कसाई के श्राप देने के गाय नहीं मारती...!
भ्रष्टाचार, वंशवाद के विरुद्ध उठे आवाज को कथित तौर पर सोशल मीडिया पर लगाए गए प्रतिबन्ध ने नेपाल में अराजकतावाद का नंगा नाच किया। यह अतिवाद है। इस चरमपंथ को जेन जी कहा जा रहा।
सब मान भी लें तो संसद को जलाना, होटल जलाना। विपक्षी पूर्व पीएम का घर फूंक देना । उनकी पत्नी की मौत। देश की सार्वजनिक संपत्ति को फूंक देना..! यह राष्ट्रवाद नहीं, चरमपंथ है। अतिवाद है। जेन जी नहीं।
हिटलर ने अपने आत्मकथा में कहा है कि
"30 वर्ष के कम उम्र के युवाओं के हाथ ताकत नहीं होनी चाहिए। वह नुकसान करेगा।"
इसी लिए आचार्य ओशो ने कहा है,
"क्रांति अक्सर असफल रही है। क्यों कि क्रांति भीड़ करती है। और भीड़ के पास अपना दिमाग नहीं होता।"
मैं मानता हूं, किसी देश का तानाशाही सरकार से लाख गुणा बढ़िया भ्रष्ट लोकतांत्रिक सरकार है। आज बांग्लादेश देख लीजिए।
ये उन्मादी , चरमपंथी युवाओं ने नेपाल (अपना देश) जला दिया। अब भारत में दोनों तरह के लोग खुश है। एक इसलिए खुश हैं कि चीनी परस्त वामपंथी सरकार का खत्मा हुआ। दूसरा खेमा इसलिए खुश है कि उसे भ्रम है कि यह आग भारत तक पहुंचेगी...! भारत में इस आग को भड़काने में वे लोग लगे हुए है। तरह तरह के ताने दिए जा रहे। रविश जैसा आदमी, कहता है वोट चोर वाला नारा से नेपाल ने बवाल हुआ है।
पर भारत में यह कभी नहीं होगा। भारत का मानस लोकतांत्रिक है। भारत ने विदेशी ताकतों के इशारे पर किसान आंदोलन में लाल किले पर ट्रैक्टर का विकराल प्रदर्शन देखा है। शाहीन बाग देखा। संविधान खतरे से लेकर वोट चोरी तक देख लिया है।
जेन जी की हवा भारत में चलाने की असफल कोशिश हो चुकी है।
यह पूरा खेल सोशल मीडिया का भी है। किस आग को भड़काना है, उसी को हवा दे दो। चाबी तो उसी के पास है। नेपाल में वही हुआ। इसकी चाबी अमेरिका के पास है। जॉर्ज सोरेस भी अमेरिका का है। हर देश में तख्तापलट के हालिया मामले में उसका हाथ सामने आया। नेपाल में भी आएगा।
इसलिए बंधु, छाती पीटते रहो,
कसाई के श्राप देने के गाय नहीं मारती...! बाकी तो जो है, सो हैइए है...

सोचनीय लेख
जवाब देंहटाएंसार्थक लेख। जिसपर विचार किया जा सकता है।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंWelcome to my new post....
आपने बहुत सही लिखा है । यह सही है कि कसाई के कोसने से गाय नहीं मरती लेकिन कसाई इस ताक में ही रहे कि किसी तरह गाय हासिल करो और ...अधिकांशतः आज का युवा इसी विचार की ओर बढ़ रहा है । यह चिन्ताजनक है । उन्हें अपना कोई कर्तव्य याद नही । ऐसी समझ पर हैरानी व चिन्ता होती है कि नेपाल की तुलना भारत से करते है और अच्छे खासे प्रशासन को तानाशाही बताते हैं ।
जवाब देंहटाएंविचारणीय विषय है,,,, नेपाल जैसी हवा हमारे भारत में कभी न बहे,,,
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