राजनीति, भाया केजरीवाल टू प्रशांत किशोर
बिहार की राजनीति में अभी फॉग चल रहा है। जिससे भी पूछिए, वही कहेगा, अभी फॉग चल रहा है। दरअसल फॉग अल्पायु होता है। पर गंध खूब मचाता है। सोशल मीडिया का चरित्र फॉग का चरित्र है। और इसी फॉग चरित्र के नायक केजरीवाल हुए और अभी बिहार में प्रशांत किशोर है। बिहार में कई साल पहले, आनंद मोहन और लवली आनंद भी इस फॉग को चलाने में लगे थे।
बिहार की राजनीति में प्रशांत किशोर ने कई महीने पहले ही बड़ी कंपनी की ताकत लगाते हुए पूंजीपति वाद की राजनीति शुरू की। एक एक विधान सभा में कई कई वेतनभोगी कर्मचारी, वोटरों का मन टटोलने, बदलने में लगे हैं। पैसे को पानी की तरह बहाया जा रहा। और निश्चित रूप में इसमें प्रदर्शित नहीं है। होती तो पार्टी के वेबसाइट पर आमदनी और खर्च सही-सही हिसाब दिया हुआ होता। इसमें भेद है। इसमें कई-कई छद्म विद्या है। एक परिवार लाभ कार्ड यही है।
अब चूंकि इसमें बीजेपी जैसी शक्तिशाली पार्टी प्रतिद्वंदी है, इसलिए इसपर बहुत कुछ कहना जल्दबाजी होगी। फिर भी, जब प्रशांत किशोर ने गांधी जयंती के दिन पटना में हाथ उठा कर पार्टी अध्यक्ष की घोषणा की, उसी दिन समझने वाले समझ गए कि ये कॉर्पोरेट राजनीति का चरमवाद के सिद्धांत का जयघोष हुआ है। और हुआ भी। और तो और, कुतर्क भी था। गांधी जयंती पर शराब बंदी को खत्म करने की घोषणा ने नैतिक मूल्यों को ताक पर रखने की भी घोषणा कर दी।
फिर हाईटेक पदयात्रा से शुरू हुआ सफर, गांधी मैदान से होकर आरोप लगाने तक पहुंच गया। और इस सबके साथ, मीडिया मैनेजमेंट की मास्टरी से सबको साधा गया। कई धुरंधर खुल कर पक्ष में बैटिंग करने लगे। और, प्रतिद्वंदी दलों के मुकाबले के लिए उपर्युक्त युक्ति राजनैतिक दृष्टिकोण से सही भी है। आंदोलन में विश्वास नहीं रखने वाले प्रशांत, आरोप का खेल खेलने लगे। आरोप को समझिए। अशोक चौधरी पर बेटी शांभवी के लिए टिकट खरीदने का अरोप प्रशांत ने लगाया। वही जब चिराग द्वारा टिकट बेचने की बात पत्रकार ने पूछा तो प्रशांत मुकर गए। बोले वे ऐसा नहीं करेगें। कोई बिचौलिया होगा। यही कुटिलता, राजनीति कौशल माना जाता है।
राजनीति में जो सामने से दिखता है, वही सच हो, ऐसा बिल्कुल नहीं होता। अब थोड़ी सी बात अरविंद केजरीवाल की।
जिनको याद है। वे याद करें। सोनिया गांधी, राहुल गांधी, शिला दीक्षित सहित भ्रष्टाचार की उनकी सूची लंबी थी। सभी को सत्ता में आने से पहले वे ऐसा कर रहे थे जैसे सत्ता में आते ही सभी को लटका देंगे। पर हुआ क्या..? अंततः, वे उन्हीं लोगों से साथ खड़े हो गए। और आंदोलन में उनके साथ खड़े होने वाले को, बारी-बारी से किनारे लगा दिया।
अब, उसी तरह का प्रयोग प्रशांत किशोर बिहार में कर रहे। आरोप लगाओ। इसमें बहुत सारा किंतु, परंतु है। पर बिहार में वबाल तो मच गया है। बहुत सारी बातें तो नहीं, पर मंत्री अशोक चौधरी को लेकर जो बेनामी संपत्ति का आरोप लगाया उसकी जद में आचार्य किशोर कुणाल को भी नहीं छोड़ा। आचार्य कुणाल जी, जीवन भर जिन मूल्यों को प्राप्त करने के लिए सामाजिक हवनकुंड में अपनी आहुति दी, उन्हीं पर सवाल उठा दिया। खैर, यह तो जांच का विषय है। बड़े बड़े ज्ञानवान लोग है। वे तय करेंगे। पर एक बात तो जो सहज समझ में आती है, वह है बेनामी संपत्ति होने का आरोप। बेनामी संपत्ति वह है, जिसका कोई मालिक सामने नहीं हो। पर अशोक चौधरी के मामले में ऐसा नहीं है। उनके अनुसार, बिहार के हर मंत्री को मुख्यमंत्री के पास अपनी संपति का विवरण देना पड़ता है। और उस विवरण में शामिल जमीन को ही प्रशांत उठा रहे, तो वह बेनामी कैसे हुआ। और तो और चुनावी घोषण पत्र में भी जिसका जिक्र हो, वह बेनामी कैसे हुआ।
अब, 200 करोड़ का आरोप फेंक दिया। विपक्ष, और पक्ष के विपक्ष, जो तेजी से आगे बढ़ने से खार खाए बैठे थे। आरोप को लोक लिया। वबाल मच गया। पर ठोस तथ्य सामने नहीं आया। जो तथ्य आए, वे सार्वजनिक होते है। अब बिहार में जमीन रजिस्ट्री का केवाल इंटरनेट पर उपलब्ध है। तब, इसमें कौन का अनुसंधान हुआ..! हां, राजनीति सध गई। क्षणिक। अब भर चुनाव यह खेल चलेगा। राजनीति में फॉग चलेगा। इसमें तत्काल कुछ लोग चपेट में आ जाएंगे, कुछ बच जाएगें। बाकी सब ठीक है।
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तथ्यपरक विश्लेषण और की सब ठीक है। शुभकामना।
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