15 नवंबर 2024

देवता कहलाना आसान नहीं है, सामा चकेवा कथा का मर्म, अरुण साथी..की कलम से..


देवता कहलाना आसान नहीं है, सामा चकेवा कथा का मर्म, अरुण साथी..की कलम से..


मिथिला के क्षेत्र में सड़कों पर सामा चकेवा की मिट्टी की मूर्तियों को बिकता देख रुक गया। हमारे मगध में सामा चकेवा पर्व का चलन नहीं है। या कहीं होगा, तो नहीं पता। 
हमलोग शारदा सिन्हा के गीत, साम चकेवा खेलव हे...चुगला करे चुगली.... बिलैया करे म्याऊँ...से इसे सुना। 


रुक कर जानकारी ली तो सामा चकेवा बहन के प्रति भाई के अगाध प्रेम का त्योहार है।

हालांकि कई जगह अधकचरा जानकारी भी इसी आभाषी दुनिया ने सामा चकेवा के बारे है। 
खैर, आम तौर पर यही है। पर यह इतना ही नहीं है। यह चुगला के चुगली (निंदा) के दुष्परिणाम और इसकी चपेट में भगवान कृष्ण के भी आ जाने और अपनी पुत्री को पंछी बनने का श्राप दे देने की पौराणिक कथा है। स्कंद पुराण में इसका जिक्र है।

कथानुसार, सामा बहुत सुशील और दयालु थी। इसी से वह एक ऋषि की सेवा करने उसके आश्रम जाती थी। 

इसी बीच एक निंदा करने वाला चुगला ने राजा कृष्ण को भरी सभा में क्षमा याचना के साथ सामा को ऋषि आश्रम में जाने को लेकर चरित्रहीन बता दिया। इस झूठे आरोप में वह कृष्ण भी आ गए, जो प्रेम रूप में ही पूज्य है।

 उन्होंने बगैर सत्य का पता लगाए अपनी पुत्री की पंछी बनने का श्राप दे दिया। सामा पंछी बन बृंदावन में विचरने लगी। 

कहीं कहीं यह भी उल्लेख है कि सामा के पति ने उसका साथ दिया। वह भी पंछी बन, उसके साथ हो लिया। 
खैर, इस बीच सामा के भाई चकेवा को जब यह पता चला तो वह बहन को श्राप मुक्त कराने का संकल्प लिया। कठोर तपस्या की। सामा की श्राप मुक्त कराया। 

मिथिला में यही सामा चकेवा का पर्व है। इसमें बहन उपवास करती है। गीत गाती है। आनंद मानती है। 

कार्तिक पूर्णिमा को सामा चकेवा की प्रतिमा का विसर्जन होता है। यह कठोर कथा है। भगवान कृष्ण भी निंदा करने वालों से प्रभावित होकर या समाज से डरकर अपनी पुत्री को श्रापित कर दिया। समाज में सतयुग में राम, द्वापर में कृष्ण से लेकर कलयुग तक निंदा और उसका प्रभाव समान है। कई युग बीते पर निंदा और आलोचना का कुप्रभाव नहीं बदला। 

सामा–चकेवा

युग युगांतर से
यही हुआ, हो रहा

भरी सभा में
किसी ने सीता को
तो किसी ने सामा को
चरित्रहीन कह दिया...
सीता अग्नि परीक्षा दी
सामा श्रापित हो गई...

आज भी कोई निकृष्ट 
जब किसी के चरित्र
पर सवाल उठाता है
तो देवता कहलाने
हम सामा को 
श्रापित कर देते है..

आखिर देवता कहलाना
न कल आसान था,
न आज आसान है..
है कि नहीं...








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