.

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  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (30-12-13) को "यूँ लगे मुस्कराये जमाना हुआ" (चर्चा मंच : अंक-1477) पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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