``राजनीति में कोई किसी का दोस्त नहीं होता´´ यह कहावत कई बार सुना है और कई बार इसे देखा भी है। बिहार के मेनोफेस्टो सीएम कहे जाने वाले प्रदेश अध्यक्ष ललन सिंह जब बेलगाम घोड़े की तरह सरपट दौड़ रहे थे तो उनके सामने बिहार सरकार के मन्त्री भी कुर्सी पर बैठने की हिम्मत नहीं जुटा पाते थे और विधायकों को उनसे मिलने के लिए नाको चने चबाना पड़ता था तब आम लोगों की विशात ही क्या थी और फिर राजनीति के उपरोक्त कथन ने करवट बदली और मेनोफेस्टो सीएम जमीन पर गिर कर उसी तरह छटपटाने लगे जिसतरह पर कटे पंक्षी। आज बिहार के मुख्यमन्त्री नीतीश कुमार ने गुजरात सरकार की बाढ़ राहत राशि को लौटा कर सालों से चली आ रही राजग गठबंधन में पड़ी दरार के संकेत दे दिए। भाजपा के कद्दबार नेता और गुजरात के मुख्यमन्त्री नरेन्द्र मोदी के साथ हाथ में हाथ लिए नीतीश कुमार के विज्ञापन से नराज नीतीश कुमार बैखला कर पहले तो भाजपा नेताओं के भोज को केंसिल किया उसके बाद आज 5 करोड़ की राहत राशि को लौटा का भाजपा के नेताओं को यह साफ संकेत दे दिया उनकी खिचड़ी कुछ और ही पक रही है। हलांकि मेरी नज़र में नीतीश जी का यह कदम बेमानी है। नरेन्द्र मोदी भी जनता के द्वारा चुनी गई सरकार के प्रतिनिधि है और भाजपा कें माने हुए नेता भी और जब नीतीश कुमार भाजपा के साथ गठबंधन की सरकार चला रहे है तो लोगों को यह पता है की नीतीश कुमार भाजपा के नीतियों का कमोवेश समर्थन करते है। पर नीतीश कुमार ने गुजरात सरकार की राशि को लौटा का यह जता दिया कि वे भाजपा के साथ तो है पर उनकी नीतियों का विरोध करते है। पर नीतीश कुमार का यह कदम गुड़ खाऐ और गुलगुला से परहेज की बात हो गई। जब भाजपा के साथ हमारी सरकार चल रही है तो उनके नेताओं का अपमान करना कदापि उचित नहीं है इससे बेहतर तो यही होता कि नीतीश कुमार गठबंधन को खत्म कर देते और जनता के बीच जा कर इसके लिए जनाधार मांगते। हलांकि नरेन्द्र मोदी कें मामले में मेरा मत कभी भी तथाकथित सेकुलरवादियों के साथ नहीं रहा। मैं वामपन्थ विचारधारा का समार्थक रहा हूं पर गोधरा काण्ड पर सभी की चुप्पी और गुजरात दंगे पर हंगामा में मुझे इस विचारधार से विमुख किया और आज भी जब कोई नरेन्द्र मोदी को कठधरे में खड़ा करता है तो हमे गोधरा की याद हो आती है और लगता है कि इस देश में हिन्दू होना जैसे कोई गुनाह है और कांग्रेस, राजद की राह चलते हुए नीतीश ने भी यही जताया है। हम अपने को धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र कें रूप में खुद को पेश करते है पर समानता मेरे विचारों में नहीं होती। मेरी नज़र में गोधरा और गुजरात दंगा दोनो गलत है और दोनों की निन्दा उतनी ही तिब्रता से होनी चाहिए।
बात अगर बीजेपी की कि जाए तो उनकी हालत सबकुछ लुटा कर होश में आये तो क्या आये बाली हो गई। नीतीश कुमार जब पहली बार विकास पर निकले थे और उनके इस मुहिम में कही उपमुख्यमन्त्री या भाजपा कें नेता नज़र नहीं आये तभी भाजपा को यह समझ लेनी चाहिए थी नीतीश कुमार की मंशा अपनी छवि को इतना बड़ा कर लेने की है कि सभी उनके सामने बैने नज़र आए। नीतीश कुमार लगातार जनता में जाकर अपने विकास का िढढोरा पिटते रहे और शौचालय से लेकर गली-सड़क, पूल और भवन सभी का उदधाटन अपने ही करने लगे। उनके द्वारा एक नई परंपरा का जन्म दिया गया और वे पटना में बैठे बैठे भी रिमेट से पूल पुलिया का उदधाटन कर यह जताते रहे की बिहार में जो कुछ हो रहा वे सिर्फ और सिर्फ उनकी देन है और इस बीच एक बार फिर से फिलगुड में रहने वाले भाजपा के मन्त्री या तो नगद नारायण के फेरा में लगे रहे यह हाथ पर हाथ धर कर बैठे। इन सारे घटना चक्र में भाजपा के कार्यकत्र्ता उपेक्षित रहे और उन्हे लगने लगा की सरकार में उनकी पार्टी की नहीं चलती। अथक परिश्रम पर भी कई केन्द्र की सरकार से चूकी भाजपा को भी सत्ता में रहने का खुन लग गया और संध के द्वारा नीतीन गडकरी के हाथ में भाजपा की कमान सौंप तो दिया गया पर उन्हें पुरे देश की राजनीति समझते हुए बिहार की राजनीति को समझने में इतनी देर कर दी और नीतीश कुमार उनके सामने एक हौअआ की तरह खड़ा हो गए है कि उनके किसी भी नेताओं में उनके विरोध का साहस नहीं है। ( एक मात्र गिरीराज सिंह ने साहस तो दिखाया है पर इसके भी कारण कुछ और ही माने जा रहे है।)
अब नीतीश कुमार बिहार विधान सभा चुनाव से पहले ही भाजपा को आंख दिखा कर यह जताने की कोशिश कर रहे है कि भाजपा यहां दोयम दर्जे की पार्टी है और वह अपनी औकात में रहे। हलांकि भाजपा के जनाधार और समर्थकों की बात की जाए तो इसको एक बडे तबके और विभिन्न जातियों का समर्थन प्रप्त है और जो भी हो नीतीश कुमार आज एक जातिवादि नेता के रूप में खड़े है और भाजपा के कार्यकत्ताओं में इस बात का रोष भी है कि उन्होने ने जिस सरकार को बनाने में अपना खून-पसीना बहाया वह सरकार उनकी नहीं है। बात चाहे जो हो पर नीतीश कुमार अपनी राह बड़ी चतुराता से बना रहे है और मुस्लिम वोट बौंक की राजनीति उनके द्वारा भी की जा रही है और यह उनके द्वारा कांग्रेस से हाथ मिलने की चर्चाओं को भी हावा देने वाला कदम है। अब गेन्द भाजपा कें पाले में है और देखना है कि स्वाभिमान की बात करने वाली भाजपा कितना स्वाभिमानी है और अपने खिसकते जनधार को वे क्या सन्देश देती है।
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