10 मार्च 2013

बलात्कार (कहानी)


उसके बड़े बड़े स्तनों की खूबसूरती छुपाने के लिए सपाटा से उसी प्रकार कस कर बांध दिया जाता है जैसे गदराल गेंहूं के खेत में पाटा चला दिया गया हो। सपाटा रूबिया के माय खुद अपने हाथों सिलती थी। सबसे मोटा कपड़ा देख कर। मजबूत सिलाई और पीछे मोटका बटम भी। तीन चार दिनों में जब भी रूबिया नहाती माय अपने हाथ से उसकी छाती को दबा दबा कर सपाटा के अंदर कस देती। रूबिया के लिए के लिए समीज सलबार पहनना सपनों की बात हो गई। बदरंग सा नाइटी ही उसकी पहनावा बन गयी थी। रूबिया का श्रृंगार उससे छीन लिया गया। बेतरतीब बिखरे बाल। नाक कान का छेदाना भी अपने को कोसता हुआ सा। अब उसके लिए न तो दु रूपैयबा नथुनी थी न ही कनबाली।

         सबकुछ छीन लिया गया। यहां तक की पिछले सात सालों से उसे किसी ने हंसते, मुस्कुराते नहीं देखा। कभी कभी चांदनी रात में रूबिया चांद को टुकुर टुकुर देखती रहती। झक सफेद चांद उसे अपना सा ही लगता, और उसके उपर लगे दाग उसे बेचैन करने लगते। एकाएक रूबिया को चांद का रंग लाल नजर आने लगता। खुनिया लाल। उफ! वह डर कर कमरे में भाग जाती।

चटाई पर लेट कर रूबिया रोने लगती, पर उसके आंखों में अब आंसू नहीं आते जैसे उसके खुशियों की तरह वह भी उससे रूठ गई हो। रूबिया के कानों में गूं गंू की आवाज जोर जोर से गूंजने लगती। रूबिया अपना देह उठ कर झारने लगती। उसे अपने देह पर रोड रौलर चलने जैसा महसूस होने लगता, जैसे सबकुछ सपाट हो गया हो। वह लबादा, सपाटा सबकुछ खोल कर फेंक देती। अपने बाल बिखड़ा देती और जोर जोर से गूं गूं की आवाज निकालने लगती। पर जैसे कि किसी ने उसके कंठ को अवरूद्ध कर दिया हो, आवाज बाहर नहीं आती। बिखरे बाल को जोर जोर से नचाती। सर को हिलाती। और फिर अन्त में अपने दोनों स्तनों सहित शरीर के अन्य भागों को कपड़ों से रगड़ने लगती। जैसे कुछ साफ कर रही हो।

उधर माय के कानों में गूं गूं की आवाज जाती तो पहले से ही कमरे के बाहर बाल्टी में रखी पानी लेकर वह दौड़ जाती। झपाक से उसके देह पर पानी फेंकती और रूबिया भक्क से गिर पड़ती, बेहोश। बेहोशी में ही उसके मुंह से खून खून की आवाज निकलने लगती।

रूबिया के बाबू जी कमरे के बाहर ही रहते। पहली बार इस गूं गूं की आवाज पर जब वह दौड़ कर कमरे में गए थे तो सुन्न रह गए। जवान बेटी को दूसरी बार नंग-धड़ग देख। पहली बार रूबिया के बाबूजी ने उसे नंग-धड़ंग तब देखा था जब शाम के पैखाना गई रूबिया लौट कर नहीं आई। रात भर रूबिया को दोनो प्राणी टॉर्च लेकर जंगल झार में खोजते रहे। भोर में रूबिया बंसेढ़ी में मिली थी, इसी तरह नंग-धड़ंग। मुंह में कपड़ा ठूंसा, दोनों हाथ पांव बंधे हुए। खून से लथपथ। 

देवा! माय ने अपने देह से साड़ी खोल कर उसके देह पर लपेट दिया। कुछ पूछने की हिम्मत नहीं हुई। बाबूजी ने पूछा ।
के हलौ?
रूबिया के मूंह में बकार नहीं। दोनों उसे बीच में छुपा कर घर ला रहे थे। फरीच हो गया था, इसलिए गांव की महिलाऐं और कुछ बुजुर्ग शौच के लिए निकलने लगे थे। जिसने भी देखा, टोक दिया। की होलै?
उनके घर पहूंचने के थोड़ी देर बाद ही गांव मंे हल्ला हो गया। रूबिया के रेप हो गेलै। उसके घर के आस पास लोगों की भीड़ जमा होने लगी। 

‘‘हां हो, जवान बेटी हलै, संभाल के नै रखल गेलै?’’ 
‘‘गरीबको घर में बियाह देतै हल? अब जाने केकरा फंसइतै?’’
‘‘केस-फौदारी करे से की ऐकर इजतिया वापस मिल जइतै?’’
जितनी मंुह उतनी बाते। पर रूबिया के बाबू जी ने थाना जाने का मन बना लिया।

(शेष और अंतिम कड़ी अगले रविवार को....)

17 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!

    महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ !
    सादर

    आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
    अर्ज सुनिये

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  2. हौलनाक , आपने इसे कहानी की शक्ल दी , ​कभी कभी ऐसी दर्दविदारक घटनाओ को लिखने में पसीने तक आ जाते हैं

    मै इसे लाजबाब तो नही कहूंगा क्योंकि विषय ही ऐसा है पर आपका लेखन गजब है

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  3. सुंदर महा शिवरात्री मगल्मय हो ... शिव की कृपा बनी रहे

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  4. कुछ कहने को शब्द ही नहीं हैं

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  5. मार्मिक प्रस्तुति....शुभकामनाएँ!!

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  6. रोंगटे खड़े हो गए इस कहानी को पढ़ते पढ़ते पूरी रूह काँप गयी आंखों में आंसू न रुक सके! पता नहीं आपने कैसे(हृदय को कितना मजबूत करके) ये कहानी लिखी होगी!
    सारे चित्र आंखों के सामने नाच रहें हैं
    निशब्द हूँ!

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