बिहार सरकार के माननीय ग्रामीण कार्य मंत्री मंत्री अशोक चौधरी का बरबीघा से क्यों और कैसे अपनापा है, यह बात बाज लोगों को हजम नहीं होती। वे उल्टी करने लगते है। इसलिए थोड़ा विस्तार से आज चर्चा कर रहा।
मेरी बिटिया की शादी में पटना से मुजफ्फरपुर और वहां से सपर कर बरबीघा अपनी प्रखर सांसद पुत्री शांभवी और ओजस्वी दामाद जी कुणाल के साथ आना, सहज बात नहीं नहीं है। वे मेरे पारिवारिक समारोह में शामिल हुए।
इसे समझिए। मैं एक बहुत साधारण आंचलिक पत्रकार हूं। मेरी बड़ी पहचान नहीं है। मेरे पास वोट बैंक नहीं है। पर उनका जुड़ाव है।
अशोक चौधरी जी से जुड़ाव उनके बरबीघा से विधायक और मंत्री रहते 2003 में हुआ। तब से लेकर आज तक एक बॉन्डिंग है। अपनापन। और मुझसे ही नहीं, कई से है।
समझिए, राजनीति कितना समर्पण का कार्य है। मुझे याद है, बात उन दिनों की है जब वे मंत्री थे। उस समय बाजार में जूस विक्रेता गोरे माहुरी (वैश्य समाज) को बदमाशों ने तलबार के कई जगह काट दिया था। उस समय पटना में अशोक चौधरी ने खड़ा रहकर इलाज कराया, उसकी जान बचाई। आज वह जिंदा है।
दूसरा उदाहरण। माउर निवासी मित्र राजे भाई है। आज वह सफल नौकरी में है। यह देन अशोक चौधरी की है। कैसे..।
बात 2012 की है। राजे कृषि विभाग में नियोजन पर नौकरी कर रहा था। एक अधिकारी ने दुराग्रह से उसका नियोजन विस्तार नहीं किया। वह अशोक चौधरी के पास पहुंचा। वे अपने माता जी और परिवर के साथ दिल्ली जा रहे है। फ्लाइट पकड़नी थी।
इसे देखते बोले, दो दिन बाद आइए। यह रूआंसा हो गया। वे इसे भांप गए। फिर वे सभी को रुकने बोले। सबसे वरीय अधिकारी को फोन लगाया और बोले, सरकार मेरे समर्थन से चल रही है। यह मेरा भाई है। इसका काम नहीं हुआ तो सरकार गिरा देंगे। फिर राजे को बोले, मोबाइल दो घंटा के लिए बंद कर लो।
दो घंटे बाद जब मोबाइल ऑन हुआ तो दनादन कॉल आने लगे। नियोजन विस्तार का चिठ्ठी मिल गया। आज वह खुशहाल है।
और समझिए। यह बात भी 2004 के आसपास की है। मेरे ग्रामीण विजय दा अपने परिवार के साथ पटना गए थे। उनके पांच साल का पुत्र राहुल पटना में खो गया। उसे थाना पहुंचाया गया। उसे कुछ पता नहीं था।
पुलिस ने उससे पूछा, पटना में किसी को जानते हो..।
उस बच्चे में मंत्री अशोक चौधरी का नाम लिया। मंत्री जी से संपर्क हुआ। बच्चा आज अपने परिवार का जिम्मेवारी उठा रहा।
ऐसे हजारों उदाहरण है। कई मंत्री और विधायक गुमान में भरकर अकड़ जाते है। लोग भी उसके पास नहीं जाते।
अशोक चौधरी के आवास का दरवाजा बरबीघा का नाम सुनते ही खुल जाता है। मुश्किल में लोगों को अशोक चौधरी की याद आती है। प्रति दिन उनसे मिलने और मदद मांगने, बरबीघा के कई लोग जाते है। सबको सम्मान और सहयोग मिलता है। और इनमें जाति का बंधन नहीं होता। पर हां, ज्यादा लोग, भूमिहार समाज के होते है। अशोक चौधरी के मंत्री, विधायक रहते बरबीघा में श्री बाबू की आदमकद प्रतिमा लगी। उनके नाम पर नगर भवन बना। उनकी जयंती पर उत्सव होता था। आज उसके बाद उपलब्धि शून्य है।
अशोक चौधरी जब बरबीघा के किसी गांव जाते हैं तो कई लोगों से लिपट पड़ते हैं । कई लोगों के पैर पर झुक कर आशीर्वाद लेते हैं तो कई लोगों के घर को देखकर पूछते हैं, अरे , यह तो उनका घर है, वह कैसे....? बस इसी से समझिए, बरबीघा अशोक चौधरी का घर है..! यहां की राजनीति में उनका दखल मजबूत है। और इसी बात से लोगों को खलबली होती है।
अशोक चौधरी के बरबीघा से जुड़ाव की लकीर को कुछ लोग साजिश करके छोटा करने का प्रयास करते हैं और हमेशा अशोक चौधरी इस लकीर को और बड़ा कर देते हैं।
ऐसे कुछ लोगों को मैं कहना चाहूंगा कि आप अपनी लकीर को बड़ा कर सकते हैं, तो बड़ा करके, बड़ा बनिए.... बस...