खेती किसानी में एक बड़ा बदलाव देख रहा। अब दलहन, तेलहन की खेती नगण्य है। सिर्फ गेहूं की खेती। एक बदलाव यह भी की अब उपज तीन गुणा बढ़ा है। पहले एक मन प्रति कट्ठा बेहतर उपज माना जाता था। आज धान, गेहूं तीन मन प्रति कट्ठा तक उपज है।
पहले रबि की खेती में सरसो, तीसी सामान्य तौर पर किया जाता। आज सब खत्म। तीसी तो विलुप्त। जबकि आज तीसी की उपयोगिता औषधीय है। मधुमेह में रामबाण माना जाता।
इसी तरह खेसारी की खेती बंद। चना, मसूर, अरहर बहुत कम।
इधर, टीवी पर एक कीटनाशक का विज्ञापन देखा। कहा गया, मोथा को जड़ से खत्म कर देता। फिर याद आया, मोथा अब मेरे यहां विलुप्त है। पहले खूब होता था। गेहूं के खेत में। दादी का नुस्खा था। मोथा का जड़ (कंद) को खाने से खांसी ठीक हो जाती है। खूब उपयोग किया था। अब विलुप्त। कितना कुछ बदल गया। अब गेहूं के खेत में अमेरिका से आया जहरीला अमेरिकन घास प्रचुर है। इसके संपर्क से ही दमा होता है। खेत को बंजर बनाता है।
खेत में बिजली का पहुंचना सुखद है। मेरे इलाके में बिजली न हो तो धान की खेती अब असंभव है। इसका एक दुखद पहलू यह की बिजली का सस्ता तार (एल्यूमिनियम पर प्लास्टिक कवर) किसान बोरिंग में ले जाते है। लगभग नंगा होता है। उससे हर साल किसानों की जान चली जाती है। खेत में टहलना अब जानलेवा है। दोष बिजली विभाग पर आता है। धीरे धीरे बहुत कुछ बदलता देख रहा...जाने और क्या बदले...
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