23 फ़रवरी 2025

महाकुंभ का भेड़ियाधसान

महाकुंभ का भेड़ियाधसान

पटना के बिहार बोर्ड ऑफिस के बाहर लिट्टी चोखा खा रहा था। इसी बीच महाकुंभ के महा पुण्य और महा प्रताप के बीच एक लिट्टी वाले ने धर्म का तत्व ज्ञान दे दिया। दर असल, दुकान पर एक मानसिक दिव्यांग व्यक्ति आये। उनके चेहरे पर उत्तेजना थी। आचरण भी उत्तेजक लगा। पटना में ऐसे दिव्यांग पर भला कौन ध्यान देता है? सो मैं भी लिट्टी चोखा खाने में लग गया। 
मेरा ध्यान उस दिव्यांग की ओर तब गया जब वह लिट्टी चोखा बहुत आनंद से खा रहे थे । मैंने ने दुकान संचालक भाई से उस दिव्यांग के लिट्टी की राशि देने की इच्छा प्रकट की । तभी तत्व ज्ञान प्राप्त हुआ। दुकानदार भाई राधोपुर के रहने वाले थे। नाम उदय बताया। और कहा, 
"सर , ई तीन साल से रोजे आता है। चुपचाप बैठ जाता है। मैं भगवान् कि पूजा समझ रोज इसको लिट्टी चोखा का भोग लगाता हूँ। पैसा नहीं लेता। क्या पता, भगवान् ही हों...?"

मैंने कहा "भाई यह तो बड़ा पुण्य का काम कर रहे हो।"

वह खुल गया। बोला, 

"सर हमलोग का पाप, पुण्य कहाँ होता है। सुबह से रात तक काम करते है और थक के सो जाते हैं। पाप , पुण्य का हिसाब किताब भी पेट भरने के बाद ही आदमी लगाता है। अब देखिये, अभी कुंभ का भेड़ियाधसान है। मैं पुण्य कमाने नहीं जा सका। रोज ग्राहक की चिंता होती है।"

खैर, अभी महाकुंभ को भेड़ियाधसान कहा जा सकता है। जो लोग इसे सनातन की जागृति कह रहे, मैं इससे सहमत नहीं। महा कुंभ की दिव्यता राजनीति के वैभय में गुम गया। मैं धर्म शास्त्री नहीं हूँ। बिल्कुल नहीं। ढेर सारा पाप अपने हिस्से में है। थोड़ा थोड़ा पुण्य संचय कि उत्कंठा है। लोभ है। पर नास्तिक भी नहीं हूँ। चीजों को अपनी समझ से देखता हूँ। भीड़ की समझ से नहीं। और भोगे हुए सच को कहता हूं, बस। 

तब, 


"नहि वेरेन वेरानि सम्मन्तीध कुदाचनं।
अवेरेन च सम्मन्ति, एस धम्मो सनन्तनो।।"

यह श्लोक पालि भाषा में है और बौद्ध धर्मग्रंथ 'धम्मपद' से लिया गया है। इसका भावार्थ है, 

इस संसार में वैर (शत्रुता) से वैर कभी शांत नहीं होता। वैर केवल अवैर (अहिंसा, प्रेम और मैत्री) से ही समाप्त होता है। यही सनातन धर्म है।

और आज हम घोषित रूप से वैर से वैर समाप्त करने का जयघोष कर रहे। हमे डरा दिया गया है कि हम उनके जैसा कट्टर और क्रूर नहीं बनेगें तो अस्तित्व मिट जायेगा। और हम डर गए है। 

दुख की बात यह कि गाँव के गलियों से लेकर राष्ट्रीय फलक तक, धर्म से सरोकार नहीं रखने वाले धर्म ध्वजा के वाहक है। 

आप, हम, इसे नजर अंदाज कर देते है। पर चुभता सबको है। अभी आचरण से स्वार्थ सिद्धि के लिए किसी का भी गला काट लेने से गुरेज नहीं करने वाला, लंपट, ठग, मनचला सभी धर्म ध्वजा का वाहक है। पर हमारे आचरण में धर्म नहीं उतरा। शास्त्रों और धर्मचारी कि माने तो धर्म धारण करने कि चीज है। आचरण, व्यव्हार में यदि धार्मिक नहीं तो धर्म कैसा..! 

खैर , जो बात चुभती है उसपर बोलना चाहिए। अभी महाकुंभ को लेकर मन में टीस है। एक खबर आई, बुढी माता को घर में बंद करके कुंभ स्नान में चला गया। ऐसी कई खबरें हैं। बात धार्मिक है, हम नजर अंदाज कर देते है। 

हमने नजर अंदाज कर दिया कि कुंभ में जाने के लिए कैसे कैसे पाप किये। सोंचिये, यदि दूसरे धर्म को मानने वाले अपने किसी धार्मिक आयोजन में जाने के लिए डेढ़ माह तक रोड और रेल मार्ग को ठप कर देता! रेल में सुई भर जगह नहीं होती। फ्री में रेल यात्रा करते। वातानुकूलित रेल के शीशे तोड़ कर उसपर कब्जा कर लेता, तब हम क्या कहते..? सोंचिये बस... बाकि अगली बार.. 










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