14 अप्रैल 2024

सतुआनी या बिसुआ भारतीय संस्कृति का एक अनोखा पर्व

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आज सत्तुआ खाने का पर्व है। हमारा देश भी अदभुत है। सनातन परंपरा और भी अदभुत। वैज्ञानिक समझ। वैज्ञानिक परंपरा।  वैज्ञानिकता को धर्म से जोड़ने वाला देश। धर्म।

सत्तू। एक समय में गांव से गरीबों को गाली दिया जाता था या औकात बताई जाती थी तो कहा जाता था,

 "सतुआ खइते दिन जाहौ आऊ फूटनी करे हे।"

पर देखिए, इसी सत्तू को पर्व से जोड़ गया है। अमीर। गरीब। सबका पर्व।

कहा जाता है की सतुआनी के बाद अन्य पर्व खत्म हो जातें है। ऐसी मान्यता है। 
कहावत है। नागपंचमी पसार, बिसुआ उसार। मतलब नागपंचमी से पर्व शुरू, बिसुआ के बाद खत्म। हालांकि इस साल अभी चैती दुर्गा पूजा और छठ बाकी है।

बिसुआ का एक अपना महत्व भी है। कई जगह सत्तू से पूजा भी होती है। कई जगह सत्तू से साथ जौ भी चढ़ाया जाता है। जौ आज विश्व भर में प्रसिद्ध है। मिलेट में शामिल।

आज जबकि फास्ट फूड या इंस्टेंट फूड का जमाना है, इसके नुकसान सभी बता रहे।

कई तरह के हानिकारक रसायन इनमें दिया जाता है। घटिया तेल। और खतरनाक रसायन अजीनोमोटो। कहते है यह बेहद खतरनाक है। 

खैर। आज गांव गांव चाउमिन, एग रोल, मोमो बिक रहे। भीड़ भी है।

वहीं सत्तू। एक पौष्टिक आहार। शुद्ध। प्रोटीन  युक्त। स्वास्थ्य वर्धक। सुपाच्य। 

हालांकि आज कई लोगों का यूरिक एसिड बढ़ा होता है। वैसे लोगों के लिए प्रोटीन वर्जित है। फिर भी पुरानी परंपरा में सत्तू सिर्फ चने का नहीं होता था। 

मिलौना सत्तू सबसे अधिक उपयोगी माना जाता। कहा जाता था की यह पेट ठंडा रखता है।

और उपयोगकर्ता जानते है कि सत्तू के सेवन से प्यास अधिक लगती है। तो गर्मी में पानी अधिक पीना पड़ता है, जो फायदेमंद है।

सत्तू। सबसे इंस्टेंट फूड है। झटपट तैयार। कई तरह से उपयोग। घोर कर पीना। सान कर खाना। नमक। चीनी। मीठ्ठा। सब से साथ। 

बुजुर्ग लोग खेत में गमछी पर ही सत्तू सान कर खा लेते थे। 

आज सत्तू का चलन बढ़ा है। कई नवाचार कंपनी भी है। मतलब यह की भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म का जुड़ाव यहां भी प्राकृतिक से है। प्रकृति की पूजा से है। 

खैर, आज शुद्ध चने का सत्तू। शुद्ध देशी गाय का घर का घी। भूरा। सान के खा लिए। एक अलग स्वाद। किसी भी मिठाई से स्वादिष्ट।

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