चिराग पासवान: जीरो बटा सन्नाटा
सबसे पहले चिराग पासवान हमारे सांसद 10 वर्ष तक रहे हैं। मेरे जिला शेखपुरा में उनके नाम जीरो उपलब्धि है। यहां तक की आम आदमी से जुड़ने की पहल भी उनके द्वारा कभी दिखाई नहीं पड़ी।
बिहार फर्स्ट और बिहारी फर्स्ट का नारा जब चिराग पासवान ने दिया, तो वह केवल एक नारा ही रह गया।
उस नारे के आगे, पीछे किसी प्रकार का कोई विजन अभी तक सामने नहीं आया है।
बिहार फर्स्ट , बिहारी फर्स्ट के लिए उनके द्वारा कोई बड़ा कृत भी नहीं किया गया। हाँ, मीडिया में लच्छेदार बातों को रखने की कला में हुए सिद्ध हस्त हैं।
बिहार में अब उन्होंने अपनी सक्रियता बढ़ाने की बात कह कर एक बार फिर से राजनीति में हलचल मचा दी है। खासकर एनडीए की राजनीति में।
पिछले विधानसभा में हनुमान की बात कह कर उन्होंने नीतीश कुमार की पार्टी को बैक फुट पर ला दिया था।
चिराग पासवान के जनाधार की यदि बात करें तो उनका स्वजातीय जनाधार उनके साथ निश्चित रूप से है और यह सब उनके पिता, स्वर्गीय रामविलास पासवान जी की कीर्ति की वजह से है। कर्मों की वजह से है। इसमें चिराग पासवान का शून्य योगदान है। उधर, राजनीति में पार्टी का टूटना और परिवारिक लड़ाई भी चिराग पासवान के नकारात्मक पहला का प्रमाण है।
इस बात का अनुभूति हर किसी को है कि चिराग पासवान स्टारडम के सहारे राजनीति में अभिनय कला का जबरदस्त प्रदर्शन करते हैं।
पहले भी इस बात पर चर्चा की गई है कि चिराग पासवान के पास राजनीतिक महत्वाकांक्षा अति प्रबल है, परंतु जन सरोकार और संवेदनशील संबंध के मामले में वह शून्य हैं।
बाकि राजनीति संभावनाओं का खेल है... देखिये..
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